फार्मा कंपनियों द्वारा रिश्वत सामान्य बुखार की गोली लिखने के नाम पर 1000 करोड़ रुपए की रिश्वत
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भाई राकेश ‘भारत’सह-सम्पादक
एवं मुख्य केन्द्रीय प्रभारी- भारत स्वाभिमान
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कोरोना काल में हर दिन 55 लाख की डोलो 650 बुखार की गोली बेचने वाली कंपनी की कहानी
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एक छोटी सी फार्मा कंपनी पर डॉक्टर को 1000 करोड़ रुपए की रिश्वत बांटने के गंभीर आरोप
हिंदुस्तान के लगभग 35 करोड़ घरों में यदि लोग अपने घर के दवा के डिब्बे को टटोलें तो वहां पर और कोई दवा मिले न मिले लेकिन बुखार की एक दवा पेरासिटामोल या एसिटामिनोफ़ेन जिसका साल्ट है वह डोलो (Dolo) नाम की दवा हर घर में अवश्य मिलती है। कोरोना काल में शायद ही ऐसा कोई घर परिवार होगा या व्यक्ति होगा जिसने दोनों का नाम नहीं सुना हो या जिसके डॉक्टर ने उस मरीज को डोलो (ष्ठशद्यश) नहीं लिखी हो। यह Dolo 650 टेबलेट कोई नई दवा नहीं है, साधारण तौर पर बुखार उतारने की वह दवा पेरासिटामोल है जिसके पूरी दुनिया में हजारों ब्रांड हैं, हजारों कंपनियां इस पेरासिटामोल को अलग-अलग नाम से बनाती हैं। भारत में भी हजारों तरह के पेरासिटामोल की पैकेजिंग मिलती है। लेकिन फिर भी भारत में अधिकतर डॉक्टर्स ने बुखार के रोगियों को Dolo 650 टैबलेट ही लिखी। भारत के लोगों ने इसको स्नेक्स तक कहना शुरू किया जिस प्रकार से लोग नाश्ते में नमकीन या दूसरी चीज खाते हैं वैसे ही घरों में डोलो का प्रयोग हुआ।
कोरोना काल में फार्मा कंपनी द्वारा Dolo 650 टैबलेट की मार्च 2020 से लेकर दिसंबर 2021 के बीच 350 करोड़ से ज्यादा गोलियां बेची गई अर्थात् हर दिन लगभग 55 लाख गोलियां Dolo 650 की भारत में बेची गई।
2019 में Dolo 650 के 7 करोड़ 50 लाख, 15 गोलियां वाले पत्ते बेचे गए। 2020 में लगभग 10 करोड़ Dolo 650 के पत्ते बेचे गए और 2021 में लगभग 15 करोड़ Dolo 650 की गोलियों के पत्ते बेचे गए। कोरोना काल में कंपनी ने हर दिन 86 लाख की कमाई केवल एक बुखार की टेबलेट बेचने से की। आप समझ सकते हैं अगर केवल 1.5 रुपए की बुखार की गोली से सैकड़ो हजारों करोड़ की कमाई की जा सकती है तो हजारों गम्भीर बीमारियों की महंगी दवाएँ बनाने वाली फार्मा लॉबी कितनी अमीर व शक्तिशाली होगी।
भारत में बुखार की दवा अर्थात् पेरासिटामोल की बिक्री 2021 में 924 करोड़ रुपए की रही। जिसमें केवल 307 करोड़ रुपए की Dolo 650 को बेचा गया। थोड़े से समय में ही Dolo 650 पूरे भारत की बुखार की, बदन दर्द की सबसे अग्रणी दवा बन गई।
फार्मा कंपनी कितनी तेजी से ग्रोथ करती हैं और कितना अधिक मुनाफा कमाती हैं इसका उदाहरण है Dolo 650 बनाने वाली बेंगलुरु की छोटी सी कंपनी माइक्रो लैब (Micro Labs) जिसकी शुरुवात 1973 में हुई थी, जिसका हेड क्वार्टर बेंगलुरु में था और इसने पेरासिटामोल जो पेटेंट फ्री दवा है उसके साल्ट से दवा बनानी शुरू की, पहले इस दवा का नाम Dolopar था, 1993 में इसी दवा को Dolo 650 के नाम से लॉन्च कर दिया गया और थोड़े से समय में ही चमत्कारिक तौर पर यह दवा डॉक्टर्स की पसंदीदा दवा बन गई और भारत के अधिकांश डॉक्टर्स ने अपने प्रिसक्रिप्शन पर बुखार, बदन दर्द और सर्दी आदि में इस दवा को लिखना शुरू कर दिया। आज देशभर में माइक्रो लैब की 17 से अधिक फैक्ट्रियां लगी हुई हैं और 50 से अधिक देशों में इस कंपनी का कारोबार है। 4,000 करोड़ रुपए से अधिक सालाना रेवेन्यू कंपनी द्वारा कमाया जाता है।
