मॉडर्न मेडिकल साइंस में आयुर्वेद की स्वीकार्यता

मॉडर्न मेडिकल साइंस में आयुर्वेद की स्वीकार्यता

 
पूज्य स्वामी जी तथा पूज्य आचार्य जी ने आयुर्वेदिक औषधियों को मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम के आधार पर एविडेंस बेस्ड मेडिसिन के रूप में स्थापित किया :  प्रो. वॉय. के. गुप्ता
हाल ही में पतंजलि अनुसंधान संस्थान के तत्वाधान में आधुनिक चिकित्सा तथा आयुर्वेद के अंतर को पाटने के लिए एकीकृत दृष्टिकोण रखते हुए एक मंच पर चर्चा हुई जिसमें देश के प्रतिष्ठित हॉस्पिटल व संस्थानों के डॉक्टर्स व वैज्ञानिकों ने भाग लिया।
          सम्मेलन में ए.आई.आई.एम.एस. (AIIMS) भोपाल व जम्मू के अध्यक्ष प्रो. वॉय.के. गुप्ता ने कहा कि हमारा आयुर्वेद बहुत प्राचीन है। यह ऐसा विज्ञान है जिसको हमने भुला दिया था। एलोपैथी का सिस्टम बहुत नया है लेकिन उसकी भी अपनी खुबियाँ हैं। डिजनरेटिव बीमारियों की बात करें तो उसमें आयुर्वेद का पलड़ा भारी है लेकिन इमरजेंसी की बात करें तो एलोपैथिक की भी हमें जरूरत पड़ती है। आज हम आधुनिक चिकित्सा तथा आयुर्वेद के अंतर को पाटने के लिए एकत्र हुए हैं। तो हमें यह प्रयास करना चाहिए कि एलोपैथी और आयुर्वेद दोनों को मिलाकर एकीकृत चिकित्सा पद्धति बनाई जाए। इसमें पतंजलि ने बड़ी पहल की है जिसे जल्द ही पूरी दुनिया में स्वीकार्यता मिलेगी।

मॉडर्न मेडिकल साइंस से माना योग-आयुर्वेद का लोहा -

            प्रो. गुप्ता ने कहा कि हमारा ध्येय सस्ती गुणकारी औषधियों को जनसामान्य तक पहुंचाना तथा उन पर लोगों के भरोसे को कायम करना है। जब हम अनभिज्ञ थे तब हमने मॉडर्न मेडिकल साइंस की तुलना में आयुर्वेद की उपेक्षा की। किंतु अब हम आयुर्वेद के गूढ़ रहस्य को जान चुके हैं। पूज्य स्वामी जी ने स्वास्थ्य को जनसाधारण तक नि:शुल्क पहुंचाने का कार्य किया है।

एविडेंस बेस्ड हैं पतंजलि की आयुर्वेदिक दवाएँ -

            प्रो. गुप्ता ने कहा कि पूज्य स्वामी जी ने हमारी प्राचीन धरोहर योग को देश ही नहीं पूरे विश्व में पहुंचाया है। पूज्य स्वामी जी तथा पूज्य आचार्य जी ने आयुर्वेदिक औषधियों को मॉडर्न मेडिसिन सिस्टम के आधार पर एविडेंस बेस्ड मेडिसिन के रूप में स्थापित किया।

आस्था-विश्वास पर दुनिया कायम -

एक कहावत है कि विश्वास पर दुनिया कायम। इस बात को पूज्य स्वामी जी महाराज ने चरितार्थ किया है। उन पर लोगों की अटूट आस्था है। साक्ष्य है कि जिस चीज पर हम भरोसा कर लेते हैं उसका असर थोड़ा बहुत अपने आप हो जाता है। उदाहरण के लिए अगर हम ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टिट्यूट साइंस में जाते हैं तो हमें लगता है इतनी बड़ी बिल्डिंग इतना बड़ा नाम इतनी मुश्किल से मिलने वाले डॉक्टर और उससे भी मुश्किल से मिलने वाला इन्वेस्टिगेशन। पता नहीं कितना नाम है, तो आधी बीमारी तो ठीक हो जाती है, उसकी उम्मीद से ठीक हो जाती है लेकिन कई बार जब वह धोखा खाता है तो कहता है कि इससे अच्छा तो पतंजलि ही ठीक था। अब स्वामी जी के देखने से ही उम्र कम हो जाती है इसको भी अथॉर्न इफेक्ट ही कहते हैं। पूज्य स्वामी जी से मिलकर ऐसा प्रतीत होता है मानो उम्र 10 से 15 वर्ष कम हो गई है, हम युवा अनुभव करते हैं। 
डॉक्टर से आपको जो प्रिसक्रिपशन मिलता है उसके लिए भी डॉक्टर के पास इतना समय नहीं है कि वो अच्छी राइटिंग में लिखे या पेशेंट को इतना ही बताये कि यह दवाई दूध से लेनी है या पानी से लेनी है। सुबह लेनी है, शाम में लेनी है या दिन में तीन बार लेनी है, यह साल डेढ़ साल तक लगातार लेनी है।
उसके बाद मरीज वहाँ से भटकता है, वह केमिस्ट की दुकान पर जाता है और कहता है भाई यह प्रिस्क्रिप्शन ठीक लिखा है तो वह कहता है कि हाँ इससे अच्छी दवाई मैं दे देता हूँ, क्योंकि उसमें उसका प्रॉफिट है। फिर उस रोगी का साथी कहता है कि यार यह दवाई तो मुझे भी लिखी थी, मेरे पास अभी कुछ रखी है, तुम ले लो। तो वह उसको गलत दवाई दे देता है।
अगर ट्यूबरक्यूलोसिस का सोचें तो 1 महीना 15 दिन के बाद उसका खून निकलना बंद हो जाता है और रोगी दवाई लेना बंद कर देता है। क्यों डॉक्टर के पास दोबारा जाए, डॉक्टर ने तो कहा नहीं है कि आपको डेढ़ साल तक दवाई लगातार लेनी है। नहीं लोगे तो बहुत खतरा है और वह रजिस्टेंस बन जाता है।
तो कुल मिलाकर मरीज और डॉक्टर के बीच जो रिश्ता होना चाहिए वह कायम नहीं हो पाता इसलिए पेशेंट्स कंप्लायन कमजोर होती है और उसका परिणाम भी सकारात्मक नहीं होता। आज हिंदुस्तान में एंटीमाइक्रोबॉयल रेजिस्टेंस का कारण ही यही है।

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