जल चिकित्सा के चमत्कारिक सरल प्रयोग जो रोग मुक्त करते हैं

जल चिकित्सा के चमत्कारिक सरल प्रयोग जो रोग मुक्त करते हैं

डॉ.  नागेन्द्र कुमार नीरज,  
निर्देशक व चिकित्सा प्रभारी
योग-प्राकृतिक-पंचकर्म चिकित्सा एवं अनुसंधान केन्द्र (योग-ग्राम)
पतंजलि योगपीठ, हरिद्वार (उत्तराखण्ड)

   प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में सर्वाधिक जल चिकित्सा का प्रयोग किया जाता है। जल चिकित्सा के कुछ सरलतम प्रयोग प्रस्तृत लेख में समाहित किया गया है।
उपर्युक्त बताये गये प्रयोग डॉक्टर के निर्देशन व सलाह से ही करें। यहाँ जल चिकित्सा के चिकित्सकीय महत्ता की जानकारी दी गयी है। अर्थव वेद, ऋग्वेद तथा यजुर्वेद में जल को अमृत तथा विश्वभेषज कहा गया है। ‘‘अप्सुन्तरमृतं अप्सुभेषजम्’’ तथा आप इद्धाउ भेषजीरापो अभीव चातनी:। आपो विश्वस्य भेषजीस्तास्ते कृण्वन्तु भेषजम्। ऋग्वेद 10/136/3 तथा अर्थवेद 3/7/5 में सम सदृशमंत्र है ‘‘आपो विश्वस्थ भेषजीस्तास्त्वा मुमचन्तु श्रेत्रियात्’’ अर्थात् जल वैश्विक औषध है, जो निसन्देह निश्चय ही शरीर के सभी संस्थानों के रोगों को दूर करता है। ‘‘सुमित्रिया न आप औषधय: सन्तु।’’ युजुर्वेद 20/19 अर्थात् परम औषध जल हमारा सुहृद मित्र है। आयुर्वेद के शास्त्रों में भी जल चिकित्सा के महिमा का गान गाया गया है।
प्राकृतिक चिकित्सा में जल का विशेष महत्त्व है। योगग्राम में प्राकृतिक चिकित्सा के सैकड़ों तरीके अपनाये जाते है। योगग्राम हाइटेक नेचुरोपैथी, (पंचकर्म) आयुर्वेद एवं योग का विशालतम संस्थान है। योग के महान गुरु पतंजलि गौतम, कणाद आदि परम्परा के स्वामी रामदेव जी महाराज के संरक्षकत्त्व एवं चरक, सुश्रुत, वाग्भट्ट परम्परा के महान आयुर्वेद आचार्य श्री बालकृष्ण जी के निर्देशन में संचालित है जहाँ चिकित्सा के अनेक अद्भूत प्रयोग हो रहे है, जिससे योग ग्राम असाध्य-दु:साध्य एवं साध्य रोगियों के लिए तीर्थ स्थान बन गया है। योग आयुर्वेद एवं प्राकृतिक चिकित्सा तीनों के संगम से परिपूर्ण हजारों साल तक शिवालिक पहाडिय़ों एवं हरे-भरे वन-प्राणियों एवं वनस्पतियों से आच्छादित अरण्यवासी ऋषियों की तपोस्थली के सूक्ष्म तरंगों से आविष्ट ‘‘योगग्राम’’ में संचालित योगग्राम संस्थान आरोग्य के पावन भूमि पर दूर-दराजों, विभिन्न राज्यों एवं सरहदों से पार देश-विदेश से अतृप्त एवं अशान्त आत्माएं तथा विविध रोग ग्रस्त रोगी आकर अपने रोगों से मुक्ततो हो ही रहे है तथा अपने अस्त होते जीवन में आशा की नयी प्रकाश प्राप्त कर रहे है। ‘‘आतुरस्य विकार प्रशमनं स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणम्’’ के संकल्प के साथ स्वस्थ होकर लौट रहे है। योगग्राम तथा इसके साथ हमारे अन्य संस्थान निरामयम, पतंजलि योगपीठ वेलनेस सेन्टर, आसाम, पूना, गुजरात तथा अन्य कई राज्यों से संचालित वेलनेस सेन्टर से लाखों लोग लाभान्वित हो रहे हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा संम्वर्धन स्वास्थ्य संरक्षण एवं विविध रोग निवारण चेतना जागरण का सतत महा प्रकल्प सतत प्रवाहमान है।
