जन-कल्याण के लिए समर्पित पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन
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डॉ. अनुराग वार्ष्णेय
उपाध्यक्ष- पतंजलि अनुसंधान संस्थान
रोगों से लडऩे, स्वस्थ्य होने तक की यात्रा मन, मष्तिष्क और शरीर से ही शुरू होती है और इसके लिए इन तीनों में समन्वय और सामंजस्य होना बहुत जरूरी है।
पतंजलि की योग-आयुर्वेद की यात्रा
पतंजलि इसी यात्रा को सुगम बनाने के लिए कई वर्षों से योग और आयुर्वेद के माध्यम से जनसेवा के कार्य में संलग्न है। इसी कड़ी में पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन भी औषधीय पेड़-पौधों पर शोध और नवाचार द्वारा स्वास्थ्य और लोगों के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए प्रयत्नशील है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए अनुसंधान संस्थान कई आयामों से होकर गुजरता है जिसमें सर्वप्रथम भारत के प्राचीन ऋषियों के औषधीय पेड़-पौधों के असंरचित ज्ञान को अलग-अलग रूप से संदर्भित कर नवीन उन्नत तकनीकों के माध्यम से बहु-आयामी शोध के द्वारा साक्ष्य आधारित आयुर्वेदिक दवाइयों को निर्मित किया जाता है। संस्थान का ध्येय है कि यह साक्ष्य आधारित आयुर्वेदिक औषधियां बिना किसी शंका, नियामक आवश्यकताओं के जनमानस तक पहुचे, जिससे सभी लोगों के रोगों का उपचार आसानी से हो सके।
साक्ष्य आधारित हैं पतंजलि की आयुर्वेदिक औषधियाँ
पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन का पूरा शोध इन्हीं उद्देश्य और ध्येय के अनुसार कार्य करता है और इसको पूरा करने के लिए संस्थान एक पिरामिड रूपी रणनीति को अपनाता हुआ आगे बढ़ रहा है। इसमें सबसे नीचे के स्तर पर इनीशिएशन यानि एक नींव रखना या कार्य प्रारम्भ करना, दूसरा स्तर ट्रांजि़शन फेज़ यानि इस प्रक्रिया को धरातल पर लाना और सुचारु रूप से कार्यान्वित करना और तीसरा स्तर एक्च्युलाइज़ेशन है जिस पर संस्थान अब पहुँच चुका है। इसका प्रमुख कारण संस्थान के कर्मठ कर्मयोगियों का होना, उनकी जुझारू विचारधारा होना और परम पूज्य स्वामी जी और परम श्रद्धेय आचार्य जी के रूप में बेहतर मार्गदर्शक होना है। इन्हीं प्रमुख कारकों के कारण पतंजलि अनुसन्धान संस्थान साक्ष्य आधारित औषधियों को दुनिया के सामने ला पा रहा है जोकि किसी भी प्रकार की अन्य चिकित्सा पद्धति से कमतर नहीं हैं, अपितु बहुत सारे अवसरों पर उनसे अधिक असरदायक है।
आयुर्वेद अनुसंधान में विश्व का सर्वश्रेष्ठ संस्थान है पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन
पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन विश्व में अपनी तरह का पहला संस्थान है, जहाँ आयुर्वेदिक औषधियों और समकक्ष एलोपैथिक दवाइयों पर एक साथ शोध किया जाता है और उनकी प्रभावशीलता का पता लगाया जाता है।
हमारी प्रयोगशालाएं आधुनिक होने के साथ ही गुणवत्ता दिशानिर्देशों का अनुपालन करती हैं जो अन्य फार्मा कम्पनीज की बड़ी-बड़ी प्रयोगशालाओं के समकक्ष या उनसे बेहतर है। आयुर्वेदिक और हर्बल अनुसंधान में ऐसी व्यवस्था पूरे विश्व में कहीं नहीं हैं। पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन के ड्रग डिस्कवरी व डेवलपमेंट विभाग में कोशिकाओं पर शोध के लिए इन-विट्रो प्रयोगशाला स्थापित है जो संस्थागत जैव-सुरक्षा कमिटी (आईबीएससी) के द्वारा भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के दिशानिर्देशों के अंतर्गत संचालित की जाती है। जीवों पर अनुसंधान के लिए इन-वीवो प्रयोगशाला को संस्थागत पशु आचार समिति (आईएईसी) के द्वारा संचालित किया जाता है जिसकी नैतिक जिम्मेदारी संस्थान की होती है। वहीं बैक्टीरिया, फंगस के लिए सूक्ष्म-जीव विज्ञान प्रयोगशाला, हर्बल और एनालिटिकल केमिस्ट्री के लिए प्रयोगशालाएं एवं क्लीनिकल ट्रायल्स के लिए क्लीनिकल रिसर्च डिवीजऩ भी है जिसके ट्रायल्स एक सरकारी संस्था क्लीनिकल ट्रायल्स ऑफ़ इंडिया (सीटीआरआई) में पंजीकृत कराये जाते हैं। संस्थान भारत सरकार व पूरे विश्व के सभी अनुपालक और गुणवत्ता दिशानिर्देशों का भली-भांति पालन करता है। औषधीय निर्माण के समय भी विश्व स्वास्थ्य संगठन की उत्क्रम विनिर्माण प्रणाली (Good Manufacturing practices) और एफडीए के दिशानिर्देशों का पालन किया जाता है। पतंजलि की सभी औषधियां और उत्पाद, उत्तम विनिर्माण प्रणाली (GMP) के अंतर्गत ही निर्माण किये जाते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय रिसर्च जर्नल्स में पतंजलि रिसर्च फाउंडेशन के ८० से अधिक शोध-पत्र प्रकाशित
