कार्डियोग्रिट  गोल्ड  हृदय को रखे स्वस्थ

कार्डियोग्रिट  गोल्ड  हृदय को रखे स्वस्थ

डॉ. अनुराग वार्ष्णेय   
उपाध्यक्ष- पतंजलि अनुसंधान संस्थान

   हमारे हृदय में एक तरह का विशेष इलेक्ट्रिकल सिस्टम है जिसे कार्डिएक कंडक्शन सिस्टम कहा जाता है, यह सिस्टम ही है जो हमारे हृदय की मॉनटरिंग (ईसीजी) के समय ऊँची नीची लाइन्स देता है इसके अलावा हमारे दिल की धडक़न की आने वाली आवाज, हमारे हृदय में मौजूद वाल्व्स के खुलने और बंद करने की आवाज है। हमारे शरीर के प्रत्येक भाग तक रक्त को पहुंचने वाली रक्त वाहिकाओं को अगर लम्बा कर फैला दिया जाए तो यह लगभग 1 लाख किलोमीटर होगी। यह लगभग उतनी ही लम्बाई है कि हम अपनी पूरी धरती को 2 से अधिक बार लपेट सकें। हमारे शरीर की लगभग सभी कोशिकाएं विभाजित होती रहती हैं, परन्तु हृदय की सेल्स का विभाजन नहीं होता, इसलिए हृदय का कैंसर होने की संभावनाएं नगण्य होती है।
एलोपैथिक दवाइयों का हृदय पर दुष्प्रभाव
एलोपैथिक दवाइयों से हमारे पूरे शरीर को ही नुकसान पहुँचता है और इनके बहुत अधिक दुष्प्रभाव होते हैं। हृदय पर पडऩे वाले दुष्प्रभावों को कॉर्डियो टॉक्सिसिटी कहा जाता है। इन दवाइयों के दुष्प्रभाव के कारण हृदय के कार्डिएक फंक्शन्स में कमी आती है। हृदय का एक महत्वपूर्ण कार्डिएक फंक्शन लेफ्ट वेंट्रिकल इजेक्शन फंक्शन (एलवीइएफ) है। वैसे तो सभी प्रकार की एलोपैथिक दवाइयों के दुष्प्रभाव है परन्तु तनाव, अवसाद, चिंता और कैंसर की दवाइयों के द्वारा होने वाली कार्डिएक टॉक्सिसिटी सामान्य और प्रत्यक्ष है क्योंकि एक लम्बे समय तक इन दवाइयों का सेवन रोगियों को करना पड़ता है। इन दवाइयों से होने वाली कार्डिएक टॉक्सिसिटी में लेफ्ट वेंट्रिकल फेलियर, मायोकार्डियल इस्किमिया, क्यू.टी. (QT) प्रोलोंगेशन, पेरिकार्डिटिस और मायोकार्डिटिस प्रमुख हैं। कैंसर के रोगियों में प्राय: देखा जाने वाला असिम्पटोमैटिक डायस्टोलिक डिसफंक्शन, कार्डिएक टॉक्सिसिटी का एक प्रमुख लक्षण है।
कार्डिएक टॉक्सिसिटी के कारण एलोपैथिक दवाओं को बाजार से हटाना पड़ा
पिछले 4 दशकों में एलोपैथिक की 10% से अधिक दवाइयों को कार्डिएक टॉक्सिसिटी की वजह से बाजार से हटाना पड़ा है, वहीं कार्डिएक टॉक्सिसिटी की लगभग 48 प्रतिशत से अधिक स्थितियों में इसकी वजह कैंसर रोधी दवाइयों के सेवन को पाया गया।
कार्डियोग्रिट के मुख्य  घटक
कैंसर की एलोपैथिक दवाई डॉक्सोरुबिसिन (डॉक्स) कैंसर कोशिकाओं के डीएनए को एक कर, कैंसर कोशिकाओं को आगे बढऩे से रोकने में मददगार है। परन्तु इस दवाई का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव हृदय कोशिकाओं के ऊपर होता है। इन्हीं दुष्प्रभावों के कारण कई बार आपात परिस्थितियों में कार्डिएक टॉक्सिसिटी की वजह से कैंसर की इस दवाई को ही रोगियों को देना बंद कर दिया जाता है।
इसी समस्या से निराकरण के लिए आयुर्वेद के प्राचीन ज्ञान को आधार बना कर पतंजलि द्वारा कार्डियोग्रिट गोल्ड टेबलेट का निर्माण किया गया। यह औषधि योगेंद्र रस, अर्जुन, मोती पिष्टी, जहरमोहरा पिष्टी, अकीक पिष्टी, संगेसव पिष्टी आदि प्रमुख जड़ी-बूटियों से बनी है। इस औषधि के द्वारा एलोपैथी दवाई के दुष्प्रभावों को समाप्त कर स्वस्थ हृदय की परिकल्पना को साकार किया जा सकता है।
कार्डियोग्रिट पर पतंजलि का अनुसंधान
हर बार की तरह इस बार भी सर्वप्रथम विभिन्न तकनीकों के द्वारा इस औषधि का रासायनिक विश्लेषण किया गया जिससे इसकी सही संरचना के बारे में पता किया जा सके। 
तत्पश्चात यह अध्ययन किया गया कि इस औषधि का ही कोई दुष्प्रभाव तो नहीं है, इसके लिए चूहों के हृदय के कुछ विशेष कोशिकाओं को प्रयोगशाला में तैयार किया गया जिससे पता चला कि कार्डियोग्रिट गोल्ड का कोई भी दुष्प्रभाव नहीं है वहीं डॉक्सोरुबिसिन देने पर यही कोशिकाएं मरना शुरू हो जाती हैं। अनुमानित रूप से डॉक्सोरुबिसिन की 1 माइक्रो मोलर डोज की वजह से लगभग 40त्न तक कोशिकाएं मर जाती हैं। 
