शिक्षा क्रांति में पतंजलि के बढ़ते कदम शिक्षा का अर्थ और परिदृश्य

शिक्षा क्रांति में पतंजलि के बढ़ते कदम शिक्षा का अर्थ और परिदृश्य

डॉ. चंद्र बहादुर थापा 

अधिवक्ता एवं विधि सलाहकार पतंजलि समूह

निवर्त्तमान शिक्षा प्रणाली

भारत की निवर्त्तमान शिक्षा व्यवस्था ईस्ट इंडिया कंपनी और इसके कर्ता-धर्ता व्यक्तियों तथा बाद में ब्रिटिश सरकार आयातित बीजों की फसल है। प्रारंभिक 60 वर्षों तक भारत में शिक्षा को प्रोत्साहित करने में उसकी कोई रुचि नहीं थी।
1781 में वारेन हेस्टिंग्स ने कलकत्ता मदरसा की स्थापना की। इसका उद्देश्य, मुस्लिम कानूनों तथा इससे संबंधित अन्य विषयों की शिक्षा देना था।
* 1791 में बनारस के ब्रिटिश रेजिडेन्ट, जोनाथन डंकन के प्रयासों से बनारस में संस्कृत कालेज की स्थापना की गयी। इसका उद्देश्य हिन्दू विधि एवं दर्शन का अध्ययन करना था।
वर्ष 1800 में लार्ड वैलेजली ने कंपनी के असैनिक अधिकारियों की शिक्षा के लिये कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की। इस कॉलेज में अधिकारियों को विभिन्न भारतीय भाषाओं तथा भारतीय रीति-रिवाजों की शिक्षा भी दी जाती थी, किंतु 1854 में लॉर्ड डलहौजी के आदेश पर यह कालेज बंद कर दिया गया।
कलकत्ता मदरसा एवं संस्कृत कॉलेज में शिक्षा पद्धति का ढांचा इस प्रकार तैयार किया गया था कि कंपनी को ऐसे शिक्षित भारतीय नियमित तौर पर उपलब्ध कराये जा सके, जो शास्त्रीय और स्थानीय भाषाओं के अच्छे ज्ञाता हों तथा कंपनी के कानूनी प्रशासन में उसे मदद कर सकें। इसी समय प्रबुद्ध भारतीयों एवं मिशनरियों ने सरकार पर आधुनिक, धर्मनिरपेक्ष एवं पाश्चात्य शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिये दबाव डालना प्रारंभ कर दिया।
प्रबुद्ध भारतीयों ने निष्कर्ष निकाला कि पाश्चात्य शिक्षा के माध्यम से ही देश की सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक दुर्बलता को दूर किया जा सकता है।
मिशनरियों ने यह निष्कर्ष निकाला कि पाश्चात्य शिक्षा के प्रचार से भारतीयों की उनके परंपरागत धर्म में आस्था समाप्त हो जायेगी तथा वे ईसाई धर्म ग्रहण कर लेंगे। सीरमपुर के मिशनरी इस क्षेत्र में बहुत उत्साही थे।
1813 के चार्टर एक्ट और लार्ड मैकाले का स्मरण पत्र,1835 से लेकर चाल्र्स वुड का डिस्पैच 1854, हन्टर शिक्षा आयोग 1882-83, भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम 1904, शिक्षा नीति पर सरकारी प्रस्ताव 1913, सैडलर विश्वविद्यालय आयोग 1917-19, हर्टोग समिति 1929, मूल शिक्षा की वर्धा योजना 1937 (हरिजन नामक साप्ताहिक पत्र में प्रकाशित लेखों की एक श्रृंखला पर आधारित) शिक्षा की सार्जेन्ट योजना 1944 स्वतंत्रता प्राप्ति तक के शिक्षा-विकास के सोपान थे। 
राधाकृष्णन आयोग 1948-49, 1952 में लक्ष्मणस्वामी मुदलियार की अध्यक्षता में गठित माध्यमिक शिक्षा आयोग तथा 1964 में दौलत सिंह कोठारी की अध्यक्षता में गठित शिक्षा आयोग की अनुशंशाओं के आधार पर 1968 में शिक्षा नीति पर एक प्रस्ताव प्रकाशित किया गया, जिसमें राष्ट्रीय विकास के प्रति वचनबद्ध, चरित्रवान तथा कार्यकुशल युवक-युवतियों को तैयार करने का लक्ष्य रखा गया। मई 1986 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गई, राष्ट्रीय शिक्षा नीति की समीक्षा के लिए 1990 में आचार्य राममूर्ति की अध्यक्षता में एक समीक्षा समिति तथा 1993 में प्रो. यशपाल समिति का गठन किया गया। शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण की राष्ट्रीय परिषद (एनसीईआरटी) 1961 में स्थापित हुई तथा भारत भर के स्कूलों के लिए पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तकों और शिक्षण प्रथाओं के लिए एक दिशानिर्देश के रूप में राष्ट्रीय पाठ्यचर्या (ठ्ठष्द्घ) की रूपरेखा प्रथमत: 1975 में, संशोधन सहित दूसरी 1988 में, तीसरी बार 2000 में और वर्तमान चौथे राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 में प्रकाशित है। 

