कम्पवात रोग (Parkinson's Disease) में लाभकारी पंचकर्म चिकित्सा
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वैद्य केतन महाजन प्राध्यापक,
- पंचकर्म विभाग, पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज, हरिद्वार
कम्प शब्द को शरीर में होने वाले Tremors के संबंध में लिया जाता है। कम्पवात दो शब्दों को जोडक़र बना है- कम्प+वात, यहाँ पर शरीर में स्थित वातदोष की मात्रा तथा गुणवत्ता दोनों ही प्रभावित होती है, जिसके कारण कम्पवात रोग की उत्पत्ति होती है। बढ़े हुए वात दोष से ही कम्पवात हो, ऐसा जरुरी नहीं है। वात दोष वृद्धि में कौन सा गुण प्रभावित हो रहा है, इस पर निर्भर करता है। कम्पवात रोग में वातदोष का ‘चल’गुण प्रभावित होता है, जो मानव शरीर में होने वाली गति पर नियंत्रण करता है।
जब वात दोष का ‘चल’गुण अत्याधिक बढ़ जाता है तब शरीर की गति को मनुष्य स्वयं से नियंत्रित नहीं कर पाता और शरीर में कंपन की उत्पत्ति होती है। कम्पवात शरीर में दो कारणों से उत्पन्न हो सकता है-
(1) मुख्य (Primary) अभिव्यक्ति
(2) माध्यमिक (Secondary) अभिव्यक्ति- किसी रोग का लक्षण
कम्पवात की मुख्य अभिव्यक्ति :
कम्पवात दृष्टि (वृद्धि) के कारणों में से एक ही रोग की पूर्णरुप अवस्था में इसके लक्षण बहुत ही कम समय के लिए और कम मात्रा में पाये जाते हैं। जिसके कारण इस रोग का निदान (Diagnosis) नहीं हो पाता। जैसे-जैसे वात वृद्धि के कारण उसका ‘चल’गुण प्रभावित होता है, वैसे-वैसे ही इस रोग के लक्षण मानव शरीर पर दिखाई देने लगते है।
वात वृद्धि के कारण शरीर की मांसपेशियाँ, स्नायु और कण्डरा भी प्रभावित होते हैं। अगर पूर्णरुप अवस्था में ही इस रोग की स्थायी चिकित्सा न की जाए तो दूषित वात के कारण शरीर में अनेक व्यापक उत्पन्न हो सकते है जैसे- जोड़ों में अत्याधिक पीडा, गति विभं्रश, मनोभ्रम, प्रलाप, अवसाद, अनिद्रा आदि।
कम्पवात की माध्यमिक अभिव्यक्ति :
कम्प या वेपथु या कम्पवात किसी अन्य बीमारी के कारण भी हो सकता है। अपस्मार तथा वातरक्त की पूर्णरुप अवस्था में कम्पन पाया जाता है। अनन्त वात, वातज अपस्मार, अर्दित, आक्षेपक, वातज अश्मरी, उर:क्षत, काण्डभग्न, गृध्ररी, तमक श्वास, वातज पाण्डु, वातज मदाव्यय, मूच्र्छा, वातज विसर्प, कृमिज शिर:शूल, सर्वाङ्ग, कुपित वात, विसूचिका और व्रण कुछ ऐसे रोग हैं, जिनमें कम्पन/स्फुरण मुख्य लक्षण होता है।
कम्पवात के कारण (Causative Factors) :
कम्पवात रोग वात दृष्टि (वृद्धि) के कारण होता है, तो वात वृद्धि के कारण ही कम्पवात के कारण (निदान) होता है।
वात प्रकोप के कारण :
अत्याधिक व्यायाम, अति लंघन, रात्रि जागरण, वेग धारण, अत्याधिक शोधन चिकित्सा, तिक्त कटु रस का अति सेवन, वात वृद्धि के कुछ मुख्य कारण है।
उपरोक्त आहारज-विहारज निदानों के कारण वात प्रकुपित होता है, जिससे उसका चल गुण प्रभावित होता है ओर कम्पवात की उत्पत्ति होती है।
पूर्वरुप :
आचार्य चरकानुसार अव्यक्त लक्षण वात व्याधि के पूर्णरुप होते है। (च.चि. 28/16)
कम्पवात के पूर्वरुप है- अंगमर्द, उद्वेग, अनवस्थित चित्त, मोह, स्मृतिहानि, अस्वस्थ मन, गात्र रुक, अवसाद, सुप्ति, उष्ण प्रतीति और कलम।
रूप :
करपाद तलेकम्प (Termors in hand and legs), निद्राभग्न, देह भ्रमण, क्षीणमति, स्तंभ, चेष्टाहानि, वाक विकृति।
