परम पूज्य योग-ऋषि श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य ...

परम पूज्य योग-ऋषि श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य ...

जीवन सूत्र
(1) जीवन का निचोड़/निष्कर्ष- जब भी बड़ों के पास बैठते हैं तो जीवन के सार तत्त्व की बात होती है। कुछ निष्कर्ष साररूप में यहाँ लिख रहे हैं। यू तो जीवन अनादिकाल से चल रही तथा अनन्तकाल तक चलने वाली एक शाश्वत प्रक्रिया प्रवाह या प्रकृति परेश्वर के नियमों का विधान हैं। इसमें कुछ अति महत्त्वपूर्ण मुद्दे मूल्य या आदर्शों को यहां रख रहे हैं। 
श्रेष्ठतम जीवन - प्रथम कोटि का श्रेष्ठतम जीवन है- एक बार भी अशुभ में प्रवृत्त नहीं होना। आहार विचार, वाणी, व्यवहार स्वभाव सम्बंध, आचरण के स्तर पर पूर्ण निर्दोष जीवन जीना। एक बार भी त्रुटि होने से गलत टेंडैंसी प्रवृत्ति निर्मित हो जाती और ये जन्म जन्मान्तरों तक दुःख देती है। इसलिए एक बार भी झूठ नहीं बोलो, चोरी नहीं करो, दुराचार नहीं करो तो जीवनभर के लिए दूसरों का भरोसा खत्म हो जायेगा तुम्हारा सैल्फ कोंफीडेंस भी हिल जायेगा। एक क्षण भी अशुभ में प्रवृत्त नहीं हो यह प्रवृत्ति आदत स्वभाव बन जायेगा। पूर्ण शुद्ध निर्दोष जीवन प्रथम कोटि का एक बार भी गलती हुई तो द्वितीय श्रेणी का बार-2 गलती करना तृतीय व चतुर्थ थर्ड फोर्थ क्लास लाइफ ये कम है।
पुरुषार्थ - जीवन का श्रेष्ठतम तत्त्व है पुरुषार्थ पूरा जीवन पुरुषार्थ का सार व विस्तार है जीवन। धर्मार्थ काम मोक्ष ये पुरुषार्थ चतुष्टय हैं। प्रमाद ये तो जीते जी मृत्यु है। सारे पाप अपराध पतन की जड़ है। किसी भी स्तर पर किसी भी तरह का प्रमाद होना ही नहीं चाहिए। योग- स्वस्थ, सुख, समृद्धि, शन्ति, सफलता विजय का मूलाधार है। जीवन का निर्माण व अन्तिम तत्त्व निर्वाण का मूल तत्त्व है योग। 
सम्पत्ति-वैल्य-प्रोस्पेरिटी- संसार में हर व्यक्ति वैल्थ क्रियेशन में लगा है धन दौलत सम्पत्ति साम्राज्य बढ़ा रहा है। अर्थ पैसा करेंसी बैंक बलैंस के साथ-साथ पारमार्थिक अर्थ दैवी सम्पद, नवधा भक्ति, ज्ञानधन, रामधन, सेवाधन, प्रेमधन, आनन्द धन, योगधन, न योगात् परंधनम्, न योगात् परं बलम् न योगात् परं सुखम्, जीवन के व्यवहारिक पारमार्थिक दोनों तत्त्वों को एक साथ साधने की आवश्यकता है। 
बहिष्कार - सिंथेटिक दवा चिकित्सा की गुलामी दासता, शिक्षा की गुलामी मैकाले की शिक्षा पद्धति, आर्थिक गुलामी, वैचारिक सांस्कृतिक गुलामी रोग भोग नशा वासना की गुलामी पराधीनता दासता से देश को मुक्ति दिलाने हेतु सब देशवासियों को साहस के साथ सामूहिक रूप से इसका बहिष्कार करना होगा जब सर्वश्रेष्ठ शिक्षा चिकित्सा अर्थ व्यवस्था व जीवन पद्धति का सनातन विकल्प हमारे पास है तो फिर घटिया का चुनाव क्यों? इसके लिए बहुत बड़े आंदोलन की आवश्यकता है, सौ करोड़ से अधिक जागरूक सनातन धर्मियों को संगठित व शक्तिशाली रूप से ओजस्विता शौर्य पराक्रम के साथ उण्दण्ब व सनातन विरोधी सभी राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय ताकतें के विरूद्ध लड़ना व जीतना होगा। 
योग करना कराना- योग करना कराना है तथा योग को जीवन में जीना है। योग ही जीवन का आधार व मंजिल है। योग ही जीवन का सबसे बड़ा प्रयोजन, उपयोगिता, उपलब्धि, गन्तव्य, मन्तव्य, कर्त्तव्य, साधना, सिद्धान्त, साध्य व अराध्य है। 
स्वामी रामदेव

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