ओमिक्रोन की रोकथाम एवं उपचार में सहायक योग व प्राकृतिक चिकित्सा
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डॉ. नागेन्द्र कुमार ‘नीरज’ निर्देशक - योगग्राम
विविध इम्युनबूस्टर आहार के प्रहार से विभिन्न वायरस का जड़-मूल से संहार
आहार की दृष्टि से ऐसे आहार लेना चाहिए जिससे हमारा पेट साफ रहे तथा कब्ज नहीं हो। रोग से लडऩे की ताकत सतत बनी रहे। इस दृष्टि से अपने आहार में निम्न खाद्य पदार्थों को सम्मिलित करें।
अंकुरित अनाज- अंकुरित अनाज में छ: मकार के मूँग, मोठ, मसूर, मटर, मूंगफली, मेथी तथा गेहूँ, चना, तिल, सोयाबीन को अंकुरित करके खायें। अंकुरित अनाज में सभी प्रकार के आहारों का सरलीकरण हो जाने से शीघ्र सुपाच्य बन जाते हैं क्योंकि अंकुरण के दौरान उनमें प्रोटियोलाइटिक एन्जाइम, एमियोलाइटिक एन्जाइम, लाइपोलाइटिक एन्जाइम पैदा होने से उनमें मौजूद प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट फैट की जैव सुलभता (बॉयो एवेलेबिलिटि) बढ़ जाती है। सुखे अनाज के अपेक्षा अंकुरित अनाज में प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स, फ्लेवोन्स, फ्लेनोल्स, फ्लेवेनॉन्स, डायटरीफाइबर्स में अरबिनो आक्सीलेन्स, सेल्युलोस, लिगनिन्स, लिगनेन्स बीटाग्लूकेन्स आदि स्टेरॉल्स, टोकोफेरॉल, अल्काइलरेसोरसिनॉल्स, फेनोलिक कम्पाउण्ड, प्रोटीनकाइनेस इन्हवीटर्स, फाइटिक एसिड, सपोनिन्स आसोफ्लेवोन्स, फाइटोस्टारॉल टोकोल्स एक्सोजेनस ओपीओ एड्स आदि से हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है। जिससे फूड डिपेन्डेन्ट डिजीज कोरोनरी हार्ट डिजीज, इन्सुलिन डिपेन्डेन्ट डाइबिटीज, मोटापा, एलर्जी तथा अन्य रोगों से रक्षा होती है। सम्पूर्ण अनाज (Whole Grain) की दृष्टि से अंकुरित अनाज का चुनाव बेहतर है। क्योंकि अंकुरित अनाज में सभी प्रकार के विटामिन बी, बी-1, बी-2, बी-3, बी-6, बी-7, बी-9, बी-12, विटामिन सी, एन्जाइम एक्टिीविटी डी.एन.ए., आर.एन.ए. की भी वृद्धि हो जाती है। मेरा आहार मेरा स्वास्थ्य पुस्तक में मैने सविस्तार चर्चा की है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए (फ्लेवोनॉड) वाले आहार जैसे- प्याज, सेव आदि में एपिजेनिन, बेरीज में क्रीइसिन, एलेजिक एसिड, ब्रोकोली तथा अन्य क्रूसीफेरस सब्जियो में केम्फेरॉल-6, मिथाइलसल्फिनाइलआइसोथायोपो-साइनेट, इन्डोल्स, अर्गनोसल्फर, फालेट, सेलेरी में लुटियालीन फ्लेवेनॉयड ग्रुप के फ्लेवोन्स फ्लो के छिलके में माइरिसेटिन व केर्नबेरीज, संतरा में रूटिन सर्वप्रथम इसे विटामिन-पी माना गया बाद में स्पष्ट हो गया कि फ्लेवेनॉयड है। अंगूर में सिबेलिन, रोसेल्ले में गॉस्सीपेटिन, फ्लेवेनॉल्स, क्यूरेसेटिन, क्यूरेसेटेगेटिन, मायरिसेटिन, पाटूलेटिन