भारतीय शिक्षा बोर्ड की स्थापना एवं उसकी आवश्यकता
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आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने अमृत महोत्सव के दौरान शिक्षा के क्षेत्र में क्रान्तिकारी कदम के रूप में भारतीय शिक्षा नीति 2020 का उद्घोष किया तथा उसी कड़ी में एक महत्वपूर्ण कदम भारतीय शिक्षा बोर्ड को संचालित करने हेतु वैधानिक स्वरुप प्रदान किया। परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज विगत एक दशक से निरन्तर हर मंच पर ये बात प्रमुखता से उठाते रहे कि राष्ट्र तभी पूर्ण स्वाधीन एवं वैश्विक स्तर पर सशक्त होगा जब हमारी शिक्षा पद्धति स्वदेशी होगी। स्वदेशी का उनका तात्पर्य यह था कि हमारी शिक्षा पद्धति सनातन साझा संस्कृति के गर्भ से उद्भूत होनी चाहिए। उनका ये तर्क था कि हम जब तक अपनी शिक्षा पद्धति में अपने महापुरुषों के संकल्पों को समावेशित नहीं करेंगे तब तक हमारी शिक्षा पद्धति मूलत: मैकाले द्वारा प्रतिपादित पाश्चात्य शिक्षा पद्धति की नकल व विस्तार होगी। प्राचीन ज्ञान परम्परा के बिना पाश्चात्य संस्कृति पर आश्रित शिक्षा युवा पीढ़ी को राष्ट्र की जड़ों से दूर हटाती है।
प्राचीन ज्ञान परम्परा एवं नूतन अनुसंधानों से समन्वित शिक्षा का अनुपम संगम
भारत सरकार द्वारा भी यह अनुभव किया गया कि जब हम भारत की ज्ञान परम्परा को अलग से पढ़ाते हैं तथा उसका समावेश नूतन अनुसंधान के साथ नहीं होता है तो वह शिक्षा पद्धति भी अधूरी रहती है और अभिभावक एवं छात्रों को आकर्षित नहीं कर पाती है। उनके मस्तिष्क में यह भाव आता है कि मात्र प्राचीन परम्परा पढ़ने से हम वर्तमान चुनौतियों के लिए आवश्यक जीवन कौशल से भिज्ञ नहीं रहेंगे। इसलिए अनेक दौर के विचारों के चिन्तन के बाद यह अनुभव किया गया कि इसका एक मात्र समाधान प्राचीन ज्ञान परम्परा एवं नूतन अनुसंधानों से समन्वित शिक्षा ही हो सकती है। इसके लिए शिक्षा मंत्रालय (पूर्व में मानव संसाधन एवं विकास) भारत सरकार के स्वायत्तशासी संस्था के माध्यम से एक 'एक्शप्रेशन ऑफ इन्टे्रस्ट’ (Expression of Interest) जारी किया गया जो तत्कालीन शिक्षामंत्री की अध्यक्षता में तैयार किये गये मॉडल बाय लॉज (Model Bye-Laws) पर आधारित थी। 'एक्शप्रेशन ऑफ इन्टे्रस्ट’ (Expression of Interest) के माध्यम से एक 'स्पान्सेरिंग बॉडी’ (Sponsoring Body) का चयन किया जाना था जो मॉडल बाय लॉज के अनुरूप भारतीय शिक्षा बोर्ड सोसाइटी पंजीकृत करके भारतीय शिक्षा बोर्ड का गठन करेगी।
मॉडल बाय लॉज के अनुसार सात (7) सदस्य भारत सरकार द्वारा नामित और ग्यारह (11) सदस्य 'स्पान्सेरिगं बॉडी, भारतीय शिक्षा बोर्ड द्वारा 'गवर्निंग बॉडी में होंगे। भारत सरकार द्वारा नामित भारतीय शिक्षा बोर्ड के सात (7) सदस्य निम्नवत् हैं -
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अध्यक्ष, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अथवा उनके द्वारा नामित प्रतिनिधि जो निदेशक स्तर से अन्यून।
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निदेशक, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् अथवा उनके द्वारा नामित प्रतिनिधि जो प्रोफेसर स्तर से अन्यून।
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उपाध्यक्ष, महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान।
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सचिव, महर्षि सान्दीपनि राष्ट्रीय वेदविद्या प्रतिष्ठान।
