कोलाइटिस में कितनी असरदार है कोलोग्रिट
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डॉ. अनुराग वार्ष्णेय
उपाध्यक्ष- पतंजलि अनुसंधान संस्थान
अल्सरेटिव कोलाइटिस (ulcerative Colitis) पेट की एक बड़ी समस्या है, जिसमें बड़ी आंत में सूजन और जलन की समस्या होती है, तथा इस बीमारी की पुनरावर्ती रोगियों में बार-बार होने की सम्भावना रहती है। आम बोलचाल की भाषा में इसे कोलाइटिस या आंतों की सूजन भी कहते हैं। आंत के अलग-अलग हिस्सों में सूजन के आधार पर कोलाइटिस के प्रकार तय होते हैं, जैसे यदि आँत के केवल नीचे वाले हिस्से में सूजन है, जहाँ मल जमा हो जाता है तो उसे Proctitis कहते हैं, वहीं दूसरी ओर अगर सूजन थोड़ा ऊपर के हिस्से में भी हो गई है तो उस अवस्था को Distal Colitis कहते हैं। इसी प्रकार, यदि सूजन आंत के आधे से ज्यादा हिस्से में है तो उसे Extensive Colitis कहते हैं और यदि पूरी बड़ी आंत में सूजन है तो उसे Pancolitis कहते हैं। दुनियां के सभी देशों में यह बीमारी फैली हुई है, ख़ासकर यूरोप, आस्ट्रेलिया और यूएस में प्रति एक लाख लोगों में लगभग 77 लोग इस बीमारी से पीडि़त हैं। वहीं भारत में यह संख्या प्रति 1 लाख लोगों में लगभग 6 रोगियों की है।
अल्सरेटिव कोलाइटिस के प्रमुख लक्षणों में पेट में दर्द या पेट में पिन चुभने का आभास होना, मल में झाग या आँव आना और पेट में मरोड़ होना आदि शामिल हैं। इसके साथ ही मल में खून आना, दस्त/ डायरिया, हमेशा शौच जाने का आभास होता है। कोलाइटिस के अन्य लक्षणों में वजन का कम होना, थकान का होना और बीच-बीच में बहुत तेजी से बुखार का आना और फिर ठीक होना शामिल है। कभी - कभी रोगियों में डायरिया/दस्त की वजह से डिहाइड्रेशन की समस्या भी हो जाती है तथा आंखों में, घुटनों में दर्द रहता है। अगर यह समस्या ज़्यादा दिन तक बनी रहे तो लीवर में प्रॉब्लम भी हो जाती है और अनीमिया भी हो सकता है। कोलाइटिस में खानपान एवं अनियमिततापूर्ण जीवनशैली का भी प्रभाव पड़ता है, उत्तेजक आहार जैसे- जंक फूड, तेज मिर्च-मसाले, तला-भुना भोजन, अल्कोहल का अत्यधिक सेवन से भी कोलाइटिस की समस्या बढ़ सकती है।
ऐलोपैथी में क्लिनिकल लक्षणों को आधार बना कर अल्ट्रासाउंड, एंडोस्कोपी आदि अलग-अलग जाँच तकनीकों से सूजन के आधार पर इनका उपचार किया जाता है। इस बीमारी के लिए ऐलोपैथिक दवाईयां, मुख्यत: 4 स्टेज में दी जाती है। पहली स्टेज में पीडि़त को एक बहुत ही कॉमन दवा Sulfasalazine के रूप में Aminosalicylates दिया जाता है। किसी कारणवश दवाई के सही तरीके से काम न करने पर सेकंड स्टेज में Steroid दिए जाते हैं, फिर थर्ड स्टेज में Immunomodulators देते हैं। 3 स्टेज़ के बाद भी रोगी को आराम न होने पर सर्जरी की जाती है, जिसमें आंत के उस हिस्से को काटकर अलग कर दिया जाता है, जिसमें सूजन हो रही है। परन्तु यह भी इस बीमारी का स्थाई समाधान नहीं है और बीमारी के पुन: लौटने की सम्भावना रहती है। कोलाइटिस में जो ऐलोपैथिक दवाईयां दी जाती हैं उनके बहुत सारे साइड इफेक्ट भी हैं जैसे सिर-दर्द, नॉजिय़ा, और कुछ-कुछ केस में बोन मैरो का सेपरेशन जिसकी वजह से खून की नई सेल्स का बनना बंद हो जाता है।
