योग और हमारा पाचन तंत्र
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अमन नेगी पी.जी. छात्र, शालाक्य विभाग
हमारे शरीर में अक्सर छोटे-मोटे रोग होते रहते हैं जिनके उपचार के लिए कुछ रोगों में दवाइयों का सेवन करते हैं, कुछ रोगों पर ध्यान देने की जरूरत ही महसूस नहीं करते। यह सच है कि दवाईयों के सेवन से रोग में आराम मिलता है, लेकिन यदि खान-पान का उचित ध्यान व परहेज न किया जाए, तो ये रोग अंदर ही अंदर फैलते जाते हैं। शरीर के अंग कमजोर पड़ते जाते हैं। जिस कारण वे शरीर के विकार को बाहर करने में समर्थ नहीं हो पाते। परिणाम स्वरूप आयु बढऩे के साथ-साथ रोग की जटिलता बढ़ती जाती है। स्नायुमंडल निष्क्रिय होता जाता है। स्थिति धीरे-धीरे रोग को असाध्य बनाती जाती है। ऐसी स्थिति में रोगी पर दवाईयों का कोई असर नहीं पड़ता। केवल यौगिक क्रियाओं व प्राकृतिक उपचार के द्वारा ही रोगी को लाभ पहुंचाया जा सकता है। अगर आपके रोगी अंगों में जीवन शक्ति बची है, कुछ काम करने की क्षमता शेष है, तो निश्चित रूप से योग द्वारा रोगी स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकता है।
जीर्ण बृहद्रांत्र शोथ को अग्रेजी में Chronic Colitis कहते हैं। यह रोग बड़ी आंत में श्लेष्मिक झिल्ली में सूजन के कारण होता है। प्रारंभ में इस ओर ध्यान नहीं देने के कारण रोग धीरे-धीरे आंत (बड़ी आंत) के निचले भाग में फैल जाता है, इसके फलस्वरूप कई रोगियों के पेट के भीतर घाव हो जाते हैं। शौच के समय आंव व खून निकलने लगता है। यह गंभीर स्थिति है।
क्यों होता है, जानें
चूंकि यह पाचन तंत्र का रोग है, अत: खान-पान में गड़बड़ी इसका प्रमुख कारण है। हम जो भोजन करते हैं, उसमें विटामिन तत्वों, प्रोटीन व वसा का संतुलन आवश्यक होता है। अगर भोजन में प्रोटीन तथा वसा की अधिकता जारी रहे, तो इसको पचाने के लिए आंत को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। इससे पाचन अंग कमजोर पड़ जाते हैं। पाचन संस्थान ठीक से काम नहीं करने के कारण रोगी या तो कब्ज की शिकायत करने लगता है अथवा बार-बार शौच अतिसार की। दवाईयों के अधिक प्रयोग से बड़ी आंत में सूजन आ जाती है।
कुछ डॉक्टरों के मत में यह रोग एक विशेष प्रकार के कीटाणु से होता है। इस कीटाणु को मनोलिया साइलोसिस कहते हैं।
रोग के लक्षण
मलद्वार के रास्ते आंव के साथ-साथ खून आना, गुदा में जलन, रोगी का स्वास्थ्य गिरता जाता है। रोगी में तनाव, बेचैनी, आलस्य आदि देखे जा सकते हैं।
योगशास्त्रियों के अनुसार, इस रोग का एक मात्र इलाज है- योग चिकित्सा तथा भोजन में सुधार। इसके साथ-साथ रोगी में धैर्य आत्मविश्वास की भी जरूरत है। रोगी को छाछ या मधु मिश्रित पानी का एनिमा देना चाहिए। अनार के छिलके उबाल कर इस पानी का एनिमा भी रोगी को लाभ पहुंचाता है।
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अनार के छिलके का चूर्ण दो-तीन ग्राम प्रात: सायं ताजे जल के साथ लें, लाभ होगा। अगर आंव के साथ खून आता हो, तो अनार-फल की छाल और कड़वे इन्द्र जौ 20-20 ग्राम यव कूटकर 640 ग्राम जल में मिला चतुर्थांश क्वाथ सिद्ध कर दिन में 3 बार पिलाएं, शीघ्र लाभ होगा।
पेट की पांच मिनट गर्म सिंकाई करें, फिर ठंडे पानी की पट्टी पेट पर चढ़ाकर रात में सो जाएं। सुबह पट्टी उतार दें।
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पेट पर गर्म-ढंडा सेंक जरी रखें।
