बहुराष्ट्रीयता के विकल्प रूप में राष्ट्रीयता का प्रतीक हमारा पतंजलि

बहुराष्ट्रीयता के विकल्प रूप में राष्ट्रीयता का प्रतीक हमारा पतंजलि

आज बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का कब्ज़ा हमारी मानसिकता, सोच, संकल्प, हमारे क्रिया-कलाओं, आहार-विहार आदि सब में देखने को मिल सकता हैं। आज हम अपना वजूद, स्वाभिमान सब इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के समक्ष रखकर अपनी जीवन जी रहे हैं। आज यह विदेशी कम्पनियां हमारी संस्कृति के विरुद्ध पोशाक तैयार करके बाजार में धड़ल्ले से बेच रही है और हमारी माता, बहनें फैशन के नाम पर उन्हे खरीदकर पहन भी रही हैं। आज फूअड़ता का जो नज़ारा भारतीय परिवेश में देखने को मिल रहा है, उसका परिणाम कई आने वाली पीढिय़ां भुगतेगी। फैशन के नाम पर इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने हमारी माता, बहनों के तन पर से जिस तरह कपड़े कम किये है, वह साफ-साफ दिखाई देता है कि वह कैसे हमारी संस्कृति परम्पराओं से खेल रहे है। सौन्दर्य प्रसाधनों के नाम पर जिन उत्पाद को भारतीय बाज़ारों में बेचा जा रहा है वह कभी भी हमारी माता, बहनों की त्वचा के अनुरुप नहीं थे और ही रहेंगे। यह उत्पाद केवल चकाचौंध दिखाकर देश की भोली-भाली जनता को गुमराह करके बेचे जा रहे है। यह विदेशी कम्पनियां तो वैसे भी नहीं चाहती कि जो हमारे प्राचीतम श्रृंगार की रीति-रिवाज होते थे उसे अपना कर महिलायें सुन्दर दिखाई दे। यह अत्यन्त दु:खद है। ऐसे में देश को बचाना है तो हमे उनके बनायें मानको को तोडऩा ही होगा एवं अपने प्राकृतिक मानको को स्थापित करने की खोज करनी ही होगी।
आज भारत में लगभग 5000 विदेशी कम्पनियां एक झूठ को 100 बार बोलकर उस झूठ को सत्य साबित कर अपने उत्पादों को बेचने का कार्य कर रही है, उनके विज्ञापन इतने झूठ से भरे होते है उसकी चकाचौंध से प्रेरित होकर हिंदूस्तानी स्वेच्छा से कुछ भी खाने को तैयार हो जाते है, यही नहीं इस कम्पनियों ने भारत की जीवनशैली आवश्यकता अविष्कार की जननी है जैसे मूलभूत सूत्र को ही पलटकर रख  दिया है, क्योंकि यह कम्पनियां उत्पाद पहले तैयार करती है और विज्ञापन के सहारे सिद्ध करती है कि यह उत्पाद आपकी अनिवार्य आवश्यकताओं में से एक है। हम उनके बहकावे में भी जाते है और उन सब को अपने जीवन में सहर्ष स्थान देने लगते है। भले ही संभवत: हमें उन उत्पादों की जरुरत भी हो। यही नहीं इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का प्रभाव इस कदर हमारे सिर चढक़र बोलता है कि वह कोला के रूप में कुछ भी पिला सकते है, मैकडोनाल्ड पिज्जा के रूप में कुछ भी खिला सकते है, जॉनस प्लेयर के रूप मे कुछ भी पहना सकते
है।
यहाँ तक की वह जब चाहे हमें बीमार साबित करके अपनी सेन्थेटिक दवायें लेने को विवश कर देते हैं। यह कम्पनियां हमारे शरीर को जैसा चाहे उसी मानको में ढालने को विवश कर देती है। हमारी प्राकृतिक सुंदरता को नज़रअंदाज कर बदसूरत सिद्ध करने की कोशिश की जा रही है। यह कम्पनियां हमारी आवश्यकताओं को परिवर्तित करने का कार्य तो कर ही रही है, साथ ही अपने मुनाफे को ध्यान में रखकर हमारे परम्परागत उबटनों पर भी गहरा आघात कर रही है।
