परम पूज्य योगऋषि श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से निःसृत शाश्वत सत्य
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जड़ों व बड़ो से जुडो
यदि हम अपनी सांस्कृतिक जड़ो से व बड़ो वरिष्ठ पूर्वजों, ऋषि-ऋषिकाओं से जुडे़ रहेंगे तो जीवन में कभी भी रोगी, दुःखी, दरिद्र हो ही नहीं सकते। वेद, दर्शन, उपनिषद्, पुराण, रामायण, महाभारत, गीता, आयुर्वेदादि आर्षज्ञान की अतुल्य अप्रतिम महान् विरासत है, जिसमें हमारे जीवन की सभी समस्याओं का समाधान सन्निहित हैं। अपने पूर्वजों के ज्ञान, तप, दीक्षा, पुण्यों एवं महान् आदर्शों, कृतित्व एवं व्यक्तित्व से ईश्वर में हमें सब कुछ दे दिया है।
ये सब कुछ पाकर भी हम रोगी दुःखी, दरिद्र, दीनहीन होकर जीयें, इससे बड़ा दुर्भाग्य कुछ भी नहीं हो सकता। अतः भारतवर्ष के सभी आर्यो के वंशजो, ऋषि-ऋषिकाओं की सन्तानों या अमृत की सन्तानों को पूर्ण गौरव व स्वाभिमान के साथ पूर्ण विवेकी, पूर्ण श्रद्धालु, पूर्ण पुरुषार्थी व पराक्रमी होकर अपने-अपने क्षेत्र में नवकीर्तिमान स्थापित करने चाहिए तथा सबको सामूहिक रूप से संगठित होकर विविध क्षेत्रों में बडे़-बडे़ साम्राज्य स्थापित करके दुनियां के सामने नये आदर्श, उदाहरण व प्रेरणायें खड़ी करनी चाहिए। मुझे पूरा विश्वास है कि देश में करोड़ों भाई-बहन पूर्ण शौर्य के साथ खड़े होंगे व पूरे विश्व का नेतृत्व करेंगे। हमारी जड़े है योग, यज्ञ, आयुर्वेद, पंच महायज्ञ एवं सोलह संस्कारों में हमारी जड़े हैं। अभ्युदय निःश्रेयस प्रवृत्ति निवृत्ति एवं अपरा व परा विद्याओं के समन्वय से जीवन के श्रेष्ठतम प्रयोजन को पूरा करने में।
ध्यान से जुडे़ं, ध्यान योगी भी बनें, योगी व कर्मयोगी के साथ-साथ मैं आपको ध्यान योगी भी बनाना चाहता हूँ। प्रतिदिन कम से कम 5 मिनट से आप ध्यान योग की यात्रा या मेडिटेशन की प्रैक्टिस अवश्य करें। ध्यान की एक सतत् यात्रा है जिससे हम अपनी सूक्ष्म दिव्य चेतना का ऊर्ध्व आरोहण करते हैं। ओंकार ध्यान, गायत्री ध्यान, महामृत्युंजय ध्यान, साक्षी ध्यान, गुणातीत ध्यान, आत्म ध्यान, ज्योति ध्यान, विश्वमय एवं विश्वातीत ब्रह्म का ध्यान आदि ऐसी दिव्य विधायें हैं जिससे हमारे व्यक्तित्व में सहज रूप से देवत्व, ऋषित्व व ब्रह्मत्व घटित हो जाता है। हमें जीते जी रोगों से मुक्त होने के साथ-साथ समस्त भवबन्धनों से भी मुक्त होकर जीवन मुक्त होकर जीना है।
ध्यान से शरीर में पूर्ण स्वस्थता आने के साथ-साथ मन में पूर्ण दिव्यता व अतीन्द्रिय शक्तियों व सामर्थ्य से हम युक्त हो जाते हैं। दृश्य जीवन एवं जगत सीमित है अस्तित्व का शायद एक प्रतिशत ही है। अतीन्द्रिय अस्तित्व असीम व अनन्त है तथा उसका सामर्थ्य भी अनिर्वचनीय है। मैं चाहता हूँ ऐसा शिव संकल्प मेरे ह्दय में बार-बार उमड़ रहा है कि सब जीवों का भगवान के इस दिव्य विधान के साथ भी साक्षात्कार हो। भगवान की दृश्य शक्तियां जब इतनी शक्तिशाली है तो अदृश्य शक्तियों का सामर्थ्य कितना होगा यह तो हम ठीक-ठीक मूल्यांकन भी नहीं कर सकते। भगवान व गुरुओं के अनुग्रह से भी शीघ्र ही इस धरा पर कुछ बड़े सनातन सत्य उद्घटित होंगे।
स्वामी रामदेव
लेखक
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