जल चिकित्सा के सर्वसाध्य प्रयोग
आँख तथा चेहरे पर छींटे मारना : प्रात: दो गिलास जल पीने के पश्चात मुँह में पानी भरें। मुँह बंद कर गाल फुलाएँ तथा लोटे या नल के जल से एक बार में 20-25 बार आँखों में छींटे मारें। पुन: मुँह का पानी फेंककर 3-4 बार इसी क्रिया को दोहरायें।
सिर एवं ऑखों का जल धारा प्रपात स्नान : सिर से 6 इंच की दूरी से जल की धारा ललाट पर इस प्रकार गिरायें कि पानी भौंहों पर गिरे। इससे आँखों की तरफ रक्त संचार तीव्र होता है। आँखों के रोग दूर होते हैं, चेहरे का सौन्दर्य निखरता है। 
आँखों पर छीटें मारना : नेत्र प्रदाह में आँखें बन्द करके सौम्य पानी से आँखों पर छीटे मारें।
चूस-चूस कर जल पीना या आचमन करना : चाय के चम्मच का पाँचवा हिस्सा या दस बूंद जल को चूस-चूसकर घुमाते हुए कुल्ला करने की तरह मुँह में चलाते हुए आचमन करने से सभी प्रकार के ज्वर में लाभ पहुँचता है। कुछ ज्वर तो 5-7 बार के आचमन से ही दूर हो जाते हैं। 25 बार चूसने के बाद 5 मिनट रुकें। बीच-बीच में रुककर 5 से 10 बार आचमन करें।
गरम-ठण्डा सेक : यह प्राकृतिक चिकित्सा का चमत्कारिक प्रयोग है। इसका प्रयोग सभी प्रकार के सूजन या दर्द में कमाल का प्रभाव डालता है। एक बर्तन में खूब ठण्डा तथा दूसरे बर्तन में खूब गरम जल लें। तीन फलालेन या रोयेंदार टर्किश तौलिये लें। गर्म पानी वाले तौलिये को निचोडक़र अक्रान्त अंग पर रखें। ऊपर से सूखें तौलिये से ढक दें ताकि क्रिया-प्रतिक्रिया सही ढंग से हो। 3 मिनट के बाद ठण्डे कपड़े को निचोडकर 2 मिनट ढक कर रखें। 3-5 बार क्रम से 25 मिनट तक सेंक करें। सेंक हमेशा गर्म से प्रारम्भ करें तथा ठण्डे से समाप्त करें। ठण्डे से समाप्ति के बाद सूखे तौलये से भलीभॉति शुष्क घर्षण कर स्थानीय लपेट देकर विश्राम करें।
गरम ठण्डे सेंक से रक्तवाहिनियाँ फैलती तथा सिकुड़ती हैं। खून का दौरा नियमित तथा नियंत्रित होता है। न्यूरोवस्कुलर तथा न्यूरोमस्कुलर संचार सही होता है। अवरोध, तनाव तथा दबाव दूर होता है। विजातीय पदार्थ घुलकर बाहर आते हैं। ज्यादा देर तक गरम उपचार करने से उस अंग में कमजोरी तथा ठण्डे से उस अंग को शक्ति मिलती है। गर्म ठण्डे सेंक के प्रतिवर्त प्रभाव से मस्तिष्क से दर्द व सूजननाशक औषधि एंडोर्फिन तेजी से निकलकर दर्द व सूजन को दूर करती है। जीर्ण, खॉसी, दमा, न्यूमोनिया तथा टी.बी. में छाती तथा ऊपरी पीठ का, आँतों, पैंक्रियास, अपेण्डिक्स, गुदाद्वार का दर्द, गर्भाशय के दर्द में, पल्विक फ्लोर पेरिनियम का हाइड्रोथैरैपी के अन्र्तगत मेरे ‘‘गरम-ठण्डा कम्प्रेश’’ व्याख्यान का लाभ एक गायनिक आबेस्टेट्रिसियन डॉक्टर ने अपने प्रेक्टिस के दौरान इस प्रकार उठाया। प्रसव कराते समय सामान्य डेलिवरी नहीं हो पा रही थी। सीजेरियन की भी व्यवस्था कर ली गयी थी। अचानक उनके दिमाग में गरम-ठण्डा कम्प्रेश का विचार कौंधा, प्रयोग किया एवं सामान्य प्रसव कराने में सफल रही, इस प्रकार गरम-ठण्डा कम्प्रेश का चिकित्सा की दृष्टि से बहुआयामी महत्त्व है। यकृत, गुर्दे तथा आमाशय के रोग में उस अंग विशेष का 3 मिनट गरम, 2 मिनट ठण्डा क्रम से 3-5 बार सेंक करें। जादुई लाभ होता है।
