जीवन की उत्पत्ति, मानव काल गणना और जैव उत्कृष्टता

जीवन की उत्पत्ति, मानव काल गणना और जैव उत्कृष्टता

डॉ. चंद्र बहादुर थापा  वित्त एवं विधि सलाहकार-
भारतीय शिक्षा बोर्ड एवं विधि परामर्शदाता पतंजलि समूह
 

वन की उत्पत्ति की जानकारी मानव के लिए विभिन्न कारणों के लिए चाहिए। मानव की सामान्य जीवन अवधि 100 वर्ष नियत है और एक व्यक्ति अपने जीवनकाल के अधिकतम 95 वर्षों के प्रत्यक्ष स्मृत-विस्मृत घटनाओं के साथ अपने से पूर्व के अथवा अपने अप्रत्यक्ष घटनाओं दूसरों के द्वारा प्रस्तुत को यथावत मानकर वर्णन कर सकता है।  अत: वेदों, शास्त्रों, तत्त्वमीमांसा (metaphysics), आनुवांशिकी (genetics),   इतिहासों, पुराणों, साहित्यों, शिला तथा धातु लेखों, गुफा चित्रों, जीवाश्म अवशेषों पर शोध एवं आयु निर्धारण इत्यादि, सभी विभिन्न कालखंडों के विभिन्न परिस्थितियों और वैचारिक समूहों, राजनैतिक परिपाटियों, तत्कालीन शीर्ष व्यक्ति के विचार और मूल्यमान्यताओं, इत्यादि अनेकों प्रभावी कारणों को भी प्रतिविम्बित करते हैं जो आज के युवा को अकल्पनीय और अविश्वसनीय लग सकता है, परन्तु कभी रहा है, तभी चला आ रहा है। घोर कम्युनिस्ट और नास्तिक भी अदृश्य सर्वशक्तिमान को अंतत: अंतर्मन से मानता है, चाहे अपने हठ में सार्वजनिक रूप से न मानने का ढोंग दिखाता है। शिक्षण प्रशिक्षण में ऐसे सभी आधारों  के सहायता लेना अनिवार्य हो जाता है। वर्तमान शैक्षिक मान्यता के वैज्ञानिक अध्ययन और खोजों के आधार पर ही अभी के जनसाधारण जीवन की उत्पत्ति के प्रमाणिकता मानेंगे। इसीलिए सर्वप्रथम कुछ कालगणना की भी जानकारी होना जरुरी है।
सनातन मान्यता
ब्रह्मा जी के एक दिन में 14 इन्द्र (मनु) मर जाते हैं और इनकी जगह नए देवता इन्द्र का स्थान लेते हैं। इतनी ही बड़ी ब्रह्मा की रात्रि होती है। दिन की इस गणना के आधार पर ब्रह्मा की आयु 100 वर्ष होती है फिर ब्रह्मा मर जाते हैं और दूसरा देवता ब्रह्मा का स्थान ग्रहण करते हैं। ब्रह्मा की आयु के बराबर विष्णु का एक दिन होता है। इस आधार पर विष्णु जी की आयु 100 वर्ष है। विष्णु जी 100 वर्ष का शंकर जी का एक दिन होता है। इस दिन और रात के अनुसार शंकर जी की आयु 100 वर्ष होती है।
सृष्टि जैव और मानव कितने पुराने?