आदि लेट्स, ओलिक, प्याज तथा पार्सली में होते है। फ्लेवेनॉन्स ग्रुप फिसेटिन, हेसपेरेटिन, नारिजिन, नारिनजेनिन, टेक्सीफोलिन मौसमी, चकोतरा, ग्रेपफ्रूट, गगलफ्रूट, पोमेलो आदि खट्टे फल एवं खट्टे फलों के छिलके में कैटेचिन गुप एपिकैटेचिन, एपिगैलोकेटेचिन, एपिगैलोकैटेचिन गैलेट चाय ग्रीन टी रेडवाइन, एन्थोसायनिन ग्रुप, चेरीज में डेल्फिनिडिन बेरीज में सायनिडिन अंगूर में माल्वीनिडिन, रस्पबेरीज में पेलरगोनिडिन, स्ट्राबेरी में पेटूनिडिन, पियोनिडिन लाल अंगूर, एल्लाजिटानिनन तथा फेनालिक कम्पाउण्ड पुनिकालेगिन अनार मे होते हैं।
रोग प्रतिरोधक इम्यूनिटी को बढ़ाने में कैरोटिनॉयड ग्रुप के सक्रिय जैव रसायन अति उपयोगी होते हैं। अब तक करीब 900 प्रकार के कैरोटिनॉयड की खोज की गई है जिसमें 60 प्रकार के कैरोटिनॉयड फल एवं सब्जियों में मिलते हैं। हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को सशक्त बनाते हैं। केरोटिनायड ग्रुप के तीन सदस्य बीटा, कैरोटिन, बीटा क्रिप्टोजेन्थिन तथा अल्फाकैरोटिन शरीर में जाकर विटामिन-ए में रूपान्तरित हो जाते हैं। ये तीनों रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने वाले अत्यन्त जैव सक्रिय सदस्य है। शरीर करीब 85 प्रतिशत लाइकोपिन टमाटर से ग्रहण करता है क्योंकि यह सब्जी बारहों महीना मिलता है। बीटा कैरोटिन गाजर, शकरकन्द, ब्रोकोली, आलू, आम, केला, पपीता, पीला कदू (पम्पकिन), लाल, पीला, मोटा शिमला मिर्च, नारंगी, ल्यूटिन तथा जियाजेन्थिन पालक, केल, मूली, शलगम के पत्ते वाली सब्जियों में, आडू, खूर्बानी, मटर, मक्का, लाल रंग के फल तथा सब्जियों जैसे- टमाटर, गुलाबी ग्रेपफ्रूट, तर्बूजा, स्ट्रोबेरी, लाल अमरूद में लाइकोपिन, पीले रंग में बीटा कैरोटिन, नांरगी रंग में बीटाकैरोटिन तथा जेन्थोफिल पाये जाते हैं। कैरोटिन वाले साग-सब्जियों को मंद-आंच पर उबाल कर तथा उसमें एक्स्ट्रा वर्जिन यानि घानी का तिल, ओलिव, सरसो, सूर्यमुखी, सफोलादि तेल या घी से डेसिंग कर के खाने से शरीर में कैरोटिन अच्छी तरह घुल मिल जाते हैं। खूब पके हुए फल तथा उबली हुई सब्जियों को खाने से कैरोटिन अच्छी तरह उपयोगी होता है। इसकी बायोएवेलेबिलिटी सुलभता से बढ़ जाती है।

मौसम के अनुसार मिलने वाले ताजे सस्ते फल में संतरा, मौसम्मी, ग्रेपफ्रूट, गगल फ्रूट, पोमेलो, स्टबेरी, गूसबेरी, मौसम्मी, चकोतरा, केला, अमरूद, आँवला, पपीता, खजूर, खुमानी, द्राक्ष, किशमिश, अंजीर, अंगूर, फालसा, आलू बुखारा, चेरीज, काली शहतूत, जामुन, आडू, बेर, नाशपाती, सेव, अनपास, शरीफा, चीकू, तर्बूजा, खर्बूजा, आम, सब्जियों में