जीवन की लय साधते, लग जाता है ध्यान

जीवन की लय साधते, लग जाता है ध्यान

प्रफुल्ल चन्द्र कुंवर ''बागी'

इस जीवन में ध्यान का एक मु उद्देश्य।
नैसर्गिक लय में रहे, तन, मन, प्राण विशेष।।1।।
जीवन नित संगीतमय, साधे सुर, लय, ताल।
क्रियाएँ शारीरिक विविध, जैविक प्रकृति कमाल।।2।।
दिल की धड़कन एक लय, रिदमिक चलती पल्स।
रक्तचाप हो संतुलित, करतब करे मशल्स।।3।।
पाचन क्रिया, चयापचय, समरस चलती साँस।
तापमान तन एक सम, नियति नटी उल्लास।।4।।
मानव रहते स्वस्थ हैं, जब ये सब लयबद्ध।
लय टूटे, बेताल हो, मनुज रुग्ण करबद्ध।।5।।
इनके न्यूनाधिक्य से, तन में फटके रोग।
समरसता कायम रखे, नियमित योग प्रयोग।।6।।
इसे बुद्ध ने था कहा, "मध्यम मार्ग" प्रबुद्ध।
जीवन वीणा की तरह झंकृत, ध्वनि दे शुद्ध।।7।।
जीवन को देखें यदि गहराई में जाय।
गुँथे परस्पर तीन तल, तन, मन, प्राण सुभाय।।8।।
दिखते शरीर स्थूल हैं, भीतर मन-तल सूक्ष्म।
अंतस् रमते प्राण-तल, जो सबसे अतिसूक्ष्म।।9।।
स्थूल देह के रिदम से, जुड़ते मानस तार।
मानस के संगीत से, जुड़े प्राण-झंकार।।10।।
प्राणों की लयबद्धता ही जीवन व्यापार।
जीवन का स्वर भी गुँथा, सरक रहा संसार।।11।।