आधुनिक युग में पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान के आधार को ही प्रामाणिक मानते हैं और उनके अनुसार भी निर्जीव मानेजाने वाले कोशिकीय परमाणु से अजीवातजीवोत्पत्ति पद्धति से अथवा महाविस्फोट सिद्धांत (क्चद्बद्द ड्ढड्डठ्ठद्द ह्लद्धद्गशह्म्4) अनुसार 13.7 अरब वर्षपूर्व के परमाणु इकाई के रूपमे स्थित बह्माण्ड की महाविस्फोट से फैले अणुओं के तप्त पिंड के शीतिकरण से लगभग 4.5 अरब वर्ष पूर्व पृथ्वी में जैव उत्पत्ति की सम्भावना बताया है।
वेदों पर आधारित सूर्य सिद्धांत के कालगणना सूत्रों में भी यह स्पष्ट वर्णित है। वेदों को मानने वाले सनातन हिन्दुओं के ग्रंथों के अनुसार, मन्वन्तर, मानव के प्रजनक मनु, की आयु होती है। यह समय मापन की खगोलीय अवधि है। मन्वन्तर एक संस्कृत शब्द है, जिसका संधि-विच्छेद करने पर= मनु+अन्तर मिलता है। इसका अर्थ है मनु की आयु। प्रत्येक मन्वन्तर एक विशेष मनु द्वारा रचित एवं शासित होता है, जिन्हें ब्रह्मा द्वारा सृजित किया जाता है। मनु विश्व की और सभी प्राणियों की उत्पत्ति करते हैं, जो कि उनकी आयु की अवधि तक बनती और चलती रहती हैं, (जातियां चलतीं हैं, ना कि उस जाति के प्राणियों की आयु मनु के बराबर होगी)। उन मनु की मृत्यु के उपरांत ब्रह्मा फ़िर एक नये मनु की सृष्टि करते हैं, जो फ़िर से सृष्टि रचना करते हैं, जैसे एक फसल के बाद दूसरे फसल की प्रक्रिया। इसके साथ-साथ विष्णु भी आवश्यकतानुसार, समय-समय पर अवतार लेकर इसकी संरचना और पालन करते हैं। इनके साथ ही एक नये इन्द्र और सप्तर्षि भी नियुक्त होते हैं।
मनु, मन्वन्तर, कल्प और ब्रह्मा का एक दिवस
चौदह मनु और उनके मन्वन्तर को मिलाकर एक कल्प बनता है। यह ब्रह्मा का एक दिवस होता है। प्रत्येक कल्प के अन्त में प्रलय आती है, जिसमें ब्रह्माण्ड का संहार होता है और वह विराम की स्थिति में आ जाता है, जिस काल को ब्रह्मा की रात्रि कहते हैं। इसके उपरांत सृष्टिकर्ता ब्रह्मा फ़िर से सृष्टि रचना आरम्भ करते हैं, जिसके बाद फ़िर संहारकर्ता भगवान शिव इसका संहार करते हैं। और यह सब एक अंतहीन प्रक्रिया या चक्र में होता रहता है। वर्तमान ब्रह्मा जी से पहले कितने ब्रह्मा हुए, विष्णु भी कितने वर्ष के हुए, शिव जी कितने वर्ष के, किसी को नहीं मालूम, न ही मालूम किए जाने की संभावना है।
वर्तमान सृष्टिकी कुल आयु - 4,32,00,00,000 वर्ष है, इसे कुल 14 मन्वन्तरों मे बाँटा गया है - (1) स्वायम्भुव, (2) स्वारो‍‍चिष, (3) उत्तम, (4) तामस, (5) रैवत, (6) चाक्षुष, (7) वैवस्वत, (8) सावर्णि, (9) दक्षसावर्णि, (10) ब्रह्मसावर्णि, (11) धर्मसावर्णि, (12) रुद्रसावर्णि, (13) देवसावर्णि तथा (14) इन्द्रसावर्णि। वर्तमान मे 7वें मन्वन्तर अर्थात् वैवस्वत मनुवन्तर चल रहा है इससे पूर्व 6 मन्वन्तर जैसे स्वायम्भुव, स्वारोचिष, औत्तमि, तामस, रैवत, चाक्षुष बीत चुके हैं और आगे सावर्णि आदि 7 मन्वन्तर भोगेंगे।
1 मन्वन्तर = 71 चतुर्युगी, 1 चतुर्युगी = चार युग (सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग)। चारों युगों की आयु - सत्ययुग = 17,28,000 वर्ष त्रेतायुग = 12,96,000 वर्ष द्वापरयुग = 8,64,000 वर्ष और कलियुग = 4,32,000 वर्ष इस प्रकार 1 चतुर्युगी की कुल आयु = 17,28,000+12,96,000+ ,64,000+4,32,000 = 4320000 वर्ष । अत: 1 मन्वन्तर = 714320000(एक चतुर्युगी) = 30,67,20,000 वर्ष । ऐसे 6 मन्वन्तर बीत चुके हैइसलिए 6 मन्वन्तर की कुल आयु = 6306720000 = 184,03,20,000 वर्ष वर्तमान मे 7वें मन्वन्तर के भोग मे यह 