किसानों को आत्मनिर्भर बनाने में पतंजलि ऑर्गेनिक रिसर्च इंस्टीट्यूट की भूमिका

किसानों को आत्मनिर्भर बनाने में पतंजलि ऑर्गेनिक रिसर्च इंस्टीट्यूट की भूमिका

पवन कुमार एवं सौरभ सैनी,

पतंजलि बॉयो रिसर्च इंस्टीट्यूट

भारत हजारों वर्षों से दुनिया में सबसे अधिक कृषि उत्पादन और समृद्ध किसानों का देश रहा है। भारत में परंपरागत कृषि पद्धति वैदिक काल से चली रही है, हजारों किस्मों के अनाज, फल, साग, सब्जियां, जड़ी-बूटियां भोजन के स्वाद और पोषकता को बढ़ाने वाले मसाले तथा औषधियां भारत की रतनगर्भा वसुंधरा की देन है। भारत के किसानों की अथक मेहनत और कार्य कलात्मक मस्तिष्क में कृषि कार्यों में अनुकूलता को बनाए रखा है। परंतु वर्तमान समय में दुर्भाग्य से हमारी वैज्ञानिकता पूर्ण रसायन आधारित खेती को हरित क्रांति का नाम देकर जो दिव्य स्वप्न हमें दिखाया गया उससे पेट भरने के साधन तो प्राप्त हुए किंतु भोजन स्वास्थ्यवर्धक होकर अनेक रोगों का कारण बन गया। सत्य ही है कि आज देश के लाखों लोग कई विभिन्न प्रकार की जानलेवा बीमारियों से ग्रसित है जिसका मुख्य कारण रसायन आधारित खेती ही है। महंगे रसायनों के कारण जहां किसान की स्थिति दरिद्र होती गई वहीं इसकी वजह से जलवायु मिट्टी पशुओं का चारा भी प्रदूषित जहरीला हो रहा है जिसके कारण कैंसर जैसे भयानक रोगों से पीडि़तों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है।

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इसी स्थिति को देखते हुए परम पूज्य स्वामी रामदेवजी तथा परम श्रद्धेय आचार्य बालकृष्णजी के मार्गदर्शन में पतंजलि कृषक समृद्धि कार्यक्रम के माध्यम से धरती मां को जहरमुक्त करने तथा जैविक कृषि को भारत में पुनर्स्थापित करने का संकल्प लिया है जिससे परंपरागत खाद्यान्न को उपजाने की परंपरा जागृत हो तथा किसानों को परंपरागत कृषि में प्रशिक्षित करके उनकी उपज एवं आय दोनों में वृद्धि हो तथा शुद्ध सात्विक और पौष्टिक आहार का सेवन करके देशवासी स्वस्थ और निरोगी होंगे।

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पतंजलि कृषक समृद्धि कार्यक्रम की शुरुआत 1 अक्टूबर 2018 को हरिद्वार में एक कार्यक्रम के रूप में हुई। यह कार्यक्रम प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, स्किल इंडिया, नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन एग्रीकल्चर स्किल काउंसिल ऑफ  इंडिया के तत्वाधान में पतंजलि ऑर्गेनिक रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा भारत के 19 राज्यों में क्रियान्वित किया जा रहा है। यह कार्यक्रम दो भागों में बटा हुआ है, पहले भाग में जैविक खेती का प्रशिक्षण तथा दूसरे भाग में सामूहिक खेती का प्रशिक्षण सम्मिलित है। इस प्रथम भाग में विभिन्न प्रकार के जैविक खाद, फसल चक्र, जैविक खेती में बीजों का चुनाव और बीज उपचार, पोषक तत्वों का प्रबंधन, सिंचाई प्रबंधन, खरपतवार नियंत्रण, जैविक खेती के तहत एकीकृतनाशी जीव प्रबंधन, रोग प्रबंधन, फसल कटाई जैविक प्रमाण नए गुणवत्ता आश्वासन, जैविक खेती व्यवसाय तथा साथ में डिजिटल शिक्षा का प्रशिक्षण दिया जाता है तथा दूसरे भाग में समूह खेती का प्रशिक्षण दिया जाता है। क्योंकि यह कार्यक्रम स्किल इंडिया के तत्वाधान में चल रहा है, इसलिए इसको पूरी करने की एक प्रक्रिया है जिसमें इच्छुक किसानों को प्रशिक्षण देकर उनको प्रशिक्षक के रूप में तैयार किया जाता है ताकि किसान ही आगे किसानों को प्रशिक्षण प्रदान करें जिससे स्थानीय भाषा में वार्तालाप करने में सुगमता हो जाए तथा किसान बेहतर समझ प्राप्त कर सकें।