अदरक, लहसुन व प्याज का गरम ठण्डा कम्प्रेस : प्रकृति के सहयोग से ध्यान के क्षणों में अन्वेषित यह चमत्कारिक प्रयोग लाइलाज दमा तथा अन्य असाध्य रोगियों के लिए दिव्य वरदान है। 50 ग्राम अदरक, 50 ग्राम प्याज तथा 20 ग्राम लहसुन को कूटकर रस निकालें। आधे रस से जिस अंग का सेंक करना है उसकी मालिश करें। बचे हुए आधे रस को गरम पानी में डाल दें। कूटे हुए खुज्झे को पोटली बनाकर गरम पानी में डाल दें। एक भगोने में रस मिश्रित गरम तथा दूसरे में बर्फ जैसा ठण्डा पानी लें। दमा, टी.बी., ब्रोंकाइटिस या खॉसी की स्थिति में गरम पानी में तौलिये के दोनों किनारों को पकडक़र भिगोयें, निचोडक़र छाती पर 3 मिनट रखें, ऊपर से सूखे तौलिये से ढकें। पुन: इस उल्टा लिटाकर पीठ का करें। 3 मिनट गरम, 2 मिनट ठण्डा क्रम से 5 बार 25 मिनट सेंक करने के बाद लपेट बाँधे। अनेक रोगियों पर गरम ठण्डा कम्प्रेस का सफल प्रयोग किया गया है। इन रागियों में असाध्य दमा के रोगी भी थे, जिन्हें बराबर ऑक्सीजन की आवश्यकता होती थी, स्टीरायड का निरन्तर प्रयोग करते थे। स्वस्थ हुए है।
किडनी का गरम कम्प्रेश : सी.के.डी. तथा अन्य गुर्दे के रोग में सिर्फ और सिर्फ 75-100 ग्राम अदरक लेकर कूटकर पूर्व-वत रस से मालिश तथा पोटली को गरम पानी में रखकर 20 मिनट सेंक करें।
यकृत की सूजन, पीलिया, गुर्दे की सूजन, किडनी फेल्योर, कमर दर्द, घुटने या संधियों के दर्द, आँतों तथा आमाशय की सूजन, अल्सर, एक्यूट गैस्ट्राइटिस, उदरशूल, सिरदर्द अर्थात् सभी प्रकार के दर्द तथा शूूल में गरम ठण्डा कम्प्रेस या सेंक कमाल का असर करता है। हजारों घरों तथा लाखों दिलों में यातनादायी पीड़ा से कराहते लोगों को राहत देकर गरम ठण्डा कम्प्रेस ने जगह बनायी है। किसी भी दर्द का मुख्य कारण खून मांसपेशीय व तंत्रिका (Neuro Vascular & Neuromuscular flow ) के प्रवाह का अस्त-व्यस्त होने से हाता है। गरम-ठण्डा कम्प्रेश फ्लो (प्रवाह) को नियमित कर देता है। दर्द से राहत मिल जाता है। ठीक ही कहा गया है जहाँ फ्लो है वहाँ ग्लो है। ग्लो यानि आभा, प्रभा, चमक स्वास्थ्य, सुख शांति।
गरम ठण्डा कम्प्रेश या सेंक के बाद लपेट दें। जितना देर संभव हो बंधे रहने दें। यदि सिरदर्द, मूर्छा, चक्कर आना आदि लक्षण परिलक्षित होने पर लपेट खोल दें।
