विभिन्न रोगो में यज्ञ चिकित्सा के भूमिका
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स्वामी यज्ञदेव, पतंजलि संन्यासाश्रम
हमारी प्राचीन परंपराओं में कई रहस्य हैं, जो आज भी विद्यमान हैं। यज्ञ उनमें से एक है। इसकी जड़ें मुख्य रूप से आयुर्वेद में हैं, यज्ञ की उत्पत्ति चिकित्सा, कृषि और जलवायु इंजीनियरिंग के वैदिक विज्ञान से हुई है। यज्ञ में मंत्रों एवं औषधियुक्त पदार्थों को अग्नि में आहुत करना सम्मिलित है। यज्ञ को कई लाभों के लिए जाना जाता है। यह ‘यज्ञ चिकित्सा’ भिन्न-भिन्न नामों से दुनिया भर में की जाती है। यह वातावरण को शुद्ध करने और रोगों से बचाव करने एवं उपचार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वर्तमान में यज्ञ चिकित्सा के प्रभावों पर अनेक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके हैं, जिनमे से कुछ इस प्रकार हैं- |
1. थायरॉइड पर यज्ञ का प्रभाव
1.1. शिल्पी वर्मा व अन्य द्वारा 2018 में किये गये इस अध्ययन का उद्देश्य उप-नैदानिक Hypothyroidism पर यज्ञ चिकित्सा के प्रभावों का पता लगाना था। पिछले 2 साल और 4 महीने से Subclinical Hypothyroidism से पीडि़त एक 60 वर्षीय रोगी ने 3 महीने के लिए यज्ञ-चिकित्सा को एक अतिरिक्त चिकित्सा के रूप में लिया और यज्ञ-चिकित्सा को पूरा करने के 4 महीने बाद Post-data दर्ज किया गया था, TSH और B12 का स्तर सामान्य हो गया और रोगी की अन्य शिकायतें जैसे थकान, कमजोरी, नींद की समस्या भी पूरी तरह से ठीक हो गई थी। इस प्रकार ये अध्ययन SCH के उपचार में यज्ञ-चिकित्सा के महत्त्व को उजागर करता है।1
1.2. अमरनाथ सारस्वत व अन्य द्वारा 2020 में किये गये इस अध्ययन का उद्देश्य hyroid Hormone (TH) के स्तर को सामान्य करने में यज्ञ चिकित्सा के प्रभाव का पता लगाना था। इस अध्ययन के लिए 18 Thyroid रोगियों का चयन किया गया और उन्हें 40 दिनों की यज्ञ चिकित्सा दी गई और उनका T3, T4 और TSH (Thyroid Stimulating Hormone) का स्तर मापा गया। उन सभी में TH का स्तर संतुलित था और इसके अलावा रोगियों ने शारीरिक कमजोरी, सांस लेने में समस्या, नींद की समस्या और तनाव में जीवन की गुणवत्ता में महत्वपूर्ण सुधार की सूचना दी। इस प्रकार वर्तमान अध्ययन से पता चला है कि यज्ञ थेरेपी में TH को संतुलित करने के साथ-साथ जीवन की गुणवत्ता में सुधार के माध्यम से Thyroid की पुरानी स्थिति के प्रबंधन की काफी संभावनाएं हैं।)2
2. ऑस्टियोआर्थराइटिस पर यज्ञ का प्रभाव
2.1. अलका मिश्रा व अन्य द्वारा 2019 में किये गये अध्ययन का उद्देश्य घुटने के पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis) से जुड़े लक्षणों के प्रबंधन में यज्ञ चिकित्सा के प्रभाव का पता लगाना था। दाहिने घुटने में OA से पीडि़त एक 68 वर्षीय पुरुष रोगी को यज्ञ चिकित्सा और पूरक आयुर्वेदिक उपचार सहित एक Integrated Approach के साथ निर्धारित किया गया था। रोगी की अनुभवात्मक प्रतिक्रिया के आधार पर परिणामों का मूल्यांकन गुणात्मक (व्यक्तिपरक) तरीके से किया गया जैसे कि उसने बताया कि दर्द लगभग पूरी तरह से ठीक हो गया है और वह आराम से चल पा रहा है। इस प्रकार वर्तमान अध्ययन घुटने के OA से जुड़े लक्षणों और संबंधित कठिनाइयों के प्रबंधन के लिए यज्ञ थेरेपी सहित एक Integrated Approach की क्षमता को दर्शाता है।3
