कैंसरकारक दवाए जिन्हें बाजार से हटा दिया गया

कैंसरकारक दवाए जिन्हें बाजार से हटा दिया गया

 

                                                    भाई राकेश भारत’, सह-संपादक एवं

                                                    मुख्य केन्द्रीय प्रभारी भारत स्वाभिमान

भारत में लगभग हर आठ मिनट में  सर्वाइकल कैंसर  द्वारा एक महिला की मृत्यु होती है। इसी वर्ष लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान बताया गया कि राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के मुताबिक साल 2020 में करीब 14 लाख लोगों की इस बीमारी से मौत हुई। इसके मरीजों की संख्या में प्रतिवर्ष 12.8 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है। एक अनुमान के मुताबिक साल 2025 में यह बीमारी 15,69,793 की जिंदगी ले लेगी।
दुनिया में कैंसर बहुत तेजी के साथ फैल रहा है, कैंसर के कारणों में मोटापे को, तंबाकू को, शराब को अनुवांशिक कारणों को, लाइफस्टाइल को, इंफेक्शन को, पराबैंगनी किरणों को, हारमोंस को, ऑटोइम्यून डिजीज को कारण ठहरा दिया जाता है। आज पूरी दुनिया में हर मिनट 17 लोग कैंसर से मर रहे हैं। 2020 में एक करोड़ 93 लाख कैंसर के नए मामले आए और एक करोड़ लोग कैंसर से मर गए। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक वर्तमान में दुनिया के 20 फीसदी कैंसर मरीज भारत से हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के आंकड़ों का हवाला देते हुए शुक्रवार 9 दिसम्बर 2022 को लोकसभा को बताया कि देश में 2020 में कैंसर के मामलों की अनुमानित संख्या 13,92,179 थी और इसमें 12.8 प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान है। कैंसर के निदान, रोकथाम और उपचार के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 4 फरवरी को विश्व कैंसर दिवस के रूप में मनाया जाता है। कैंसर स्टैटिसटिक रिपोर्ट (Cancer Statistics Report), 2020 के अनुसार, भारत में कैंसर का बोझ प्रति 1,00,000 पुरुष व्यक्तियों पर 94.1 और प्रति 1,00,000 महिला जनसंख्या पर 103.6 है। भारत में लगभग हर आठ मिनट में  सर्वाइकल कैंसर  द्वारा एक महिला की मृत्यु होती है। इसी वर्ष लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान बताया गया कि राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के मुताबिक साल 2020 में करीब 14 लाख लोगों की इस बीमारी से मौत हुई। इसके मरीजों की संख्या में प्रतिवर्ष 12.8 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है। एक अनुमान के मुताबिक साल 2025 में यह बीमारी 15,69,793 की जिंदगी ले लेगी।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक वर्तमान में दुनिया के 20 फीसदी कैंसर मरीज भारत में हैं।
कैंसर का इलाज करवाते-करवाते भारत जैसे गरीब देश में अधिकांश लोग तो इलाज ले ही नहीं पाते और जो लोग इलाज लेते हैं वह अपने घर जमीन दुकान पूरी संपत्ति बेच देते हैं, और इलाज लेते-लेते अपने प्राण गवाँ देते हैं। कीटनाशक कैंसर का एक बड़ा कारण है लेकिन इसके ऊपर भी कोई प्रभावी रोकथाम की कोई बात नहीं करता।

सुरक्षित माने जाने वाले टेल्कम पाउडर से कैंसर-

पूरी दुनिया में जॉनसन एंड जॉनसन का  बेबी पाउडर बेचा गया जिससे हजारों लाखों उपयोगकर्ताओं को कैंसर हुआ उन्होंने पूरी दुनिया में जॉनसन एंड जॉनसन के खिलाफ मुकदमे किए जॉनसन एंड जॉनसन को एक बड़ी राशि जुर्माने के रूप में भरनी पड़ी और हारकर जॉनसन एंड जॉनसन ने कई दशकों तक अपने बेबी पाउडर को सुरक्षित बता कर बेचते हुए अंत में पूरी तरह से प्रमाणित होने के बाद कि यह कैंसर कारक है पूरी दुनिया के बाजार से अपने बेबी पाउडर को वापस ले लिया।