लौकी, तोरई, ककड़ी, कद्दू, टिण्डा, कुन्दरू, परवल, ककोड़ा, चिचिंडा, कचरी, करेला, बैगन, भिण्डी, चुकन्दर, शलगम, मूली, प्याज, पतेवाली सब्जियों में पालक, बथुआ, चौलाई, मेथी का शाक, सरसों का शाक, लेट्स, पत्तागोभी, लोणाका शाक, सहजना की फली एवं शाग, चौलाई की फली, ग्वार की फली, सेम, फूलगोभी, कम मात्रा में पुदीना, धनिया, जीरा, दूध तथा दूध से बने पदार्थ, दही, छाछ, पनीर, घी, शतावर, मशरूम, घृतकुमारी, पुनर्नवा, गेहूँ आदि देश, काल मौसम के अनुसार मिलने वाले फल ताजी, सस्ती साग-सब्जियों तथा खमीर उठे मोटे आटे की, चुकन्दर, पालक, गाजर, लौकी आदि के रस में गुंदे रंग-बिरंगे आटे की रोटियाँ, बाजरा, ज्वार, रागी (मडूवा), कुलथी, राजमा, काला तथा काबुली चना अल्फा-अल्फा (रिजका), तिल सरसों, अलसी, जैतून, सूर्यमुखी, कुसुम (सफोला) के तेल का प्रयोग अदल-बदल करते रहना चाहिए। आहार को ज्यादा तापमान पर तल-भूनकर नहीं बनायें। ज्यादा तलने भूनने से आहार की रोग प्रतिरोधक शक्ति कमजोर हो जाती है। एक्रोलोमायड, एडवान्सग्लाइकेन एण्डप्रोडक्टस तथा हैट्रोसाइक्लिक एमिन्स इम्युनिटी एवं स्वास्थ्य घातक जहरीले रसायन पैदा हो जाते हैं।
किंचित अंकुरित मूँग, मोठा, मसूर, चना, मटर, मूंगफली, कुलथी आदि को मिक्सी में बारीक पीसकर उसको तीन घण्टे दही में रखकर खमीर पैदा करें। फर्मेन्टेड कच्चे माल से इडली, अप्पे, चिला, खम्मन, ढ़ोकला, चोंथा, डोसा, किमचि, टेमपेह तथा साउरक्राउट बनायें। स्वस्थ पाचक वाले रोगियों को घी दो चम्मच प्रतिदिन खायें। घी में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले एम.एफ.जी.एम. (Milk Fat Globule Membrane) कन्ज्युगेटेड लिनोलीक एसिड (CLA), ब्युट्रिक एसिड सेचुरेटेड फैटी एसिड के लॉरिक एसिड, मिरिस्टिक एसिड, पामिटिक एसिड तथा स्टीरिक एसिड होते हैं जो रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाते हैं। ये सभी घी के जैव संक्रिय रसायन है जो कोशिकाओं के विकास, वृद्धि, एपोपटोसिस, न्यूरल सिंगनल, सिंगनल ट्रान्सडक्शन, एण्टीबैक्टीरियल, एण्टीमाइक्रोबियल तथा शार्टचैन फैटी एसिड के निर्माण में मध्यस्थता का कार्य करते हैं।
उपर्युक्त आहारों में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाले विटामिन ए, बी1, बी2, बी3, बी6, बी9, बी12 तथा बी6 के सभी पाँच सदस्य पायरिडाविसन, पायरिडाक्सल, पायरिडॉक्सएमिन, पायरिडाक्सल 5 फॉस्फेट तथा पायरिडाक्सएमिन 5 फॉस्फेट, विटामिन सी, विटामिन ई तथा विटामिन डी, विटामिन के एमिगडेलिन बी17, पेनगेमिक एसिड (बी15), खनिज लवणों में लोहा, कैल्शियम सेलेनियम (लहसून, मशरूम) जिक, पोटेशियम, सल्फर, मैग्नीज एवं मैग्नेशियम प्रर्याप्त मात्रा में मिल जाते हैं। एन्जाइम युक्त आहार