6 जुलाई 2022 को Dolo 650 दवा बनाने वाली बेंगलुरु स्थित फार्मास्यूटिकल कंपनी माइक्रो लैब के अलग-अलग ठिकानों पर इनकम टैक्स विभाग द्वारा छापेमारी की गई। आयकर विभाग ने कंपनी के नौ राज्यों में स्थित अलग-अलग स्थान पर छापेमारी करके यह आरोप लगाया कि कंपनी ने आय के संबंध में विशेष प्रावधानों का गलत फायदा उठाया, अलग-अलग तरह से टैक्स की चोरी की गई, जिसमें प्रारंभिक तौर पर आयकर विभाग ने लगभग 300 करोड़ रुपए के टैक्स की चोरी का अनुमान लगाया। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने आगे यह आरोप लगाया कि कंपनी ने अनैतिक व्यवहार की नीति को अपनाया है तथा अपनी दवा को लिखने के लिए मुफ्त उपहारों पर लगभग एक हजार करोड़ रुपए का खर्च किया है। यह भी आरोप लगाया गया कि कैसे कंपनी ने अपनी दवा की बिक्री को बढ़ाने के लिए डॉक्टर्स व मेडिकल प्रोफेशनल्स को जमकर मुफ्त उपहार बांटे। अलग-अलग डॉक्टर को दवा लिखने के नाम पर महंगी विदेश यात्रायें करवाने के लिए, अलग-अलग जगह पर सेमिनार करवाने के लिए, उपहारों पर 1,000 करोड रुपए से अधिक के खर्च अपने अकाउंट्स बुक में दिखाए गए। जिससे लगभग 300 करोड़ रुपए के टैक्स की चोरी की गई।
बुखार की दवा पर रिश्वत का सुप्रीम कोर्ट में मामला
फेडरेशन आफ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया नामक संस्था ने माइक्रो लैब द्वारा 1,000 करोड़ रुपए से ज्यादा दवा लिखने के नाम पर दिए गए रिश्वत व उपहार के आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट में अगस्त 2022 में एक जनहित याचिका दायर की। संस्था के वकील संजय पारिख द्वारा सुनवाई के दौरान सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्स की एक रिपोर्ट का संदर्भ देते हुए आरोप लगाया कि माइक्रो लैब फार्मा कंपनी ने अपनी दवा ष्ठशद्यश 650 लिखने के लिए डॉक्टर को 1,०00 करोड़ रुपए से ज्यादा के उपहार रिश्वत के रूप में दिए तथा डॉक्टर ने मरीजों को गलत डोज प्रिसक्राइब की।
दवा बेचने वाली कंपनियों का तंत्र कितना मजबूत है इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि आम आदमी से लेकर देश के सर्वोच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस तक को डॉक्टर ने यह दवा प्रिसक्राइब की है।
हालांकि इस पूरे मामले में दवा की गुणवत्ता को लेकर किसी प्रकार का आरोप नहीं लगाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने उसी समय केंद्र सरकार को इस जनहित याचिका पर एक सप्ताह के भीतर अपनी प्रतिक्रिया देने को कहा।
डोलो 650 का 500mg की जगह 650 मिलीग्राम की दवा बनाने का रहस्य
पेरासिटामोल एक सामान्य जेनेरिक साल्ट है जो बुखार के लिए काम आता है इस पेरासिटामोल के साल्ट को लेकर कोई भी कंपनी दवा बन सकती है, 500 मिलीग्राम की दवा की टेबलेट की कीमत ड्रग प्राइसिंग अथॉरिटी द्वारा तय की हुई है कोई भी कंपनी 500 मिलीग्राम की पेरासिटामोल की टेबलेट के लिए निर्धारित कीमत से अधिक कीमत नहीं ले सकती, लेकिनफार्मा कंपनियां सरकार के कानून का मजाक बनाते हुए 500 की जगह 650 मिलीग्राम की दवा बनाकर अपनी मर्जी के मूल्यों का निर्धारण करती हैं। जिससे जो मरीज 500 मिलीग्राम की दवा लेता है उसकी जगह 650 मिलीग्राम की दवा लेनी शुरू कराई गई तथा मरीज से ज्यादा मूल्य वसूलने के लिए डॉक्टर