भिन्न-भिन्न बीमारियों जैसे कैंसर, सूजन, संक्रामक बीमारियों, मधुमेह, मोटापा, रोग-प्रतिरोधक क्षमता, त्वचा विकार, यकृत और किडनी की समस्याओं में लगभग 80 से भी अधिक रिसर्च पेपर्स विभिन्न अंतरराष्ट्रीय रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हो चुके हैं।
कृत्रिम दवाइयों पर शोध के लिए जो फार्माकोलॉजी सिद्धांत का नियम है, अन्य संस्थानों द्वारा पहले एक मॉलिक्यूल को बना कर चूहों और अन्य जानवरो पर शोध किया जाता है, तत्पश्चात उसकी जांच मानवों पर की जाती है, वहीं पतंजलि अनुसंधान फाउंडेशन में हमारे पुरातन आयुर्वेदिक ज्ञान की वजह से और हमारे पास औषधीय पेड़-पौधों के बारे में जानकारी होने की वजह से हम रिवर्स फार्माकोलॉजी यानी औषधियों के अध्ययन को उत्तम रूप में करते हैं, जिसमें हम सर्वप्रथम, जीवों पर शोध कर यह पता लगाते हैं कि कोई औषधि कितनी कारगर है, तत्पश्चात यह देखा जाता है कि उस औषधि में वह कौन सा तत्व है जो इस औषधि की प्रभावशीलता का कारक है।
उदाहरण के लिए त्रिफला पाचन तंत्र के लिए अच्छा है। यह कथन हमारे प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में वर्णित है और हम अपने दैनिकचर्या में भी इसका उपयोग करते ही हैं। चूहों पर शोध कर पता किया जाता है कि त्रिफला पाचन तंत्र के लिए कैसे अच्छा है। वहीं उसके बाद यह पता किया जाता है कि त्रिफला में ऐसा क्या तत्व विद्यमान है जोकि वह पाचन तंत्र के लिए अच्छा है।
औषधीय दुष्प्रभाव को जानने के लिए किये जाने वाले टॉक्सिकोलॉजिकल अध्ययन के दौरान जीवों पर वस्तुत: 14 से 28 दिन तक और कई बार किसी विशेष प्रयोजन और शोध के लिए 90 दिन तक भी औषधि की निश्चित मात्रा दी जाती है जोकि मानव को दी जाने वाली प्रति खुराक की उचित मात्रा से 10 से 28 गुना तक अधिक होती है। संस्थान द्वारा अब तक 32 साक्ष्य आधारित औषधियों का विस्तृत टॉक्सिकोलॉजिकल अध्ययन किया जा चुका है, जिसमें अभी तक कोई दुष्प्रभाव देखने को नहीं मिला है।
निर्माण के दौरान भी इन औषधियों की गुणवत्ता की जांच की जाती है जिसमें हर बैच की औषधियों को जांचा जाता है और देखा जाता है कि इन औषधियों में वहीं घटक विद्यमान है या नहीं। वहीं पतंजलि अनुसंधान संस्थान में भी इन औषधियों के अलग-अलग समय पर बनाये गए बैच की जांच की जाती है और देखा जाता है कि इनमें वहीं घटक विद्यमान है या नहीं, जिससे इन औषधियों की गुणवत्ता और प्रभावशीलता बनी रहे।
पतंजलि अनुसंधान संस्थान एक प्रकार से स्वर्ण त्रिभुज दृष्टिकोण (Golden Triangle Approach) के अनुरूप कार्य करती है, जहाँ नवीन तकनीकों को आयुर्वेद के ज्ञान के साथ समायोजित कर साक्ष्य आधारित औषधियों का निर्माण किया जाता है। इन सभी औषधियों में पाए जाने वाले तत्व प्राकृतिक संसाधनों से प्राप्त किये जाते हैं जिनमें किसी भी प्रकार की मिलावट की सम्भावना नगण्य रहती है। यह प्राकृतिक साक्ष्य आधारित आयुर्वेदिक औषधियाँ अपने समकक्ष ऐलोपैथिक दवाइयों की तुलना में बिना किसी दुष्प्रभाव के साथ अधिक बेहतर और संतोषजनक परिणाम प्रदान करती हैं।
पतंजलि अनुसंधान संस्थान अपने उद्देश्य और ध्येय की प्राप्ति के लिए नि:स्वार्थ भाव से जन मानस की सेवा में संलग्र है तथा इसी प्रकार आयुर्वेद के क्षेत्र में नित नवीन अनुसंधान कर रोगियों को आरोग्यता का वरदान प्रदान करेगा।
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