एवोकोडो में लाइपेज, पॉली फेनोल ऑक्सीडेज, केला में एमाइलेसेस ग्लूकोसाइडेसेज शहद में डाइसेटेसेस, इनवर्टेसेस, प्रोटिएसेस, एमाइलेसेस, आम में एमाइलेसेस, अंजीर में फिसिन, अदरख में जिन्जिबाइन, पाइनएप्पल में ब्रोमेलेइन, किविफ्रूट में एक्टिनिडाइन, ब्लेकबेरी तथा सेव में पेक्टिनेस, केला के छिलके में पॉलीफेनोल ऑक्सीडेज मेलोटोनिन नींद का न्यूटोट्रान्समीटर्स बढ़ाने वाला, इथालिन इम्यूनबूस्टर लेन्टिनम, पतीता में पपेन, अंगूर में निद्रा रसायन सेरोटोनिन तथा पेक्टिनेस, प्रोटीएसेस, पेक्टिनलाइसेस, ग्लाइकोसाइडेसेज, ग्लूकेनसेस तथा यूरिसेस, पेक्टिन मिथाइल इस्टेरेसेस आदि एन्जाइम भोजन को शरीर में उपयोगी बनाकर इम्यून बूस्टर का काम करते हैं।
उपर्युक्त आहारों के अतिरिक्त इम्यून बूस्टर रविरश्मि सनसाइन विटामिन डी के लिए या कम से कम वस्त्रों में जिससे 50 से 60 प्रतिशत शरीर का हिस्सा खुला रखकर सूर्य स्नान बायी तरफ, दाँयी तरफ सीधे या पीठ के बल लेटकर बैठे हुए या चलते हुए अथवा योग, प्राणायाम ध्यान करते हुए अवश्य लें। धूप स्नान लेने के पूर्व 1-2 ग्लास मौसम के अनुसार जल पिये तथा सिर पर गीला या सुखा तौलिया रखे। पसीना आने पर स्नान करें। रिसर्च के अनुसार धूप स्नान से प्राप्त विटामिन डी इम्यूनिटी को बढ़ाकर कोविड-19 तथा ओमीक्रोन को हराने में सहयोगी है।

षट्कर्म, पंचकर्म, प्राकृतिक चिकित्सा के विभिन्न प्रयोग जैसे-जलनेति, सूत्रनेति, रबर नेति, स्नेह नेति, कुंजल, शंख प्रक्षालन, एनिमा, वमन, विरेचन, नस्य, घी, तेलादि से निर्मित अनुवासन या स्नेह वस्ति, दिव्य सर्वकल्प क्वाथ, श्वासारि क्वाथ, गिलोय क्वाथ, गोक्षुर क्वाथ, नीम क्वाथ आदि का क्वाथ या निरूह वस्ति, क्षीर वस्ति, नस्य कर्म, रक्तमोक्षण, जलाका, अग्नि कर्म, कपिंग थैरिपि, अलहिजाम हर्बल कपिंग थैरिपि, वाष्प स्नान, स्थानीय वाष्प, गरम-ठण्डा सेंक, गरम पैर स्नान, सावनाबाथ, कलर थर्मोलियम, ग्रीन हाउस थर्मोलियम, स्थानीय या सर्वाग मिट्टी की लेप आदि चिकित्सा विविध जड़ी-बूटी औषधीय कायाकल्प जल, गिलोय पेय, पंचामृत, पितहर, बिलबेला तथा गोखरू जल पर उपवास आदि रोगी की स्थिति, रोग निदान, उम्र, जीवनी शक्ति, रोग की स्थिति को ध्यान में रखते हुए प्रयोग किया जाता है।
उपर्युक्त सभी प्रयोगों से रोगी की रोग प्रतिरोधक क्षमता वायटलिटी तथा इम्यूनिटी को बढ़ा कर रोग मुक्त करने में सहायता मिलती है।
इम्युनबूस्टर योगासन, प्राणायाम तथा ध्यान:
इम्यून बूस्टर के रूप में पुज्य श्रद्धेय स्वामी जी द्वारा निदेशित अपनी शक्ति सामथ्र्य के अनुसार, सूक्ष्म व्यायाम, योगिक-जोगिंग की 12 तथा सूर्य नमस्कार के 12 स्थितियाँ, पारम्परिक 12 दण्ड तथा 8 बैठक, बैठकर किये जाने वाले आसन मण्डूकासन, शशकासन, वक्रासन, गोमुखासन लेटकर मकरासन की 3, भुजंगासन, शलभासन की 3 तथा मर्कटासन की 3, पवन मुक्तासन की 2, पादवृत्तासन की 2, द्विचक्रिकासन की 2, अद्र्धहलासन, विपरितकरनी करें। इसके अतिरक्त, ध्रुवासन, गरूड़ासन, तिर्यक ताड़ासन, सर्वांगासन, हलासन, धनुरासन, चक्रासन, जानुशिर्षासन, अद्र्धमत्स्येन्द्रासन, पश्मिोतानासन, कुर्मासन, मण्डूकासन, अद्र्धचन्द्रासन तथा उष्ट्रासन सामथ्र्य के अनुसार करें। प्राणायाम में कपालभाति प्राणायाम, बाह्य प्राणायाम, उज्जायी प्राणायाम, अनुलोम प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, उद्गीथ प्राणायाम तथा प्रणव प्राणायाम करें। यज्ञ चिकित्सा में प्राणोष्टि एवं मेधेष्टि यज्ञ करें। श्वासामृत तथा विषधन धूप हवन सामग्री उपयोग में लायें। निरापद आयुर्वेदिक औषधियों में दिव्य इम्यूनो ग्रीट बटी सुबह-साम 1-1 बटी गुन-गुने जल या दूध से लें। दिव्य यौवन ग्रिट बटी सुबह-शाम 1-1 बटी खाने के बाद लें। दिव्य इम्यूनोग्रिट चूर्ण, खाने के एक घंटा पहले दिव्यशिला, तुलसी ड्राप्स तथा दिव्य हल्दी तुलसी ड्राप्स 1-2 बूंद पानी पीते समय डालें और पी जाये। विटामिन न्यूट्रिला विटामिन डी तथा बी12 लें। उपर्युक्त आसन, प्राणायाम एवं निरापद औषधियों के प्रयोग हेतु पतंजलि वेलनेस सेन्टर के योग एवं आयुर्वेद विशेषज्ञों से परामर्श लें।
उपर्युक्त समग्र होलिस्टिक त्रिवेणी योग आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा के समन्वित त्रिवेणी में विधिवत प्रयोग करने से कोरोना या कोरोना के 35वां वेरियेन्ट या अन्य अनेको वेरियेन्ट भी निष्प्रभावी रहते हैं। इन सबके प्रत्यक्ष प्रमाण जीते जागते वैश्विक योग के महान् गुरू स्वामी रामदेव जी महाराज हैं जिनके द्वारा बताये गए योग, यज्ञ, आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा, एक्यूप्रेसर एवं एक्यूपंक्चर प्रक्रियाओं को अपनाकर लाखों करोड़ो लोग कोरोना से मुक्त हुए और स्वस्थ हुए तथा अकाल मौत से बच गये।
ओमीक्रोन से बचने के उपाय:
उपचार से बचाव है बेहतर-
1. भीड़-भाड़ से यथा संभव दूर रहे।
2. शादी-विवाह या मरणोत्सव एवं शोध सभा में जाना भी हो तो मास्क लगाकर जायें।
3. मास्क लगाना तथा 3-4 फीट की दूरी बहुत है जरूरी इस महासूत्र को हमेशा याद रखें।
4. जहाँ रहे वहाँ हवा-आवागमन वेन्टिलेशन अवश्य रहें, इसका ध्यान रखें।
5. किसी से भी हाथ मिलाने से परहेज रखें क्योंकि सभी प्रकार के कोल्डवायरस, बर्डस वायरस स्वाइन वायरस, कोविड वायरस डेल्टा, ओमीक्रोन वायरस, मर्स वायरस तथा कोई भी वायारस हाथ द्वारा नाक के छूने से नाक के श्वसन पथ द्वारा शरीर के अन्दर प्रवेश करते है।