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कुलपति, राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान अथवा उनके द्वारा नामित प्रतिनिधि जो प्रोफेसर स्तर से अन्यून
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कुलपति, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ दिल्ली अथवा उनके द्वारा नामित प्रतिनिधि जो प्रोफेसर स्तर से अन्यून
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कुलपति, राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ तिरुपति अथवा उनके द्वारा नामित प्रतिनिधि जो प्रोफेसर स्तर से अन्यून।
सम्पूर्ण वैधानिक प्रक्रिया का अनुपालन करते हुए पतंजलि योगपीठ मार्च 2019 में स्पोन्सरिंग बॉडी के रूप में चयनित हुई। पतंजलि योगपीठ ने अप्रैल 2019 में सोसाइटी का पंजीकरण कराया और बोर्ड का गठन किया। 'मॉडल बाय लॉज’ में ये भी प्राविधानित किया गया था कि भारतीय शिक्षा बोर्ड का पाठ्यक्रम (Curriculum) और पाठ्य विवरण (Syllabus) भारत सरकार के स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग से अनुमोदित कराया जायेगा और उसकी उपयुक्तता का भी परीक्षण भारत सरकार के स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा होगा। ये भी मॉडल बाय लॉज में उल्लेख किया गया है कि भारतीय शिक्षा बोर्ड, सी.बी.एस.ई. की ही तरह संचालित बोर्ड होगा, जो पूर्णत: प्रशासनिक एवं वित्तीय रूप से स्वतन्त्र होगा।
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भारतीय शिक्षा बोर्ड द्वारा पाठ्यक्रम और पाठ्य विवरण तैयार करके भारत सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया गया जिसका परीक्षण एन.सी.ई.आर.टी. और सी.बी.एस.ई. से कराया गया और उसके आधार पर यह प्रमाणित किया गया कि करीकुलम् एन.सी.एफ. के अनुकूल एवं एन.ई.पी. 2020 के भावनाओं के अनुरूप है।
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बोर्ड को वैधानिक रूप से चलाने के लिए यह आवश्यक है कि बोर्ड देश के समस्त केन्द्रीय बोर्ड एवं राज्य सरकारों के समस्त बोर्ड के समकक्ष वैधानिक रूप से मान्य हो। ऐसा इसलिए आवश्यक है कि जिससे भारतीय शिक्षा बोर्ड के माध्यम से पढ़े हुए छात्रों को आवश्यकता पड़ने पर अन्य बोर्ड से मान्यता प्राप्त विद्यालयों में प्रवेश मिल सके, साथ ही विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक सत्र में प्रवेश की अर्हता हो जाए, भारत सरकार एवं राज्य सरकारों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों की नौकरियों के लिए भारतीय शिक्षा बोर्ड के मूल्यांकन प्रमाण-पत्र को वैधानिकता मिले। इसके लिए भारत सरकार ने समस्त बोर्ड के मानकीकरण और पारस्परिक समकक्षता के लिए ए.आई.यू. ((Association of Indian University) को कतिपय निर्देशों के साथ अधिकृत किया।
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अब तक उत्तराखण्ड एवं गोवा सरकार द्वारा भारतीय शिक्षा बोर्ड को सी.बी.एस.ई. की तरह एक बोर्ड के रुप में अपनी सूची में सम्मिलित कर लिया, जिससे अब उत्तराखण्ड एवं गोवा राज्य का कोई भी विद्यालय भारतीय शिक्षा बोर्ड से सम्बद्धता (Affiliation) के लिए आवेदन करें तो राज्य सरकार अनापत्ति प्रमाण-पत्र (No Objection Certificate) निर्गत कर सकता है। इससे स्पष्ट है उत्तराखण्ड एवं गोवा में तत्काल किसी भी इच्छुक शैक्षिणिक संस्था को सम्बद्ध (Affiliate) किया जा सकता है। वर्तमान में एक विद्यालय को सम्बद्धता भी दी जा चुकी है।