रीढ़ की गली पट्टी : तख्त या जमीन पर दरी या चटाई बिछा दें। आधा इंच मोटी, आठ इंच चौड़ी, पच्चीस इंच लम्बी सूती गीली पट्टी रीढ़ पर रखें। गर्दन से लेकर नितम्ब के नीचे वाली पूँछ कशेरुका टेलबोन पट्टी के सम्पर्क में रहे। जहां पर पट्टी रीढ़ को छू नहीं रही हो वहाँ पर कपड़े की गददी लगा दें ताकि रीढ़ को स्पर्श कर सकें। रीढ़ की पट्टी के दौरान एक पतले सूती कपड़े को भिगो निचोडक़र पेट तथा छाती पर रखें। पैर से ग्रीवा तक ऋतु अनुसार चादर या कम्बल से ढकें। शवासन एवं शिथिलीकरण में लेटे रहें।
अनिद्रा, स्नायु दौर्बल्य, नाड़ी की कमजोरी, नर्वस ब्रेकडाउन, अवसाद, मन: स्नायविक रोग, क्रोध, दुश्चिन्ता, रजोनिवृत्ति काल में गर्मी के झोंके, गर्मी, उत्ताप, लू, जलन, मंदाग्नि, कब्ज तथा गर्दन तोड़ बुखार में सर्वप्रथम समताप जल में भिगोई रीढ़ की पट्टी बाद में ठण्डे जल में भिगोई रीढ़ की पट्टी दिन में तीन-चार बार दें। रीढ़ से निकलने वाले स्नायु शरीर के  समस्त अंगों से जुड़े हुए हैं। ये स्नायु इन अंगों को नियंत्रित, नियमित एवं संचालित करते हैं। सामान्यावस्था में भी रीढ़ की ठण्डी पट्टी शरीर के समस्त अंगों को पोषण देकर स्वस्थ एवं शक्तिशाली बनाती है। यह जनरल टॉनिक का काम करती है।
स्थानीय वाष्प स्नान या नाड़ी स्वेदन : प्रेशर कुकर की सीटी हटाकर उसमें आवश्यकता के अनुसार 6 से 8 फीट लम्बे रबर की पाइप लगायें। प्रेशर कुकर में आवश्यकता अनुसार पानी भरकर स्टोव पर रखकर भाप बनायें। पाइप के दूसरे सिरे को तौलिये से पकडक़र आवश्यकता के अनुसार अलग-अलग अंगों पर स्थानीय वाष्प दें। चेहरा, सिर व गले, बाल, नेत्र कान आदि उध्र्व अंगों के रोगों में पाइप से भाप दें अथवा एक छोटे से पात्र में पानी गर्म करें। भाप बनने पर उस पात्र को तख्त या चारपाई पर रखकर सिर को कम्बल अथवा मोटे कपड़े या तौलिये से ढककर बर्तन के ढक्कन को धीरे-धीरे खोलें। सहन करने योग्य ही भाप लें। 10-15 मिनट तक अत्यन्त सावधानी से स्थानीय वाष्प लें। गर्दन से ऊपर के अंगों को भाप के लिए विद्युत चालित फेशियल सावना यंत्र भी मिलता है। किसी भी अंग का स्थानीय वाष्प देने के बाद ठण्डे पानी में भिगो निचोडक़र तेजी से घर्षण स्नान के बाद लपेट देने के योग्य अंगो को सूती ऊनी लपेट दें। जिन अंगों की लपेट नहीं दे सकते हैं उन अंगों का ठण्डा स्पंज बाथ देने के बाद गरम कपड़े से ढके।
इसके अतिरिक्त जहरीले कीटों के काटने, अंगों में मरोड़ या मोच आने चोट लगने, सभी प्रकार के दर्द व सूजन, घुटना, जंघा, कोहनी, कन्धे तथा कमर की सभी सन्धियों के अकडऩे, जकडऩे, पैरों की सूजन, यकृत, गुर्दे तथा पाचन तन्त्र के अन्य अंगों की सूजन, खाज, खुजली, बवासीर, गुदा द्वार का घाव, भगन्दर, दाँत का दर्द, दाँत का सेप्टिक, ग्लूकोमा, आँखों की स्टाई, इन्फेक्शन (आँखों को बन्द करके) तथा सभी प्रकार के स्थानीय रोग में स्थानीय भाप अत्यन्त उपयोगी तथा प्रभावी होती है। ब्रोंकाइटिस, दमा, न्यूमोनिया आदि फेफड़े सम्बन्धी रोगों में चेहरा छाती पीठ का स्थानीय भाप दें, ठण्ड़े के ज्यादा प्रयोग से कभी-कभी साँस की नलियों में ऐंठन आ जाती है। ठण्ड से बचें सावधानी रखें।
