अनुभूति आपकी

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योग व आयुर्वेद से कैंसर पर विजय
मुझे सर्वप्रथम 2006 में आहारनली के कैंसर के बारे में पता चला। मैंने पी.जी.आई. रोहतक में डॉ. कड़वासर से एलोपैथिक चिकित्सा में उपचार प्रारम्भ किया जिसमें कीमोथैरेपी मुख्य थी। बाद में मुझे सर्जरी कराने की सलाह दी गई किन्तु मैंने सर्जरी कराना उचित नहीं समझा, क्योंकि मैंने सुना था कि यदि कैंसर सेल्स के साथ छेड़छाड़ की जाए तो ये तीव्र गति से बढ़ते हैं। उस समय मेरा वजन घटकर ३८ किग्रा. तथा हिमोग्लोबिन मात्र ५.५ ग्राम रह गया था। २००६ में ही मैंने राजीव गांधी अस्पताल, दिल्ली में दिखाया, फिर जयपुर में दिखाया, किन्तु दोनों जगह सर्जरी ही एकमात्र उपाय बताया।
फिर आचार्य बलदेव जी व स्वामी परमानन्द जी के कहने पर मैंने सालवान आश्रम के पतंजलि आयुर्वेद हॉस्पिटल में दिखाया। उससे पहले मैं पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज तथा श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज से मिला था। स्वामी जी ने मुझे योगाभ्यास और प्राणायाम करने को कहा। श्रद्धेय आचार्य जी ने कुछ विशेष औषधियों द्वारा उपचार करने की सलाह दी। शारीरिक कमजोरी के कारण उस समय मैं प्राणायाम करने में असमर्थ था। हुड्डा कॉम्प्लेक्स, रोहतक स्थित पतंजलि आरोग्य केन्द्र में डॉ. सुशीला की देख-रेख में मेरा उपचार प्रारम्भ हुआ। मैंने चिकित्सक के परामर्शानुसार सभी औषधियों का विधिवत सेवन किया। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति पर पूर्ण आश्वस्त रहते हुए मैंने गिलोय, सदाबहार, तुलसी, नीम व पीपल के पत्ते आदि औषधि के रूप में लिये। आहार नली में गाँठ के कारण आहार अन्दर जा पाना अत्यन्त कठिन था। बूंद-बूंद कर औषधि लेता था। प्राणायाम करने में मेरी पत्नी हर सम्भव सहायता देती थी। मैंने थोड़े-थोड़े समय के अन्तराल पर रुक-रुक कर दो से ढाई घण्टे कपालभाति, दो से तीन घण्टे अनुलोम-विलोम किया। दिन में ५ बार ५-५ उज्जायी प्राणायाम, ३ बार २१-२१ भ्रामरी तथा उद्गीथ प्राणायाम किया। योग का मुझे विशेष लाभ मिला। २००८ में मैं लगभग कैंसर के परास्त कर पूर्ण स्वस्थ हो चुका था। मैं अब भी निरन्तर योग व प्राणायाम का अभ्यास करता हूँ। अब मैं पूजा, पाठ, योग, हवन प्रतिदिन करता हूँ। मेरा वजन अब ७४ किग्रा. तथा हिमोग्लोबिन १६ ग्राम है। अब मैं पूर्ण स्वस्थ व सुखी जीवन का भरपूर आनन्द ले रहा हूँ। मैं पूर्ण आश्वस्त हूँ कि स्वामी जी महाराज योगबल पर कार्य करते हुए भारत को पुन: विश्वगुरु बनाएँगे।
भवदीय,
संजय कुमार, रोहतक, हरियाणा
 
वर्टिगो व कर्ण रोग से मिली मुक्ति
शुरू में मुझे अक्सर चक्कर आते रहते थे तथा सिर घूमता रहता था। कानों में साँय-साँय की आवाज गूँजती रहती थी। मैंने फरवरी २०१८ में कुरुक्षेत्र के एक स्थानीय चिकित्सालय में दिखाया जहाँ मुझे वर्टिगो की समस्या का पता चला। मैंने कई जगह उपचार कराया, किन्तु कोई आराम नहीं हुआ। मैं ८ मई २०१८ को हरिद्वार स्थित पतंजलि आयुर्वेद हॉस्पिटल आई, जहाँ डॉ. दयाशंकर ने मेरा उपचार किया। आयुर्वेदिक उपचार में मुझे चन्द्रप्रभा वटी, विषतिन्दुक वटी, सारिवादि वटी, सारस्वतारिष्ट, बादाम रोगन तथा ब्राह्मीघृत इत्यादि दिये गये। प्राणायाम के क्रम में कुशल योगशिक्षकों के दिशानिर्देशन में भस्त्रिका, कपालभाति, अनुलोम-विलोम, भ्रामरी, उद्गीथ, उज्जायी व बाह्य प्राणायाम आदि का अभ्यास कराया गया, जिसका मुझे विशेष लाभ मिला। मात्र ४४ दिन के उपचार से ही मैं पूर्ण स्वस्थ अनुभव करने लगी। अब मुझे  चक्कर आना तथा कानों में आने वाली अजीब सी आवाज से पूर्ण निजात मिल गया है।
भवदीया
बीनू शर्मा, कुरुक्षेत्र, हरियाणा

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