यह विदेशी कम्पनियां हमारे देश को आजादी से पूर्व भी इसी प्रकार से लूट रही थी और आज भी उसी प्रकार से लूट रही है। जिस कारण इस देश का समग्र विकास नहीं हो पा रहा है। एक बहुत बड़ी पूंजी जो इस देश की है वह अन्य देशों में चली जाती है, इन सब कारणों का दोषी और कोई नहीं अपितु हम ही है, साथ ही इस देश के समझदारों का एक बड़ा वर्ग जो इन कम्पनियों को देश को लूटाने के नये-नये संवैधानिक अधिकार समय-समय पर दिलवाता रहता हैं। उन्हें जमीन सहित अनेको सुविधायें साथ ही सरकारी संरक्षण दिलवाने का काम यह वर्ग करता रहता है। तभी तो यह बहुरूपिये या बहुराष्ट्रीय कम्पनियां हमारे परम्परागत हाथों के हुनर को छीन लेते है और हमें बेरोजगारी के चौराहे पर खड़े होने को मजबूर कर रहे हैं। दूसरी तरफ हमारी जेब से पैसा, हमारी धरती में छुपी अकूल सम्पत्ति को, हमारे घरों का सुख, हमारे देश का भविष्य, हमारा स्वास्थ्य सब पर इनकी काली छाया पड़ गई हैं। एक हम है जोकि स्वाद, स्वास्थ्य, देश के विकास, तरक्की के उनके भ्रमित दावों विज्ञापनों से प्रभावित होकर उन कम्पनियों को अपने घर के किचन से लेकर बाथरूम तक, अपनी जेब से लेकर त्वचा बालों तक, यहाँ तक की अपने शरीर की आंतों, किडनी, फेफड़ों, लीवर सहित आंतरिक अंगों तक में उन्हे स्थापित करने से बाज़ नहीं आते हैं। दूसरे शब्दों में कहे तो हमारे स्वाद, हमारे स्वास्थ्य, हमारी सोच, हमारी सुंदरता, हमारे आहार सहित सभी पर उन्ही का तो कब्जा हैं और तो और उनके चंगुल मेें हम ऐसे फंसे हैं कि हम अपने देश की परम्पराओं प्रकृति से दूर होते चले जा रहे हैं। पतंजलि इन्ही दुरास्थितियों से देश को मुक्ति दिलाने का, अपने वजूद स्वाभिमान का अहसास दिलाने को अभियान हैं।
एक समय ऐसा भी था जब हमें हमारी देसी गाय के दूध, छाछ, मक्खन, मौसमी फल, अंकुरित अन्न, औषधीय जूस में पौष्टिकता मिलती थी। तब हम एसिडिटी, कब्ज़ के शिकार होते थे, ही हम डाइबिटिज़ हाईपरटेन्शन के। पर आज हमें भ्र्रमवश पिज्जा, बर्गर, चाऊमीन, शराब, चाय, कॉफी में पौष्टिकता मिलती दिखने लगी हैं और यही सब कारण हैं जो हमें रोगग्रस्त बनाते है और हकीकत तो यह है इस देश को रोगी बड़ी सोची समझी साजिश के कारण बनाया जा रहा है, क्योंकि विदेशों में हुई नयी-नयी शोधों के प्रयास से जब अमेरिका, इंग्लैंड आदि देशों में प्रचलित औषधियों के लिये बाजार बंद हो गये थे, तो उसे खपाने के लिए भारत जैसे देश काफी मुनाफे के रूप में दिखाई देने लगे। उन्होंने अपने लक्ष्य हेतु ऐसे खानपान से हमें जोड़ा, जो हमे हमारी पीढ़ी को लम्बे समय तक रोगी बनाकर रख सकें और यह बहुराष्ट्रीय दवाईयां हमारे देश में आसानी से खपायी जा सके, हकीकत तो यह भारत आज अंग्रेजी दवाईयों का डम्पिंग ग्राउंड बन गया हैं। यहाँ पर जरुरी-गैर जरुरी सभी प्रकार की दवाईयां धड़ल्ले से बिक रही हैं, जो दवाईयां इन बहुराष्ट्रीय देशों में प्रतिबंधित है उसे भी भारत में आसानी से बेचा जा रहा है। जिस कारण यहाँ के रोगी बीमारी का ईलाज करवाते है, तो दूसरी बीमारी का शिकार हो जाते हैं और यह सब कुछ चल रहा है मेडिकल माफियाओं की सरपरस्ती में।