गरम पाद (पैर) स्नान : डेढ़-दो गिलास गरम पानी पिए। सिर, चेहरा तथा गले को धोयें। सिर पर गीला तौलिया बाँधे। स्टूल पर बैठ जायें। दोनों पैरों को सहने योग्य गरम पानी से आधे भरे ड्रम, टब अथवा बाल्टी में रखें। ग्रीवा से लेकर टब तक का हिस्सा गरम कम्बल से इस प्रकार ढकें कि भाप बाहर नहीं निकले। रोगी को पसीना आने तक गरम पाद स्नान लें। पसीना नहीं आने पर रोगी को गरम पानी पिलायें। टब में किनारे से गरम पानी डालकर तापमान बढ़ायें। गरम पानी घुटने तक डालें। गरमी के दिनों में 10-15 मिनट तथा जाडे के दिनों में 20-25 मिनट में पसीना आने लगता है। पसीना आने पर रोगी की स्थिति के अनुसार ठण्डा शावर स्नान, ठण्डा घर्षण मालिश अथवा स्पंज बाथ दें।
निम्न रक्तचाप दुर्बल तथा उच्च रक्तचाप के रोगियों को वाष्प स्नान तथा गरम पाद स्नान देते समय सावधानी रखनी चाहिए। नीबू, पानी तथा शहद स्नान के पहले तथा बाद में दें।
गरम पाद स्नान मृदु वाष्प स्नान का कार्य करता है। वाष्प स्नान एवं गरम पाद स्नान से पसीने के द्वारा गन्दगी तेजी से बाहर निकलती है। समस्त विष निष्कासक एवं वायटल अंग यकृत, गुर्दे, त्वचा हृदय, मस्तिष्क एवं फेफड़े सक्रिय और शान्त सौम्य हो जाते हैं। ये शक्तिशाली एवं स्वस्थ बनते है। सिर तथा ऊपर के अंगों की तरफ रक्त का दबाव कम होता है। उत्तेजना शान्त हो जाती है। फलत: सिरदर्द, उच्च रक्तचाप, अनिद्रा पैरों का दर्द, पैरों का ठण्डा होना, रक्तार्श, कंपकंपी देकर आने वाला ज्वर आदि रोग दूर होते हैं। गरम पाद स्नान से नींद अच्छी आती है। अनिद्रा दूर होती है।
ठण्डा स्पंज घर्षण स्नान : अशक्तएवं कमजोर मरीज जिन्हें वाष्प स्नान, गरम पाद स्नान या अन्य गरम उपचार के बाद, तीव्र ज्वर अथवा अत्यन्त अशक्ता एवं दूर्बलता की स्थिति में शावर बाथ या सर्वांग ठण्डा स्नान नहीं दे सकते हैं उनके लिए ठण्डा स्पंज घर्षण स्नान या ठण्डी मालिश संजीवनी का काम करती है। सर्वप्रथम रोगी का बायाँ हाथ, दाहिना हाथ, दाहिना पैर, बायाँ पैर, पेडू, छाती, जंघा, पीठ नितम्ब, गुदाद्वार, जननेन्द्रिय यानि अंग प्रत्यंग को ठण्डे गीले रोयेंदार टर्किश तौलिये से रगड़ते हुए घर्षण मालिश करें। घर्षण मालिश के लिए छोटे-छोटे तीन टर्किश तौलिये लें। इन्हें ठण्डे पानी में भिगो निचोडक़र बार-बार घर्षण मालिश करें। पानी गन्दा हो जाने पर बदल दें। अन्त में सूखे तौलिये से सारे शरीर का सूखा घर्षण करके शरीर को गरम कर लें। विश्राम करें। ठण्डी घर्षण मालिश की तरह रोयेंदार छोटे टर्किश तौलिया को गरम पानी में भिगो निचोडक़र गरम घर्षण मालिश तथा एक बार गरम, एक बार ठण्डा क्रम से गरम ठण्डा मालिश करें। रोगी को लाभ मिलता है। यह गरम-ठण्डा घर्षण रोगी की जीवनी शक्ति एवं स्थिति के अनुसार निर्धारित किया जाता है। घर्षण के लिए बर्फ का सादा ठण्डा पानी, नल का ठण्डा पानी, नीम के पत्ते उबले गरम पानी, ठण्डा पानी, 10 बूँदे डेटॉल ठण्डे या गरम पानी में डालकर घर्षण स्नान रोग की स्थिति के अनुसार दिया जाता है।