वर्त्तमान शिक्षा प्रणाली-परिकल्पना एवं शिक्षा क्रांति

भारत की वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन से खोयी हुई पुरातन गौरव को पुनर्जागृत कर विश्वगुरु में पुनस्र्थापित किये जाने के संकल्प को मूर्त करने हेतु नेशनल कुरिकुलम फ्रेमवर्क (एन.सी.एफ.) 2005 और नेशनल एजुकेशन पॉलिसी 2020 (एन..पि.2020) के आधार पर चलाने के लिए पाठ्यक्रम और शैक्षणिक ढांचे और पाठ्यक्रम रूपरेखा को एक 5+3+3+4 डिजाइन से पुनर्गठित करने की परिकल्पना है ताकि 3-8, 8-11, 11-14 और 14-18 की उम्र के विभिन्न पड़ावों पर विद्यार्थियों के विकास की अलग-अलग अवस्थाओं के मुताविक उनकी रुचियों और विकास की जरूरतों पर समुचित ध्यान देने के लिए क्रमश: फाउंडेशन स्टेज दो भागों में अर्थात् आंगनबाडी/प्री. स्कूल के 3 साल प्राथमिक स्कूल में, कक्षा 1-2 में 2 साल, 3 से 8 वर्षों के बच्चों सहित) प्रिपरेटरी स्टेज (कक्षा 3-5, 8 से 11 वर्षों के बच्चों सहित), मिडिल स्कूल स्टेज (कक्षा 6-8, 11 से 14 वर्षों के बच्चों सहित), और सेकेंडरी स्टेज (कक्षा 9 से 12, दो फेज में, यानी पहले फेज में 9 और 10 और दूसरे में 11 और 12, 14 से 18 वर्षों के बच्चों सहित) शामिल किया जाये। 
माध्यमिक विद्यालय शिक्षा की नई विशिष्ट विशेषता में साल दर साल समग्र विकास और विषयों और पाठ्यक्रमों के विस्तृत चुनाव विकल्पों का होना, पाठ्यक्रम, अतिरिक्त पाठ्यक्रम या सह-पाठ्यक्रम, कला, मानविकी और विज्ञान अथवा व्यावसायिक या अकादमिक धारा जैसी कोई श्रेणियां होना, विज्ञान, मानविकी और गणित के अलावा भौतिक शिक्षा, कला और शिल्प, और व्यावसायिक कौशल, गणित और गणितीय सोच, आर्टिफीसियल  इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, डेटा साइंस और कंप्यूटिंग सोच को विभिन्न प्रकार के अभिनव तरीकों के माध्यम से फॉउण्डेशनल स्तर से शुरू किये जाने की योजना है। 