हर घर में कैंसर का खतरा-

अभी सितंबर 2022 में केंद्र सरकार ने आवश्यक दवाओं की सूची से कैंसर पैदा करने वाली दवा जिसको सामान्य एसिडिटी के तौर पर लिया जाता है ऐसी रेनटेक, जेन्टैक,ऐसीलॉक को बाजार से हटाया है।
भारत में पंजाब में कीटनाशकों के कारण खूब कैंसर फैल रहा है। जो ट्रेन चलाई जाती है उसका नाम ही कैंसर ट्रेन रख दिया गया है। अकेले एक मैनपुरी के लगभग 2000 की आबादी वाले लल्लूपुर गांव में लगभग हर घर में कम से कम एक कैंसर का मरीज है।
फिल्म इंडस्ट्री में नरगिस नूतन, राजेश खन्ना, ऋषि कपूर, इरफान खान, फिरोज खान, श्यामसुंदर कैलानी, विजय अरोड़ा, इन सब को कैंसर हुआ और कैंसर के कारण महंगा विश्वस्तरीय इलाज लेने के बाद भी इनको अपने प्राण गंवाने पड़े। फिल्म इंडस्ट्री में ही अपने खान-पान का पूरा ध्यान रखने वाली अभिनेत्री मनीषा कोइराला, ताहिरा कश्यप, मुमताज, एंजलीना जॉली, सोनाली बेंद्रे, किरण खेर, महिमा चौधरी आदि अभिनेत्रियों को भी जो खाने-पीने में अत्यंत सावधानी रखती हैं उनको भी कैंसर का शिकार होना पड़ा जिसका कोई भी कारण पता नहीं लगा।

कैंसर का कारण-

आज भी कुछ ऐसे लोगों को कैंसर होता है जो ना अल्कोहल का सेवन करते हैं, ना तंबाकू खाते हैं, जिनकी दिनचर्या भी अनियमित नहीं है और जिनके परिवार में भी किसी को अनुवांशिक तौर पर कैंसर नहीं है। उनको जब कैंसर होता है और परिवार मॉडर्न मेडिकल साइंस से या अपने चिकित्सक से यह पूछता है कि मुझे कैंसर क्यों हुआ? तो मॉडर्न मेडिकल साइंस के पास इसका कोई उत्तर नहीं है।
पूरी दुनिया में हार्ट की बीमारी से मरने वाले रोगियों के बाद कैंसर से मरने वाले रोगियों की संख्या सबसे ज्यादा है। कैंसर को फैलाने के लिए कुछ और तत्वों को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है लेकिन यह भी उतना ही अकाट्य सत्य है। एलोपैथी की प्रामाणिक तौर पर ऐसी बहुत सी दवाएं हैं जिनको कैंसरकारक माना गया और कैंसर कारक होने के कारण उन पर बैन लगाया गया।

दवा की दुकान से बिल्कुल सुरक्षित समझी जाने वाली गर्भनिरोधक दवाओं से हुआ कैंसर-

