भारतीय शिक्षा बोर्ड की विशेषताएं

भारतीय शिक्षा बोर्ड की विशेषताएं

पाठ्यचर्या

भारतीय शिक्षा बोर्ड का लक्ष्य बच्चों में विश्लेषण-परक दक्षता को विकसित करना एवं उन्हें सशक्त संश्लेषण की प्रतिभा से युक्त करने के साथ बच्चों में आदर्श जीवन मूल्यों के साथ अभ्युदय एवं नि:श्रेय भाव का सृजन करना है। बच्चों में सोच के साथ समझ की एकात्मकता, एकाग्रता और अनुशासन का मणिकांचन योग हो, वहीं पर अन्त:करण चतुष्टय-(मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) और पंचकोष- (अन्नमय कोष, प्राणमय कोष, मनोमय कोष, विज्ञानमय कोष, आनंदमय कोष) की अवधारणा से चेतन अवचेतन और अचेतन मन का निर्माण भी हो।
वेद वेदोन्मुखग्रन्थ, उपनिषद, गीता, पतंजलि, बौद्ध, जैन, संवैधानिक तथा एन.सी.एफ. द्वारा निर्धारित मानवोचित वैश्विक मूल्यों एवं गुणों के समुच्चय को केन्द्र में रखते हुए भारतीय शिक्षा बोर्ड में पाठ्यचर्या का निर्माण किया गया है।
भारतीय शिक्षा बोर्ड ने शिक्षा की समग्रता के लिए अपने ऐसे पाठ्यक्रम को निर्मित किया है, जिसमें प्राचीन शिक्षा की विशिष्ट पद्धति, गुरुकुल शिक्षा, संस्कार से संस्कृति की ओर गौरवशाली गुरुशिष्य परम्परा और आधुनिक शिक्षा के सभी अकादमिक, तकनीकी और व्यवसायोन्मुख प्रारूपों को सम्मिलित किया गया है।
श्रीमद्भगवद्गीता के सोलहवें अध्याय में भगवान श्रीकृष्ण का अर्जुन को दिया गया उपदेश जिसमें व्यक्ति के चरित्र व आचरण में निहित जिन अनेक गुणों को बताया गया है उन समस्त गुणों को भारतीय शिक्षा बोर्ड (क्चस्क्च) अपने शिक्षार्थियों में समाविष्ट करने के लिए संकल्पवान है एवं तदनुसार पाठ्यचर्या में इन गुणों का समावेश किया गया है।
भारतीय शिक्षा बोर्ड (क्चस्क्च) भारतीय संविधान के संकल्प 'हम भारत के लोग न्यायिक संरक्षण के साथ मौलिक अधिकारों से युक्त नागरिक होने के एहसास के साथ कर्त्तव्यों पर भी जोर देते हैं। राज्य को उनके कर्त्तव्यों का बोध कराने के लिए राज्य के नीति निर्देशक तत्व द्वारा सभी मानवीय मूल्यों के संरक्षण और पोषण के लिए संवैधानिक शक्ति की व्यवस्था की गयी है। इसमें मौलिक अधिकार, मूल कर्तव्य और राज्य नीति के निदेशक तत्व के संतुलित संयोजन से ऐसी शिक्षा व्यवस्था बनाई जाए कि भारत अपनी विविधता में एकता को प्रत्येक नागरिक के चरित्र निर्माण के लिए केन्द्रित करके चले।
भारत की एक अनूठी संवैधानिक व्यवस्था है। संघात्मक होते हुए एकात्मक होना।
भारतीय शिक्षा बोर्ड (BSB) अपने अन्य उद्देश्यों के साथ इस उद्देश्य को भी अपनी पाठ्य पुस्तकों में समाहित करेगा ताकि संवैधानिक समग्रता के साथ राष्ट्रीय चरित्र के युवा नागरिक का निर्माण हो, इससे भी आगे मानव की श्रेष्ठता एवं सर्वांगीण विकास के लिए आध्यात्म आधारित शिक्षा में नए आयाम और प्रतिमानों के साथ सभी पाठ्यक्रम नए कलेवर के साथ होंगे जिसमें मूल विषय तो NCERT आरै NCF के अनुसार होंगे लेकिन उनमें भारत की प्राचीन सभ्यता, मूल्यों और संस्कृति का समावेश होगा। पाठ्य सामग्री के साथ Hybrid Model के रूप में Digital Content के रूप में प्राचीन मूल्यों को कथानक के साथ जोड़ा जाएगा।
इन पाठ्यक्रमों को 'नई शिक्षा नीति 2020Ó के अनुरूप व्यावसायिक शिक्षा के समानांतर तैयार किया जाएगा, जिसमें साहित्यिक और व्यावसायिक ज्ञान दोनों ही समाहित होंगे।
व्यावसायिक शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों में शुरू से ही शिल्प और व्यवसाय में कौशल विकास (Skill Development) और पेशेवर रुझान (Vocational Mindset) बनाना जिससे वे एक सफल उद्यमी बन सकें जिसमें 'कर्म और श्रम का सम्मानऔर नारी उत्थान की अवधारणा केन्द्र में होगी।

