बाजरा : वैदिक काल से एक महत्वपूर्ण' त्री धान्य’ मिल्ट्स

बाजरा : वैदिक काल से एक महत्वपूर्ण' त्री धान्य’ मिल्ट्स

वैदिक काल से ही भारतवर्ष में साबुत अनाजों का मुख्य रूप से विभिन व्यंजनों को बनाने एवं आयुर्वेद चिकित्सा में उपयोग किया जाता था। साबुत अनाज जिन्हें आज मिल्ट्स (Millets) कहा जाता है उनका वर्णन हमें प्राचीन वेदों में भी प्राप्त होता है। आर्कियोबोटैनिकल शोधकर्ताओ के अनुसार इनकी खेती 4000 ईसा पूर्व की है। हमारे पारंपरिक आयुर्वेद के औषधीय ग्रंथों में इनका उल्लेख 'त्री धान्य वर्गया 'कुधन्यावर्गविषय के तहत मिलता है। प्राचीन आयुवेर्दिक ग्रंथ चरक सहिंता में भी विभिन्न 'त्री धान्यका वर्णन प्राप्त होता है जिसमें इनकी वानस्पतिक विशेषता, गुण धर्म द्रव्य गुणों एवं इनमें उपस्थित पोषक तत्वों के विवरण के साथ उनकी महत्वता को भी बताया गया है। 'त्री धान्य’ (श्रीअन्न) मूलत: मधुर एवं कषाय रस की प्रधानता लेते है एवं किचिंत उष्ण प्रवृति के होते है। यह प्राय: वातकार  होते है (वात दोष बढ़ाते है) एवं पित्त-रक्त, कफहार होते हैं। पूर्ण रूप से यह वात-पित्त, कफ में समन्वय रखने में सहायक होते हैं हालांकि प्रत्येक श्रीअन्न के द्रव्य गुणों में विभिन्नता का भी भली प्रकार से वर्णन किया गया है, जिस कारण उनका उपयोग भारतवर्ष के सभी प्रान्तों में होता आ रहा है। यह मनुष्य के मस्तिष्क में राजसिक व सात्विक प्रभाव डालते है जो कि वस्तुत: उनके गुणानुसार होती है, हालांकि वातकार होने के कारण यह प्राय: वात प्रधान व्याधियों एवं अजर्णिता, मंदाग्नि इत्यादि के दौरान नही उपयोग किए जाते है।
आयुर्वेद मतानुसार हमारा भोजन, हमारे स्वास्थ की रक्षा करता है एवं हमें निरोगी रखने में सहायक होता है, इसलिए आयुर्वेद उपचार में  खाद्य पदार्थों का विशेष समावेश होता है जिसको 'आहार विहारके परिपेक्ष में समझा जाता है। आहार में विशेषकर 'पथ्य-अपथ्यका भी महत्व होता है जो प्रत्येक खाद्य पदार्थ के विशेष द्रव्य गुणों पर आधारित होता है एवं उनका चयन मनुष्य की प्रकृति के अनुसार किया जाता है। आयुर्वेदानुसार मनुष्य जो भी भोजन ग्रहण करता है वो पाचन के बाद 'रसबनता है जो कि विभिन्न प्रक्रियाओं द्वारा रक्त, मज्जा, मेदा, धातु इत्यादि में बदलता है एवं मनुष्य के शारीरिक एवं मानसिक बल में वृद्धि करता है। पथ्य व्यवस्था के द्वारा विभिन्न भोज्य पदार्थों की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। आचार्य चरक एवं आचार्य सुश्रुत ने अपनी-अपनी सहिंताओं में विभिन्न प्रकार के आहार का वर्गीकरण किया है, जिससे 'शौक्याधान्यप्रथम वर्णित है। इसमें आज के साबुत अनाज (Monocotyledons) मुख्यत: आते है। हालांकि आचार्य सुश्रुत ने 'शौक्याधान्यका नाम से वर्णन नहीं किया है अपितु इनको इनके द्रव्य गुणों के आधार पर 'मुदगाडी’ (mudgadi), 'शाली’ (shali) एवं 'कुधान्या’ (kudhanya) वर्ग में रखा है। यजुर्वेद में कुछ प्रमुख 'त्री धान्यका उल्लेख किया गया है, जिसमें फॉक्सटेल मिल्ट्स (प्रियांगावा), बरनार्ड मिल्ट्स (आनवा:) और मिल्ट्स (श्यामका) की पहचान की गई है, इस प्रकार यह संकेत मिलता है कि इन धान्यों का उपयोग विस्तृत रूप से किया जाता रहा है।