वैसे तो सरकार ने 1974 में श्री जय सुखलाल हाथी की अध्यक्षता में एक कमेटी बनायी थी। हाथी कमेटी ने 1975 में बताया कि भारत के मौसम, वातावरण और जरुरत के हिसाब से 117 दवाएं ही काफी जरुरी है। इन 117 दवाओं में छोटी बीमारी (खांसी, बुखार) आदि से लेकर बड़ी बीमारियों (कैंसर) तक का हल था। कमेटी ने कहा कि ये वह दवाएं है जिनके बिना हमारा काम नहीं चल सकता। कुछ सालों बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कहा कि यह लिस्ट कुछ पुरानी हो गयी है और उसने हाथी कमेटी की लिस्ट बरकरार रखते हुए कुछ और दवाएं इसमें जोड़ी और यह लिस्ट हो गयी 350 दवाओं की। मतलब हमारे देश के लोगों को केवल 350 दवाओं की ही जरुरत हैं। किसी भी प्रकार की बीमारी से लडऩे के लिये चाहे वो बुखार हो या कैंसर लेकिन हमारे देश में बिक रही है, 84000 के लगभग दवाईयां। आश्चर्य की बात यह है कि औषधियों के अम्बार के बीच भी बीमारियां सिर चढक़र बोल रही है।
सरकार प्रतिवर्ष करीब 23700 करोड़ रुपये से ज्यादा भारतीय लोगों स्वास्थ्य पर खर्च करती है, फिर भी हमारे देश में बीमारियों बीमारों की संख्या में कोई कमी नहीं रही है। यही नहीं आंकड़े बताते है कि सन 1951 में पूरे भारतवर्ष में मात्र 4700 अंग्रेजी डॉक्टरों की संख्या होती थी। जो आज सन 1947 में भारत के एलोपैथी दवा बनाने वाली करीब 10-12 कम्पनियां ही हुआ करती थी, जो आज यह बढक़र करीब 30 हजार के पार पहुँच गई हैं।
यह भी सच है कि पहले हमारे देश में बीमार लोगों की संख्या कम थी मगर आज पूरे देश के अधिकांश लोग किसी किसी बीमारी से ग्रसित है। हमारे देश में स्वास्थ्य के नाम पर लूट का इससे बड़ा उदाहरण कोई ओर नहीं हो सकता।
आप सब ने रक्तबीज रूपी एक राक्षस का नाम तो अवश्य सुना होगा। जब खून की एक बूंद धरती पर गिरती थी तब इस राक्षस का नया रूप जन्म ले लेता था। ठीक उसी प्रकार से हमारे देश में छायी यह विदेशी कम्पनियां भी है जोकि हमारे ही द्वारा किय गये अनेक सुराखों के माध्यम से यह हमारे घरों में दस्तक देने लगी हैं और सबसे बड़ी बात तो यह है कि हम लोग इसे भांप भी नहीं पाते। एक दरवाजा बंद करते है तो यह दूसरे दरवाजे से प्रवेश कर जाते हैं, इसी कारण आज भी हम इन विदेशी लूट से बच नहीं पा रहे हैं।
जिस प्रकार रक्तबीज रूपी दैत्य का अन्त इसी धरती पर हुआ है उसी प्रकार इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के अन्त के लिये स्वदेशीयुक्त पतंजलि ने जन्म लिया है। 5 जनवरी 1995 को दिव्य फार्मेसी के रूप में इस बीज का रोपण हुआ था जो आज 27 साल बाद अपने यौवन पर है। आज इस वट वृक्ष पर सैकड़ों प्रकार की डालियों ने अपनी जगह बना ली हैं।
पतंजलि आज समग्र आयामों से एक साथ इसका प्रतिरोध कर रही है। आज पतंजलि योग, आयुर्वेद, स्वास्थ्य से प्रारम्भ होकर जींस, नूडल्स, सौन्दर्य प्रसाधन, आहार, औषधि सब में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है।
