शाश्वत प्रज्ञा

शाश्वत प्रज्ञा

प्रत्येक मनुष्य में अप्रितम प्रतिभा सन्निहित है। इस प्रतिभा के जागरण में सबसे बड़ी भूमिका शिक्षा एवं संस्कारों की है। मानव जाति के इतिहास में आज तक जितनी भी बड़ी घटनाएं हुई हैं उनके मूल में यदि सबसे बड़ा कारण है तो वह शिक्षा ही है। जिस मनुष्य की जैसी शिक्षा-दीक्षा हुई साथ ही जैसा उसको वातावरण मिला वो वैसा ही बन गया। भारतीय शिक्षा बोर्ड के माध्यम से हम शिक्षा के क्षेत्र में एक युगान्तरकारी ऐतिहासिक कार्य करना चाहते हैं।
1- श्रेष्ठतम आधुनिक ज्ञान-विज्ञान, कला- कौशल, नए अनुसंधान एवं नए विश्व के विकास साथ विद्यार्थियों को प्रशिक्षित करके उनकी श्रेष्ठ भूमिका के लिए उनको तैयार करना।
2- श्रेष्ठतम आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ श्रेष्ठतम वैदिक शिक्षा का बोध भी देना जिससे विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास हो सके। बौद्धिक विकास के साथ भावनात्मक, शारीरिक, आत्मिक विकास एवं विभिन्न कुशलताओं में दक्षता और सबसे बड़ी बात सभी प्रकार के नेतृत्व की क्षमताओं का विकास करना, हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है।
3- ईश्वर या प्रकृति प्रदत्त ज्ञान शक्ति, भाव शक्ति एवं क्रिया शक्ति सभी मनुष्यों को भगवान ने समान रूप से दी है। इन तीन शक्तियों को जितना अधिक हम जागृत कर पाते हैं उतनी ही मात्रा में व्यक्ति के व्यक्तित्व या प्रतिभा का विकास हो पाता है। हमारा वैदिक शिक्षा बोर्ड के माध्यम से लक्ष्य होगा कि शिक्षा में ऐसी पद्धति, प्रक्रिया एवं साधनों को विकसित किया जायें कि विद्यार्थी को पूर्ण ज्ञान के साथ श्रेष्ठ कुशलताओं एवं मानवीय मूल्यों की श्रेष्ठ दिव्यताओं के साथ एक पूर्ण विकसित मानव के रूप में या दिव्य विश्व नागरिक के रूप में तैयार किया जा सकें।
4- स्वयं एव समष्टि को जानना, जगाना एवं श्रेष्ठ दिव्यताएं या पूर्णताएं पाना शिक्षा का ध्येय है। यद्यपि इसमें प्रारब्ध, पुरुषार्थ, वातावरण, प्रशिक्षण एवं प्रशिक्षा की एक बहुत बड़ी भूमिका है। फिर भी हमारी प्राथमिकताओं, वेग या गति तथा युग धर्म की भी बहुत बड़ी भूमिका होती है। 
5- एक बार भी हम अशुभ का स्वागत नहीं करें तथा शुभ का निरादर नहीं करें। अज्ञान एवं अज्ञानजनित दुर्विचार, दुर्भावना एवं दुष्कर्म से दूर रहकर सद्ज्ञान, सदभाव एवं सद्कर्म में सदा प्रवृत्त रहें। विद्याभ्यास, श्रेष्ठ व्रताभ्यास, श्रेष्ठ कुशलताओं का अभ्यास एवं श्रेष्ठ भाषाओं का अभ्यास अर्थात् कम से कम 3 से 5 विश्व भाषाओं का बोध भी हमारा ध्येय है जिससे कि जीवन में सफलताओं, विजय एवं श्रेष्ठ उपलब्धियों के साथ हम भारत एवं भारतीयता का यश पूरे विश्व में बढ़ा सकें। शिक्षा, स्वाभिमान, स्वावलम्बन, संस्कार, बाह्य आन्तरिक समृद्धि (अभ्युदय नि:श्रेयस) हमारा ध्येय है।
स्वामी रामदेव  

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