आयुर्वेदानुसार प्रत्येक श्रीअन्न अपने विशेष द्रव्य गुण के अनुसार खाद्य पदार्थ के रूप में एवं चिकित्सा के लिए उपयोग किया जाता है। 'ज्वारलघु गुण शीत वीर्य की प्रकृति का अन्न है जोकि पाचन क्रिया के लिए हल्का है एवं शरीर में शीतलता प्रदान करता  है अत: इसका प्रयोग ग्रीष्म ऋतु में हितकारी है। 'मधुलिकामें लघु गुण की प्रचुरता होती है अतैव एवं इन्हें 'अनुशानुभी कहा जाता है यानि कि शरीर के लिए न तो यह उष्ण है न ही शीतलता प्रदान करने वाली। 'श्यामकामें भी लघु गुण की प्रधानता है यह भी पाचन में हल्की, सुपाच्य होती है और वात दोष को शरीर में बढ़ाती है। हालांकि पित्त और कफ दोष में सांमज्य बनाती हैं इसका उपयोग 'अति भी महाअन्न’ (over nutrition) के लिए भी किया जाता है। 'बाजरेको 'कुटसित धान्यके रूप में वर्णित किया गया है जिसका अर्थ है स्वाद में अच्छा नहीं है लेकिन इसके विभिन्न गुणों और अन्य पोषक तत्वों के कारण इसका उपयोग बहुत किया जाता है। आयुर्वेद में बाजरे को स्वाद में मीठा (मधुर रस) बताया है जो पाचन के बाद तीखा, शुष्क और प्रकृति में गर्म हो जाता है। पारंपरिक वैध, पित्त, कफ दोषों को संतुलित करने के लिए दैनिक आहार में बाजरे को शामिल करने की सलाह देते हैं। इस अनाज  की गर्म शक्ति या वीर्य प्रकृति को कई स्वास्थ्य लाभों के लिए सराहा जाता है। इसको प्रमुख अन्न के रूप में खाना कफ दोष को संतुलित करता है परन्तु उसके शुष्क व लघु गुण के कारण वात प्रकृति के व्यक्तियों के लिए हानिकारक है। वर्तमान समय में भी इन विभिन्न अन्नों का उपयोग जैसे हृदय सम्बन्धित रोग, मोटापा, मधुमेह, इत्यादि के लिए किया जा रहा है। वैश्विक स्तर पर नवीन अनुसंधानो के द्वारा इनके पोषक तत्वों की खोज की जा रही है। साथ ही कई अन्य बीमारियों के बचाव हेतु भी प्रयास किये जा रहे है।
भारतवर्ष में उपस्थित विभिन्न भौगोलिक क्षेत्र एवं जलवायु के कारण पूरे देश में आदिकाल से ही विभिन्न अनाजों का अस्तित्व रहा है। साबुत अनाज (millets) जैसे सोरगम (यावानाला) [Sorghum bicolor (L.) Moench] पर्ल मिलट् [Pennisetum glaucum (L.) R.Br.], फिंगर मिलट् (नारतकी) [Eleusine coracana (L.) Gaertn.]], बर्नयार्ड मिलट् (श्यामका) (Echinochloa frumentacea Link)  प्रोसो मिलट् (चीनाका) (Panicum miliaceum L.), कोडो मिलट् (कोद्रावका) (Paspalum scrobiculatum L.), लिटिल मिलट् (कुटकी, सामा) (Panicum sumatrense Roth) और फॉक्सटेल मिलट् (कगंनू) (Setaria italica (L.) P.Beauv.) प्राय: किसी न किसी रूप में भारतीय व्यंजनों में एवं