को प्रभावित करके 500 मिलीग्राम पेरासिटामोल के स्थान पर 650 मिली ग्राम विशेष ब्रांड की दवा लिखवाई जाती है, जिससे मरीज को कई गुना ज्यादा मूल्य चुकाकर वही दवा मिलती है जो वह सस्ती भी प्राप्त कर सकता है। डॉक्टर इस महंगी दवा को इसलिए लिखते हैं क्योंकि उनको इस दवा को लिखने के नाम पर कमीशन, मुफ्त उपहार के रूप में रिश्वत मिलती है जिससे बहुत से डॉक्टर जेनेरिक पेरासिटामोल न लिखकर विशेष ब्रांड की दवा लिखते हैं। माइक्रो लैब कंपनी ने भी पेरासिटामोल 500 मिलीग्राम की जगह 650 मिलीग्राम बनाकर अपनी मनमर्जी से उनके मूल्य का निर्धारण किया और हजारों करोड़ रुपए की पेरासिटामोल बेची गई।
फेडरेशन ऑफ़ मेडिकल एंड सेल्स रिप्रेजेंटेटिव संगठन की ओर से याचिका में यह भी कहा गया कि इस तरह के मामलों में रिश्वत के लिए डॉक्टर पर तो केस चलाया जाता है पर जबाब दे ही न होने से दवा कंपनियां बच जाती हैं, याचिका में रिश्वत देने वाली कंपनियों के खिलाफ भी जवाब दे ही व कार्यवाही सुनिश्चित किए जाने की मांग की गई।
दवा के नाम पर पूरी दुनिया में लूट लगातार जारी है
फिलहाल यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है तथा इस मामले पर अंतिम निर्णय अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है, लेकिन इस एक उदाहरण से हम समझ सकते हैं कि यह फार्मा कंपनियां कितनी ताकतवर हैं जब एक बुखार के दवा के नाम पर 1,000 करोड़ रुपए की रिश्वत बांटी जा सकती है तो जितनी गंभीर बीमारियां हैं और जिनकी दवाएं सम्बंधित रोगी द्वारा नियमित तौर पर उपयोग की जाती हैं। उनके पीछे कितना बड़ा रिश्वत या पैसे के लेनदेन का खेल होता होगा, आप स्वयं कल्पना कर सकते हैं। फार्मा कंपनियों द्वारा चलाए जा रहे इस फार्मा सेक्टर में भ्रष्टाचार एक संगठित उद्योग की तरह चलता है। अलग-अलग समय पर आई अलग-अलग रिपोर्ट्स में यह सार्वजनिक सत्य है कि मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव अपनी कंपनी के ब्रांड की दवा लिखने के लिए डॉक्टर को अलग-अलग तरीके से उपहार, कमीशन या रिश्वत की पेशकश करते हैं। यह रिश्वत कैश के रूप में, महंगी विदेशी यात्राओं के रूप में, स्मार्टफोन के रूप में, गिफ्ट वाउचर के रूप में, अलग-अलग तरह के अन्य खर्चों के रूप में की जाती है। इंटरनेशनल लेवल के ऊपर विदेशी यात्राएं, इंटरनेशनल कांफ्रेंस के नाम पर या सेमिनार के नाम पर डॉक्टर को एक विशेष दवा लिखने के लिए करवाई जाती है। यद्यपि सभी डॉक्टर या सभी कंपनियां गलत नहीं है लेकिन इस क्षेत्र में अधिकांश कंपनियों व अधिकांश डॉक्टर दवा लिखने के नाम पर कमीशन या मुफ्त उपहार प्राप्त करना अपना अधिकार समझते हैं। 2016 में यूनिफार्म कोड ऑफ फार्मेसी मार्केटिंग प्रैक्टिस के नाम से एक वॉलंटरी कोड जारी किया गया जिसमें दवा कंपनियों द्वारा डॉक्टर और हेल्थ केयर प्रोफेशनल को किसी तरीके का गिफ्ट देने पर रोक लगाने का नियम बनाया गया लेकिन इस वैकल्पिक निर्देश या नियम का पालन करने वाली दवा कंपनियां व डॉक्टर बहुत बड़ी संख्या में नहीं है।
सख्त कानूनी प्रावधान न होने पर इनका पालन नहीं होता, यदि नियामक एजेंसी इस पर कानून बनाने का प्रयास करते हैं तो फार्मा कंपनियां या डॉक्टर्स के संगठन सरकार पर दबाव बनाकर इनको लागू नहीं होने देते। फार्मा कंपनियां स्वास्थ्य सेवा का क्षेत्र न होकर भ्रष्टाचार व लूट का क्षेत्र बन गया है।
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