गर्भनिरोधक और गर्भपात की दवाओं को फार्मा कंपनियों द्वारा मुनाफा कमाने के लिए जोर-शोर से प्रचारित प्रसारित किया जाता है और टीवी पर, अखबार में फुल पेज के विज्ञापनों के साथ रेडियो पर भी इनको पूरी तरह से सुरक्षित बताते हुए इनको जोर शोर से लेने के लिए प्रेरित किया जाता है-
1 . एनागेस्टोन एसीटेट- (Anagestone acetate)-
एलोपैथिक दवा एनागेस्टोन एसीटेट को Ortho Pharmaceutical, अमेरिका द्वारा 1968 में एप्रूव्ड कराया गया था। यह दवा एनाट्रोपिन (Anatropin) और निओ-नोवम (Neo-Novum) ब्रांड नामों से बेची जाती थी। एनागेस्टोन एसीटेट का उपयोग एस्ट्रोजन मेस्ट्रानोल (estrogen mestranol) के साथ एक संयुक्त रूप से जन्म नियंत्रण की गोली (Birth Control Pills) के रूप में किया गया था। 1969 में एक कुत्ते को एनागेस्टोन एसीटेट से ट्रीट किया गया था जिसके बाद उसके स्तन ग्रंथि में ट्यूमर (mammary gland tumors) हो गया था। इसके बाद ऐनागेस्टोन एसीटेट को निर्माता द्वारा 1969 में बाजार सेवापस ले लिया गया था।1
2. क्लोरमेडिनोन एसीटेट (Chlormadinone acetate)-
एलोपैथिक की दवा क्लोरमेडिनोन एसीटेट की खोज 1959 में की गयी थी। इसे संयुक्त राज्य अमेरिका में 1965 से 1971 तक ब्रांड नाम C-Quens के तहत एली लिली फार्मा कम्पनी द्वारा मेस्ट्रानोल (mestranol) के संयोजन में बेची जाती थी। यह अमेरिका में पेश की जाने वाली पहली गर्भनिरोधक गोली थी। क्लोरमेडिनोन एसीटेट को ओवोसिस्टन (Ovosiston), एकोनसेन (Aconcen) और सीक्वेंस (Sequens) ब्रांड नामों के तहत मेस्ट्रानोल (mestranol) के संयोजन में बेचा जाता था।
    बीगल कुत्तों में स्तन ग्रंथि पिंड (mammary gland nodules) के निष्कर्षों के कारण, C-Quens को 1971 में एली लिली फार्मा कम्पनी द्वारा अमेरिकी बाजार से वापस ले लिया गया था और क्लोरमेडिनोन एसीटेट के सभी मौखिक गर्भ निरोधकों को 1972 तक अमेरिका में बंद कर दिया गया था। आप देखिए अमेरिका जैसे देश में भी वर्षों तक कैंसर पैदा करने वाली दवा बेची जा सकती हैं। और फार्मा लॉबी का प्रभाव देखिए, अभी भी यह दवा पूरी दुनिया में बैन नहीं है, यह कुछ देशों में अभी भी उपलब्ध है, जिनमें फ्रांस, मैक्सिको, जापान और दक्षिण कोरिया शामिल हैं।2