परन्तु आयुर्वेद में इसका सफल उपचार संभव है। पतंजलि ने शोध और अनुसन्धान के बाद कोलाइटिस के लिए कोलोग्रिट Enteric Coated टेबलेट बनाई है। यह औषधि बेल, कुटज, जीरा, अजवाइन, सौंफ, गुलाब और कपूर के पत्तों के एक्सट्रेक्ट से निर्मित है। आयुर्वेदिक ग्रंथो में भी बेल और कुटज को पेट के लिए रामबाण कहा गया है। फाइटोकेमिकल एनालिसिस के दौरान एचपीएलसी तकनीक के द्वारा कोलोग्रिट में विभिन्न कम्पाउंड भी पाए गए जैसे गैलिक एसिड, रुटीन, ऐलागिक एसिड आदि। पतंजलि रिसर्च फाउन्डेशन द्वारा निर्मित यह पहली दवा है, जिसमें Enteric Coating का प्रयोग किया गया है। दवाइयों का मैकेनिज्म कुछ इस प्रकार है कि वह पहले हमारे पेट में जाकर टूटती हैं और मेटाबोलिज्म प्रक्रिया शुरू होती है। उसके बाद बड़ी आंत में जाकर अब्सॉर्ब होती है। फिर उसके बाद हमारे खून के द्वारा शरीर के अन्य हिस्सों में जाती है। परन्तु जब समस्या बड़ी आंत की हो तो क्यों न ऐसी दवाई बनाई जाये जो पेट में न खुल कर सीधे बड़ी आंत में ही खुले। इसके लिए फार्माकोलॉजीकल टूल के रूप में प्रयोग होने वाला एक तरीका है जिसे Enteric Coating कहा जाता है। इसमें दवा (औषधि) के ऊपर ऐसा कवर चढ़ा दिया जाता है, जो वहीं पर घुलता है, जहां उसकी जरुरत होती है। ऐसा करने पर वह औषधि वहीं पहुँचती है जहां उसकी आवश्यकता होती है। हमारे पाचन तंत्र में अलग-अलग हिस्से में अलग-अलग पीएच होती है। पीएच अर्थात् किसी पदार्थ की एसिटिडी (अम्लीयता) या बेसिसिटी (क्षारीयता) के बीच का अनुपात कितना है? मुँह में हमारा पीएच 7 रहता है, पेट में पीएच 2 रहता है और बड़ी आंत में पीएच 7 से 7 .5 के बीच रहता है। इस निष्कर्ष के बाद एक ऐसा Enteric Coating बनाने की कोशिश की गई जो PH 2 में न घुल कर सीधे PH 7 पर ही घुले। मेथाक्राईलिक एसिड-एथाइलअक्रिलेट कोपॉलीमर-कोटिंग औषधि को PH 5.5 के बाद ही घुलने में मदद करती है, इसलिए कोलोग्रिट में इसका प्रयोग किया गया। इस बात की पुष्टि करने के लिए कि यह कोटिंग कितनी उपयुक्त है। थूक या सलाईवा के साथ ही पेट के लिक्विड और आंतों का लिक्विड को भी लैब के अन्दर जनरेट किया गया जिसको Simulated Fluid कहते हैं। उसके बाद इन लिक्विड्स के अन्दर कोलोग्रिट टेबलेट्स को रखा गया और देखा गया कि ये गोलियां कितने समय में घुलती हैं। इसके अलावा बॉयोलॉजिकल रिस्पांस के साथ ट्रैक किया गया कि मुँह, पेट और आंतों में हमारा खाना कितने-कितने समय तक रहता है। इससे पता लगा कि खाना मुँह में 10-15 सेकंड तक, पेट में 2 घण्टे और आंतों में लगभग 2.5 घण्टे तक रहता है। तत्पश्चात कोलोग्रिट को आंतो के fluid में रखने के बाद यह पाया गया कि यह आंतो में घुलने में लगभग 45 मिनट का समय लेती है।