शिक्षा क्रांति में पतंजलि के बढ़ते कदम

इसी क्रम में पतंजलि संस्थानों के प्रणेता गुरुवरद्वय परम पूज्य श्रद्धेय स्वामी रामदेव जी महाराज और परम पूज्य श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने ईश्वर प्रेरणा और अपने पूज्य गुरुजनों के आशीर्वाद तथा शुभचिंतकों समविचार सहयोगियों को साथ लेकर भारत को फिर से विश्व गुरु बनाने के अभियान में सार्वभौमिक शिक्षा क्रांति हेतु एक आयाम की शुरुआत, सर्वजन शिक्षण-प्रशिक्षण द्वारा निरोगी काया, स्वावलम्बन से बचता माया, विदेशी संस्कृति और संस्कार अनुकरण से उपजे विकृतियों का सफाया जैसे उद्देश्यों को लेकर 1995 में दिव्य योग मंदिर ट्रस्ट बनाकर किया। परम पूज्य स्वामी राम देव जी ने योग-प्राणायाम के सरलीकरण और इस विधा से भी रोग निवारण हो सकता है तथा डॉक्टर से मुक्ति मिल सकती है तथा परम पूज्य आचार्य बालकृष्ण जी ने घर-खेत के आसपास के साधारण से दिखने वाले पेड़-पौधों में भी प्राणदायी औषधि तत्व छिपे हैं, के सन्देश देते हुए जन-जन को स्वयं स्वस्थ्य रक्षण की अनौपचारिक शिक्षा दी, जो धीरे-धीरे विश्व में फैलते हुए योग को अंतराष्ट्रीय योग दिवस घोषित करने के स्तर तक पहुंच गई। परम पूज्य आचार्य बालकृष्ण जी ने जहाँ आयुर्वेद के औषधि निर्माण हेतु विश्वभर में बिखरे हुए साहित्य को संकलित करते हुए केवल आठ सौ के आसपास वनस्पतियों की पहचान की, इससे बढ़ते-बढ़ते आज दस हजार से अधिक पौधों-वनस्पतियों के आयुर्वेद औषधोपचार में प्रयोग के लिए उपयोगी सिद्ध करते हुए आयुर्वेद विश्वकोश ही तैयार कर दिया और दोनों के ये प्रयास ने सभी आयु वर्ग मत-मतान्तर पंथी के साथ-साथ रूढि़वादियों से लेकर आधुनिक मानव को विश्वास कराया कि भारत वास्तव में विश्व गुरु है। जरूरत सिर्फ लगन, मेहनत और और धैर्य के साथ अपने पूर्वजों के विरासत पर विश्वास की है। इस के असर शिक्षा व्यवस्था में भी प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से क्रान्तिकारी परिवर्तन लाने के लिए मजबूत नींव बनकर उभरा।
इस क्रांतिकारी कार्य के लिए जनसमर्थन के लिए भारत स्वाभिमान और हाम्रो स्वाभिमान तथा धन जुटाने और स्वावलम्बन एवं स्वअर्जन के लिए आधुनिक उत्पादन, विपणन, वितरण, संशोधन-परिशोधन अनुसंधान हेतु दिव्य फार्मेसी, पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड, पतंजलि अनुसंधान संस्थान सहित कृषि, कृषि-उपज और खाद्य-प्रसंस्करण, परिवहन, प्रकाशन, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, पौध-रोपण पर्यावरण संरक्षण, वनौषधि संकलन प्रशोधन, सौन्दर्य प्रसाधन आदि इत्यादि अनेकों विधा के निकायों ट्रस्ट, सोसाइटी और कंपनी के रूप में स्थापित कर शुभेक्षुओं से दान और निकायों के अपने कार्य से केवल लाभ अपितु लोगों को रोजगार देकर अवकाश प्राप्त लोगों को अनुभव अनुरूप कार्य उपलब्ध कराकर सनातनी पद्धति के प्रति परोक्ष रूप से तालीम भी दी जा रही है तथा उत्सुकता जगाकर उनके परिवारजनों और बच्चों को वत्र्तमान शिक्षा में सनातनपन के तरफ  मुडऩे और उन तरीकों से सोचने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, यह भी शिक्षा क्रांति में एक अलग आयाम है।