गर्भपात, समय से पहले प्रसव और गर्भावस्था से संबंधित जटिलताओं के इलाज की दवा बनी कैंसर का कारण-

3.   डायथाइलस्टिलबेस्ट्रोल (Diethylstilbestrol (DES))-
डायथाइलस्टिलबेस्ट्रोल को पहली बार 1938 की शुरुआत में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में डायसन पेरिन प्रयोगशाला में सर रॉबर्ट रॉबिन्सन के स्नातक छात्र लियोन गोलबर्ग द्वारा संश्लेषित किया गया था।
लियोन गोलबर्ग का शोध कोर्टौल्ड इंस्टीट्यूट ऑफ बायोकैमिस्ट्री, लन्दन में विल्फ्रिड लॉसन द्वारा किए गए काम पर आधारित था (जिसका नेतृत्व मिडलसेक्स हॉस्पिटल मेडिकल स्कूलमेंसर एडवर्ड चाल्र्स डोड्सने किया था, जो अब यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन का हिस्सा है)। इसके संश्लेषण की एक रिपोर्ट "Nature" नाम के जर्नल में 5 फरवरी 1938 को प्रकाशित हुई थी।
इस दवा को किसी कम्पनी द्वारा पेटेंट नहीं कराया गया था इसलिए दुनिया भर में 200 से अधिक फार्मा और केमिकल कंपनियों द्वारा इसका का उत्पादन किया जाता था।
डायथाइलस्टिलबेस्ट्रोल की पहली बार 1939 में चिकित्सा उपयोग के लिए इसकी मार्केटिंग की गयी। इसे संयुक्त राज्य खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) द्वारा 19 सितंबर, 1941 को चार संकेतों onorrheal vaginitis, atrophic vaginitis, menopausal symptoms और postpartum lactation के लिए 5 मिलीग्राम तक की गोलियों में एप्रुव्ड किया गया था।
लगभग 1940 से 1971 तक, गर्भवती महिलाओं को यह दवा दी गई थी, ताकि गर्भावस्था की जटिलताओं और नुकसान के जोखिम को कम किया जा सकेगा। 1971 में, डायथाइलस्टिलबेस्ट्रोल को लड़कियों और महिलाओं में कोशिका कार्सिनोमा (cell carcenoma), एक दुर्लभ vaginal tumor का कारण दिखाया गया था, जो गर्भाशय में इस दवा के संपर्क में थी। जिसके बाद 1971 में ही फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने बाद में गर्भवती महिलाओं के इलाज के लिए डायथाइलस्टिलबेस्ट्रोल की मंजूरी वापस ले ली। अन्य अध्ययनों से पता चला की डायथाइलस्टिलबेस्ट्रोल (DES) लेने वाले महिलाओं में कई अन्य महत्वपूर्ण प्रतिकूल चिकित्सा जटिलताओं (जैसे breast cancer) का कारण भी बनती है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कैंसर जैसी समस्या के लक्षण इस दवा का उपयोग करने वाली माताओं के बच्चों में भी देखे जाते थे, खास कर उनकी बेटियों में जिसने DES Son और DES Doughter कहा जाता था।
1966 और 1969 के बीच, आठ महिलाओं में डायथाइलस्टिलबेस्ट्रोल लेने से vaginal cancer की खोज की गई। डायथाइलस्टिलबेस्ट्रोल के जहरीले प्रभावों की खोज के बाद से, इसे बाजार से हटा दिया गया है।
मुकदमे : 1970 के बाद डायथाइलस्टिलबेस्ट्रोल (DES) पर बहुत से मुकदमे भी दायर किए गए। फरवरी 1991 तक, डायथाइलस्टिलबेस्ट्रोल (DES) निर्माताओं के खिलाफ एक हजार से अधिक लंबित कानूनी कार्रवाइयां थीं। ऐसी 300 से अधिक कंपनियां हैं जो एक ही फॉर्मूले के अनुसार डायथाइलस्टिलबेस्ट्रोल का निर्माण करती हैं और वसूली के लिए सबसे बड़ी बाधा यह निर्धारित करना है कि प्रत्येक विशेष मामले में किस निर्माता ने दवा की आपूर्ति की है।
कानूनी प्रावधानों में साबित नहीं होने के कारण यह दवा कंपनियां चाहे किसी सजा से या जुर्माने से तो बच जाती हैं लेकिन मानवता के ऊपर ऐसी एलोपैथिक दवाएं और ऐसी फार्मा कंपनियां कितना बड़ा कलंक है आप कल्पना करके देखिए कि आप कोई सामान्य गोली किसी छोटी बीमारी के लिए लें और उस बीमारी को दूर करने की बजाय आपको कोई और बड़ी गंभीर बीमारी हो जाए।
53 DES Doughters द्वारा बोस्टन फेडरल कोर्ट में एक मुकदमा दायर किया गया था, जो कहती हैं कि उनके स्तन कैंसर उनके गर्भवती होने पर उनकी माताओं को डायथाइलस्टिलबेस्ट्रोल (DES) निर्धारित किए जाने का परिणाम थे। उनके मामले एक ड्यूबर्ट सुनवाई से बच गए। 2013 में, स्तन कैंसर/डायथाइलस्टिलबेस्ट्रोल (DES) लिंक मुकदमे शुरू करने वाली DES Doughters ने परीक्षण के दूसरे दिन एक अज्ञात निपटान राशि पर सहमति व्यक्त की। शेष वादियों को भी अज्ञात राशि के साथ सेटलमेंट कर लिया।3