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भारत के अन्य प्रान्तों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के सक्षम अधिकारी को उनके क्षेत्र में संचालित समस्त बोर्ड की सूची में सम्मिलित करने के लिए भारतीय शिक्षा बोर्ड द्वारा ए.आई.यू. के पत्र के आधार पर निवेदन किया गया है। जिसकी औपचारिकता अगले कुछ महीनों में सम्भावित है। पूर्ण सम्भावना है कि भारतीय शिक्षा बोर्ड वर्ष 2023 में समस्त प्रान्तों को सम्बद्धता देने में सक्षम हो जायेगा ।
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इस लेख के प्रारम्भ में हमने उल्लेख किया है कि 'मैकाले की विषाक्त शिक्षा का अमृत समाधान है’ भारतीय शिक्षा बोर्ड, यह एक भावात्मक वाक्य मात्र नहीं है, बल्कि इसके प्रामाणिक आधार हैं। मैकाले ने जिस शिक्षा पद्धति को प्रतिपादित किया था उसके निम्न उद्देश्य थे -
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ईस्ट इंडिया कम्पनी एवं ब्रिटिश राज्य के लिए ऐसे युवाओं को तैयार करना जो कम वेतन पर 'ब्यूरोक्रेसी और उनकी सेना के लिए उपलब्ध हों।
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ऐसी शिक्षण पद्धति लागू की जाए जिससे भारत के युवाओं के अन्दर भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना समाहित हो जाए और वे यह समझने लगे कि पाश्चात्य दर्शन हमारी भारतीय संस्कृति से कई गुना बेहतर है। इस प्रकार आत्म गौरव के भाव पर चोट करना और पाश्चात्य सभ्यता को वरेण्य मानने की प्रवृत्ति विकसित करना। इस मनोभाव के पीछे यह भाव निहित था कि जो समाज और राष्ट्र अपने संस्कृति की विरासत को हीन समझने लगे उसको उपनिवेश के रूप में बनाये रखना सुविधाजनक होगा।
विद्यार्थियों को नवोन्मेष एवं शोध की प्रवृत्ति से दूर रखना
मुख्यत: ऐतिहासिक शिक्षण सामग्रियों के माध्यम से यह दृष्टांत गढ़ना कि भारत कभी राष्ट्र ही नहीं रहा और यहाँ भिन्न-भिन्न मानव प्रजाति एक दूसरे के प्रतिरोध के साथ विकसित हुए। इसके लिए एक तो पुरातात्विक उत्खनन भारत में बहुत कम किये गए और सीमित पुरातात्विक सामाग्रियों से निष्कर्ष निकालते हुए उसमें ऐसा 'नेरेटीव गढ़ा गया जो भारत के विभिन्न समाज, प्रान्त एवं भाषाई लोगों के मध्य दरार पैदा करे। उन्होंने 'एंथ्रोपोलॉजी (नृ-विज्ञान) के अत्यन्त सीमित शोधों के आधार पर हड़प्पा एवं आर्यन संस्कृति को परस्पर विरोधी परम्परा बताते हुए उत्तर-दक्षिण भारत का विवाद पैदा करने की कोशिश की। सवर्ण और असवर्ण के मध्य यह कहते हुए विवाद पैदा करने की कोशिश की गई कि यह अवधारणा शास्त्रों में वर्णित है। सनातन, बौद्ध, जैन एवं सिख के मध्य भी भेद-भाव को प्रमुखता से दिखाते हुए भी दरार पैदा करने की कोशिश की गई। इसके पीछे मैकाले और सहयोगी लोगों की सोच रही है कि यदि भारत कभी राजनैतिक रूप से भी स्वतन्त्र हो जाए तो अखण्ड भारत न बन सके और सोच व संस्कृति के आधार पर ब्रिटिश का उपनिवेश हमेशा बना रहे। इस शिक्षण पद्धति के आधार पर बहुत सारे दृष्टांत और उसका प्रभाव अखण्डता में बाधक होते हुए दिखाई पड़ता है। आज भी पाठ्यपुस्तकों में उसी विषाक्त वृतांत का बोल-बाला है।