इस प्रक्रिया को प्रत्यक्ष मूर्त रूप देकर अपने निकायों और अन्य संस्थानों में भारतीय मूल्य मान्यताओं के अनुरूप उपयुक्त मानव संसाधन तैयार कर उपलब्धता मजबूत करने के लिए, उच्च शिक्षा के लिए 2009 में उत्तराखण्ड सरकार से पतंजलि विश्व विद्यालय कानून 2009 पारित करा कर योग, योगोपचार, संस्कृत तथा पर्यटन प्रबंधन में स्नातक, परास्नातक, स्नाकोत्तर, पीएचडी (विद्यावाचस्पति) के आयामों के अध्ययन अध्यापन प्रारम्भ कराया। दिसम्बर 2021 में पतंजलि विश्वविद्यालय के भव्य नूतन परिसर को महामहिम राष्ट्रपति द्वारा उद्घाटन कराते हुए घोषित किया गया विश्वविद्यालय में नवीन विधा के कला, विज्ञान, वाणिज्य, प्रबंधन, अभियांत्रिकी, इलेक्ट्रॉनिक्स आईटी, आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस, और जरुरत पडऩे पर रक्षा-उपकरण सम्बन्धी अनुसंधान जैसे आधुनिक संकाय को जल्दी ही प्रारंभ कर इसको विश्व प्रथम अद्वितीय शिक्षण संस्थान बनाया जायेगा।
इसी क्रम में 2013 में आचार्यकुलम् जो सीबीएसई से संबद्ध है तथा 2017 में पतंजलि गुरुकुलम् की स्थापना की गई ताकि परंपरागत वैदिक तरीके से शिक्षा के साथ-साथ नेतृत्व क्षमता बालपन से ही प्रशिक्षित किया जा सके। हाल ही में पतंजलि गुरुकुलम् की नवीन परिसर के भूमि पूजन की गई जहाँ लगभग रु 500 करोड़ के लागत से पाँच हजार बच्चों के आवासीय शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था की परिकल्पना है जो भविष्य के विश्व नेता होंगे।  
पतंजलि के इस प्रकार 2015 में 25 वर्ष पूर्ण होते-होते यौवन में प्रवेश होते ही विश्वास और गहराया की बाल शिक्षा के बिना उच्च शिक्षा बिना नींव के मकान के तरह है, सो समान विचार वाले केंद्र और राज्य सरकारों के नेतृत्व के साथ-साथ शासन-प्रशासन सहित शिक्षा जगत के पुरोधाओं से विचार विमर्श करते-करते उन में यह भावना प्रबल कराया कि भारतीय विद्यालय भारतीयता से ओत प्रोत होने के साथ साथ आधुनिकता में भी उत्कृस्ट होना चाहिये। इस भावना से प्रेरित भारत सरकार ने तत्कालीन मानव संसाधन मंत्रालय के भारतीय शिक्षा बोर्ड स्थापित करने हेतु चयन प्रक्रिया में भाग लेने इच्छुक प्रायोजक निकायों से फरवरी 2019 में मंत्रालय के उच्च शिक्षा विभाग के  स्वायत्त निकाय महर्षि सांदीपनि वेद विद्यापीठ के माध्यम से इच्छा-आवेदन (एक्सप्रेशन ऑफ इंट्रेस्ट) आहूत किया, जिसके सभी शर्तों को पूर्ण करते हुए चयनित पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट द्वारा अप्रैल 2019 में भारतीय शिक्षा बोर्ड सोसाइटी बनाकर सेकंडरी/हायर सेकेंडरी स्तर के स्कूली शिक्षा एवं परीक्षा हेतु भारतीय शिक्षा बोर्ड की गठन की गयी है जिसको अखिल भारतीय मान्यता है। भारतीय शिक्षा बोर्ड से सम्बद्धता एवं परीक्षा हेतु एफिलिएशन बाई लॉज़ और एग्जामिनेशन बाई लॉज़ पारित हो चुके हैं और 5+3+3+4 पैटर्न में एनसीएफ  2005 अनुरूप एन..पी.2020 अनुशंसित एनसीइआरटी अनुमोदित पाठ्यचर्या और सिलेबस अनुरूप उत्कृष्टतम पाठ्य पुस्तकों की तयारी एवं छपाई के प्रक्रिया अंतिम चरण में है।
इस प्रकार पतंजलि ने 1995 से आज तक केवल भारत अपितु विश्व समाज में शनै:-शनै: अभूतपूर्व शिक्षा क्रांति लाकर भारत और भारतीय परंपरा, संस्कार, संस्कृति और वैदिक सनातन पद्धति के गौरव को पुनस्र्थापित करने की प्रक्रिया में चौतर्फी गतिशीलता प्राप्त कर चुका है। पूर्ण विश्वास है की यह गति और तेज होगा, कदम और मजबूती से बढ़ेंगे और गुरुजनद्वय परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज और परम पूज्य आचार्य बालकृष्ण जी महाराज के संकल्प पूर्ण होकर भगवन गौतम बुद्ध द्वारा रोपित सारनाथ के बरगद के पेड़ के तरह संसार और प्रकृति के अनगिनत थपेड़ो को सहन करते हुए अजर अमर होकर बढ़ता ही रहेगा तथा विश्व के सभी क्षेत्र के संस्थानों, निकाओं, शिक्षा और अनुसंधान केंद्रों, वैधशालाओं इत्यादि में पतंजलि शिक्षित-प्रशिक्षित युवा शिर्ष स्थान सुशोभित करेंगे तथा विश्व शांति एवं समृद्धि के दूत बनेंगे।

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