28वीं चतुर्युगी है, इस 28वीं चतुर्युगी मे 3 युग अर्थात् सतयुग , त्रेतायुग, द्वापर युग बीत चुके हैं और कलियुग का 5125वां वर्ष चल रहा है, 27 चतुर्युगी की कुल आयु = 2743,20,000(एक चतुर्युगी) = 11,66,40,000 वर्ष और 28वें चतुर्युगी के सतयुग , द्वापर , त्रेतायुग और कलियुग की 5,125 वर्ष की कुल आयु = 17,28,000+ 12,96,000+ 8,64,000 +5,125 = 38,93,125 वर्ष इस प्रकार वर्तमान में 28वें चतुर्युगी के कलियुग की 5,125वें वर्ष तक की कुल आयु = 27वें चतुर्युगी की कुल आयु + 38,93,115 = 11,66,40,000+38,93,115 = 12,05,33,125 वर्ष इस प्रकार कुल वर्ष जो बीत चुके हैं = 6 मन्वन्तर की कुल आयु + 7वें मन्वन्तर के 28वीं चतुर्युगी के कलियुग की 5,125वें वर्ष तक की कुल आयु =
184,03,20,000+12,05,33,125 = 196,08,53,125 वर्ष। अब इसमें प्रत्येक चतुर्युग के संधिकाल के समय जो षष्ठांश के बराबर होता है तथा कल्पों के प्रारम्भ और अन्त की सन्ध्या के काल समय जो एक संध्याकाल एक त्रेता युग के बराबर होता है, को जोड़ लें। अत: वर्तमान में 1,97,29,49,130वां वर्ष चल रहा है और बचे हुए 2,34,70,50,870 वर्ष भोगने हैं जो इस प्रकार है - सृष्टि की बची हुई आयु = सृष्टि की कुल आयु- 1,97,29,49,129 = 2,34,70,50,871 वर्ष। यह गणना लिंग और स्कंध इत्यादि पुराणों से, पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य श्री निश्चलानन्द सरस्वती जी द्वारा उत्तरोत्तरित है।
वर्तमान तिथि
वर्तमान में, वर्तमान ब्रह्मा के इक्यावनवें वर्ष में सातवें मनु, वैवस्वत मनु के शासन में श्वेतवाराह कल्प के द्वितीय परार्ध में, अठ्ठाईसवें कलियुग के द्वितीय वर्ष के प्रथम दिवस में विक्रम संवत 2080 चल रहा है। इस प्रकार अब तक 15 नील, 55 खरब, 21 अरब, 97 करोड़, 19 लाख, 61 हज़ार, 626 मानव वर्ष इस ब्रह्मा को सर्जित हुए हो गये हैं। ग्रेगोरियन कैलेण्डर के अनुसार वर्तमान कलियुग दिनाँक 17 फरवरी / 18 फरवरी को 31020 पू0 में हुआ था, अर्थात् कलियुग 5,125वां वर्ष चल रहा है। इस बात को वेदांग ज्योतिष के व्यख्याकार नहीं मानते। उनका कहना है कि यह समय महाभारत के युद्ध का है। इसके 36 साल बाद यदुवंश का विनाश हुआ और उसी दिन से वास्तविक कलियुग प्रारम्भ हुआ। इस गणित से आज 5 जून 2023, सोमवार- भारत का राष्ट्रीय मिति ज्येष्ठ 15, शक संवत् 1945, आषाढ़, कृष्ण, प्रतिपदा, सोमवार, विक्रम संवत् 2080। नेपाल  राष्ट्रीय मिति सौर ज्येष्ठ मास प्रविष्टे 22 ज्येष्ठ 2080। अर्थात् 5125-36 = 5089वां वर्ष चल रहा है। 
सनातन में संवतें
1.  स्वायंभूव मनुसंवत (21,201 ई.पू.) - प्रजापति मनु द्वारा प्रारंभ, ज्योतिष में इसका समय 31,125 वर्ष पुराना माना गया है।
2.  ध्रुव संवत (27,376 ई.पू.) - स्वायंभूव मनु के वंशज ध्रुव द्वारा प्रारंभ। उस काल में ध्रुव तारा ठीक उत्तरी ध्रुव पर स्थित था और इसके इर्द-गिर्द घुमते सप्तर्षि मण्डल के आधार पर दिन और महिनों के गणित लगाया जाता था। ध्रुव संवत्सर 7100 साल तक चला था।
3.  कश्यप संवत (17,500 ई.पू.) - यह कश्यप ऋषि ने चलाया था और सूर्य की चाल से साल का हिसाब किताब होता था। सूर्य पुनर्वसु नक्षत्र में आने पर साल समाप्त होता था और नव वर्ष अगले दिन से शुरू होता था।
4.  कार्तिकेय संवत (15,800 ई.पू.) - इस समय पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव कुछ खिसक गया था, अत: कातकेय ने पुनर्वसु के बदले धनिष्ठा नक्षत्र में सूर्य आने पर नया वर्ष शुरू किया।
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