भू हरीतिमा, स्वास्थ्य पूर्णिमा: तुलसी महिमा
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प्रफुल्ल चंद्र कुँवर ‘बागी’
रेशमी शहर, भागलपुर, बिहार
तुलसी मुख से सुनो जुबानी,
वह कहती है राम कहानी।
मैं औषधियों की हूँ रानी।।1।।
अति मनभावन, मैं हूँ पावन,
मेरे खातिर हर दिन सावन।
रोकूँ मैं ही सकल संक्रमण,
क्षण में थामूँ रोग-आक्रमण।।
मैं हूँ लक्ष्मी-सम विष्णु-प्रिया,
राधारानी, रुक्मिणी, सिया।
जड़, तना, पत्र, फल, पुष्प, बीज,
सबमें सेहतकर है तमीज।।
मैं राधा के मन की पीड़ा,
रसखान मही सुरसरि तीरा।
औषधियों का अमूल्य हीरा,
घर-आँगन में करती क्रीड़़ा।।
हर घर की माताएँ हुलसी,
निर्जल रहकर जल दें तुलसी।
फिर भी दिखती है हँसी-खुशी,
तुलसी अँगना, अँगना तुलसी।।
तुलसी का क्षुप इतना पावन,
श्रीकृष्ण बसे नित वृन्दावन।
भारत के हर घर में वृन्दा,
नित भारतीय संस्कृति जिन्दा।।
लता-बेल, शाक खानदानी,
भूतल वासी, तरु-पटरानी।
मैं औषधियों की हूँ रानी।।2।।
पड़ती पत्ती जब सूर्य-किरण,
पर्णहरित करता संश्लेषण।
दूषित कार्बन कर अवशोषण,
स्वयं बनाता अपना भोजन।।
दिनभर पीता वह कालकूट,
यह क्रम चलता रहता अटूट।
बदले में देते प्राण-पवन,
जिससे भू पर चलता जीवन।।
ये नीलकंठ कर पान गरल,
भूदेव चखे नित अमरित फल।
मैं लघु क्षुप रह कर घर-आँगन,
निशिदिन बाँटूँ विरल ओसजन।।
देती माताएँ नित पानी,
मैं भी रखती परिजन-पानी।।
मैं औषधियों की हूँ रानी।।3।।
तरु की पत्तियाँ कारखाना,
मनुज स्वास्थ्य का मूल खजाना।
जिसने पत्रक गुण पहचाना,
हों शतायु तन भले पुराना।।
पत्तों में रहते रंध्र सघन,
जिससे हर क्षण हो वातायन।
हर तृण-क्षुप-तरु नित करें श्वसन,
अधिकाधिक जल का उत्सर्जन।।
पत्तियाँ पेड़ की हैं साया,
निर्वस्त्र ताकि ना हो काया।
चहुँदिश छतरी बन छितराया,
देती हर राही को छाया।।
खाकर तुलसी, मिश्री, माखन,
गोकुल बीता कान्हा बचपन।
वन-उपवन में चर गोपालन,
हर कष्ट नष्ट, कर दुष्ट दलन।।
हर पद रखती याद जुबानी,
मैं मीरा-जैसी दीवानी।
मैं औषधियों की हूँ रानी।।4।।
मैं ही केवल ऐसी झाड़ी,
होता विवाह, न रहूँ कुँवारी।
आँगन शोभा डेढ़ी-द्वारी,
बनता मंदिर, ठाकुरबाड़ी।।
मैं तुलसी की मानसहंसा,
करते पाठक बड़ी प्रशंसा।
वैद्यराज करते अनुशंसा,
पूरा करती हर की मंशा।।
नित पवित्र हो, मुझको तोड़ें,
लेकिन पूर्व उभय कर जोड़ें।
योगी फेरें मेरी माला,
भोजन-प्रसाद लें दल डाला।।
मैं हूँ तुलसी बड़े काम की,
सेवा करती भक्तराम की।
मिलती हरपल बिना दाम की,
मुख-शुद्धि मैं सुबह-शाम की।।
तरुवर के पत्ते शाक पाक,
आचार्यश्री-मुख बढ़ी धाक।
हरसिंगार, नीम, अलोविरा,
ब्राह्मी, ज्वारे का भाग्य फिरा।।
मैं हूँ भारत-स्वाभिमानी,
किस औषधि से मेरा सानी?
मैं औषधियों की हूँ रानी।।5।।
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