आयुर्वेद की चिकित्सा प्रणाली में इस्तेमाल किए जाते रहे हैं। प्राय: इनको उपयोग में लाने से पहले संमस्कार (processing) करना आवश्यक है जिससे यह वात दोष को नियंत्रित करने में सहायक हो जाए। इन अनाजों को पानी में भिगोकर, घी एवं दीपन पाचन अव्ययों एवं 'वात श्यामका प्रकाशपाक’ (वात, शांत, करने वाले मसाले) के समन्वय से पकाया जाता है एवं इनके साथ उपयोग में आने वाली अन्य सामग्रियों की मात्रा का भी पूर्ण रूप से ध्यान रखा जाता है।
आजादी से पूर्व इनकी धान्यों की बहुत उपज होती थी, क्योंकि यह प्रमुख रूप से दैनिक खानपान में शामिल थे। एक रिर्पोटानुसार 1950-51 एवं 2018-19 के बीच में इनके उत्पादन में 41.65त्न की कमी पाई गई जिसके विभिन्न कारणों पर गहन अध्ययन भी किया गया। वर्तमान सरकार के अथ्क प्रयासों के कारण ही यह वर्ष मिल्ट्स महोत्सव (International millet year, 2023) के रूप में मनाया जा रहा है एवं गहन रिसर्च एवं प्रौद्योगिक तकनीकी की सहायता से इन अनाजों की उत्पादक क्षमता एवं इनसे बनने वाले विभिन्न व्यंजनो पर ध्यान दिया जा रहा है। वैदिक काल से ही हमारे ऋषि-मुनियों को इन अन्नों के पोषकीय तत्व एवं इनके द्रव्य गुणों के अनुसार उनका चिकित्सीय उपयोग ज्ञात था एवं इनका विवरण मुख्य रूप से पाक शास्त्र के अंर्तगत किया गया है। 'क्षेम कुतूहलम्एवं 'भोजनकुतूहलम्में विस्तार से विभिन्न प्रकार के भोजन, विभिन्न खाद्यानों इत्यादि का वर्णन है।
बाजरे [Pennisetum glaucum (L.) R.Br.] को अंग्रेजी में पर्ल मिल्ट् (Pennisetum glaucum (L.) R.Br.) भी कहा जाता है। भारतवर्ष में यह प्रमुखत: राजस्थान एवं उत्तर प्रदेश में पाया जाता है हालांकि कई अन्य राज्य भी इसका उत्पादन करते हैं। 2019 में इसका वार्षिक उत्पाद 1.25 ह्ल/द्धड्ड था। यह एक वार्षिक 6-14 फीट तक उगने वाली लंबी सीधी घास है। इसका पुष्प क्रम एक संयुक्त शीर्षस्थ स्पाइक होता है जिसे पैनिकल कहते है। जिसकी लंबाई 25-30 ष्द्व व व्यास 7-9 ष्द्व का होता है। पुष्पक्रम में एक केन्द्रिय रैकिस होता है जो रोमों द्वारा ढ़का रहता है। बाजरे की प्रत्येक स्पाइक में अनेक फैसिकल्स अपने अपने वृन्त के द्वारा रैकिस के द्वारा जुड़ी हुई रहती है। बाजरे की उपज पैनिकल की लंबाई संहतता (length, compactness) पर  निर्भर रहती है जिसमें लगभग 1000 दानों की संख्या हो सकती है। नवीन तकनीकों (प्रजनन विधियों) द्वारा बाजरे की विभिन्न प्रजातियों, संकर किस्म (hybrid varieties) का भी निर्माण किया गया है जो कि मुख्यत: पाला-रोधी एवं कवक-रोधी (Downey mildew)  फसलें है। बाजरे की कुल 167 संकर किस्म एवं 61 varieties का विकास ICAR (Indian Council for Agricultural Research) द्वारा किया जा चुका है जो कि उत्पादक फसल के रूप में संपूर्ण देश में उगाई जा रही है। बाजरे को हिदीं व राजस्थानी में बाजरा कहते है, तेलुगु में 'सज्जालुए’, तमिल और मलयालम में 'कंबूए’, कन्नड़ में 'सज्जाए’, गुजराती में 'बजरीकहते है। आदिकाल से ही हम बाजरे का उपयोग अपने भोजन के रूप में कर रहे है एवं आज के युग में नवीन अनुसंधान के द्वारा भी इसके पोषक तत्वों को प्रमाणित कर रहे है।
