इन्द्रलुप्त (ऐलोपेसिया) आयुर्वेदीय उपचार

इन्द्रलुप्त (ऐलोपेसिया) आयुर्वेदीय उपचार

वैद्य आशीष भारती गोस्वामी प्राध्यापक, अगद तंत्र विभाग, 
पतंजलि भारतीय आयुर्विज्ञान एवं अनुसंधान संस्थान, हरिद्वार
एवं वैद्या नेहा बरुआ  सह प्राध्यापिका, रोग निदान विभाग, 
पतंजलि भारतीय आयुर्विज्ञान एवं अनुसंधान संस्थान, हरिद्वार

     क्या आप जानते हैं कि इन्द्रलुप्त (ऐलोपेसिया) एक गंभीर बीमारी हो सकती है? आइये जानते हैं ‘ऐलोपेसिया’ के बारे में! वर्तमान समय में बालों का झडऩा बहुत ही आम बात है। लोगों को ऐसा लगता है, कि ये कोई बीमारी थोड़े ही हो सकती है, खान-पान में समस्या, दैनिक दिनचर्या, मौसम में बदलाव होने से बाल तो झड़ते ही हैं, लेकिन अगर आपके बाल गुच्छों में झडऩे लगें जिससे आपकी हेयर लाइन ऊंची होने लगे, कभी-कभी सिर के साथ-साथ शरीर के अन्य हिस्से के बाल भी गिरने लगें तथा सिर पर पैच (गोल चकत्ते) दिखायी देने लगें तो इस बीमारी को ऐलोपेसिया (गंजापन) कहा जाता है। आधुनिक चिकित्सकों एवं त्वचा रोग विशेषज्ञों के अनुसार यह एक ऑटोइम्यून (Autoimmune) रोग है।
Alopecia-(1)
कई बार महिलाओं में प्रेगनेंसी के समय भी यह दिक्कत  शुरू हो जाती है जो बाद में ठीक हो जाती जाती है। कई बार लंबे समय से तनावग्रस्त होने से भी यह समस्या हो सकती है। दवाइयों के साइड इफेक्ट के कारण भी ऐलोपेसिया हो सकता है। इसके प्रमुख कारणों में शामिल हैं:-
ऑटोइम्यून  समस्या
शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली बालों के रोम को एक बाहरी तत्व समझकर उन पर हमला करती है।
अनुवांशिक कारण
अगर परिवार में किसी को यह समस्या रही है, तो इसकी संभावना बढ़ जाती है।
तनाव या अवसाद
शारीरिक या मानसिक तनाव भी एलोपेसिया एरियाटा को ट्रिगर कर सकता है।
हॉर्मोनल असंतुलन
कुछ मामलों में हॉर्मोनल बदलाव भी इस समस्या को जन्म दे सकते हैं। 
आयुर्वेद में इस व्याधि को इन्द्रलुप्त कहा जाता है। रोमकूपों में रहने वाला पित्त दोष जब वात दोष के साथ मिलकर विकृत या दूषित होता है तो उस स्थान के केश झड़ जाते हैं। फिर दूषित रक्त मिश्रित कफ दोष उस स्थान के रोमकूपों के मार्ग को अवरुद्ध कर देता है जिस कारण नये केश उत्पन्न नहीं हो पाते हैं।
यह बीमारी पुरुषों एवं महिलाओं दोनों में देखी जा सकती है। प्राय: पुरुषों में बाल किनारे एवं सामने की ओर से झडऩा प्रारंभ होते हैं। महिलाओं के बाल, सिर के बीच से झडऩा प्रारंभ होते हैं। इस व्याधि का प्रभाव मन पर भी प्राय: देखा जाता है क्योंकि यह समस्या बाहरी सौंदर्य से भी जुड़ी हुई है। खासकर महिलाओं पर इस बीमारी का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है। इसके कारण वे प्राय: चिंता एवं अवसाद से ग्रसित  हो जाती हैं। जिसके कारण दोष और प्रकुपित  होते हैं तथा समस्या और बढ़ जाती है।
आधुनिक चिकित्सा पद्धति मे भी ऐलोपेसिया का कोई स्थायी समाधान नहीं है, इसलिये बाल कम गति से झड़े इसी तरह के उपाय वे करते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा से ऐलोपेसिया को ठीक किया जा सकता है साथ ही नयी केश उत्पत्ति भी देखी जा सकती है। यह आयुर्वेद चिकित्सा के चमत्कार ही हैं, ऐसा ही एक 24 वर्षीय महिला रोगी मेरे समक्ष उपचार हेतु आयी जो ऐलोपेसिया बीमारी से पीडि़त थी। उसके बाल गुच्छे मे झडऩे से सिर में पैच बन गया था। इस बात का उस पर गहरा असर था इसलिये वह अत्यंत तनाव ग्रस्त, अवसाद युक्त एवं चिड़चिड़ी स्वभाव की हो गयी थी। 
सर्वप्रथम मैंने उसको चिकित्सीय औषधि परामर्श के साथ-साथ मानसिक रूप से भी प्रबल रहने को कहा। प्रकृति परीक्षण पर पाया गया कि वह पित्त कफज प्रकृति की महिला है तथा उसके दिनचर्या में भी बहुत हद तक वात व पित्त प्रकोपक कारक शामिल है। 
उपचार
रोगी को सर्वप्रथम जो औषधियाँ दी गई वे निम्न हैं:-
    