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प्रशिक्षक किसानों को प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात उनका मूल्यांकन किया जाता है जो किसान इस मूल्यांकन में सफल होते हैं उन्हें स्किल इंडिया की तरफ से प्रशिक्षक का सर्टिफिकेट दिया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले किसानों को 1 एकड़ जमीन पर खेती करने के लिए जैविक खाद का एक संपूर्ण पैकेज तथा धरती का डॉक्टर मृदा परीक्षण किट भी प्रदान की जाती है जिससे वह परंपरागत खेती तथा जैविक खेती का तुलनात्मक अध्ययन कर सके।

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यही प्रक्रिया प्रशिक्षु किसानों के साथ भी की जाती है जिसमें प्रशिक्षु किसानों के प्रशिक्षण लेने के बाद उनका भी एक मूल्यांकन किया जाता है जिसमें सफल होने के बाद उनको जैविक प्रशिक्षु का स्किल इंडिया की तरफ से सर्टिफिकेट, प्रशिक्षु बुकलेट, जॉब रोल किट प्रदान की जाती है।
इस कार्यक्रम के अंतर्गत अभी तक 19 राज्यों में 73,632 किसानों को संगठित किया है, जिसमें से 64,780 किसानों को ट्रेनिंग प्रदान की गई और इस संख्या में 44,301 किसान जैविक कृषि तथा समूह खेती प्रशिक्षण में उत्तीर्ण हुए है।

पतंजलि कृषक समृद्धि कार्यक्रम के तहत चयनित किए गए राज्य

भारतीय कृषि व्यवस्था में 85% कृषक 2 एकड़ से कम वाले लघु और मध्यम कृषक वर्ग के हैं जिनके पास औसतन 1.15 एकड़ अनुमानित जमीन है। पिछले 5 दशकों में कृषि उत्पादन प्रतिवर्ष औसतन 2.5 से 3% की दर से बढ़ा है। असंगठित होने के कारण यह किसान अपनी उपज की अच्छी कीमत पाने में सफल होते रहे जिससे कि उनका आर्थिक विकास नहीं हो पा रहा है। लागत वृद्धि के अलावा लघु मध्यम किसानों की मुख्य समस्या उनकी उपज का समुचित विपणन नहीं होना है छोटे किसानों को संगठित करने में उन्हें उच्च मूल्य कृषि से जोडऩे की भी चुनौती इससे संकेत मिलता है कि छोटे किसानों के सामने आने वाली समस्याओं का निराकरण उन्हें किसान उत्पादक समूह से जोडक़र काफी हद तक किया जा सकता है।

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एक लेख के अनुसार कृषि उससे संबंधित व्यवसाय से जुड़े उद्योगों का भारत की जीडीपी में 17% का योगदान है, तथा 65% देशवासी कृषि तथा उससे संबंधित रोजगार में लगे हुए हैं जहां एक और कृषि से जुड़े उद्योग लगातार फल-फूल रहे हैं वहीं दूसरी ओर किसानों की दीनहीन होती दशा प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है, तथा यह सोचने पर विवश करती रहती है कि क्यों उद्योगों के बढऩे के बाद भी कृषि में लगा बल सशक्त नहीं है और इन किसानों के सशक्तिकरण के लिए क्या किया जाना चाहिए।

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इसका उत्तर यह है कि बढ़ते हुए औद्योगिकरण में जितना कार्यबल है वह विधिवत स्किल्ड किया जाता है इसके बाद समय-समय पर प्रशिक्षण उनकी ज्ञान में वृद्धि करता है जिसका सीधा प्रभाव उद्योगों के विकास पर देखा जा सकता है, यदि हम इसी मॉडल का प्रयोग करके इसे कृषि क्षेत्र में लागू करें और कृषि में लगे कार्य बल को उचित प्रशिक्षण प्रदान करें उनको स्किल्ड कार्य बल में बदलें तो निश्चय ही हालत में बेहतर सुधार होगा और इसके माध्यम से कृषकों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा को बल मिलेगा।

