यज्ञ एक चिकित्सा विज्ञान

यज्ञ एक चिकित्सा विज्ञान

स्वामी यज्ञदेव

 वैदिक गुरुकुलम्

यज्ञ एक नैनो टेक्नोलॉजी-

वर्तमान समय नैनो टेक्नोलॉजी का समय है ऐसा कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि नैनो टेक्नोलॉजी के माध्यम से पदार्थों को तोड़कर के सूक्ष्म से सूक्ष्मतर सूक्ष्मतम कर उसके अन्दर प्रसुप्त शक्तियों को उजागर करके थोड़े पदार्थ से अनन्त असीम लाभ प्राप्त करने की एक अनोखी विधा प्राचीनकाल से ही चली रही है, वह हैयज्ञ आइये जानते है कैसे?
आयुर्वेद में सामान्य रूप से बीमार व्यक्ति को वटी, चूर्ण, आसव, अरिष्ट आदि औषध देकर के नैरोग्य के लिए प्रयास किया जाता है। लेकिन जब असाध्य कोटि में जब रोग पहुंच जाता है या फिर वटी आदि दवाओं का प्रयोग प्रभाव नहीं दिखाता है उस समय आयुर्वेद के वैद्य रस-रसायन विद्या अर्थात्नैनो टेक्नोलॉजीका प्रयोग जिसको सामान्य रूप से भस्म कहा जाता है, उसका प्रयोग लेते है असाध्य कोटी के रोगियों को भी तुरन्त आरोग्य प्रदान करने का कार्य संभव या सम्पन्न हो पाता है! क्यो?
क्योंकि सामान्य रूप से ली गयी औषध ठोस या द्रव रूप में है, जो नैनो नहीं अर्थात् उसके अन्दर छिपी प्रसुप्त शक्तियाँ पूर्णरूप से जागृत अवस्था में नहीं है। तो उस कार्य को अर्थात् प्रसुप्त अवस्था में स्थित शक्तियों को उभारने के लिए जिस रोग के लिए जिस औषध द्रव्य की आवश्यकता होती है, उसको पहले जलाकर भस्म बना दिया जाता है। अर्थात् उतनी सूक्ष्म की हथेली पर रखकर फूक मारे तो भी उडक़र के वायुभूत हो जाये ऐसा सूक्ष्म बना दिया जाता है। फिर भी हम उन कि शक्ति को पूर्णत: उद्भूत नहीं कर पाते अत: तब उस भस्म को खरल करके उनके पार्टीकल (कणों) को तोड़ा जाता है। यहां तक कि कई-कई कुट दी जाती है बार-बार उस पदार्थ को कई दिनों तक निरन्तर खरल कर सूक्ष्म से सूक्ष्मतर सूक्ष्मतम रूप में पार्टीकलों को तोड़ दिया जाता है और जैसे-जैसे अधिक खरल किया जाता है उतना ही उतना पार्टीकल टूटता है, उतना ही ज्यादा सूक्ष्म हो जाता है जितना सूक्ष्म से सूक्ष्मतर सूक्ष्मतम पदार्थ होता जाता है उतना ही उसके अन्दर प्रसुप्त शक्ति उद्भूत होती चली जाती है और एक ऐसी स्थिति में जाती है, जो सबसे शक्तिशाली पदार्थ के रूप में परिवर्तित हो जाता है। अत: वैद्य उस औषध को कुछ चंद ग्राम में देता है उसकि भी साठ पुडिय़ाँ बनाकर एक माह के लिए देता है तथा वह इतना शक्तिशाली पदार्थ के रूप में जाता है कि जब कोई दवाई काम नहीं करती या मरणासन असाध्य कोटि के रोगी को भी तुरन्त स्वस्थ कर देती है। ऐसी अद्भुत शक्ति में परिणित हो जाती है यह है, हमारे आयुर्वेद शास्त्र कि नैनो टेक्नोलॉजी।
इसी प्रकार होम्योपैथी को देखे तो मात्र 200 साल पुरानी पैथी है, वह भी आज समाज में बढ़चढ़ कर लोकप्रिय हो रही है, उसका तो मूल सिद्धान्त ही नैनो टेक्नोलॉजी है। होम्योपैथी में भी जिस पदार्थ कि हमें आवश्यकता होती है, उस गुण, कर्म, स्वभाव वाले पदार्थ को आसुत जल (डिस्ट्रील वाटर) के माध्यम से पदार्थ को नैनो किया जाता है, सूक्ष्म किया जाता है। वह इतना सूक्ष्म हो जाता है। कि इलेक्ट्रॉन के रूप में कन्वर्ट हो जाता है, जिसका सेवन करने पर उसी समय तुरन्त परिणाम देने वाली हो जाती है, क्योंकि पदार्थ नैनो हो गया, नैनो में शक्ति होती है।