अधिगम प्रतिफल

(Learning Outcomes)

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में यह संकल्पना की गई है कि “The goal is to develop good human beings, capable of independent rational thought and action, with compassion and humanness, with courage and creative imagination, based on sound ethical morning and a rootedness in India."
बच्चों के व्यक्तित्व के समग्र विकास हेतु दक्षता आधारित शिक्षण (competency based learning) अपनाया जाएगा, ताकि बच्चों में सोचने, विश्लेषण (analytical ability) सृजनात्मक, बोलने और लिखने की दक्षता एवं तार्किक रुप से अपने विचार रखने की क्षमता का विकास हो सके।

शिक्षण पद्धतियाँ

(Pedagogical Approaches)

भारतीय शिक्षा बोर्ड शिक्षण पद्धति को इस तरह लेकर चला है जिसमें शिक्षार्थी और अध्यापक परोस्परोन्मुखी होंगे। वहीं पर उक्त छात्र और शिक्षक दोनों अभिभावकोन्मुखी होंगे।
छात्र, शिक्षक और अभिभावक प्रबंध समिति के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करेंगे कि शिक्षा का व्यवसायीकरण न हो, ऐसा सतत् प्रयास भारतीय शिक्षा बोर्ड का होगा।
इसके लिए प्रमुख रूप से अनुभव आधारित अधिगम (Experiential Learning) पर जोर होगा। शिक्षण पद्धतियों में प्रमुख रुप से वास्तविक अधिगम पर जोर दिया गया है, जो प्रयोग,
खेल, खोज, विश्लेषण, विमर्श तथा दक्षता से समन्वित होगी।
NEP-2020 के अनुसार छात्र मूल्यांकन में केवल रट कर याद करने के स्थान पर विषय वस्तु को समझने के मूल्यांकन पर जोर दिया जाएगा। मूल्यांकन सतत (Continue) त (Comprehensive) होगा। सत्रीय मूल्यांकन (Terminal Examination) के स्थान पर रचनात्मक मूल्यांकन (Formative Assessment) किया जाएगा। मूल्यांकन में छात्र के व्यक्तित्व के सभी पक्षों का समग्र रूप से ध्यान रखा जाएगा।

मूल भाषा के साथ क्षेत्रीय भाषाओं की भागीदारी

भारतीय शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रमों में हिन्दी, संस्कृत तथा अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ संविधान मे उल्लिखित सभी भाषाओं को स्थान दिया गया है। भारत की प्राचीन भाषा देववाणी संस्कृत को कक्षा 1 से 12 तक आवश्यक बनाया गया है। भारत विभिन्न भाषाओं का देश है।
यहाँ विविध क्षेत्रों की अपनी अलग-अलग भाषाएँ हैं। अत: क्षेत्रानुसार प्रत्येक क्षेत्र की अपनी विशेष भाषा को प्राथमिकता दी गयी है और पाठ्यक्रम भी उसी क्रम में विन्यासित किए गए हैं।
छोटे बच्चों के संप्रत्यय स्वभावत: शीघ्र और स्थायी रूप से उनके अपने परिवार की क्षेत्रीय भाषा में बनते हैं, इसलिए पाँचवीं कक्षा तक की पढ़ाई-लिखाई बच्चे की अपनी क्षेत्रीय भाषा में होनी चाहिए। बड़ी कक्षाओं में शिक्षार्थियों के पठन-पाठन की सामग्री सभी भाषाओं में सुनिश्चित की जायेगी।
भारतीय शिक्षा बोर्ड 2020 की शिक्षा नीति के अनुसार सैद्धांतिक और व्यावहारिक रूप से चरित्रवान नागरिक तैयार करने के ध्येय को लेकर चला है जो विविधता की स्वीकार्यता के साथ-साथ भारत की एकता में दृढ़ विश्वास ले कर चला है।
भारतीय शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम में वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, जलवायु असंतुलन, असुरक्षा, हिंसा, अविश्वास और आतंकवाद जैसी अवधारणाओं को नकारते हुए भारत की 'वसुधैव कुटम्बकम्की अवधारणा समाहित है, जिसमें भारत की समस्त भाषाओं, संस्कृतियों और मानव मूल्यों की गरिमा भी स्थापित की गयी है।