3. कर्क रोग पर यज्ञ का प्रभाव
3.1. वंदना श्रीवास्तव व अन्य द्वारा 2019 में किये गये इस अध्ययन का उद्देश्य Acute Myeloid Leukemia (एक प्रकार का रक्त कैंसर) के रोगी में सहायक देखभाल के रूप में यज्ञ थेरेपी के प्रभाव का पता लगाना था। इस अध्ययन में AML से पीडि़त एक महिला रोगी को यज्ञ चिकित्सा और कुछ अन्य आयुर्वेदिक उपचारों सहित एक समग्र दृष्टिकोण द्वारा निर्धारित किया गया था। उपचार के बाद लगभग सभी शिकायतों का पूरी तरह से समाधान हो गया था। इस प्रकार यज्ञ थेरेपी ने AML से जुड़े लक्षणों के प्रबंधन के साथ-साथ अन्य संबंधित बीमारियों के संबंध में उत्साहजनक परिणाम दिखाए।
3.2. अल्का मिश्रा व अन्य, 2018 के इस अध्ययन का उद्देश्य कैंसर रोगियों में सहायक देखभाल के रूप में यज्ञ चिकित्सा के प्रभाव का पता लगाना था। इस अध्ययन में विशेष रूप से तैयार जड़ी-बूटियों का उपयोग करके उत्पन्न औषधीय धुएं को स्तन कैंसर (Breast Cancer), मुंह का कैंसर (Mouth Cancer) और क्रोनिक मायलोइड ल्यूकेमिया (Chronic Myeloid Leukemia) के रोगियों के लिए निर्धारित किया गया था। स्वयं तैयार 10-पैमाने की प्रश्नावली का उपयोग करके QOL (quality of life) के लिए उनका मूल्यांकन किया गया था। तीनों रोगियों ने क्रमश: 12, 7 और 2 महीने तक यज्ञ थेरेपी लेने के बाद अपने QOL में सकारात्मक सुधार की सूचना दी। इस प्रकार वर्तमान अध्ययन कैंसर रोगियों में सहायक देखभाल के रूप में यज्ञ चिकित्सा के लिए उत्साहजनक परिणाम दिखाता है।5
4. अल्जाइमर रोग पर यज्ञ का प्रभाव
4.1. कौर व अन्य द्वारा (2016) में किये अध्ययन का उद्देश्य Alzheimer रोग की रोकथाम और इलाज में अग्निहोत्र के प्रभावों का पता लगाना था। यज्ञ में जड़ी-बूटियाँ की आहुति से उत्पन्न उच्च कोटि के महत्वपूर्ण तत्व सांस द्वारा पहले मस्तिष्क तक पहुँचते हैं, फिर फेफड़े और अन्य अंगों, शरीर के स्थूल और सूक्ष्म घटकों तक पहुँचते हैं। इस प्रकार मस्तिष्क रोगों और जटिलताओं पर इसका सीधा प्रभाव पड़ता है। शरीर यज्ञीय अग्नि की गर्मी को अवशोषित करता है और त्वचा-छिद्रों और श्वसन के माध्यम से उच्चीकृत जड़ी-बूटियों के वाष्पों को अंदर लेता है। मस्तिष्क और तंत्रिकाओं तक पहुंचने पर एंटीऑक्सिडेंट का यह ऊंचा स्तर Headache, Migraine, Depression, Insomnia, Epilepsy, Schizophrenia और Alzheimer रोग जैसे मानसिक तनाव के प्रमुख कारण को समाप्त कर देता है। इस प्रकार, वर्तमान अध्ययन ने Alzheimer रोग की रोकथाम और उपचार में अग्निहोत्र की प्रभावशीलता के बारे में उत्साहजनक परिणाम दिखाए।6
5. श्वसन संबंधी रोग पर यज्ञ का प्रभाव
5.1. रघुवंशी व अन्य (2004) द्वारा अध्ययन में 15 तपेदिक रोगियों पर अध्ययन किया गया था, इस रोग के 3 रोगियों पर दवाएं प्रभावहीन हो चुकी थी। यज्ञोपैथी उपचार के बाद इन 3 रोगियों में किसी भी प्रकार का लक्षण नहीं दिखाई दिया। यज्ञोपैथी उपचार के 35-75 दिनों के बाद देखे गए विभिन्न नैदानिक मापदंडों में सुधार हुआ। रोग के लक्षणों में सुधार हुआ, एचबी [4.34%], में, वजन लगभग 4 किलो बढ़ गया और ईएसआर [16.59%], कम हो गया। तथा यज्ञोपैथी उपचार के 5 सप्ताह के बाद दो रोगियों ने एएफबी नकारात्मक परिणाम दिखाए। इस अध्ययन के परिणाम से पता चलता है की यज्ञोपैथी चिकित्सीय उपचार में सहायक है।7
