परम पूज्य योग-ऋषि स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य...........

परम पूज्य योग-ऋषि स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य...........

ओ३म

1. जीवन का श्रेष्ठतम उपयोग - 10 से 15 वर्ष की आयु ही बालक विद्यार्थी जीवन के 50-60 वर्ष का लक्ष्य तय करके उसी दिशा में अपना 100% सामर्थ्य लगायें, तो बडे़ परिपेक्ष्य में 1000-2000 हजार तथा मध्यम कोटि के सामर्थ्य वाले 10-20 करोड़ लोग ही भारत को विश्व की सर्वोपरि शक्ति बनाने में सक्षम हैं। ये भगवान् का विधान है कि भारत बोध, सनातन बोध या सनातन धर्म से ही विश्व का मंगल होने वाला है। इसमें हम अपनी-अपनी श्रेष्ठतम् भूमिका का निर्वहन करें, यही हमारा परम कर्त्तव्य या परम धर्म है।
2. योग एवं कर्मयोग - एक घंटा सब भारतवासी विश्ववासी योग करें और 16 से 18 घंटा कर्मयोग करें, अपने कर्म को धर्म या भगवान् की पूजा मानकर, अपने कर्त्तव्य को पूर्ण उत्साह, प्रसन्नता आनन्द से करें। कर्म ही इन्टरटेंनमेंट, एडवेंचर, मस्ती, जूनून या सर्वस्थ बन जायें, तो सब समाधान हो जायेगा। र्क जब पूर्ण विवेक, पूर्ण श्रद्धा-भक्ति पुरुषार्थ की पराकाष्ठा से सम्मन्न होता है तो फिर जीवन में पूर्ण तृप्ति रहती है। एक क्षण भी नैराष्य, कुंठा, आत्म विस्मृति, खाली पेट, तनाव दुःख नहीं होता।
3. दृष्ट अदृष्ट धर्म - गुरु, शास्त्र या वेदानुकूल सत्यों या सनातन शाश्वत सत्यों में पूर्ण विश्वास करके 100% धर्मानुकूल आचरण तो सभी को करना ही चाहिए। धर्म या जीवन जगत या ब्रह्माण्ड के अदृष्ट सत्यों की अनुभूति तो केवल मात्र गुरु-कृपा, दिव्यतम प्रारब्ध, घनघोर तप या जन्म-जन्मान्तरों के अनन्त पुण्यों से ही संभव है। अदृष्ट पूर्णतः श्रद्धा का मार्ग है। संसार के समस्त तर्क भौतिक दृष्ट सिद्धान्त से परे परम सत्य की अनुभूति है। ये बुद्धि से परे परम सत्य या सनातन शाश्वत सत्य है, लेकिन इसके नाम से पाखंड भी बहुत लोग करते हैं। विश्व के श्रेष्ठतम महापुरुषों को इस अदृष्ट सत्य की अनुभूति हुई है। ऐसा मेरा विश्वास है।
4. अनायस या सप्रयास धर्मानुष्ठान दिव्य स्वभाव का निर्माण करें - एक बार भी गुरु शास्त्र या आत्मा में होने वाली परमात्मा की प्रेरणा के विरुद्ध आचरण नहीं करना। चाहे जैसी मनः स्थिति या परिस्थिति हो, इच्छा हो या नहीं, अच्छा लगे या लगे, समझ में आयें या आयें, संसार साथ दे या दे, अपने स्वधर्म से विचलित नहीं होना। स्वधर्म में पूर्ण दृढ़ता सबके प्रति पूर्ण उदारता यही धर्म का मर्म है। दिव्यता दैवी समद का बार-बार अभ्यास सप्रयास या अनायास आपके जीवन को देवत्व ब्रह्मत्व या पारमार्थिक सत्यों से भर देगा।
5. पतंजलि की वैश्विक प्रतिष्ठा - योगायुर्वेद स्वेदशी के साथ भारतीय शिक्षा चिकित्सा को केन्द्र में रखकर सनातन धर्म की विश्व में प्रतिष्ठा पतंजलि के माध्यम से होकर ही रहेगी। इस कार्य में विश्व की श्रेष्ठ आत्मायें तथा ईश्वरीय अनुग्रह हर क्षण हमारे साथ है। आप सब सात्विक आत्माओं ने जिस तरह सहयोग आशीर्वाद दिया हमारी अमूल्य थाती है। आगे भी आपके 100% सहयोग की अपेक्षा के साथ हम इस सांस्कृति विरासत की विश्व विजय यात्रा को अखंड-प्रचंड पुरुषार्थ से सफलता के परम शिखर पर प्रतिष्ठित करके ही रहेंगे। 

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