परम पूज्य योगऋषि स्वामीजी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य ...
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आध्यात्मिक भ्रान्तियां
त्याग के नाम पर दरिद्रता व अभाव को भारत में इतना अधिक महिमा मंडित किया गया कि देश ही वैश्विक परिपेक्ष्य में दरिद्र गरीब देश कहा जाने लगा है। अपरिग्रह, तप, त्याग सादगी, न्यूनतम आवश्यकताओं में जीना। परिग्रह, संग्रहवृत्ति, विलासिता, प्रदर्शन, दिखावा या आडंबर अथवा सार रूप में कहें तो प्रकृति का अन्याय पूर्ण दोहन दुरुपयोग प्रकृति, पर्यावरण और इनके आश्रय से जीवन जीने वाले मनुष्य एवं मनुष्येतर सम्मत जड़ चेतन जीवन जगत के लिए विध्वंसकारी, विनाशकारी या आत्मघाती है।
परिग्रह-अपरिग्रह, ऐश्वर्य, दरिद्रता, वैभव-गरीबी, भौतिकवाद एवं अध्यात्मवाद में अति सूक्ष्म अन्तर है। प्रकृति मां की तरह है, मां का स्तनपान करके बलवान बनना धर्म है परन्तु मां का रक्तपान महापाप व अधर्म है। ईशावास्थमिदं सर्वं यत्किच्च जगत्यां जगत्। तेन व्यक्तेन भुज्जीयाः मा गृघः कस्थ स्वित् धनम्। यजुर्वेद या ईशोपनिषद् का यह संदेश कि संम्पूर्ण अस्तित्व उत्पन्न हुआ है, परमात्मा ही सब का कर्ता, नियन्ता आश्रयदाता संचालक व स्वामी है, वही विश्वमय विश्वातीत है। अतः सब कुछ भगवान का मानकर जैसे हम मां का स्तनपान करते हैं वैसे ही प्रकृति मां का उपयोग कर बलवान, धनवान, ऐश्वर्यवान बनें। त्यागपूर्वक भोग या उपयोग करें। प्राकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग या अन्यायपूर्ण दोहन न करें। इसी को आज पूरे विश्व के विवेकशील लोग कह रहे हैं कि हम स्थाई एवं समग्र विकास के मार्ग पर आगे बढें। सस्टिनेवल, एंड इन्म्लुसिव डबलपमेंट की पैरवी पूरी दुनियां में हो रही है।
निष्कर्ष यह है कि हम अपने ज्ञान, संवेदना, पुरुषार्थ, पराक्रम एवं उद्योग से अहिंसक ऐश्वय्र या दैवी सम्पदा, सात्विक समृद्धि को बढ़ायें तथा जो कुछ हम पायें उसका अपने लिए न्यूनतम प्रयोग करके शेष समष्टि के सुख, स्वास्थ्य, समृद्धि, शान्ति एवं सामूहिक सेवा के लिए प्रयोग करें। प्रमादी एवं दरिद्र बनकर या त्याग का ढ़ोंग करके स्वयं को एवं राष्ट्र को दरिद्रता में न डुबोयें।
पतंजलि योगपीठ का संम्पूर्ण योग एवं कर्मयोग, सात्विक समृद्धि योग एवं कर्मयोग, सात्विक समृद्धि या दिव्य ऐश्वर्य इस वैदिक परम वैभवशाली राष्ट्र निर्माण का एक व्यापक उदाहरण है। हम समद्ध एवं महान बनेंगे तभी राष्ट्र, समद्ध, महान एवं परम वैभवशाली बनेगा।
स्वामी रामदेव
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