यह कलयुग नहीं अपितु योग का युग है

यह कलयुग नहीं अपितु योग का युग है

डॉ. आचार्या साध्वी देवप्रिया 
संकायाध्यक्षा एवं विभागाध्यक्षा
दर्शन विभाग, पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार

आदर्श व्यक्तित्व से लें प्रेरणा

यदि आपको आदर्श व्यक्तित्व के विषय में जानना है तो आप पतंजलि योगपीठ की ओर देख लें, परम पूज्य स्वामी जी महाराज के जीवन को देख लें, परम पूज्य आचार्य श्री के जीवन को देख लें। यह सब योग का ही विस्तार है। योग हमें नेतृत्व करना सिखाता है। हमारा मानना है कि बहनों में नेतृत्व की भावना विकसित होनी चाहिए, बहनें ही नेतृत्व करें। तो यह नेतृत्व क्या होता है? नेता क्या होता है? पहले लोग कहते थे कि भाई घर में कोई एक कमाने वाला व्यक्ति होना चाहिए जो सबका पेट भर सके। हमारा मानना है कि हर घर में कम से कम एक योग शिक्षक जरूर होना चाहिए जो पूरे परिवार को संभाल सके और उसे योग शिक्षक में भी वह योग शिक्षिका बहन होनी चाहिए। भाई हो तो वह ठीक है, योग के बारे में प्रेरित तो करेगा ही। लेकिन खाना तो उनकी पत्नी ही बनाएगी। तो वह योग युक्त होकर बनाएगी या रोग युक्त होकर बनाएगी, और उस खाने को खाने से उसके बच्चों व परिवार में कैसे संस्कार आएंगे? उस बहन के विचार कैसे होंगे? तो अब मुझे लगता है कि योग शिक्षक से ज्यादा योग शिक्षिका का होना अनिवार्य है। एक बहन का होना अनिवार्य है, तब वह बहन नेतृत्व करेगी। फिर क्योंकि वह योग युक्त हो कर खाना बनाएगी, योग युक्त हो कर अपने बच्चों को सोना, उठना, बोलना, व्यवहार वाणी आदि सब संस्कार देगी। तब कहीं जाकर हम कह पाएंगे कि हम योगियों की संताने हैं, हम योगियों के देश में पैदा हुए हैं।

नेतृत्व का अर्थ

नेतृत्व का अर्थ होता है आगे लेकर के जाना लेकिन यह आगे लेकर जाना कोई स्थान की दृष्टि से नहीं कहा जा रहा है। यह आगे ले जाना यह चेतना की दृष्टि से कहा जा रहा है कि चेतना की दृष्टि से कौन किसको आगे ले जा सकता है? आज तो हालत यह हो गई कि जो माता-पिता बन गए हैं वे गूगल के ऊपर सर्च करते हैं कि बच्चों की परवरिश कैसे करें? पेरेंटिंग कैसे करें? गूगल गुरु से पूछते हैं पति-पत्नी के संबंध कैसे हों? जिनमें लड़ाई-झगड़ा न हो। उसको भी गूगल पर सर्च करते हैं। यह हमारी संस्कृति नहीं है। आप रामायण में देखिए, रामायण में सीता माता को माता अनुसूया जो उपदेश देती हैं और उनका उपदेश सुनकर सीता माता कहती हैं कि यह उपदेश तो मुझे शादी के समय में मेरी माता सुनैना ने दिया था और वन में आते समय मेरी सास कौशल्या माता ने भी दिया था। तो यह चीजें तो हमें परंपरागत मिलती आई हैं। सदा से ही परिवार का नेतृत्व करने वाली एक माँ ही रही है और वह पहले भी रही है और आज भी है और सदा रहेगी। तो असली नेतृत्व हमेशा ही मातृशक्ति का रहा है। लेकिन वह नेतृत्व करने वाली इस संसार की स्थूल और सूक्ष्म शक्तियों के साथ अपने आपको कितना ज्यादा जोड़ पाती है, यह एक अलग बात है। क्योंकि जितनी ज्यादा वह परिष्कृत होगी, जितनी ज्यादा उसकी आत्मा उन्नत होगी, वह उतना ही कुशल नेतृत्व कर पाएगी। तो सबसे पहले वह अपने खुद का नेतृत्व करती है, फिर अपने मन का, अपनी वाणी का, अपने व्यवहार का, अपनी इंद्रियों का, उसके बाद पूरे परिवार का नेतृत्व करती है। उसके बाद फिर वह एक जिले का, फिर एक प्रांत का नतृत्व करती है, क्योंकि जब कोई व्यक्ति तैरना सीखता है तो सीधा समुद्र में नहीं तैरता। यह जो संत महात्मा हैं, यह ऐसे ही तैराक होते हैं। आज श्रद्धेय स्वामी जी महाराज ने इस भवसागर में डूबने वाले कम से कम लाखों को डायरेक्ट रूप से और करोड़ों लोगों को इनडायरेक्ट रूप से बचा लिया है।

