परम पूज्य योग-ऋषि श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से निःसृत शाश्वत सत्य...
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शाश्वत प्रज्ञा
संन्यासी, समृद्धि, सेवा
संन्यास क्या है? निवृत्ति मूलक प्रवृत्ति, निष्काम होकर सब काम करना, नि:श्रेयस मूलक अभ्युद्य, प्रार्थना मूलक पुरुषार्थ, शान्तिमूलक क्रान्ति, विश्राम मूलक श्रम, विनय मूलक वीरता, भाव मूलक अभाव (त्याग), अकर्ता मूलक कर्म, संस्कृति मूलक समृद्धि, साधना मूलक सेवा, व्यवहारिकता मूलक पारमार्थिकता, इसी प्रकार व्यक्त-अव्यक्त, मूर्तामूर्त, ज्ञाताज्ञात, भौतिकता एवं आध्यात्मिकता को जो एक साथ जीता है वह सच्चा आदर्श संन्यासी है। जो पूर्ण आसक्त है धर्मार्थ काम मोक्ष के साधनों व अंतत: भगवान्, सत्य एवं परम सत्य में तथा जो पूर्ण अनासक्त है अज्ञान, अश्रद्धा एवं अकर्मण्यता, प्रमाद व प्रमादजनित समाप्त दोषों में दुर्बलताओं आकर्षणों व प्रलोभनों में जिसमें पूर्ण राग एवं पूर्ण वैराग्य है या अभ्यास या वैराग्य है, वह सात्विक संन्यासी है।
समृद्धि- जब एक ज्ञानवान, विवेकी एवं श्रद्धावान, निष्ठावान् संन्यासी ज्ञान एवं भक्तिपूर्वक भगवान की पूजा मानकर पुरुषार्थ कर्म करता है तो परिणामत: अर्थ, समृद्धि, ऐश्वर्य, धन-दौलत, सफलता, विजय या साम्राज्य खड़ा हो ही जाता है। यह भगवान् की कर्मफल, न्याय व्यवस्था, भगवान् का विधान या कर्म का विधान है या यूनिवर्सल लॉ है। इसे कोई भी बदल नहीं सकता। हाँ, यह एक बहुत बड़ा सत्य है कि संन्यासी की समृद्धि का उपयोग सेवा में ही होता है, यह भी एक शाश्वत सत्य है। इसीलिए मैं बार-बार कहता हूँ कि पुरुषार्थ से अर्जित अर्थ का प्रयोग परमार्थ के लिए होना चाहिए और पतंजलि की पूरी यात्रा पुरुषार्थ से परमार्थ की है, प्रोस्पेरिटी फोर चैरिटी की है।
सेवा- सेवा एक बहुत बड़ा नैसर्गिक सत्य है। मनुष्य बटोरकर नहीं बांटकर सुख अनुभव करता है, सामूहिक पुरुषार्थ व समष्टि के विश्वास व सुविधामूलक सेवा से व्यक्ति समृद्ध सम्पन्न या धनवान् बनता है और अन्तत: उस धन का उपयोग समष्टि की सेवा में ही होना चाहिए, यही सृष्टि क्रम या सृष्टिचक्र है और प्रत्येक विवेकी व्यक्ति को इसका सम्मान करना चाहिए जो ऐसा नहीं करेगा फिर प्रकृति के नियम के अनुसार उसकी समृद्धि शीघ्र ही नष्ट भी हो जायेगी। अत: प्रत्येक व्यक्ति भगवान् की व्यवस्था का सम्मान करते हुए सेवा को अपना परम धर्म मानना चाहिए। सम्पूर्ण सृष्टि स्वाभाविक रूप से नि:स्वार्थ सेवा में लगी हुई है। सूर्य, चन्द्र, पृथ्वी, पेड़, पौधे, वनस्पतियाँ सब सबके कल्याण में लगे हैं। आइये! चाहे हम संन्यासी है या संसारी, जीवन के मूल सिद्धांत व सत्य तो सबके लिए एक जैसे ही हैं।
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