गीला चादर लपेट : हे जीव! तू जो अपने लिए करता है, वही लडक़े के लिए भी करे, तो परमेश्वर को संतोष होगा। तुझे पानी के उपचार पर श्रद्धा है, दवा पर नहीं। डॉक्टर रोगी को प्राणदान नहीं देता। वह भी तो प्रयोग ही करता है। जीवन की डोर तो ईश्वर का नाम लेकर, उस पर श्रद्धा रखकर तू अपना मार्ग मत छोड़- बापू की आत्मकथा ‘‘सत्य के प्रयोग’’ अंग्रेजी में The truth of my life अपने पुत्र मणिलाल गांधी को 104 डिग्री ज्वर में गीली चादर लपेट देने के पूर्व का चिन्तन। लपेट के प्रयोग के बाद ज्वर उतर गया। बापू ने अपने पुत्र को प्राकृतिक चिकित्सा एवं प्रभु की देन माना है। गीली चादर लपेट के लिए दो कम्बल, एक सूती सफेद साफ चादर एक पतले कपड़े का टुकड़ा, एक प्लास्टिक की चादर तथा दो तौलिये लें। बेंच, तख्त, पलंग, तनी चारपायी अथवा जमीन पर दोनों कम्बल बिछा दें। गरमी के दिनों में एक ही कम्बल पर्याप्त है। ऊपर से सूती सफेद चादर को नीम के पत्ते उबले पानी या सादे जल में भिगो निचोडक़र ग्रीवा के नीचे के अंग को लपेटने के लिए बिछायें।
रोगी के सिर, चेहरा तथा गर्दन को ठण्डे पानी से धो पोंछकर एक गिलास गरम पानी पिलायें। सिर पर गीला तौलिया बाँधें। सिर्फ कौपीन (अण्डरवीयर) पहनाकर रोगी को निर्वस्त्र लिटा दें। पहले वस्त्र से हाथों को बाहर निकालकर धड़ (सीना तथा पेट) को लपेटें। पैरों की तरफ चादर के एक किनारे से एक पैर को दूसरे किनारे से दोनों पैरों से लेकर गर्दन तक दूसरा भाग इस प्रकार लपेटें कि शरीर का हिस्सा गीले वस्त्र के सम्पर्क में रहे। ऊपर से प्लास्टिक चादर तत्पश्चात कम्बल से भलीभाँति लपेट दें। लपेट देने के बाद शरीर मिश्र की पिरामिड की ममी की तरह दिखता है। ठण्ड या बरसात के दिनों में जब शरीर से पसीना निकलना कठिन होता है। ऐसी स्थिति में चादर लपेटने के बाद उसमें दो गरम पानी थैली जंघा एवं छाती के पास रखें अथवा शरीर को प्लास्टिक की चादर में लपेट धूप में दें। बीच में गरम पानी पिलाते रहें। सभी प्रकार के गरम उपचार में सिर पर गीला तौलिया रखना तथा बीच-बीच में उस पर पानी डालते रहना नहीं भूलें।
सामन्यत: गीली चादर लपेट का 
प्रभाव चार चरणों में होता है 
प्रारम्भ में 5 से 15 मिनट बलदायक संकोचक ठण्डक (Cold) प्रभाव होता है। रक्त संचार तीव्र होता है। 5-10 मिनट में शरीर का तापमान बढक़र चादर के ठण्डक प्रभाव को कम करता हुआ शरीर एवं चादर के अन्दर का तापमान सम बराबर (न्यूट्रॉल) हो जाता है। शिथिल-सुखद एवं नींद की स्थिति पैदा होती है। मूत्राशय उद्दीप्त होता है। 10 मिनट की इस स्थिति के बाद शरीर का तापमान बढऩे लगता है। शरीर से गर्मी निकलनी प्रारम्भ होती है। तापोत्पादक (Thermal) प्रभाव से खून का दौरा तेज हो जाता है। त्वचा सक्रिय हो जाती है। पसीने की ग्रंथियाँ उत्तेजित हो जाती हैं। त्वचा, स्नायु नाड़ी मंडल संस्थान, निकोटिनिक व मसकेरिनिक रिसेप्टर्स हृदय, गुर्दे, यकृत, फेफड़े आदि अंग उत्तेजित एवं सक्रिय हो जाते है। कुल 25 से 30 मिनट में विष निष्कासक प्रभाव (Detoxifying Effect) तेज हो जाता है।