पोषक तत्वों की मात्रा
प्रोटीन 22 ग्राम (gm); पानी 17.3 ग्राम; कुल कैलोरी 756 किलो कैलोरी; कुल कार्बोहाइड्रेट 146; फाइबर 17 ग्राम; कुल वसा 8.4 ग्रामसंतृप्त वसा 1.4 ग्राम; मोनोअनसैचुरेटेड वसा 1.5 ग्राम; पॉलीअनसेचुरेटेड वसा 1.3 ग्राम; ओमेगा -3 फैटी एसिड 236 मिलीग्राम (mg); विटामिन विटामिन ई 100 एमसीजी (mcg); विटामिन-द्म 1.8; थियामिन 842 एमसीजी; राइबोफ्लेविन 580 एमसीजी; नियासिन 9.4 मिलीग्राम विटामिन-बी 6 768 एमसीजीफोलिएट 170 एमसीजी; पैंटोथेनिक एसिड 1.7 मिलीग्राम; खनिज कैल्शियम 16 मिलीग्राम; आयरन 6 मिलीग्राम; मैग्नीशियम 228 मिलीग्राम; फास्फोरस 570 मिलीग्रामपोटेशियम 390 मिलीग्राम; सोडियम 10 मिलीग्राम; जिंक 3.4 मिलीग्राम; कॉपर 1.5 मिलीग्राम; मैंगनीज 3.3 मिलीग्राम; सेलेनियम 5.4 एमसीजी; बाजरे में प्रति 100 ग्राम वजन में लगभग 378 कैलोरी होती है।
बाजरे में प्रचुर मात्रा में लौह तत्व व जिंक होता है जो कि एनीमिया (खून की कमी) में लाभदायक है। इसमें रेशे की मात्रा अधिक होती है जिसके कारण कब्ज में भी उपयोगी होता है। इसके अलावा इसमें विभिन्न रसायनिक घटक जैसे फ्लेवोनॉयड्स, फिनोलिक्स, ओमेगा-३, फैटी एसिड (flavonoids, phenolics, omega-3, fatty acids) इत्यादि होते है जोकि प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करते है व विभिन्न कैंसर कारको के प्रभाव को कम करने में भी सक्षम होते है। इन सभी विभिन्न घटको द्वारा शरीर में अत्यंत जटिल प्रक्रियाएं जैसे लाइपोसोम आक्सीडेशन; प्रोलीफेरेशन इत्यादि (Liposome oxidation, DNA scission, proliferation of cells) इत्यादि को काफी हद तक नियंत्रित किया जाता है। अत: कैंसर का इलाज करने में सहायक पाये गए है। बाजरे में गेंहूँ के जैसे चिपचिपा प्रोटीन (glutein) नही  होता है अत: वो celiac disease (गेंहू का न पचना) बीमारी वाले व्यक्तियों के लिए प्राथमिक भोजन बन जाता है। इसके अलावा इसका low glycemic index होता है जो कि पाचन प्रक्रिया को धीमा कर देता और रक्त शर्करा के स्तर को एक स्थिर अनुपात में रखता है। बाजरा मधुमेह से पीड़ित लोगों के लिए इंसुलिन संवेदनशीलता को बढ़ाता है और गैर मधुमेह रोगियों विशेष रूप से टाइप-2 मधुमेह के लिए शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में भी मदद करता है।