सम्प्राप्ति घटक:
दोष- प्राण, उदान, व्यान वात, साधक पित्त, तर्पक कफ
दूण्य- रस, मांरथ, मज्जा, शुक्र
स्त्रोतस- रसवद, मांसवह, मज्जावह, शुक्रवह
स्त्रोतोदृष्टि- संश्र
अग्नि- जठराग्नि मांद्य
चिकित्सा :
बाह्य चिकित्सा
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अभ्यंग, बला अश्वांगघादि तैल, क्षीरबला तैल, महामाष तैल, सहचरादि तैल से
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स्वेदन- वाष्पवेद, पिण्डस्वेद (षष्टिक शालिपिण्ड स्वेद, पत्रपिण्ड), सर्वाङ्ग धारा
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मूर्धिनि तैल- शिरोअभ्यंग, शिरोसेक (शिरोधारा), शिरोपिचु, शिरोबस्ति
आभ्यंतर चिकित्सा
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आभ्यंतर स्नेहन- अश्वगंधादिघृत, सारस्वतघृत, इन्दुकांत घृत, ब्राह्मी घृत, पंचगव्य घृत, बला तैल, क्षीरबला तैल, महामाष तैल आदि।
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विरेचन (सम्यग रूप से स्नेहन, स्वेदन होने के पश्चात), विरेचन के लिए इच्छाभेदी रस, त्रिवृत्त लेह, आरग्वधफल मज्जा, त्रिफला चूर्ण, अविपत्तिकर चूर्ण आदि औषधियों का उपयोग किया जाता है।
बस्ति :
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एरण्डमूलादि क्षीरबस्ति, दशमूलक्षीर बस्ति, मुस्तादियापन बस्ति का प्रयोग कम्पवात में किया जाता हैं।
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अनुवासन बस्ति एवं मात्राबस्ति के लिए अश्वंगघा घृत, क्षीरबला तैल, बला तैल, महामाष तैल आदि का प्रयोग किया जाता है।
नस्य :
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ज्योतिष्मति तैल, क्षीरबला तैल, महामाष तैल, षड्बिन्दू तैल आदि का प्रयोग किया जाता है।
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कम्पवात में उपर्युक्त एकल द्रव्य- देवदारु, कुण्ठ, बला, शावलाकि, अग्निमन्थ, गुडूची, एरण्ड, शतावरी, पुर्ननवा
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कम्पवात के लिए उपर्युक्त औषधियां- दिव्य मेधा क्वाथ, दिव्य न्यूरोग्रिट गोल्ड, पतंजलि स्पाइरूलिना, अश्वगंधा, दिव्य मैमोरिग्रिट, दिव्य इम्यूनोग्रिट।
पथ्य-अपथ्य
पथ्य- गेहूँ, चोकरयुक्त आटे की रोटी, बाजरा, ओट्स, मल्टी ग्रेन्स दलिया, सोयाबीन, पुराने चावल, कॉर्नफ्लैक्स, मूंग दाल, अरहर दाल, काले चने, तिल, हरी पत्तेदार सब्जियां (पालक, मेथी, सरसों के पत्ते) लौकी, तोरई, परवल, सहिजन, लहसुन, अदरक, प्याज, मेथी, टमाटर, पालक, चुकन्दर, गाजर, मशरुम, शकरकन्द, बथुआ, टिण्डा, करेला, ब्रोकली, कद्दू, शलजम, बादाम, कदर के बीज, सूरजमुखी के बीज, अंजीर, खजूर, किशमिश, छुहारा, मूंगफली, अखरोट, चीकू, पपीता, अनार, कीवी, ब्लैकबेरी, क्रेनबेरी, आम, फ़ालसा, ब्लूबेरी, खरबूजा, खुबानी, स्ट्रॉबेरी, सेब, अँगूर, संतरा, आडू, आलू बुखारा, नाशपाती, सीताफल।
अपथ्य- मैदा, बेसन, नये चावल, मक्का, उड़द, राजमा, काबुली चने, मसूर दाल, तरबूज, कच्चा आम, बेर, कटहल, बैंगन, रतालू, आलू, भिण्डी, मटर, अरबी, तैलीय मिर्च मसालेदार भोजन, फास्ट फूड, समोसा, कचौड़ी, पूरी आदि का सेवन न करें।
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