भारतीय शिक्षा बोर्ड इस विष का उपचार करने का सशक्त साधन है। हमारी पाठ्यचर्या, पाठ्य पुस्तकें, शिक्षण पद्धति, शिक्षणेत्तर गतिविधियाँ एवं मूल्यांकन पद्धति इस प्रकार होगी कि प्रत्येक विद्यार्थी का विकास अखण्ड भारतबोध के साथ होगा। वह आधुनिक विज्ञान में भी निष्णात हो, वैश्विक स्तर पर नेतृत्व प्रदान करने की क्षमता से युक्त हो परन्तु उसकी नाभि भारत की सांस्कृतिक आत्मा से आप्लावित हो। उसे भारत के सांस्कृतिक एकत्व का सही ज्ञान हो और यदि संस्कृति के मूल सिद्धान्त से उसके व्यवहार में विकृति आई हो तो उसके परिष्करण का भी सामर्थ्य हो।
विदेशी आक्रांताओं ने न केवल विश्व प्रसिद्ध परम वैभवशाली भारत भूमि के धनधान्य को जी भरकर लूटा बल्कि इसकी चिरशाश्वत अध्यात्मवादी संस्कृति के अंतर्मन पर भी अनवरत प्रहार किए। मुगलों ने शताब्दियों तक इस्लाम की मजहबी तालीम का जबरन विस्तार करने के लिए हमारे देश की धर्मप्राण सांस्कृतिक विरासत को जबरन नष्ट करने की सतत चेष्टा की। उन्होंने हमारी संस्कृति की संवाहक संस्कृत भाषा को श्रीहीन करने का भी अपराध किया। इसी क्रम में ब्रिटिशकाल के अन्तर्गत सन् 1835 में लॉर्ड मैकाले ने अंग्रेजी शासन व्यवस्था को सुचारू रखने के उद्देश्य से अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था द्वारा राष्ट्र की अमूल्य शिक्षा तथा भारतीय संस्कारों का घोर अवमूल्यन किया। भौतिकता प्रधान जड़वादी चिन्तन की पोषक वर्तमान शिक्षा प्रणाली बच्चों के चरित्र निर्माण के स्थान पर भ्रष्ट तंत्र के माध्यम से धन के निर्माण की प्रक्रिया बन गयी है। शिक्षित कहे जाने वाले भारतवासियों की सोच, विचारधारा, आचार तथा व्यवहार से भारतीयता का लोप होता जा रहा है और शिक्षा के क्षितिज पर घना अँधेरा छा गया है।
मानवजाति का इतिहास बताता है कि अभावों से सदैव नये भाव की सृष्टि होती है। प्राकृतिक सिद्धान्त के अनुरूप समाज में कभी निर्वात नहीं रहता उसके घटित होने के पूर्व ही नया विकल्प जन्म ले लेता है। आधुनिक समाज की जीर्ण-शीर्ण व्यवस्था के कारण वर्तमान में अभावग्रस्तता का जो नया संकट उभरा है, उसका प्रत्युत्तर, समाधान और नया विकल्प परमात्म परमप्रकृति ने स्वत: ही समाज के पटल पर उपस्थित कर दिया है। राष्ट्र के प्राय: हर कोने से अध्यात्मदर्शी, समाजविद, दार्शनिक तथा दूरद्रष्टा निजी विचारधारा आत्मशक्ति, संकल्प तथा मिशन के साथ उद्भासित हुए हैं। ये सभी एक निष्ठभाव और प्राणपण से समाज की सच्ची सेवा में जुटे हैं। भारत के शैक्षिक क्षीतिज में जगमगाते नक्षत्रों के मध्य सप्तऋषियों के तारामण्डल में योगऋषि स्वामी रामदेव जी एवं आयुर्वेद शिरोमणि आचार्य बालकृष्ण जी का संकल्प देदीप्यमान ध्रुवतारा प्रखर रूप में परिलक्षित हो रहा है। पूज्य स्वामी जी महाराज एवं पूज्य आचार्य जी महाराज की अटूट साधना एवं तपश्चर्या से भारत की सनातन आर्य शिक्षा परम्परा के अन्तर्गत वैदिक शिक्षा, श्रेष्ठ संस्कारों तथा पुरातन ज्ञान का आधुनिक विज्ञान एवं तकनीक के साथ सुन्दर समन्वय सम्पूर्ण दिव्यता के साथ अभिप्रकाशित हो रहा है।
चिर प्रतीक्षा के बाद शिक्षा के आकाश में भोर का सूरज उगा है। योगीराज स्वामी रामदेव की अध्यक्षता में भारतीय शिक्षा बोर्ड का एक नया वातायन खुला है। भारत की केन्द्र सरकार ने भारतीय शिक्षा बोर्ड की स्थापना करके पुरातन वैदिक शिक्षा और आधुनिक शिक्षा के अद्भुत एवं अभिराम मिश्रण का स्वर्णिम स्वप्न साकार कर दिखाया है। पतंजलि ट्रस्ट द्वारा संचालित एवं स्वतन्त्र रूप से कार्यरत भारतीय शिक्षा बोर्ड के सत्प्रयासों से अब शिक्षा का भारतीयकरण सम्भव होगा और देश के नन्हें-मुन्हें बच्चों का मानस भारत देश और भारतीयता के अनुरूप तैयार हो सकेगा।
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