जैविक खेती से स्वस्थ भारत की ओर

जैविक खेती से एक ऐसी विद्या है जिसमें हानिकारक रसायनों का प्रयोग नहीं करते हुए जैविक संसाधनों के माध्यम से खेती की जाती है। इन संसाधनों में मूल्य सूक्ष्म जीवों का प्रयोग करके भूमि की उर्वरता बढ़ाने का काम किया जाता है जिससे प्राकृतिक तंत्र तो स्वस्थ रहता ही है साथ ही यह भूमि के लिए भी लाभप्रद है।
पतंजलि कृषक समृद्धि कार्यक्रम के अंतर्गत इन सूक्ष्म जीवों का स्थानीय स्तर पर मौजूद सामग्री का उपयोग करके इसके विभाजन करना साथ ही पशुओं में इनके प्रयोग करने तक की समस्त जानकारी किसान प्रशिक्षक के माध्यम से किसानों तक पहुंचाई जाती है साथ ही उन्हें विभिन्न प्रैक्टिकल द्वारा इन्हें घर पर ही बनाने का प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है जिससे कि किसान कृषि में प्रयोग होने वाले महंगे खादों की बजाय स्वनिर्मित जैविक खादों का प्रयोग करें तथा कृषि में आने वाले लागत को कम करें यहां पर ऐसे ही कुछ सफल किसानों की केस स्टडी के बारे में आप पढ़ेंगे|

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एकीकृत कृषि मॉडल

उत्तर प्रदेश राज्य के चंदौली जिले में दयालपुर सदलपुरा गांव के किसान श्री अनिल सिंह ने जैविक खेती ट्रेनिंग लेने के पश्चात कृषि की एकीकृत मॉडल को अपनाया है जिससे उनकी आय में वृद्धि हुई है उन्होंने जैविक खेती के साथ-साथ मछली का तालाब, बकरी पालन, मुर्गी पालन, बत्तख पालन, कृषि वानिकी, औषधीय फसलों की खेती के साथ-साथ फलदार वृक्षों की खेती भी शुरू की है साथ ही साथ बीज उत्पादन करके भी अतिरिक्त लाभ कमा रहे हैं।

जैविक कृषि मॉडल

बिहार राज्य के भोजपुर जिले में डारीडीह गांव के एक किसान श्री बिंदेश्वर तिवारी ट्रेनिंग के पश्चात स्वयं जैविक खाद, जीवामृत, वीजामृत धन, जीवामृत पंचगव्य आदि बनाना उनका उपयोग करना शुरू किया जिसे रासायनिक उर्वरक कीटनाशक खरीदने में आने वाली लागत में कमी आई और कुल आय में वृद्धि हुई वह अब तक 120 किसानों को जैविक खेती के बारे में बता चुके हैं।
हरियाणा प्रदेश के पलवल जिले में लिखी गांव के प्रोग्रेसिव किसान श्री खेमचंद जी ट्रेनिंग लेने के पश्चात घर पर ही जैविक खादों को तैयार कर रहे हैं। इन जैविक खादों का प्रयोग वह सब्जियों की खेती करने में करते हैं। इन जैविक खादों के प्रयोग से उपजी सब्जियों को वह फरीदाबाद दिल्ली के रिहायशी इलाकों में जहरमुक्त सब्जियों के नाम से सीधे ग्राहकों को बेच रहे हैं। इससे उनकी आय में सीधे वृद्धि हुई है।
किसानों को किसानों के द्वारा प्रशिक्षण दिया जाना एक अभिनव प्रयोग था इस माध्यम से किसानों को प्रशिक्षण दिया जाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है, डिजिटल साक्षरता के माध्यम से ही कोरोनाकाल के समय में भी किसानों के साथ जुड़ा रहना संभव हो सका है। प्रशिक्षक किसानों ने विभिन्न वेबीनारों के माध्यम से किसानों को अपने साथ जोड़ रखा है जो डिजिटल साक्षरता का ही परिणाम है। ऐसा देखा गया है कि किसानों का अपने प्रशिक्षक किसान के प्रति जुड़ा वही इस कार्यक्रम के सफल होने का आधार है। किसानों के द्वारा किए गए इन वेबीनारों में ही किसान अपनी समस्याओं को साझा करते हैं तथा उनका निदान भी पाते हैं। वर्तमान में केंद्र सरकार द्वारा पारित किए गए किसान बिल के बारे में किसानों ने ऑनलाइन वेबीनार करके उसके ऊपर चर्चा की तथा उसके फायदों के बारे में भी जानकारी साझा की।
आइए! हम सब साथ मिलकर एक स्वस्थ, समृद्धशाली तथा शांतिमय देश बनाने के लिए कृतसंकल्प हों और एक कदमजैविक खेतीसमृद्ध किसानस्वस्थ देशके उद्घोष के साथ आगे बढ़े।

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