5.2. वंदना श्रीवास्तव व अन्य द्वारा 2020 में किये इस अध्ययन का उद्देश्य मृदु हृदबृहत्ता (Mild Cardiomegaly) के साथ तीव्र फुफ्फुसीय शोथ (Acute Pulmonary Edema) के प्रबंधन में यज्ञ थेरेपी के प्रभाव का पता लगाना था। इस अध्ययन में रोगी को यज्ञ चिकित्सा और कुछ अन्य आयुर्वेदिक उपचारों सहित एक संकलित दृष्टिकोण (integrated approach) द्वारा निर्धारित किया गया था और 2 वर्षों के बाद रोगी से प्राप्त प्रतिक्रिया के अनुसार रोगी की सभी शिकायतें पूरी तरह से ठीक हो गयी थी। इस प्रकार यज्ञ थेरेपी सहित Integrated approach, मृदु हृदबृहत्ता (Mild Cardiomegaly) के साथ तीव्र फुफ्फुसीय शोथ (Acute Pulmonary Edema) के उपचार के संबंध में उत्साहजनक परिणामों को दर्शाता है।8
1. Verma, S., Kumar, P., Mishra, A., & Shrivastava, V. (2018). Yagya therapy for subclinical hypothyroidism: a case study. Interdisciplinary Journal of Yagya Research, (2), 31-36.
2. Saraswat, A., Yadav, G., Sharma, U., Bisen, K., Desai, T., Bhagat, S., & Shrivastava, V. (2020). Yagya Therapy as adjunct care tended to normalized level of thyroid hormones in 18 thyroid patients after 40 days of treatment. Interdisciplinary Journal of Yagya Research, 3(2), 19-28.
3. Mishra, A., Batham, L., Verma, S., Mishra, S., & Shrivastava, V. (2019). Management of the Symptoms associated with Osteoarthritis of the Knee through an Integrated Approach including Yagya Therapy. Interdisciplinary Journal of Yagya Research, 2(2), 29-37.
4. Shrivastava, V., Batham, L., Mishra, S., & Mishra, A. (2019). Supportive Care In A Patient With Acute Myeloid Leukemia Through An Integrated Approach Including Yagya Therapy. Interdisciplinary Journal of Yagya Research, 2(2), 20-28.
5. Mishra, A., Batham, L., & Shrivastava, V. (2018). Yagya therapy as supportive care in cancer patients improved quality of life: Case studies. Interdisciplinary journal of yagya research, 1(1), 26-33.
6. Kaur, R. P., Bansal, P., Kaur, R., Gupta, V., & Kumar, S. (2016). Is There Any Scientific Basis of Hawan to be Used in the Alzheimer’s Disease Prevention/Cure?. Current Traditional Medicine, 2(1), 22-33.
7. Raghuvanshi, M., Pandya, P., & Joshi, R. R. (2004). Yagyopathic Herbal Treatment of Pulmonary Tuberculosis Symptoms: A Clinical Trial. Alternative and Complementary Therapies, 10(2), 101–105.
8. Shrivastava, V., Batham, L., Mishra, S., & Mishra, A. (2020). Application of an Integrated Approach including Yagya Therapy for the Management of Acute Pulmonary Edema with Mild Cardiomegaly.
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