गीली चादर लपेट यकृत, गुर्दे, प्लीहा, फेफड़े, अग्नाशय की सूजन तथा इनसे सम्बन्धित रोग, पीलिया, चमड़ी के रोग, खुजली, शीत पित्त, सोरायसिस, ज्वर, जुकाम, न्यूमोनिया, सूजन, वात रोग, मोटापा, गठिया, संधिवात, इनफ्लूएंजा, ब्रोंकाइटिस, जीर्ण विषाक्ता, मलेरिया, मृगी, सिरदर्द, शराब, अफीम एवं अन्य नशीले पदार्थों के दुष्प्रभाव को दूर करने में उपयोगी है। गीली चादर लपेट रोगी की क्षमता के अनुसार 30 से 50 मिनट तक दी जाती है।
गीली चादर लपेट में पसीना आने पर शावर स्नान करायें। अशक्त दुर्बल रोगी को सौम्य गीले तौलिये से घर्षण स्पंज स्नान करायें।
लपेट के दौरान सिरदर्द, मू्र्छा, चक्कर आना इत्यादि लक्षण परिलक्षित होते हैं। ऐसी स्थिति में देर तक गीली चादर लपेट नहीं दें।
निषेध 
रक्तहीनता, अशक्ता, हृदय रोग, फेफड़े के रोग, वातजन्य गठिया आदि स्थिति में गीली चादर लपेट नहीं दें।
सावधानी
स्टीम बाथ, गरम पैर स्नान, गीली चादर लपेट, कलर थर्मोलियम, ग्रीन हाउस थर्मोलियम आदि गरम चिकित्सा में पसीने से यूरिया, यूरिक एसिड, लैक्टिक एसिड, अमोनिया आदि बॉयोकेमिकल टॉक्सिक विजातीय मेटाबोलाइट्स निकल जाते है। इलेक्ट्रोलाइट्स की कमी न हो इसका ख्याल रखें। कमजोरी को दूर करने के लिए नीबू पानी शहद पिलायें।
चमत्कारिक ठण्डी पट्टियाँ : रोयेंदार टर्किश या उपलब्ध स्वच्छ सूती कपड़े को 3-4 तहकर ठण्डे पानी में भिगोकर निचोडक़र आक्रान्त अंग पर 5 से 15 मिनट तक रखें। ऊपर से सूखे तौलिये या ऊनी कपड़े से ढक दें। पानी का यह अनोखा किन्तु छोटा सा प्रयोग अपने जादुई प्रभाव से सभी रोग तुरन्त दूर कर देता है।
5 वर्षीय टिंकू को 48 घंटे से पेशाब रूका हुआ था। असह्य पीड़ा से ग्रस्त एवं बेचैन होकर मेरे पास लाया गया। ठण्डी पट्टी पेडू तथा मूत्रेन्द्रिय पर रखी गई। 15 मिनट बाद चमत्कार हुआ। खुलकर पेशाब आया। पीड़ा से मुक्ति मिली। चैन मिला। चेहरे पर मुस्कान खिल गई। दो माह की अपूर्वा रोये जा रही थी। उसकी माँ बेचैन थी। तभी मेरे पास लायी गई। पेट पर सूती रूमाल भिगोकर पट्टी रखी। अपूर्वा सो गई। दर्द की पीड़ा से मुक्त थी।
6 माह की प्रिया पेट की पीड़ा से तड़प रही थी। इस पीड़ा को अभिव्यक्तकरने के लिए वह लगातार रोये जा रही थी। उसकी माँ समझ नहीं पा रही थी कि क्या करें? कई दिनों से सो नहीं पायी थी। मेरे पास लायी गई। पेडू पर ठण्डी पट्टी रखते ही चमत्कार हो गया। खूब सोयी। सोकर उठने पर पीड़ा से मुक्त होकर मुस्कुरा रही थी।