उसी प्रकारयज्ञभी पूर्णत: सरलतम पदार्थों को नैनो करने कि अमोघ विधा विद्या है। धरती पर जितने भी पदार्थ पाये जाते हैं, उसमें से सबसे सूक्ष्म से सूक्ष्मतम कोई पदार्थ है, तो वह हैअग्नि धरती में तीन रूपों में पदार्थ पाये जाते हैं- ठोस, द्रव्य और गैस। इनमें ठोस पदार्थ कठोर से कठोर पत्थर को ले और उस पत्थर के अन्दर पानी डालना चाहे तो नहीं डाल सकते, हवा को उस पत्थर के अन्दर डालना चाहे तो नहीं डाल सकते, इसी प्रकार कील आदि उस कठोर ठोस पत्थर में डालना चाहे तो नहीं डाल सकते अर्थात् ठोस ठोसतम पत्थर के अंदर कोई जगह नहीं है, उसके अन्दर कोई भी ठोस-द्रव्य-गैस तीनों में से किसी का भी प्रवेश नहीं करा सकते। कोई उसके अंदर प्रवेश पायें ऐसी सम्भावना तक नहीं है। लेकिन उस कठोर पत्थर को अग्नि के ऊपर रख दे, तो वह अग्नि उस पत्थर के अणु-परमाणु के अंदर तक प्रवेश पा जाती है। इसी प्रकार द्रव पदार्थ, जल वायु के भी अणु-परमाणु के अन्दर अग्नि प्रवेश पा जाती है। अर्थात् धरती पर सबसे सूक्ष्म कोई पदार्थ है, तो वह है अग्नि। उस अग्नि का एक विशेष स्वभाव होता है, कि उसके सम्पर्क में जो भी पदार्थ आता है, उसको अपने जैसा बना लेती है अर्थात् सूक्ष्मतम बना देती है। जैसे अग्नि में समीधा (लकड़ी) की आहुति देते है, तो वह अग्निस्वरूप हो जाती, इसी प्रकार घी (घृत) जड़ी-बूटियों को अग्नि में आहुत करते है, तो वह भी उतना ही सूक्ष्म हो जाती है और जो पदार्थ जितना ज्यादा सूक्ष्म होता है, उतना ही ज्यादा शक्तिशाली बड़ा परिणाम देने वाला हो जाता है।
अत: अग्नि में जो भी पदार्थ डाला जाता है वह रूपान्तरित हो जाता है। उसका नाश नहीं होता (सर्वथा अभाव नहीं होता) अपितु कण (पार्टीकल) वायु (गैस) एवं ऊर्जा (एनर्जी) के रूप में रूपांतरित-परिवर्तित हो जाता है। नाश शब्द ‘‘नश अदर्शनेधातु से अदर्शन अर्थ में है अर्थात् पहले हमें यज्ञ का सामान दिखायी दे रहा है जैसे- घी, समिधा, जड़ी-बूटी आदि, जब उसे अग्नि में आहुत कर देते है, तो वह अग्नि जैसा ही सूक्ष्म हो जाता है। (कण, गैस ऊर्जा में रूपांतरित हो गया), उसका सर्वथा अभाव नहीं हुआ। जैसे हमारे पास एक पात्र में जल रखा है, उसे अग्नि पर रख दिया (सौ डिग्री पर गर्म करते है) तो वह वाष्प बन जाता है, वह पात्र खाली हो जाता है। पात्र में जो पानी दिख रहा था, वह अब नहीं दिख रहा है। क्या हम कह पायेंगे कि यह पानी नष्ट हो गया, नहीं क्यों कि वह वाष्प रूप में रूपातंरित हो गया, उसका सर्वथा अभाव नहीं हुआ। इसी प्रकार हर कोई पदार्थ रूपांतरित होता है, उसका सर्वथा अभाव नहीं होता है, यही नाश शब्द का शाब्दिक वास्तिवक अर्थ है। इसी को स्पष्ट करते हुए ‘‘महर्षि कपिलने सांख्य दर्शन में ‘‘नाश: कारणलय:’’ सूत्र दिया है- जिसका का अर्थ है- अपने कारण में लय हो जाना अर्थात् अनन्त ऊर्जा में रूपांतरित हो जाना, जो ऊर्जा सबसे ज्यादा प्रभावित परिणाम देने वाली होती है। हमारे स्थूल शरीर के साथ मन पर तो उसका चिकित्सकीय प्रभाव पड़ता ही है, लेकिन उसके साथ-साथ हमारे सूक्ष्म शरीर एवं पंच-कोश अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय एवं आनन्दमय पर भी चिकित्सकीय प्रभाव पड़ता है एवं पंचप्राण तथा पंच उपप्राणों का पोषण अष्टचक्रों-मूलाधार से लेकर सहस्रार पर्यन्त प्रभावी रूप से सत्व का संचार कर मानवीय चेतना का उत्कर्ष कर अतिमानस चेतना से युक्त करने का कार्य भली प्रकारयज्ञचिकित्सा से सम्भव होता है।
 

 द्रव्य यज्ञ, योग यज्ञ एवं ज्ञान यज्ञ का त्रिवेणी संगम यज्ञमहोत्सव

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