इसमें अत्यधिक मात्रा में रेशें (dietary fibre) उपस्थित होते है जिससे यह आंत की वसा को कम करता है एवं पेट के आसपास की वसा को कम करने में भी सहायक होता है। इसके खनिज लवण जैसे मैग्नीशियम और पोटैशियम रक्त वाहिकाओं को पतला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है एवं बेहतर रक्त परिसंचरण की सुविधा प्रदान करते है। नियामित रूप से बाजरे का सेवन करने से इसमें मौजूद ओमेंगा- 3, फैटी एसिड, खराब या एल.डी.एल (Low density lipoprotein) को कम करने में सहायता करता है, इस प्रकार धमनियों में ब्लॉक को रोकता है, और सूजन, स्पष्ट श्लेष्म को कम कर देता  है और उचित सांस लेने में सहायता करता है। इसमें मौजूद विभिन्न रासायनिक घटक जैसे- alkaloid, flavanoids, saponins, terpenoids, tannins, इत्यादि बाजरे को एक आदर्श भोजन बनाता है। आयुर्वेदानुसार यह क्षारीय खाद्य पदार्थों की श्रेणी में आता है जिसका अर्थ है कि यह अम्लता से लड़ने के लिए भोजन का एक आदर्श विकल्प है। अध-पका, बासी भोजन, अनियमित दिनचर्या, इत्यादि के कारण प्राय: पेट में अम्लता (gastric problem, acidity) की समस्या उत्पन्न हो जाती है, अम्लता बढ़ने के कारण छाती में गंभीर असुविधा, पेट में जलन और अन्न प्रणाली में अनियमिता जैसी कई अन्य जटिलताएं हो सकती हैं। इससे बचाव हेतु बाजरे का सेवन लाभदायक है क्योंकि बाजरे को सब्जियों में मिलाकर पीने से भी एसिडिटी काफी कम हो जाती है एवं समय पर खाने जैसे सख्त आहार नियमों का पालन करके भी एसिडिटी से निजात पाई जा सकती है। बाजरे में उपस्थित विटामिन-बी9 (vitamin B9- फोलिक एसिड) को अनुवांशिक तत्व भी कहा जाता है जो कि डीएनए और आरएनए (DNA and RNA)  बनाने के लिए एवं लाल रक्त कोशिकाओं (Red blood cells) के उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण है एवं एक प्रमुख कारक की तरह गर्भावस्था में भ्रूण की वृद्धि दर को परिभाषित कर सकने में सहायक सिद्ध होता है। इसमें कैल्शियम के साथ फॉस्फोरस भी मौजूद है जो कि हड्डियों को मजबूत करता है, जोड़ों के दर्द को रोकता है और ऑस्टियोपोरोसिस (oesteoporesis) जैसी अनेक बीमारियों के बचाव में भी सहायक है। बाजरा, विटामिन-ए और जस्ते (zinc) से भरा हुआ है अत: रतौंधी को रोकता है बेहतर दृष्टि प्रदान करता है और प्रेस्बिओपिया (presbyopia) जैसी अन्य दृष्टि संबंधी समस्याओं को कम करता है। vitamin B1 में समृद्ध होने के कारण यह एडेनोसिन ट्राइफॉस्फेट (Adenosine triphosphate) में परिवर्तित होकर शरीर में पोषक तत्वों के बेहतर अवशोषण में मदद करता है।
संम्पूर्ण भारतवर्ष में बाजरे का मुख्य उपयोग विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को बनाने में किया जाता है उपयोग करने से पहले इसे कुछ समय के लिए स्वच्छ जल में भिगोया जाता है जिससे इसके कुछ anti-nutritional तत्वों में कमी आ सके। प्रमुख रूप से इसके साथ कुछ अन्य अन्न जैसे मूँग दाल, गेहूँ का दलिया, मसूर दाल, कुछ सब्जियाँ जैसे आलू, हरी मिर्च, लौकी इत्यादि का भी प्रयोग किया जाता है जो मुख्यत: स्वादानुसार एवं व्यंजन के प्रकार पर निर्भर होता है। बाजरे के मुख्य व्यंजनों में लड्डू एवं