योग को पूर्ण रूप से आत्मसात करें

श्रद्धेय स्वामी जी महाराज कहते हैं कि ऊपर-ऊपर के सर्फेस पर योग करने से बात बनने वाली है नहीं, कोई परिवर्तन आने वाला है नहीं। सरफेस के ऊपर हम बिल्कुल साफ-सुथरा, परफेक्ट अपने आपको बना कर रखते हैं।
जिनका कभी आपस में झगड़ा नहीं हुआ, वाणी से भी नहीं हुआ, केशा-केशी की बात तो बहुत दूर, लेकिन मनों में जमीन और आसमान का अंतर आ गया। यह झगड़ा बहुत डेंजरस है। हमने कुछ लोग ऐसे देखे हैं जो इतना मीठा बोलते हैं, इतना सोफ्ट बोलते हैं कि समझ में नहीं आता कि इनको ब्लेम करें तो कैसे करें? और अंदर से उस व्यक्ति के पास रहने का मन नहीं करता, उसके पास बैठने का मन नहीं करता है, उस घर में रहने की इच्छा नहीं होती है। अंदर से इतनी घुटन हो रही है तो यह सरफेस वाली बनावट, सरफेस वाला योग हमारा कल्याण नहीं कर सकता है, हमें योग की गहराई में जाना ही होगा।

जीवन का परिष्कार कैसे करें?

हम अच्छे कपड़े पहनते हैं, अच्छी वाणी बोलते हैं, सॉफ्ट बोलते हैं। कुछ चीजें हम यू-ट्यूब से सीख लेते हैं, कुछ संत-महात्माओं से सीख लेते हैं लेकिन इससे जीवन का परिष्कार और जीवन में नेतृत्व नहीं आ सकता। आज एक नेतृत्व जो परम पूज्य स्वामी जी महाराज कर रहे हैं, जो आयुर्वेद के क्षेत्र में श्रद्धेय आचार्य श्री कर रहे हैं, उन्होंने कैसे उस नेतृत्व की क्षमता को प्राप्त किया, कैसे एक-एक क्षण उन्होंने अपने आप को उभारा, आज हमें वह योग सीखने की आवश्यकता है। यह अंदर और बाहर का जो अंतर है यह आज हमें योग से हटाने की आवश्यकता है।

मनुष्य मात्र को है योग की आवश्यकता  और जीवन पर विचारों का प्रभाव

योग की आवश्यकता केवल उन लोगों को नहीं है जिनको भगवान का साक्षात्कार करना है, केवल उन लोगों को नहीं है जिनको समाधि लगानी है, केवल संन्यासियों को योग की आवश्यकता नहीं है, आज मनुष्य मात्र को योग की आवश्यकता है। आप कहेंगे कि हमें तो योग की आवश्यकता नहीं है, हम तो एक दिन आ गए मीटिंग में। फिर हमने उसको पतंजलि के साथ को-रिलेट किया।

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हम जो भी विचार करते हैं अच्छा या बुरा, तो वह तुरंत हमारे हाइपोथैलेमस के पास पहुंचता है। वह तुरंत उसको पिट्यूटरी ग्लैंड को देता है जिसको शास्त्रों में पीयूष ग्रंथि कहा है। वहाँ से नौ-दस प्रकार के हारमोंस निकलते हैं। और वह जो ब्रेन के हमारे न्यूरॉन सेल्स हैं एक-एक सेल फिर दस-दस हजार सेल्स को तुरंत इंफॉर्मेशन पहुंचा देता है कि सब कुछ ठीक है। अच्छा विचार उठाते हैं तो सब कुछ बहुत अच्छा है। अब आप जो सुन रहे हैं तो आपका ब्रेन आपकी पिट्यूटरी ग्लैंड कह रही है आप बहुत अच्छे स्थान पर आ गए हो, बहुत अच्छी-अच्छी बातें सुनाई जा रही हैं। पूज्य स्वामी जी महाराज का एक ओरा है, उनके सान्निध्य की सूचना से ही एक दिव्यता आ जाती है। आपकी पिट्यूटरी ग्लैंड उस मैसेज को तुरंत ही आपके पूरे शरीर में पहुंचा देती है और उससे आपके लीवर को, किडनी को, हार्ट को, पेट को, सबको पता लगता है कि हम बिल्कुल सुरक्षित हैं। वह इतने शांत हो जाते हैं कि आप कहोगे कि थोड़ी देर पहले तो हमारे सिर में थोड़ा दर्द हो रहा था लेकिन स्वामी जी से मिलकर तो बहुत अच्छा लग रहा है। तो यह पीड़ा स्वामी जी के आने से, उनकी एनर्जी के प्रभाव से तो दूर हुई ही लेकिन आपने जो मानस बनाया, जो विचार दिया, अपने आप को पॉजिटिव विचार दिया और उससे आपके शरीर में एक-एक सेल्स से जो हारमोंस निकले, उनसे जो रासायनिक परिवर्तन हुए, उससे आप स्वस्थ होते हैं।