पूज्य स्वामी जी महाराज एवं श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी चाहते है कि देश अपनी क्षमताओं पर आगे बढ़े और उसी क्षमताओं पर उसकी पहचान हो सके, इसलिए पतंजलि ही एक सार्वभौमिक विकल्प के रूप में देश के सामने हैं। राष्ट्र निर्माण की दिशा में पतंजलि नित्य नये अनुसंधान कर रहा है। उसी का ही परिणाम हैं पूज्य स्वामी जी महाराज एवं श्रद्धेय आचार्य जी ने आयुर्वेद के उत्थान के लिए विश्व स्तर की अनुसंधान की लैब का निर्माण किया जहां पर एविडेंस बेस्ड के तौर पर रिसर्च बेस्ड ट्रीटमेंट की दवाईयों का निर्माण किया जाता है। जहाँ वैज्ञानिक तथ्यों को पतंजलि पूरी दुनिया के सामने रखने का कार्य कर रही है। जो पहले से स्थापित तथ्य थे उनके विपरित डाईबिटीज के मरीजों को नॉन डायबिटिक करके लाईफ स्टाइल डिज़ीज चाहे वह बी.पी. हो, थायराइड हो, ओबेसिटी हो, नॉन कम्युनिकेबल डिज़ीज के साथ कई गम्भीर बीमारियों पर प्रमाणिक कार्य किया जा रहा हैं। इस कार्य में मॉडर्न मेडिसिन साइंस जो प्रोटोकॉल और जो पैरामीटर अपनाता है उसी के अनुरूप वल्र्ड स्त्तर की मेडिसिन बनाने का कार्य किया जा रहा है।
इस सदी की सबसे बड़ी महामारीकोरोनाजिसने पूरे विश्व में लाखों-करोड़ों मरीजों की जिन्दगी को निगल लिया। उस समय सारा विश्व हाहाकार कर रहा था। सभी देश इस बीमारी से निपटने की दवाई खोज रहे थे, तभीपतंजलि अनुसंधान केन्द्रवह पवित्र स्थान हैं, जहाँ से इस रोग की रोकथाम के लिए सबसे पहली दवाई का निर्माण किया गया। वह भी पूर्ण स्वदेशी एवं पूर्ण आयुर्वेदिक। पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट के सैकड़ों वैज्ञानिकों के अथ्क पुरुषार्थ करके पहले इसका क्लीनिकल केस स्टडी तथा बाद में कंट्रोल क्लीनिकल ट्रायल करके, औषधि अनुसंधान के सभी प्रोटोकॉल्स का अनुपालन करते हुए कोरोना के सम्पूर्ण उपचार के लिए सफल औषधि कोरोनिल तथा श्वासारि वटी की खोज की है। साथ ही करोड़ों रोगियों के प्राण की रक्षा भी की और दूसरी तरफ कोरोना का भय दिखाकर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की मंशा अपार पैसा कमाने की थी किन्तु साधारण से दिखने वाले इन दोनों सन्यासियों ने उनके मनसूबे पर पानी फेर दिया।
पूज्य स्वामी जी कहते है कि जो राष्ट्र अपने आप को आत्मनिर्भर नहीं करता, वह राष्ट्र नष्ट हो जाता है। आज श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल उसी मुहाने पर खड़े हैं, क्योंकि इन देशों ने कभी खुद को आत्मनिर्भर नहीं किया। सदैव बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर निर्भर रहे, जो भी इन राष्ट्रों का विदेशी पंूजी का भण्डारण था। वह इन उत्पादों को खरीदने में चला गया जिस कारण यह देश धीरे-धीरे दिवालिया होने की कगार पर पहुँच चुके हैं। आज इन देशों में मंहगाई आसमान छूने लगी है, चारो तरफ अराजकता फैली हुई है, यदि समय रहते यह राष्ट्र जरुरी उत्पादों को अपने राष्ट्र में निर्माण करते तो देश की जरुरतों को पूरा करने के साथ-साथ विदेशी पूंजी की भी बचत होती है और राष्ट्र का उत्थान होता है। आज भारत में पूज्य स्वामी जी महाराज एवं श्रद्धेय आचार्यश्री के कठोर पुरुषार्थ के कारण पतंजलि चारों दिशाओं में कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सीधी टक्कर दे रही है और यही वह कारण है जिस कारण यह विदेशी कम्पनियां हमारी पूंजी को लूट कर विदेश ले जाने में अब कठिनाई महसूस करने लगी है। यही तो पतंजलि का संकल्प था और यही पतंजलि का उद्देश्य।

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