गुरु चरण हमें अभयता प्रदान करते हैं
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आशा सूर्यवंशी मूळे, वैदिक कन्या गुरुकुलम्
आँख से टपकी जो चिंगारी,
हर आंसू में दबी तुम्हारी।
चीर के देखें दिल मेरा तो,
बहते लहू में साँची प्रीत तुम्हारी।
ये जीवन जैसे सुलगा तुफान है,
गुरुवाणी तो प्रशांति का उफान है।
हे! मनुष्य जीवन एक तुफान ही है। अपनी जय-पराजय, हानि-लाभ, मान-अपमान, सुख-दुख, यश-अपयश, आशा-निराशा, उतार-चढ़ाव, सधनता-निर्धनता, अंधेरा-उजाला, असंख्य द्वंदों को अपनी जीवन में अनुभव करते हुए जीवनपथ पर कभी स्वयं को सक्षम अनुभव करता है, तो कभी बहुत ही असहाय होकर प्रकृति के थपेडों का शिकार महसूस कर अक्षमता का आभास करवाता है। सामान्य मनुष्य का जीवन तो द्वंदों का तूफान ही है। छोटी सी-नन्हीं सी मनुष्य की मूरत है इस अस्तित्व की एक इकाई जिसमें कितना बड़ा तूफान हिलोरे ले रहा होता है। तूफान अपनी ही आशाओं का, आकांक्षाओं का, अरमानों का, अनंत-अनंत इच्छाओं का, अनगिनत लालसाओं का जो उसको कहीं भी चैन नहीं लेने देता, जो सात्विक और सकारात्मक आशा, उद्देश्य हो जीवन में उनका तो स्वागत ही है। उन्हीं के कारण हम सृजनशीलता, निरंतर क्रियाशीलता और गुणवत्ता इनको जीवन में वृद्धि कर पाते है। पर उन अंधी लालसाओं, तृष्णाओं और हवस बन चुकी अतृप्त इच्छाओं का क्या करें? जिनकी उपज ही अज्ञान के मार्ग से हुई है, जो जीवन में दु:ख का सबसे बड़ा और मूल कारण हैं। मनुष्य जीवन का अमूल्य समय और ऊर्जाओं का व्यय ऐसे ही दु:खों को पोषित, पल्लवित करने में चला जाता हैं, जो हमारे अंतिम गन्तव्य से हमें भटका देता है।
मैं’को सबसे आगे रखने की लालसा और पास में साथ में खड़े दूसरे व्यक्तियों से खुद को और ज्यादा बेहतर साबित करने की मूर्ख ललक हमें यथार्थ रूप में स्वयं से ही मिलने नहीं देती। हृदय में से वह उसे उगते हुए सूरज के अनेक प्रकार के रंग, पक्षिओं के गुंजन का मधुर गान, कोयल की मीठी बोली, सुबह की शुभ धवल ओस अपने आपको छोटे से पत्ते के अग्रभाग की तरह सज-संवरने, खुश रहने का पाठ सिखाती हैं। सूर्यास्त की फैली केसरिया रंग की सूरज की अपूर्व छटा जीवन की क्षणभंगुरता को मूकवाणी से बँया करती हुई दिखाई देती है। साथ ही नीले आसमान में ऊंची उड़ान भरने वाले पक्षी जो दिल को भी ऊंची उड़ान भरने पर मजबूर करते है। ये सब उस नश्वर चीज की प्राप्ति के लिए सैदव लालायित, बैचेन रूह को महसूस ही नहीं होता। पद, प्रतिज्ञा, सम्मान का प्यासा-भूखा जीव तो जीवनभर की अमूल्य संासे, अतुल्य मानव जीवन सत्ता, सम्पत्ति के लिए चल रही अविरत चूहा दौड़ में गंवा दी जाती है।
कहते हैं ज्ञानी दुनियां है पानी,
पानी पे लिखी कहानी,
है किसने देखी, है किसने जानी,
दुनियां है आनी-जानी,
बस पलभर के मौजों की रवानी,
असत् के पीछे लगी है ये दुनियां दिवानी,
पाएंगी आखिर बस दु:ख की कहानी,
ये है बुद्ध पुरुषों की जुबानी,
सुन तो तू रूह नियत की वाणी......।
