राष्ट्र निर्माण में युवा पीढ़ी की भूमिका
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डॉ. वैशाली गौड़ सह-प्राध्यापक
मनोविज्ञान विभाग, पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार
ध्यान एक अद्भुत प्रतिभा के धनी, उत्कर्ष व्यक्तित्वशील गुणों से युक्त महान आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद जी ने युवाओं के व्यक्तित्व को अनूठे रूप से परिभाषित करते हुए कहा था कि किसी भी देश की जनसंख्या में युवा सबसे अधिक गतिशील वर्ग होता है। इस प्रेरणादायक कथन से यह स्पष्ट होता है कि भारत देश को विश्व गुरु का सम्मान प्राप्त कराने में युवाओं का योगदान अतुल्य होगा। किसी भी देश में विकास को गति देने के लिए युवा एक मुख्य कड़ी है। न्यूज नेशन ब्यूरो के माध्यम से किए गए सर्वेक्षण के अनुसार भारत की कुल 140 करोड़ जनसंख्या में से 50 प्रतिशत जनसंख्या की आयु 25 वर्ष से कम है, अधिकांश विकसित देशों जैसे- संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, जापान, जर्मनी, बिट्रेन, ऑस्ट्रेलिया, चीन, कनाडा आदि देशों में जन्म दर कम होने से प्रोढ़ नागरिकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है और युवा जनसंख्या दर तेजी से घट रही है। ऐसे में भारत युवा जनसंख्या की दृष्टि से बहुत ही लाभप्रद स्थिति में है। इस सर्वेक्षण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भावी युवा पीढ़ी युग परिवर्तन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। दुर्भाग्य की बात है कि हमारी युवा पीढ़ी आज अंधेरे की चादर ओढ़ कर अपना जीवन व्यतीत कर रही है।
बृहदारण्यक उपनिषद् में वर्णित शांति मंत्र- असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय के सार को आज की युवा पीढ़ी या तो भूल चुकी है या उसकी गंभीरता को स्वीकार ही नहीं करना चाहती। आज से कई हजार वर्ष पूर्व अद्भुत प्रतिभा के धनी, उत्कर्ष गतिशील गुणों से युक्त महान आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद जी ने जापान से देश के युवाओं को संबोधित करते हुए संदेश दिया था- आओ इंसान बनें।
इस प्रेरणादायक व संवेगात्मक कथन से यह स्पष्ट होता है कि हमारी भावी युवा पीढ़ी में मानवीय गुणों का भाग देखने को मिल रहा है। देश में युवाओं को जागृत होना होगा और अपनी असीम क्षमताओं को पहचान कर अपने जीवन को युग परिवर्तन में अर्पित करना होगा। भावी युवा पीढ़ी को इस बात की गहराई को समझना होगा कि उनकी मासंपेशियां लोहे की और नस्लें फौलाद की हैं। युवा पीढ़ी को स्वार्थ, नाम, यश, तेज, तेरा-मेरा के विचारों का परित्याग करके विश्व में इनके मंत्र को धारण करके जीवन-यापन करना होगा। इस लेख को पढऩे वाले सभी महापुरुषों के मन में एक प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठ रहा होगा कि भावी युवा पीढ़ी क्या मात्र प्रेरणादायक वचनों से अपने व्यक्तित्व को परिमार्जित कर सकती है। युवाओं के भावी निर्माण में प्रेरणादायक वचनों के साथ-साथ मां एवं गुरु की अहम् भूमिका होती है। पौराणिक ग्रंथों एवं प्राचीन भारतीय साहित्य के अनुसार क्षेत्र एवं आदर्श युवाओं के निर्माण में मां एवं गुरु की अहम भूमिका होती है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम अप्रतिम युद्धवीर एवं धनुर्धर अर्जुन इसके जीवंत उदाहरण हैं।
महान दार्शनिक रूसो ने माँ के महत्व को उजागर करते हुए कहा है कि आप मुझे 60 अच्छी माताएं दीजिए, मैं आपको एक श्रेष्ठ राष्ट्र दूंगा। गुरु की महिमा अपरम्पार है, आदि गुरु द्रोणाचार्य के द्वारा ही हमें अर्जुन एवं एकलव्य जैसे वीर योद्धा प्राप्त हुए। अत: हमारे देश की प्रत्येक मां एवं गुरु को आदर्श बनना होगा। मां एवं उनकी संतान और गुरु और उनके शिष्यों के मध्य श्रद्धा और विश्वास का संबंध होना चाहिए। श्रद्धा और सबुरी दो ऐसे मूल मंत्र हैं जिनके माध्यम से कोई भी मानव अपने जीवन को सफल बना सकता है। श्रद्धा और विश्वास के साथ साथ निरंतर गति से निष्काम काम करते रहना चाहिए।
स्वामी रामदेव जी महाराज युवा पीढ़ी को संबोधित करते हुए कहते हैं कि प्रत्येक मनुष्य को मानव से महामानव बनने का प्रयास करना|
चाहिए। मानव से महामानव बनने की यात्रा में व्यक्ति को आलस्य, प्रमाद का त्याग करके अपने आप को ऋषि-मुनियों की संतान मानकर विकल्प रहित संकल्प के द्वारा अखंड-प्रचंड प्ररूषार्थ करना चाहिए। इस प्रकार व्यवहार करने से वह दिन दूर नहीं जब हमारा देश पुन: विश्व गुरु का दर्जा प्राप्त कर लेगा।
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