भारतीय शिक्षा बोर्ड का आह्वान

शिक्षा को नौकरी परक नहीं अपितु नेतृत्व परक बनाना हमारा लक्ष्य है 'भारतीय शिक्षा बोर्डÓ शिक्षा के माध्यम से नवसृजन की आधारशिला रखने के लक्ष्य में, सम्पन्नता, बुद्धिमत्ता, कुशलता और समर्थता का संयोजन लिए हुए प्रतिभाओं के विकास व भौतिक एवं  सांस्कृतिक समृद्धि के लिए ही है।
प्रतिभा के परिष्कार और उसके प्रति संस्कार के लिए विद्यार्थियों की अन्तर्निहित क्षमताओं का परिवर्धन और मनुष्यता के प्रति विश्वास, पूर्वाग्रह एवं दुराग्रहों से मुक्त सुव्यवस्था और उत्साह, साहस और आत्मविश्वास से युक्त नेतृत्व के ध्येय से पाठ्यक्रम का निर्माण किया गया है। जिसका उद्देश्य है- शारीरिक ओज, मानसिक तेज और अन्तर्मन में सन्निहित वर्चस्व के साथ संयमित संसाधनों से युक्त प्रवीण युवाओं का निर्माण होगा। जहाँ सभी प्रकार के सम्मान यथा श्रम और नारी की तेजस्विता का समेकन भी होगा।