लाखों-लाखों युगों से माया के हाथ का खिलौना बना दिव्य जन्म मणस्थ अनंत-अनंत दु:ख की ठोकरे खाकर ही जिज्ञासु बनता है। अविनाशी पद के प्राप्ति के लिए दृश्य असत्य के आभास को हटाकर अदृश्य सत्य की परते खोलने के लिए मुमुक्षु बन किसी बुद्ध के चरणों का अनुगामी बनता है। स्वयं से शुरु कर स्वयं पर खत्म होने वाली खोज का ये खोजी पिण्ड में किये ब्रह्माण्ड के दिव्यत्व की रूहानी यात्रा के लिए कटिबद्ध हो उठता है, किसी मिहीर की काया तले। क्योंकि जन्म-जन्मान्तरों के अनंत अनुभव से वह जान पाता है कि अपनेआप को जानने के वैज्ञानिक प्रक्रिया का नाम ही ब्रह्म विज्ञान है, जो इस धरती पर मात्र एक ही व्यक्तित्व हमें प्रदान कर सकते है, वह एकमात्र दिव्य व्यक्तित्व है हमारे सद्गुरु। गुरु अनेक हो सकते है पर सद्गुरु हमारे एक ही होते हैं। वह व्यक्तित्व सद्गुरु है, जिन्होंने हमें अपने स्वयं का पता बताया, हमें स्वयं को स्वयं से मिलाया। हमारा अपना खोया निजरूप लौटाया। मैं था सोया, जिन्होंने मुझे जगाया, अलख कहाया। अंतिम गन्तव्य दिलाया, वही मेरा सद्गुरु कहलाया।
बाकी हम जीवन में किसी से भी कुछ भी सीखते है तो वह व्यक्ति हमारे लिए गुरु ही हो गये, क्योंकि हमने उनसे किसी-न-किसी विषय के लिए कुछ सिखा है, पर सद्गुरु मात्र एक ही होते है। वह जो हमें हमारे पृथ्वी, लक्ष्य who Am I? तक का सफर करवाते है। परम सत्य का ज्ञान करवाते है।
ये वहीं है जो अज्ञान की शर्त में पड़े प्रकृति के वश में पड़े हम जीव का अपनी ज्ञान से और दिव्य वाणी से मूल स्वरूप की यात्रा करवाकर हमें अज्ञान, अश्रद्धा, अकर्मण्यता से मुक्त कराकर अनंत-अनंत दु:खों से मुक्त कर देते हैं। देह भाव के प्रवाह को काटकर ब्रह्मभाव में जीने का मंत्र मात्र गुरुचरण में प्राप्त करना ही संभव है। जो हमें निरन्तर अभय पद की प्राप्ति करा सकता है।
जन्म से लेकर मनुष्य प्रतिपल अपने व्यवहार में जीते हुए यह अनुभव करता है कि हमने जहाँ-जहाँ जो पाया, वह बिना मूल्य चुकाये नहीं मिला है। भौतिक जगत में पाने के समय पता चलता है कि जितनी चीजों की आवश्यकता है, उसका उतना ही अधिक मूल्य हो जाता है। अध्यात्मिक में भी सत्य को पाने की जिज्ञासा जीतनी गहरी होती है उसका मूल्य भी उतना ही अधिक चुकाना पड़ता है। आप यह कह सकते हैं कि सत्य सरल तो है पर वह सस्ता नहीं है। आप अपनी समस्त वासनाओं-कामनाओं को गुरुचरणों की बलिवेदी पर उसको अर्पित किये बिना अभयपद पाना असंभव है।
वह सद्गुरु ही है जो हमारे अनंत संभावनाओं के द्वार खोल देते हैं। सच्चा फकीर कभी भी सिवाय सत्य के उसके महिमा मण्डल के कुछ भी देखता नहीं। आज फकीरों से, बुद्धों से, सिक्खों से सत्य का ज्ञान प्राप्त करना संभव है। इसकी निरंतरता, अपनी दिव्य वाणी, आचार-विचार सत्य की ओर ले जाती है। श्रद्धेय स्वामी जी महाराज ने जो ज्ञान का अमृत जगत को पिलाया है, उससे महापुरुषों की धूमिल हो चली ज्ञान के पथ को पुन: सुशोभित करने का कार्य किया है जिससे आज जगत स्वास्थ्य से, समृद्धि से, पुरुषार्थ से, साधना से जुड़ गया है।
ऑक्सफोर्ड में की गई पढ़ाई Harward या Basten Mit से पाई डिग्री भी हमें वो आत्मनिर्भरता नहीं देगी, जो आत्मनिर्भरता परम पूज्य श्री स्वामी जी महाराज के ‘ज्ञान, पुरुषार्थ, अभ्यास, वैराग्य’ जैसे चार शब्द हमें दे देते हैं।
जग को आलस्य रहित जीवन कैसे जीना है, समय का सम्मान कैसे करना है, यह सब सिखाते हुये उत्साह सकारात्मक जीवन को कैसे उत्सव बनाने की कला पूज्य स्वामी जी की वाणी सिखाती है।
लेखक
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