स्वास्थ्य समाचार

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नींद न आए तो : सोने की चिंता नहीं, जागने की कोशिश करें 
सुबह के रूटीन से तय होती है नींद
अच्छी नींद का सबसे अच्छा नियम है मस्तिष्क को शांत रखना। हालांकि जब नींद न आए तो दिमाग को शांत रखना थोड़ा कठिन हो जाता है। खासकर तब जब यह लगातार हो रहा हो। हालांकि विज्ञान आधारित कुछ ऐसे गैर-पारंपरिक तरीके भी हैं जिन्हें अपनाया जाए तो नींद आसानी से आने लगती है।
ये पांच तरीके नींद की समस्या से राहत दे सकते हैं
कोशिश कर सोने का प्रयास न करें
अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी में स्लीप साइकोलॉजिस्ट डायरड्रे कॉनरॉय के अनुसार नींद को लेकर की जाने वाली चिंता और एंग्जाइटी की वजह से व्यक्ति को और नींद नहीं आती। इसके उलट बिस्तर पर लेटे हुए व्यक्ति अगर पूरी रात जागने की कोशिश करें तो एक समय अचानक से नींद आएगी और आप सो जाएंगे।
थोड़ी चिंता भी जरूरी
अच्छी नींद के प्रयास में चिंताओं से बचने की कोशिश करेंगे तो ये और परेशान करेंगी। ऐसे में सोने के कुछ घंटे पहले समस्याओं पर विचार कर लें तो यह फायदेमंद होगा। 15 मिनट का समय निकाल कर दिन भर की चिंताओं को एक कागज पर लिख लें।
सुबह को बेहतर बनाएं
नींद पर सुबह की दिनचर्या सबसे ज्यादा असर डालती है। सुबह निश्चित समय पर उठें और सबसे पहले सूरज की रोशनी में जाएं। यह जैविक घड़ी को सेट करेगा। रात के सोने का समय भी इससे तय होगा।
प्रकृति के बारे में सोचें
प्राकृतिक ध्वनि और अंधेरा नींद के लिए जरूरी दो महत्वपूर्ण तत्व हैं। यूएस ओलिम्पिक वेट लिफ्टिंग टीम के स्लीप मेडिसिन फिजिशियन जेफरी डर्मर के अनुसार तनाव, बीपी, हार्ट रेट और मसल्स टेंशन को प्रकृति कम करती है। तारों को आपने कब गौर से देखा था उसके बारे में विचार करें। टूटता हुआ तारा कब देखा था इसके बारे में सोचें।
फोकस के लिए 4-7-8 नियम
सांसों पर फोकस करने से यह चिंताओं से दूर कर आपको वर्तमान क्षण में ले आता है। मस्तिष्क शांत होता है। इसके लिए 4-7-8 नियम अपनाएं। यानी 4 सेकंड तक सांस लें, फिर 7 सेकंड तक रोकें और फिर 8 सेकंड तक उसे बाहर छोड़ें।
साभार : दैनिक भास्कर
हर छह लोगों में से एक को है रक्तचाप
नियमित बीपी की जांच करा कर बच सकते हैं बीमारी से
हायपरटेंशन का मरीज बना रही है। इस बीमारी से पीडि़त लोगों में शहर के लोग ज्यादा है जो आधुनिकीकरण की दौड़ में इस बीमारी को मोल लिए बैठे हैं। शहर में कुल आबादी का करीब 17 प्रतिशत व गांवों में 10 प्रतिशत भारतीयों को ये बीमारी है। इस बीमारी से सावधानी रखकर ही इससे बचा जा सकता है।
हायपरटेंशन या हाई बीपी दुनिया भर में समय से पहले मुत्यु होने का सबसे बड़ा कारण है, लेकिन इनमे से 80 प्रतिशत लोगों को इस बीमारी के बारे में पता ही नही होता है। इसके कारण हर साल 9.4 मिलियन लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी 2011 की रिपोर्ट के मुताबित भारत में 25 साल से अधिक उम्र का हर तीसरा व्यक्ति इस बीमारी से पीडि़त है।