कैंसर के इलाज की दवा ही बनी कैंसर का कारण-

4.    (एथिल कार्बामेट) (Ethyl Carbamet)-
   एथिल कार्बामेट जिसे यूरेथेन (urethane) के नाम से भी जाना जाता है। एथिल कार्बामेट का उपयोग एक एंटीनोप्लास्टिक एजेंट (anticancer, chemotherapy) अर्थात् कैंसर की दवा के रूप में कीमोथेरेपी के उपचार के रूप में और अन्य औषधीय प्रयोजनों के लिए किया गया था, लेकिन 1943 में कार्सिनोजेनिक होने का पता चलने के बाद इसके उपयोग पर रोक लगा दी गयी। हालांकि, चिकित्सा इंजेक्शन में जापानी उपयोग जारी रहा और 1950 से 1975 तक ऑपरेशन के बाद के दर्द के लिए उपयोग किए जाने वाले पानी में अघुलनशील एनाल्जेसिक दर्दनाशक तत्वों को घोलने के लिए पानी में 2 मिली. एम्प्यूल्स सह-विलायक के रूप में एथिल कार्बामेट के 7-15% घोल को रोगियों में इंजेक्ट किया गया। जिस स्तर पर यह रोगियों को लगाया जा रहा था वह स्तर चूहों में कार्सिनोजेनिक होता था। 1975 में यह जापान में भी यह पूर्ण प्रतिबंधित कर दिया गया था। जापान में इसके लम्बे समय तक उपयोग के कारण लगभग लाखों लोग इससे प्रभावित हुए थे, जिन्हें कैंसर की शिकायत थी। बहुत से लोगों व स्वास्थ्य के ऊपर चिंता करने वाले लोगों जैसे लेखक, अमेरिकी कैंसर शोधकर्ता जेम्स ए मिलर ने जापानी कैंसर दरों पर होने वाले इस एलोपैथिक दवा के प्रभावों को निर्धारित करने के लिए अध्ययन का आह्वान किया, लेकिन ऐसा कभी नहीं किया गया।
# 2007 में  International Agency for Research on Cancer (IARC) द्वारा इथाइल कार्बामेट को समूह 2A कार्सिनोजेन के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया गया था।
द्वितीय विश्वयुद्ध से पहले, एथिल कार्बामेट ने मल्टीपल मायलोमा (skin cancer) के उपचार में ज्यादा उपयोग किया जाता था। FDA के नियमों के अनुसार, एथिल कार्बामेट को फार्मास्युटिकल उपयोग को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया।
आप देखिए किस प्रकार से चिकित्सा विज्ञान जो अपने आपको एविडेंस बेस्ड साइंस मानता है, विकसित देश भी पहचान नहीं पाए कि किस कारण से कैंसर होता है और दशकों तक जापान जैसे देशों में ऐसी दवाई प्रयोग में आती रही, यह फार्मा लॉबी इतनी खतरनाक है कि यह सच को सामने नहीं आने देती।
चूहों और हैम्स्टर्स के साथ किए गए अध्ययनों से पता चला है कि एथिल कार्बामेट कैंसर का कारण बनता है जब मौखिक रूप दिया जाता है, या इंजेक्शन लगाया जाता है या त्वचा पर लगाया जाता है, लेकिन एथिल कार्बामेट के कारण मनुष्यों में कैंसर का कोई पर्याप्त अध्ययन नहीं किया गया है। हालांकि, 2007 में, इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर ने इथाइल कार्बामेट को समूह 2A कार्सिनोजेन के रूप में वर्गीकृत कर दिया जो शायद मनुष्यों के लिए कार्सिनोजेनिकहै, जो मनुष्यों के लिए पूरी तरह से कार्सिनोजेनिक से एक स्तर नीचे है। International Agency for Research on Cancer ने कहा है कि एथिल कार्बामेट को प्रायोगिक जानवरों में कैंसरजन्यता के पर्याप्त सबूत के आधार पर मानव कैंसरजन होने का उचित अनुमान लगाया जा सकता है4
आप शब्दों का खेल देखिए यह दिखाया जाता है कि शायद मनुष्य के कैंसर कारक है जिस दवा से जानवरों को नुकसान हो सकता है उससे मनुष्यों को नुकसान नहीं होगा यह कैसा साइंस है जो चूहों पर प्रयोग करके किसी दवा का यदि सकारात्मक प्रभाव आता है तो वह कहता है कि आदमियों के ऊपर भी यह ऐसा ही असर करेगा लेकिन जब ऐसा ही प्रभाव किसी एलोपैथिक की दवा से कैंसर होता है, तो वह कहते हैं कि यह तो केवल चूहों पर हुआ है आदमियों पर पता नहीं होगा या नहीं। आप इस फार्मा लॉबी के लिए केवल एक ग्राहक हैं और हमें जो रिसर्च दिखाई जा रही है हमें जो बताया जा रहा है वह जरूरी नहीं कि सच हो।