आयुर्वेद में आधुनिक तकनीक को कैसे एकीकृत किया जा सकता है, यह उसका श्रेष्ठ उदाहरण है। आयुर्वेदिक दवाओं को आधुनिक तरीकों से उत्कृष्ट बनाकर आयुर्वेद को और अधिक उन्नत किया जा सकता है। साथ ही इससे मानवीय स्वास्थ्य सुधार में और अधिक लाभकारी प्रभाव संभव हैं। कोलोग्रिट में आयुर्वेद के प्राचीन ज्ञान को मॉडर्न साइंस ऑफ ड्रग रीलीज़ तकनीक के साथ जोड़ा गया है। यह इस बात का सफल परिणाम है कि विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों के इंटीग्रेटेड प्रयोग से किसी भी बीमारी का उचित समाधान निश्चित है। अब यह कहा जा सकता है कि जो औषधि एलोपैथी में अनीमा के द्वारा प्रभावित अंग तक पहुंच पा रही थी, वह अब मुँह के द्वारा आंतों तक पहुंच पा रही है, जहां पर परेशानी उत्पन्न हो रही है। इसके कारण पेशेंट कम्प्लाइंस अच्छा है और लोग इसे घर बैठे भी ले सकते हैं।
तदोपरांत कोलोग्रिट के बायोलॉजिकल रिस्पांस को एनालिसिस किया गया और सेल बायोलॉजिकल एक्सपेरिमेंट किये गए जिन्हें इन-विट्रो या सेल लाइन ट्रायल कहा जाता है और देखा गया कि क्या कोलोग्रिट औषधि के घटक सूजन को कम कर सकते हैं या नहीं। दूसरा ये कि क्या किसी और कारण से होने वाली सूजन जो आंतों की सेल को हानि पहुँचा रही है, क्या उसे भी ठीक किया जा सकता है। पहली फाइंडिंग में यह पाया गया कि हमारे शरीर के Inflammatory Cells जिन्हें Macrophages कहते हैं और जो हमारे शरीर के अंदर घूमते हैं। ये हमारे शरीर की First line of defence हैं मतलब किसी भी प्रकार के संक्रमण में यह सेल्स सबसे पहले काम करती हैं, कोलोग्रिट उनके ऊपर भी कण्ट्रोल करने में सहायक रही।
दूसरी Finding में Intestinal cells पर काम किया गया। हमारी आंतो की संरचना उंगलियों के आकार की होती हैं, जिन्हें Microvilli कहते हैं। इस कारण उनका सर्फेस एरिया काफी बढ़ जाता है। आंतों की उंगलियों जैसी संरचना पर उपस्थित सेल्स जिन्हें Caco-2 Cells पर हमने बैक्टिरिया के अलग-अलग कंपोनेंट को डाल कर यह देखा गया कि क्या कोलोग्रिट उस संक्रमण को ठीक कर सकता है या नहीं? यदि हमारी आंतों में Inflammation होता है तो हमारे शरीर के WBC जिन्हें मोनोसाइट्स कहते हैं। उसे ठीक करने के लिए हमारी आंतों पर जाकर चिपकती हैं ताकि वहाँ पर जो इन्फेक्शन है उस पर काबू पाया जा सके। इस स्टडी में हमने आंतो की सेल्स को लैब में जेनेरेट कर डाई के द्वारा WBC को कलर किया, और पाया कि कोलोग्रिट भी उन सेल्स को ठीक करने का कार्य कर रही है। आयुर्वेदिक मेडिसिन में यह पहला ऐसा शोध है जिसमें कॉम्पलेक्स सेल्स और कीमोटेक्सेस मार्कर्स पर काम किया गया है। किसी भी प्रकार के ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस/संक्रमण के दौरान हमारे सेल्स सिग्नल भेजते हैं और WBC उन्हें ठीक करने चल देते हैं। इन वाइट ब्लड सेल्स (White Blood Cells) की दिशा हमारे शरीर में मौजूद कीमोटेक्सेस मार्कर्स CXCL 5 तय करते हैं। कीमोटेक्सेस मार्कर्स पर रिसर्च के बाद भी यह देखा गया कि कोलोग्रिट औषधि इसमें भी सफलतापूर्वक काम कर रही है। इन सभी शोध के बाद यह निष्कर्ष निकला कि कोलोग्रिट औषधि Inflammation को कम करता है, सेल्स के माईग्रेशन को कण्ट्रोल करता है और सूजन के बेसिक कारण है उनको भी Normalize करता है।
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