इसके बाद यह देखने की कोशिश की गई कि डॉक्सोरुबिसिन और कार्डियोग्रिट गोल्ड का सेवन अगर साथ में किया जाए तो क्या एलोपैथिक दवाई डॉक्सोरुबिसिन के दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है, इस पर अध्ययन में भी सफलता प्राप्त हुई। इस अध्ययन से इस बात की भी पुष्टि हुई कि कार्डियोग्रिट गोल्ड कार्डिएक टॉनिक के रूप में कार्य करता है। उसके बाद यह देखने का प्रयास किया गया कि इन कोशिकाओं में परिवर्तन के मूल कारक क्या है। इसके लिए जीन एक्सप्रेशन को आधार बनाया गया। इस शोध में यह पाया गया कि कार्डियोग्रिट गोल्ड डोज डिपेंडेंट तरीके से डॉक्सोरुबिसिन के कारण होने वाली कोशिकाओं की मृत्यु को भी कम करता है।
आयुर्वेदिक औषधि कार्डियो ग्रिट ने डॉक्सोरुबिसिन के कारण होने वाली सूजन को भी कम किया। इस तथ्य की पुष्टि इन्फ्लेमेशन के मार्कर्स आईएल-6, एल-1, एनएफ-कापा बी को मापा गया जिससे ज्ञात हुआ कि कार्डियोग्रिट गोल्ड के डोज अनुसार प्रयोग से इनके स्तर में कमी आई। तत्पश्चात यह भी देखा गया कि क्या कार्डियोग्रिट गोल्ड का कोई दुष्प्रभाव कैंसर के हानिकारक सेल्स पर तो नहीं हो रहा, अर्थात क्या कार्डियोग्रिट गोल्ड कैंसर की कोशिकाओं को बिना प्रभावित किये हृदय को स्वस्थ रख पाने में समर्थ है। इसके लिए कैंसर की टी 24  कोशिकाओं, फेफड़ो के कैंसर की ए-549 कोशिकाएं और स्तन कैंसर की एमडीए - एमबी 231 कोशिकाओं पर शोध कर यह पाया गया कि कार्डियोग्रिट गोल्ड के सेवन से डॉक्सोरुबिसिन की अपनी प्रभावशीलता समाप्त नहीं होती, इसका मात्र दुष्प्रभाव समाप्त होता है।
इसके पश्चात सी. ऐलेगन्स पर कार्डियोग्रिट के प्रभावों की जांच की गई। सी. एलेगंस में हृदय जैसा ही एक अंग होता है जिसे फेरिंग्स कहा जाता है, यह हृदय के समान ही धडक़ता है, और इसकी इलेक्ट्रिकल एक्टिविटीज को भी नापा जा सकता है। सी. ऐलेगंस की इस प्रक्रिया को फैरेंजिअल एक्शन पोटेंशियल कहा जाता है। इन जीवों पर शोध में यह पाया गया कि डॉक्सोरुबिसिन के सेवन से इनकी मृत्यु दर में बढ़ोतरी हुई वहीं प्रजनन क्षमता में कमी आई।
इस अध्ययन के लिए इन पारदर्शी जीवों में सर्वप्रथम डॉक्सोरुबिसिन दवाई को रोपित किया गया, जोकि लाल रंग की होती है, जिससे इन जीवों में लाल रंग के धब्बे उभर आए, तत्पश्चात कार्डियोग्रिट गोल्ड देने पर इन धब्बों में कमी आई जिससे इस आयुर्वेदिक औषधि की प्रभावशीलता की पुष्टि हुई। इसके बाद रासायनिक शोध के द्वारा भी इस शोध को सत्यापित किया गया। 
तदोपरांत एक बार पुन: यह सत्यापित करने के लिए कि कार्डियोग्रिट गोल्ड इन जीवों पर प्रभावकारी है, इन जीवों में कैल्शियम का स्तर नापा गया, क्योंकि यह औषधि विभिन्न भस्मों से तैयार की गई थी, इसलिए इसमें कैल्शियम का स्तर ज्यादा होना स्वाभाविक ही था। जिससे इस बात की पुष्टि हुई कि इन जीवों में डोज डिपेंडेंट तरीके से कैल्शियम का स्तर बढ़ रहा है। इसके बाद हीट शॉक प्रोटीन को आधार बना कर डॉक्सोरुबिसिन के कारण हृदय में बनने वाली ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को भी मापा गया और कार्डियोग्रिट गोल्ड ने इस स्ट्रेस को भी खुराक की मात्रा के आधार पर कम कर, अपनी प्रभावशीलता को एक बार फिर से सिद्ध किया। साथ ही साथ कार्डियोग्रिट गोल्ड ने इन जीवों के खराब फैरिंग्स को भी डोज डिपेंडेंट तरीके से ठीक किया। 
इन सभी शोध से इस बात की पुष्टि होती है कि कार्डियोग्रिट गोल्ड हृदय के लिए एक उत्तम औषधि है, और इसके सेवन से एलोपैथिक दवाइयों से हुई हानि को भी ठीक किया जा सकता है।

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