सम्पूर्ण शिक्षा की अद्वितीय प्रणाली

भारतीय शिक्षा बोर्ड द्वारा संचालित शिक्षा प्रणाली बालक के सर्वांग रूपान्तरण की नूतन प्रणाली है। जो बाल विकास की प्रक्रिया, बाल मनोविज्ञान के व्यावहारिक सूत्रों तथा सिद्धान्तों पर आधारित होगी। पुरातन एवं आधुनिक ज्ञान, विज्ञान तथा तकनीकी पर आधारित पाठ्य पुस्तकों में शिक्षण के लिए शोध पाठ्यक्रम पर आधारित नयी-नयी प्रविधियों, नीतियों तथा कौशलों का समावेश किया जायेगा। शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया के अन्तर्गत मूल्यांकन का परिणाम सुनिश्चित करेगा कि बालकों के व्यवहार प्रतिमानों में कितना रूप-परिवर्तन घटित हुआ है। अनुभवों तथा उपलब्धियों की प्रतिपुष्टि या पृष्ठ-पोषण से प्रक्रिया में परिवर्तन को आँका जा सकेगा।
भारतीय शिक्षा बोर्ड द्वारा परिचालित यह नयी शिक्षा प्रणाली भारतीय बोध को केन्द्र में रखकर बच्चों में दक्षता का विकास करेगी। शिक्षा के विभिन्न उद्देश्यों में से सर्वप्रमुख उद्देश्य यह होगा कि शिक्षित बालक में भारतीयता के गुण किस सीमा तक विकसित हो सके हैं। यह सर्वांग शिक्षा प्रणाली अनुभूत बोधगम्य होगी जिसके अन्तर्गत बालक के जीवन मूल्य उसके जीवनादर्श के साथ समान्तर तारतम्य से अनुप्रेरित होंगे अर्थात् अनुभूति के सामर्थ्य से व्युत्पन्न बाल चेतना की ज्ञान उपज उसके अन्त:करण में समानान्तर अनुनाद पैदा कर सकेगी। हम जानते हैं कि आदर्श जीवन मूल्यों में प्रतिष्ठित नये इंसान का निर्माण कोई सहज अथवा सरल कार्य नहीं है तथापि अन्तर्बोध जगाने वाली पतंजलि से अनुप्राणित शिक्षा आने वाले समय में नये इंसान को जन्म देगी।
भारतीय शिक्षा बोर्ड की इस नूतन शिक्षा व्यवस्था में पुरातन के साथ नये ज्ञान का सुन्दर मिश्रण तो होगा ही, इसी के साथ लौकिक तथा पारलौकिक दोनों ही विद्याओं को महत्व दिया जायेगा। यह प्रणाली योग-साधना के पारलौकिक बल पर बच्चों के अवचेतन मन को विकसित करके अद्भुत व अनुपम कारनामे करके दिखाने में सक्षम हो सकेगी।
अध्यात्मवाद या आध्यात्मिकता के बिना कोई भी देश श्रेष्ठ नागरिकों का निर्माण नहीं कर सकता। शिक्षा की यह पद्धति शास्त्रों के माध्यम से आत्मज्ञान के साथ-साथ आधुनिक ज्ञान-विज्ञान एवं तकनीकी की अपरिहार्य शिक्षा भी प्रदान करेगी। गुरुकुलीय एवं आधुनिक परम्पराओं के मिश्रण इस उदीयमान शिक्षा प्रणाली से गुजर कर भारत देश के बच्चे, आत्मनिर्भर बच्चे बनेंगे जो भारत राष्ट्र के साथ समूचे विश्व का कल्याण करेंगे।
भारतीय शिक्षा बोर्ड द्वारा प्रतिवेदित शिक्षा का स्वरूप युग प्रेरित, अद्वितीय एवं अद्भुत शिक्षा के संप्रत्यय तथा दर्शन का बोध कराएगा।
नया युग सदैव नयी चेतना, नयी दिशा और नयी दृष्टि चाहता है। वर्तमान के लिए आज नये सिरे से यह विचारने की घड़ी आ गयी है कि जब उसे अपने गौरवशाली अतीत पर दृष्टिपात करके चिन्तन करके आत्मबोध करना होगा कि उसके पूर्वजों ने अपने अक्षुण्ण आत्मबलिदान, त्याग, तपस्या और पुरुषार्थ के बल पर उसके लिए कितना कुछ किया है तथा उसे कितनी अमूल्य निधियों के उपहार दिये हैं। हमारे ऋषि महर्षियों की अनवरत साधना से वेद, उपनिषद्, पुराण, श्रीमद्गवद्गीता, श्रीरामचरितमानस, नाना प्रकार की नीतियों, सिद्धान्तों तथा जीवन-कौशलों का प्रादुर्भाव हुआ है। भारत-भूमि के वीर सेनानियों तथा वीरांगनाओं के अदम्य पराक्रम एवं प्रेरक प्रसंगों से पूरा इतिहास भरा पड़ा है। प्राचीनकाल से अद्यपर्यन्त संतों महापुरुषों, वैज्ञानिकों, गणितज्ञों, ज्योतिषियों, चिकित्सा शास्त्र तथा साहित्य मर्मज्ञों के ज्ञान-विज्ञान और शोधपरक अनुभवों से अतुलनीय कोष की सृष्टि हुई है। अपने पूर्वकाल की महाविभूतियों के सत्कार्यों तथा जीवन-दृष्टांतों का अनुसरण करके ही आने वाले समाज की प्रगति का पथ प्रशस्त हुआ है।
कुम्हार के चाक पर बर्तन बनते हैं तो शिक्षा के चाक पर मनुष्य। भोगवाद से प्रेरित संकीर्ण विचारों तथा हीन मान्यताओं की निर्मात्री वर्तमान शिक्षा प्रणाली ने नयी पीढ़ी की उदीयमान अपनी सन्तानों को बेहतर और अच्छा इंसान बनाने की जगह धन एवं सम्पदाओं के
निर्बाध उत्पादन तथा संग्रह की ऐसी मशीन बना दिया जो तनिक भी थमने का नाम नहीं ले रही है। इसीलिए आजकल अध्यात्मदर्शियों (साधु-सन्तों) सामाजिक विचारकों, न्यायकर्ताओं, भविष्य दृष्टाओं तथा शिक्षाविदों के सम्मुख सोये समाज में नयी चेतना जगाने का विचारणीय प्रश्न उपस्थित हो गया है।

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