6. भारतीय हिन्दु संस्कृति के अभिवादन का अद्वितीय प्रयोग पद्म-मुद्रासन है।
7. पद्म मुद्रा में दोनों हाथ की हथेलियो एवं अंगूली को मिलाकर कमल-कली की तरह बना कर छाती के मध्य हृदय कमल के पास रखें। थोड़ा सा झूककर ओम, राम-राम, नमस्ते या प्रणाम बोल कर अभिवादन करें। इस विनम्रता से हृदय कमल खिल जाता है। अन्तरात्मा से नमन (मन का विसर्जन) की घटना घटित होती है और परिणाम स्वरूप अमन (मन के नही होने से) शान्ति, स्वास्थ्य, सौभाग्य, सौन्दर्य एवं सौजन्यता स्वत: उद्भूत होती है।
8. साबून या लिक्विड सोप से दोनो हाथ को अच्छी तरह धोयें। दोनों हाथों के अंगूलियों को फंसाकर करतल तथा करपृष्ट दोनो तरफ से प्रत्येक अंगूली के जोड़ों, उनके बीच की जगह को भलिभाति 30 से 45 सेकेण्ड तक झाग पैदा कर रगड़-रगडक़र भलिभांति धोयें। आवश्यकता के अनुसार अच्छी गुणवता के सेनिटाइजर का प्रयोग करें।
9. जहाँ-तहाँ न थूकें न छीकें अपने साथ टिशू पेपर, छोटा रूमाल रखे तथा साफ रूमाल से नाक साफ करें।
10. बाहर से आने वाले साग-सब्जी, फल या कोई भी खाद्य पदार्थ को कुछ देर बाहर रखें। 12 से 24 घंटे के बाद ही काम में ले।
11. जूते-चप्पल मोजे आदि बाहर ही रखें। कमरे में काम करने के लिए अलग से चप्पल रखें। बाहर से घर आने पर हाथ पैर भलि-भांति साबून से धो-पोंछकर खाना खाये या अन्य कोई काम करें।
प्रतिदिन जलनेति, सूत्रनेति करने के बाद अणु तेल या सरसों का तेल 5-5 बूंद दोनो नाक में अवश्य डालें तथा अंगूली में सरसों का तेल लगाकर नाभि की हल्की मालिश करते हुए लगायें। सब जगह सरसों का तेल सहजता से उपलब्ध हो जाता है। सरसों के तेल में एण्टी माइक्रोबियल तथा एण्टीवायरल अलाइल आयसोथायोसायनेट (AIT) यूरिसिक एसिड तथा सल्फर कम्पाउण्ड आदि अनेक रसायन होते हैं। मात्र जल नेति के बाद सरसों तेल लगाने से ही नाक एवं फेफड़े के इन्फेक्शन से बचाव होता है।
स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों को कोविड रक्षक ड्रेस किट पहन कर रखें, कोरोनिल की 1-1 बटी सुबह-शाम पानी से खायें। डिसपोजेबल कोविड पी.पी.इ. किट (Covid Personal Protective Equipment Kit) का प्रयोग करें।
उपर्युक्त यज्ञ, योग, आयुर्वेद निसर्गोपचार, आहारोपचार, निरापद जड़ी-बूटी चिकित्सा के समन्वित प्रयोग से कोविड-19 जो अभी तक गया नहीं है तथा उसी के खानदान का खतरनाक वेरियेन्ट डेल्टा तथा उससे भी चालबाज बहुरूपिया ओमीक्रोन जो अभी तक स्पष्ट रूप से सामने नहीं है। चुपके-चुपके चोरी-चोरी छिपते हुए लोगो को अपने खुंखार जाल में तेजी से फंसा रहा है। उसे नेस्तनाभूत करने का सर्वाधिक सटीक उपाय यहाँ दिगदर्शित किया गया है।
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