भूख को कम करके वजन घटाने वाली दवा बनी कैंसर का कारण-

बहुत सुरक्षित मानी जाने वाली भूख को कम करने वाली दवा भी वजन कम करने के नाम पर बेची जाने वाली दवाएं भी जिनको हम यह मानते हैं कि यह तो हानि कर ही नहीं सकती, इसके लिए किसी डॉक्टर से पूछने की आवश्यकता नहीं है, ऐसी दवाएं भी कैंसरकारक हो सकती हैं। ये केवल हार्ड, लीवर, किडनी ही फेल नहीं करती अपितु कैंसर जैसी गंभीर बीमारी भी दे सकती हैं। इसके उदाहरण देखिए, उसके बाद खुद कल्पना करिए कि है एलोपैथी की दवाइयाँ क्या मानव जाति के लिए लाभदायक है-
5.  लोर्केसेरिन (Lorcaserin)-
लोर्केसेरिन, बेल्विक (Belviq) ब्रांड नाम से बाजार में बेची जाती है। लोरकेसेरिन एरिना फार्मास्यूटिकल्स, अमेरिका द्वारा विकसित एक भूख को कम करके वजन घटाने वाली दवा है।
22 दिसंबर 2009 को, संयुक्त राज्य अमेरिका में खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) को एक नई दवा आवेदन प्रस्तुत किया गया था। 16 सितंबर 2010 को, FDA के एक सलाहकार पैनल ने प्रभावकारिता और सुरक्षा, विशेष रूप से चूहों में ट्यूमर के निष्कर्षों पर चिंताओं के आधार पर दवा के अप्रुवल के खिलाफ 9 में से 5 वोट दिए। 23 अक्टूबर 2010 को, FDA ने उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर दवा को मंजूरी नहीं देने का फैसला किया। यह केवल इसलिए नहीं था क्योंकि कैंसर को बढ़ावा देने वाले कारणों से इंकार नहीं किया जा सकता था, बल्कि इसलिए भी कि वजन घटाने की प्रभावकारिता को बहुत कममाना जाता था।
एफडीए जैसी अमेरिका की संस्था के 9 सदस्यों में से चार ने मना किया कि ये दवा मोटापा कम नहीं करती अपितु इसके साथ-साथ यह ट्यूमर भी पैदा कर सकती है। फार्मा कंपनी को दवा का अप्रुवल नहीं दिया लेकिन अमेरिका के अंदर भी फार्मा कंपनियों की ताकत क्या है यह देखिए कि-
10 मई 2012 को, एरिना फार्मास्युटिकल्स द्वारा प्रस्तुत अध्ययन के आधार पर FDA ने कुछ शर्तों के आधार पर लोर्केसेरिन को मंजूरी दे दी।
जनवरी 2020 में फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) के एक ड्रग सेफ्टी कम्युनिकेशन में कहा गया है कि एक क्लिनिकल परीक्षण ने लोर्केसेरिन लेने वालों के लिए कैंसर के संभावित बढ़े हुए जोखिम का प्रदर्शन किया। पांच वर्षों में लगभग 12,000 प्रतिभागियों में परीक्षण किया गया था और प्लेसिबो लेने वाले रोगियों की तुलना में लोर्केसेरिन लेने वाले अधिक रोगियों में कैंसर पाया गया था।
फरवरी 2020 में, FDA ने अनुरोध किया कि निर्माता लॉर्केसेरिन स्वेच्छा से अमेरिकी बाजार से दवा वापस ले लें, क्योंकि एक सुरक्षा क्लिनिकल ट्रायल में कैंसर की वृद्धि हुई घटना को दिखाया गया है। दवा निर्माता, Eisai Co. Ltd. (Japanese pharmaceutical company) ने स्वेच्छा से 2020 में बाजार से दवा वापस ले लिया।5
यदि अमेरिका जैसे देशों में भी 10 सालों तक ऐसी दवा बेची जा सकती है जो कैंसर पैदा कर सकती है, जिसको कंपनी केवल मुनाफे के लिए बेचती है और 10 साल बाद अनगिनत लोगों को कैंसर होने के बाद अमेरिका की एफडीए जैसी एजेंसी जब कंपनी को केवल दवा वापस लेने के लिए कहती हैं, तो हमें स्पष्ट रूप पर समझ लेना चाहिए कि हमारे स्वास्थ्य की चिंता न किसी फार्मा कंपनी को है, न किसी सरकार को है और न किसी नियामक एजेंसी को है।
भारत में स्थिति : सितम्बर 2019 तक यह भारत में Sun Pharma द्वारा बेची जाती थी। लेकिन भारत में फरवरी 2020 में इसकी बिक्री पर बैन लगा दिया गया।
Reference:
1.https://drugs.ncats.io/drug/GNT396G9QT,https://en.wikipedia.org/wiki/Anagestone_acetate#Availability
https://books.google.co.in/books?id=lOLnCAAAQBAJ&pg=PA149&redir_esc=y#v=onepage&q&f=false
2. https://books.google.co.in/books?id=eiL4CAAAQBAJ&pg=PA135&redir_esc=y#v=onepage&q=Chlormadinone&f=false
3. doi:10.1007/s11096-005-3663-z,  doi:10.1353/ken.0.0121,  https://en.wikipedia.org/wiki/Diethylstilbestrol
https://www.cancer.gov/about-cancer/causes-prevention/risk/hormones/des-fact-sheet#:~:text=get%20additional%20information%3F-,What%20is%20DES%3F,complications%20of%20pregnancy%20(1).
4. https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC5918349/
 https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC4609976/,https://en.wikipedia.org/wiki/Ethyl_carbamate
5.https://www.fda.gov/drugs/drug-safety-and-availability/safety-clinical-trial-shows-possible-increased-risk-cancer-weight-loss-medicine-belviq-belviq-xr 
https://www.fda.gov/news-events/fda-brief/fda-brief-fda-requests-voluntary-withdrawal-weight-loss-medication-after-clinical-trial-shows 
https://www.drugwatch.com/belviq/lawsuits/

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