नकारात्मकता विचारों को जीवन में न दें स्थान

जब आपने अपने मन में एक नेगेटिव विचार दिया कि इस घर में तो कितनी भी सेवा कर लो कोई रिकॉग्नाइज करने वाला है ही नहीं। यहां तो कोई अपना नहीं है। सब अपने-अपने स्वार्थ में सब लगे हुए हैं तो जैसे-जैसे हमने एक नेगेटिव विचार दिया उसी समय हमारे पूरे सिस्टम में यह बात फैल गई कि सब कुछ ठीक नहीं है। कुछ तो गड़बड़ है और शुरुआत वहीं से होती है। थोड़े दिन के बाद पता लगता है कि डायबिटीज हो गई है, पार्किन्सन की समस्या आ गई, डिप्रेशन हो रहा है, बीपी हाई-लो हो रहा है आदि। यह सब बीमारियां नहीं है। आयुर्वेद में बताया है कि बीमारी एक ही है प्रज्ञापराध और फिर हम सोचते हैं कि डायबिटीज हो गई तो पहले डायबिटीज का इलाज करवाएं। आपने इन्वायरमेंट चेंज किया, आहार-विहार में परिवर्तन किया, कपड़े तथा बोलचाल में भी परिवर्तन किया, सब कुछ चेंज किया लेकिन फिर भी बीमारियां तो ठीक नहीं हुई। एक के बाद दूसरी, तीसरी, चौथी, पांचवी होती ही चली गई। केवल एक ही चीज को ठीक करना था जिसको हमने ठीक नहीं किया और वह था अपने आप को चेंज करना, अपने विचार को चेंज करना।
महर्षि पतंजलि जी कहते हैं 'योग चित्तवृत्ति निरोध:Ó। योग क्या है? विचार से शुरुआत करते हैं, अपने विचार को ठीक करना है और वहाँ पर सारे विचार को ठीक करने के लिए कहा- चित्तवृत्ति निरोध। इसका मतलब यह नहीं है कि दिमाग सोचे ही नहीं, यह तो सम्भव ही नहीं है कि समुद्र हो और उसमें लहरें ना उठें। वहाँ पर उन्होंने कहा कि हमारे मन में सिक्योरिटी के भाव हैं इनको हमें चेंज करना है। अर्थात् सारी बीमारियों को ठीक नहीं करना है, केवल एक ही बीमारी को ठीक करना है और वह है विचार। तो जब हम इस विचार को चेंज करते हैं तब हमारा योग में प्रवेश होता है। तो अब आप बताइए कि इन सब बीमारियों को हटाने के लिए विचार चेंज करने की हम सबको जरूरत है या नहीं। आज हमारे दुख, सुख, खुशियां, गम सब बाहर से हैं। दुख किससे है? परेशानी किससे हैं? बच्चों की खुशी किससे है? सब कुछ बाहर का है। आपको सुखी करने वाले भी बाहर के हैं, दुखी करने वाले भी बाहर के, इंजॉय भी बाहर का, तो आपका क्या है? फिर तो अपना तो कुछ है ही नहीं। इसमें योगियों का बिल्कुल उल्टा होता है। जब भी हम स्वामी जी महाराज को लाइव देखते हैं तो ज्ञात होता है कि उनको उनकी खुशी के लिए किसी दूसरे की आवश्यकता नहीं है। बल्कि अपनी खुशी वह रोजाना सुबह ब्रह्म मुहूर्त में, अमृत वेला में, लाखों-करोड़ों लोगों को बांटते हैं। उनके सामने भी वही दुनिया है। जिस पतंजलि योगपीठ में हम रहते हैं उसी में वे भी रहते हैं, वही लोग, वही परिस्थितियां और उस पर वैसा ही शरीर और उसके बीच में एक व्यक्ति ने अपने जीवन को सूर्य की तरह से चमकाया है, ध्रुव नक्षत्र की तरह से चमकाया है। पूज्य स्वामी जी भगवान के प्रतिनिधि बनकर धरती पर जी रहे हैं। यह सब केवल एक विचार के कारण है, जिससे उनका जीवन हम सब से अलग है। हमें भी उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।

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