खीर का भी स्थान है जो कि मीठे होते है पर शीत ऋतु में अत्यंत लाभकारी होते हैं। पाश्चात भोजन में रुचि रखने वालों के लिए बाजरे के बिस्कुट, मफिन, नूडल्स, केक इत्यादि बनाने का भी प्रचलन हो गया है जोकि Ready to eat एवं Ready to cook की श्रेणी में आते है। पारंम्परिक दलिया, खिचड़ी के अलावा इसका उपयोग डोसा, इडली, उपमा (दक्षिण भारतीय व्यंजन) बनाने में भी होता है। साधारणत: बाजरा-आलू टिक्की बनाने के लिए 2-3 उबले आलूओं में आधी कटोरी बाजरा, कटा हुआ हरा धनिया, हरी मिर्च, चुटकीभर अमचूर, स्वादानुसार नमक, भुना जीरा अच्छी प्रकार मिला लें। इस मिश्रण को इच्छानुसार चपटी टिक्की बना लें व एक नानस्टिक तवे पर देसी घी डालकर, सुनहरी व कुरकुरी होने तक तल लें। बाजरे का उपमा बनाने के लिए एक कटोरी बाजरे को रात भर पानी में भिगा दे। एक कढ़ाई में 2 चम्मच घी डाले, अब इसमें आधा चम्मच मोटी राई, 5-6 कढ़ी पत्ता, 2 साबुत लाल मिर्च, थोड़ी कटी प्याज, 2-3 कली लहसुन, डालकर हल्का भून लें। अब इसमें एक कटी शिमला मिर्च, एक टमाटर, एक कटोरी कसा पनीर एवं बाजरा मिला दें। स्वादानुसार नमक डालें व 1-2 मिनट पकाएँ। परोसते समय नीबू का रस व हरा धनिया डाले। यह अत्यंत सुविधाजनक स्वास्थ्यवर्धक नाश्ता बन जाता है। इसके अलावा अपनी इच्छानुसार हम प्रतिदिन बाजरे को अपने दैनिक आहार में प्रयोग में ला सकते है। इससे सूप, रोटी इत्यादि भी बनाई जाती है जो कि अत्यन्त पोषक तत्वों से भरपूर होती है।
आज के इस भौतिक युग में हमारा खानपान बहुत ही अव्यवस्थित हो चुका है, हम जिसे junk food भी कह सकते है एवं प्राय: यह सभी घरों में ग्रहण किया जाता है, जिसके कारण कई स्वास्थ चुनौतियों का सामना करना पड़ जाता है। हमको अपने जीवन में एक निश्चित दिनचर्या का पालन करते हुए, अपने आहार में भारतवर्ष के एक प्राचीन शालिकधान 'बाजरेको नियमित रूप से प्रयोग में लाना चाहिए ताकि स्वाद के साथ हम अपनी सेहत का भी ख्याल रख सकें।
नोट: पाठ में प्रयुक्त पौधों के वैज्ञानिक नाम विभिन्न स्रोतों से उपलब्ध साहित्य से लिए गए है, वे मौजूदा/प्रचलित वर्गीकरण को नहीं बताते हैं।
References
  • Sukumaran Sreekala, A. D., Anbukkani, P., Singh, A., Dayakar Rao, B., & Jha, G. K. (2023). Millet Production and Consumption in India: Where Do We Stand and Where Do We Go?. National Academy Science Letters, 46(1), 65-70.
  • Isaiah, O. O. (2020). The synergistic interaction of phenolic compounds in pearl millets with respect to antioxidant and antimicrobial properties. Am. J. Food Sci. Health, 6, 80-88.
  • Unnikrishnan, P. M., & Patil, S. (2021). An eyeshot on Kshudra Dhanya in Ayurveda. Journal of Ayurveda and Integrated Medical Sciences, 6(4), 118-124.
 

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