भारत में इस बीमारी की स्थिती इसलिए भी बदतर है क्योकि केवल एक तिहाई को ही बीमारी के बारे में पता होता है। ब्लड प्रेशर सामान्यत दो संख्याओं के अनुपात के रुप में दर्शाई जाती है। ऊपरी संख्या को सिस्टोलिक बीपी और कम संख्या का डायलोस्टिक बीपी कहते हैं। सिस्टोलिक बीपी की सामान्य सीमा 110 से 139 तथा डायलोसिटक बीपी की समान्य सीमा 70 से 89 के बीच होती है। कम समय में ज्यादा से ज्यादा कमाने की मानसिकता से हायपरटेंशन के रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। खासकर युवा वर्ग इससे खासा प्रभावित है। ये स्ट्रोक या पैरेलिसिस का सबसे बड़ा कारण है। 40 साल से कम के युवाओं में स्ट्रोक का बड़ा कारण यही बीमारी है। इस बीमारी से सावधानी रखकर ही इससे बचा जा सकता है।
हायपरटेंशन के मुख्य कारण
हायपरटेंशन होने के प्रमुख कारणों में शराब का अत्यधिक सेवन, नियमित रूप से व्यायाम न करने, भोजन में नमक का अधिक सेवन करने, धुम्रपान करने और हमेशा तनावग्रस्त होने से इस तरह की बीमारी होती है। अत्यधिक मोटापा, परिवार में किसी को हायपरटेंशन होने और शुगर के कारण भी ये बीमारी होती है। उच्च या अनियंत्रित ब्लड प्रेशर के कारण हार्ट अटैक, स्ट्रोक, गुर्दों की विफलता, नेत्रों की क्षति होती है।
हेल्दी लाइफ स्टाइल से किया जा सकता है बचाव
हायपरटेंशन के कारण समय से पहले मुत्यु या अपंगता हो सकती है। इस बीमारी से बचने के लिए हेल्दी लाइफ स्टाइल को अपनाना होगा। समय पर उठना, रोज व्यायाम करना और संतुलित भोजन की आदत डालना होगी। इससे बचने के लिए समय-समय पर अपना बीपी चैक करना चाहिए। इससे उच्च रक्तचाप का पता चलने पर समय रहते उस पर काबू पाया जा सकता है।
रात में ब्रश और समय-समय पर दांतों की सफाई है जरूरी
झोलाछाप से न कराएं इलाज
चमकते दंत किसे पंसद नहीं होते, लेकिन कई बार हम दांतों की सेहत पर ध्यान नहीं देते। इसका नतीजा यह होता है कि दांतों में बैक्टीरिया पननने से कई तरह की - बीमारियां घेर लेती हैं। इसके लिए दो बार ब्रश करें। समय-समय पर दांतों की सफाई करवाएं।
यदि फिर भी कभी दर्द हो या घाब बन जाए तो डेंटिस्ट से समय रहते उपचार करा लें। झोलाछाप से दांतों का इलाज न करवाएं। ऐसा करना कई बार खतरनाक हो सकता है। 
दातों की ऊपरी लेयर हार्ड तरीके से ब्रश करने पर घिस जाती है। यही कारण है ठंडा-गर्म लगता है। इससे बचने को हमेशा साफ्ट ब्रश का ही इस्तेमाल करें। इसे केवल दो से तीन मिनट ही करें। ज्यादा परेशानी होने पर डेंटिस्ट से संपर्क करें।
dental
सामान्य बोलचाल में दांतों में कीड़ा लगना कहते हैं, जबकि यह बैक्टीरिया है।
इससे कैविटी होती है और खाना फंसने लगता है। फिर दर्द होने लगता है। कई बार सूजन भी आने लगती है। ऐसी स्थिति में रूट कैनाल किया जाता है।
दांतों की सफाई से दांत घिसने की बात मिथ्या है, सफाई करने से दांत नहीं घिसते। दातों की लीयर में बैक्टीरिया जमा होता है। यह वैक्टीरिया धीरे-धीरे दांतों को नुकसान पहुंचाता है। क्लीनिंग के समय दांतों की अच्छी परत नहीं घिसी जाती है। इसलिए छह महीने से एक साल में दांतों की सफाई करानी चाहिए।
इन बातों का रखें ध्यान-
दो बार ब्रश करें
सॉफ्ट ब्रश का ही प्रयोग करें
कैल्शियम युक्त भोजन लें
प्रोटीन का ध्यान रखें
साभार : दैनिक जागरण

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