table 1
उपरोक्त सभी औषधियों को मिलाकर 60 पुडिय़ा बनाकर 1 पुडिय़ा सुबह शाम खाने के लगभग 20 मिनट पहले जल के साथ लेने का निर्देश दिया गया।
  • दिव्य फाइटर वटी (पतंजलि) 2-2 वटी  सुबह शाम खाने के बाद 
  • न्यूट्रेला नेचुरल बोन हेल्थ (पतंजलि) 1-1    कैप्सूल सुबह शाम खाने के बाद 
  • न्यूट्रेला डेली एक्टिव कैप्सूल (पतंजलि) 1-1    कैप्सूल सुबह शाम खाने के बाद 
बाह्य औषधियाँ
हर्बल हेयर एक्सपर्ट ऑइल (पतंजलि)
रोगी को हफ्ते में दो बाररात मे सिर मे लगाकर सुबह धोने का निर्देश दिया गया। उपरोक्त औषधियों के अलावा पित्त दोष के निरहरण के लिए जलौकावचारण चिकित्सा का उपयोग किया गया। चूंकि इस बीमारी में त्रिदोष के साथ-साथ रक्त धातु की विकृति होती है इसलिए पित्त दूषित रक्त को शरीर से बाहर निकालने के लिये जलौकवाचरण चिकित्सा अत्यंत की लाभदायक है इसलिये औषधियों के साथ समय-समय पर जलौकवाचरण करना जरूरी था। 
Alopecia-(4)
आयुर्वेदिक चिकित्सा पथ्य पालन एवं योगाभ्यास के बिना अधूरी है चूंकि रुग्ण महिला के खानपान में विरुद्ध आहार एवं पित्त प्रकोप आहार ज्यादा शामिल थे, इसलिये सर्वप्रथम उनके आहार में कुछ विशेष बदलाव किये गये। उन्हें जरूरी प्राणायाम जैसे अनुलोम-विलोम भ्रामरी तथा कुछ आसन सर्वांगासन आदि दैनिक रूप से करने की सलाह दी गयी।
खान पान में बदलाव एवं व्यायाम करने से तथा नियमित औषधि सेवन से मात्र 1 महीने में फर्क दिखने लगा उनके केश झडऩे कम हो गये थे तथा पैच वाले स्थान केश उत्पत्ति शुरू हो गई, जिससे उन्हें मानसिक बल मिला व उनका आयुर्वेद चिकित्सा के प्रति उत्साह बढ़ गया। प्रकुपित दोषो के शांत होने तथा दूषित रक्त के निरहरण से इस बीमारी मे कुछ ही महीनो में चमत्कारिक लाभ देखने को मिला। आधुनिक शास्त्र में जहां इस बीमारी का कोई स्थायी समाधान नहीं है वहीं आयुर्वेद चिकित्सा, पथ्य पालन एवं योगाभ्यास से इस जटिल बीमारी को ठीक किया जा सकता है। विगत कुछ वर्षों के अनुभव से यह मैं स्पष्ट रूप से कह सकता हूँ कि किसी भी बीमारी की आयुर्वेद चिकित्सा यदि दोष, दूष्य प्रकृति, स्रोतोदुष्टि आदि को ध्यान में रख कर की जाए तो वह चिकित्सा लाभप्रद ही रहती है।

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