आयुर्वेद के गौरवशाली अतीत, वर्तमान व भविष्य हेतु दान में 100% आयकर छूट का लाभ लेकर इस मानवता के कल्याण के महायज्ञ को शक्ति दें
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आचार्य बालकृष्ण
विगत लगभग तीस वर्षों से हमने बाजार भाव से लगभग आधे, एक चौथाई तथा मोती पिष्टी व हीरक भस्म आदि तो दशांश मूल्य पर उपलब्ध कराये हैं। तुलनात्मक रूप से कहें तो अब तक हम यदि बाजार भाव से दिव्य फार्मेसी की ट्रेडिशनल तथा रिसर्च एण्ड एविडेंस बेस्ड औषधियां उपलब्ध कराते तो हमारे पास कम से कम 10 हजार करोड़ रुपये की सरप्लस मनी होती और हमें आपसे दान मांगने की भी आवश्यकता नहीं होती।
1. हमने व्यापार की भावना से नहीं अपितु उपचार व उपकार की भावना से आयुर्वेद की जो परम्परा महर्षि चरक, सुश्रुत व धन्वंतरि आदि से चली आई थी, उसे शुद्धतम रूप में अक्षुण्ण रखने के साथ ही आयुर्वेद के लुप्तप्राय ग्रन्थों, शास्त्रों व पांडुलिपियों का प्रकाशन, संरक्षण व संवर्धन करते हुए उसे आगे बढ़ाया। आज योग के साथ-साथ पूरे विश्व में आयुर्वेद को उसका खोया हुआ गौरव दिलाने का कार्य पतंजलि ने किया है, इसे पूरी दुनियां मानती है।
योग-आयुर्वेद व स्वदेशी आंदोलन का जब इतिहास लिखा जायेगा तो पतंजलि योगपीठ से पूर्व एवं उसकी स्थापना के बाद के कालखंड की युगों तक विवेचना होगी।
2. हमने वैदिक ज्ञान को वैज्ञानिक अनुसंधान के साथ नया आयाम दिया, भगवान् के अनुग्रह, आप सब देशवासियों के सहयोग व प्रचण्ड पुरुषार्थ व परमार्थ की भावना से 500 से अधिक रिसर्च पेपर्स इन्टरनेशनल जनरल्स में प्रकाशित करके आयुर्वेद को एक वैश्विक गौरव गरिमा के साथ नई ऊँचाई पर प्रतिष्ठित किया है।

पतंजलि रिसर्च इंस्टीट्यूट में सैकड़ों वरिष्ठ वैज्ञानिक रात-दिन कठोर परिश्रम करके नये-नये अनुसंधान कर रहे हैं। इस कार्य हेतु प्रतिवर्ष सैकड़ों नहीं हजारों करोड़ का खर्च होता है। हम सभी देशवासियों से विनम्र आह्वान करते हैं कि आप करोड़ों रोगियों की सेवा के महान् पुण्य कार्य में सहयोग करने के लिए आगे आयें तथा दूसरे समर्थ लोगों को भी इस सेवा के महायज्ञ से जोड़ें व अपने दान पर 100% आयकर में छूट प्राप्त करके सेविंग व सेवा दोनों का पुण्य लाभ प्राप्त करें। पतंजलि एकमात्र संस्था है जिसे आयुर्वेद में रिसर्च व सेवा के लिए 35-1-2 के तहत 100% इनकम टैक्स में छूट दी गई है। इसके साथ ही हम आपको पतंजलि का सदस्य भी बनाते हैं तथा आपको आजीवन पतंजलि की सेवाओं से जुडक़र लाभ प्राप्त करने का सौभाग्य मिलता है।
हम कहते हैं हमारे योग, आयुर्वेद, हमारे वेद, हमारी सनातन संस्कृति महान् हैं। इस संस्कृति की महानता को और यशस्वी बनाने के लिए युगधर्म के अनुरूप कुछ बड़े काम करने की आवश्यकता भी होती है। मुसलमानों के पास तेल की अकूत सम्पत्ति है। इसाईयों के पास भी पूरे यूरोप व यू.एस. आदि में बड़े-बड़े आर्थिक साम्राज्यों से लाखों-करोड़ों का दान प्रतिवर्ष आता है। इसी से वे अपने मदरसे, स्कूल, कॉलेज, मस्जिदें व चर्च बनाकर धर्मान्तरण से लेकर जो चाहें कर सकते हैं।
हमारे पास तो केवल अपना पुरुषार्थ व आप देशवासियों का छोटा-छोटा दान व सहयोग है। क्योंकि भारत के बड़े-बड़े उद्योगपतियों को अपने धर्म व संस्कृति के उत्थान में कोई रुचि नहीं है, न ही हजारों लाखों करोड़ दान करने की उदारता।
हमें विश्वास है कि आप सबके छोटे-छोटे सहयोग व अपने पुरुषार्थ से अर्जित अर्थ से हम परमार्थ की सभी सेवाएं एवं सनातन धर्म को विश्व में प्रतिष्ठापित करने में समर्थ होंगे। बस आपका साथ व आशीर्वाद मिलता रहे।
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