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धूप में शरीर को तपाएं। पेट को छोडक़र सब जगह मालिश करें। फिर स्नान करें। इस दौरान पेट पर हल्का घर्षण करें।
योग चिकित्सा
इस रोग में योग-निद्रा रामबाण की तरह असर करता है। हरे रंग की कांच की बोतल को तीन चौथाई साफ पीने योग्य पानी से भर दें। इस बोतल को धूप में सूखने दें। दूसरे दिन रोगी को बोतल का पानी पिलाते रहें। इससे आंत का शोध ठीक होता है।
वज्रासन, भुजंगासन, मकरासन, पवन मुक्तासन, कपालभाति, अग्निसार, पश्चिमोत्तानासन, हस्तपादोत्तानासन आदि योगाभ्यास करें।
आहार चिकित्सा
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तीन दिन का उपवास रखें। पीने के लिए हरे रंगी की बोतल का पानी तथा तांबे के बर्तन में रखा हुआ उबला पानी का ही सेवन करें।
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नारियल पानी का भरपूर मात्रा में सेवन करें।
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वेजिटेबल सूप, अनार, सेब का रस, बेल का शर्बत आदि कुछ दिनों तक लेते रहें।
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दही का मठ्ठा, पका केला, बेलगिरी का पाउडर, पतला पनीर भी काफी लाभ पहुंचाता है।
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दही-चावल या खिचड़ी, लगातार कई दिनों तक खाएं। मठ्ठा पीएं। कच्चे केले की सब्जी खाएं।
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सोयाबीन के दूध का दही विशेष रूप से लाभप्रद है।
परहेज
बिस्कुट, मैदे की बनी वस्तुएं, कॉफी, चाय, सिगरेट, शराब, तेज मसाले, ठंडे पेय, केक, चीनी, चटनी आदि।
नोट- व्यायाम वही करें, जो आपको सूट करता हो। अधिक थका देने वाले वर्क आउट खतरनाक हैं।
रामबाण नुस्खा
ईसबगोल
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ईसबगोल के साबुत बीजों अथवा भूसी को दस ग्राम मात्रा में लेकर ठंडे जल के साथ सेवन करें (फंकी के रूप में)। अथवा भुस्सी को रात में भिगोकर फूलने के लिए छोड़ दें। सुबह खाली पेट सेवन करें। कई दिनों के लगातार प्रयोग से आंतों की दाह व शोथ गायब हो जाती है।
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ईसबगोल की भुस्सी व त्रिफला चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर लगभग 3 से 5 ग्राम तक रात्रि को गर्म जल से सेवन करने से आंत्रशोथ दूर होता है। सुबह मल साफ होता है। आंतों के सभी विकार व पित्त संबंधी सारे दोष दूर होते हैं। यह एक अनुभूत व निरापद प्रयोग है।
पतंजलि की आयुर्वेदिक औषधियाँ
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पाचन तंत्र को दुरुस्त रखने के लिए पतंजलि के उदरकल्प चूर्ण, हरितकी चूर्ण, त्रिफला चूर्ण, अभ्यारिष्ठ, कोलोग्रिट, कुटजघन वटी, कुटजारिष्ठ आदि चिकित्सक के परामर्श से लें।
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मल के साथ रक्त आने की स्थिति में मोती पिष्टी 4 ग्राम, कहरवा पिष्टी 10 ग्राम, प्रवाल पंचामत ५ ग्राम- इन सबको मिलाकर 30 पुडिय़ा बना लें तथा भोजन से पहले दुर्वा स्वरस के साथ सुबह-दोपहर-शाम दिन में तीन बार लें।
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अतिरक्तस्राव की स्थिति में 4 चम्मच उशीरासव और 4 चम्मच पानी मिलाकर सुबह-शाम लें।
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जात्यादि तैल का मात्रा बस्ति चिकित्सक के परामर्श से लें।
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