9 वर्ष की माधवी योनिद्वार मूत्र नली के संक्रमण से तड़प रही थी। उसे पर्याप्त मात्रा में पानी पिलाया गया तथा योनि द्वार पर बर्फ की ठण्डी पट्टी 15 मिनट के अन्तराल से रखी गई। यातना से मुक्ति मिली। ज्वर में ठण्डी पट्टी चमत्कार करती है।
योनि, गुदा, पेट, पैर, एड़ी, पिण्डलियों, हाथ, आँख, घुटने, सिर आदि में जलन, सूजन, दर्द, पीड़ा एवं ज्वर होने पर ठण्डी पट्टी रखने से शीघ्र राहत, रोग लक्षणों से मुक्ति एवं शक्तिमहसूस होती है। कटने, जलने, चोट, रक्तश्राव तथा किसी भी आकस्मिक चोट में ठण्डी पट्टी लाभ पहुँचाती है।
चमत्कारिक बलदायक लपेट : आक्रान्त अंग को सूखे तौलिये से रगडक़र-रगडक़र गरम सेंक अथवा स्थानीय भाप द्वारा गरम करने के तुरन्त बाद चारों तरफ से सूती कपड़े को भिगो निचोडक़र तीन बार ठण्डी सूती पट्टी से लपेटें। ऊपर से सूखा ऊनी कपड़ा इस प्रकार लपेटें कि नीचे का सूती कपड़ा दिखे नहीं। वायु अवरुद्ध रहे। इस ठण्डी गरम लपेट से सूजन, अन्दरूनी घाव, चोट, जलन, दर्द तथा पीड़ा दूर होती है।
फेफड़े तथा हृदय रोग में छाती की लपेट (12 फीट 10 इंच), पेट सम्बन्धी समस्त रोगों में पेट की लपेट (6 फीट, 12 इंच), गले सम्बन्धी रोगों में गले की लपेट (3 फीट, 4 इंच), सिर सम्बन्धी रोग में सिर की लपेट (5 फीट, 10 इंच), पैरों सम्बन्धी रोग में पैर की लपेट (10 फीट, 4 इंच), घुटने के दर्द में घुटने की लपेट (4 फीट, 4 इंच), बेचैनी, मेनिनजाइटिस, न्यूमोनिया, यकृत की सूजन, मूत्र ग्रंथियो में सूजन, अनिद्रा, स्नायविक, शूल तथा मूर्छा में पिण्डलियों की लपेट (6 फीट, 4 इंच), पैरों की एड़ी से लेकर घुटने तक दें। पिंडलियों के ठण्डा रहने पर जंघा की संधि से लेकर टखने की संधि तक लपेट दें। हाथ के रोगों में हाथ की लपेट (4 फीट, 4 इंच), वक्ष स्थल एवं उदर सम्बन्धित रोग में धड़ की लपेट (8 फीट, 2 इंच), गुर्दे, मूत्र, प्रोस्टेट तथा गर्भाशय सम्बन्धित रोग में सूती ऊनी कौपीन या लंगोट यानि टी पैक दें ।
लपेट में सर्वप्रथम उपर्युक्तमाप की सूती लपेट रोगग्रस्त अंग पर बाँधे। ऊपर उसी नाप की ऊनी लपेट इस प्रकार बाँधे कि नीचे की सूती लपेट दिखे नहीं। लपेट के अन्दर वायु का प्रवेश नहीं हों। संभव हो तो ऊनी लपेट के बाद उस अंग को सूती या ऊनी कपड़े से ढक दें। लपेट को न तो इतना ढीला छोड़े कि वायु अन्दर प्रवेश करके समुचित क्रिया-प्रतिक्रिया में अवरोध उत्पत्न करें और न इतनी कसकर बांधे कि रक्त संचार अवरुद्ध हो तथा रोगी बेचैनी महसूस करें। अशक्तएवं दुर्बल मरीज को विश्राम करायें। नींद आ जाये तो अच्छी बात है।
जल चिकित्सा के संदर्भ में विस्तृत अनुसंधान से परिपूर्ण जानकारी के लिए प्रस्तुत लेखक की पुस्तक जल चिकित्सा चमत्कार एवं व्यवहार तथा दूसरी पुस्तक जल चिकित्सा आयुवैज्ञानिक प्रयोग अवश्य पढें। इन पुस्तकों में जल के साथ सूर्य चिकित्सा, वायु चिकित्सा, मिट्टी चिकित्सा एवं आकाश अपवास चिकित्सा के संदर्भ में विस्तृत शोधपूर्ण जानकारी दी गयी है।
 

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