यज्ञ विज्ञान

यज्ञ विज्ञान

स्वामी यज्ञदेव

भारतीय विरासत यज्ञ मानवीय चेतना का उत्कर्ष कर अतिमानस चेतना की ओर अग्रसर करने के साथ देवपूजन, ईश्वर आराधना, मनोकामना पूर्ति, पुण्य की प्राप्ति और अनेकों आध्यात्मिक लाभों के साथ ही एक विशुद्ध विज्ञान, नैनोटेक्नोलॉजी, सुपर साइंस है जो वर्तमान आधुनिक अनुसंधानों से भी सिद्ध है।
वर्तमान जीवनशैली, बीमारियाँ, रेडिएशन, वैश्विक समस्याएँ बनी हैं, उनका सीधा समाधान यज्ञ, हवन, अग्रिहोत्र है। आएइ! इन्हीं बातों को कुछ वैज्ञानिक शोधों से जानने समझने का प्रयास करते हैं-
1.   अग्निहोत्र पर लगातार आठ वर्षों तक एक अध्ययन किया गया जिसमें पिरामिड आकार के अग्निकुंड और गाय के घी, आम की समिधा, चंदन, चावल से बनी मिठाई, केसर, कस्तूरी और जड़ी-बूटियों आदि जैसी सामग्री की आहुतियाँ दी गई। यह पाया गया है कि सामग्री के जलाने पर वाष्प उत्सर्जित होती है, जोकि 96 घंटे तक वातावरण में पीएम प्रदूषण को कम करने में सक्षम होती हैं और उसका 50 किलोमीटर की दूरी तक प्रभाव देखा जा सकता है। पीएम मूल्यों का डेटा इंटरनेट पर जॉचा या सरकार द्वारा प्रकाशित साइट से प्राप्त किया गया था।
 
 2.   SO2, NO2, CO, RSPM और SPM जैसे मानदंड प्रदूषकों द्वारा यज्ञ के माध्यम से वायु प्रदूषण के साइन्टीफिक समाधान का पता लगाने के लिए किये गये एक अध्ययन में गाय के घी के साथ लगभग 324 आहुतियाँ दी गयी थी। इसके साथ ही हवन में पीपल की समिधा, हवन सामग्री (कपूरकचरी, गुग्गुल, नागरमोथा, बालछड़ या जटामांसी, सुगंध बला, इलायची, जायफल और दालचीनी आदि) का उपयोग किया गया था। इस अध्ययन में यह देखा गया कियज्ञ के बिनास्थिति की तुलना में SO2 में क्रमश: लगभग 51%, 60% की कमी हुई और RSPM और SPM दोनों भी क्रमश: 9% और 65% कम पाए गए।
 
3.   कण प्रदूषण (Particulate Matter) पर यज्ञ के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए दिसंबर 2017 में दो इनडोर प्रयोग किए गए थे। प्रयोग में 100 ग्राम हवन सामग्री, 100 ग्राम शुद्ध गाय का घी, 500 ग्राम आम की समिधा, पिरामिड आकार के तांबे के हवन कुंड में कुल 25 मिनट यज्ञ अनुष्ठान में गायत्री मंत्र द्वारा 24 आहुति, महामृत्युंजय मंत्र की 3 आहुति दी गई। डिजिटल सैंपलर का उपयोग पीएम 2.5, पीएम 10, Co2 का मापन किया गया था। इस अध्ययन में यज्ञ करने के बाद पीएम 2.5, पीएम 10 और Co2 की उल्लेखनीय कमी देखी गई।
 
 4.   एक अध्ययन में पता चला है कि यज्ञ करने के बाद माइक्रोबायल लोड और SO2 का स्तर हवा में कम हो जाता है और बीज के अंकुरण और पौधों की वृद्धि में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ ही जीनोटॉक्सिसिटी, अग्निहोत्र राख से प्रभावहीन हो जाती है। यज्ञ में लगभग 100 ग्राम सूखा गोबर, उल्टे पिरामिडनुमा तांबे का हवन कुण्ड, 18 मिली शुद्ध गाय का घी और 2 ग्राम शुद्ध गाय के घी में 2 ग्राम ब्राउन राइस मिला दिया गया। सामग्री का विश्लेषण करने के लिए, कुलकर्णी प्रयोगशाला और गुणवत्ता प्रबंधन सेवाओं, पुणे (ISO और NABL द्वारा मान्यता प्राप्त ) में परमाणु द्रव्यमान स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग किया गया था, परिणामों ने सुझाव दिया कि अग्निहोत्र राख का उपयोग अशुद्ध जल को शुद्ध करने के लिए किया जा सकता है।
 
 5.   यज्ञ के वायु गुणवत्ता पर प्रभावकारिता की जाँच के लिए एक अध्ययन किया गया जिसके परिणाम से यह सिद्ध होता है कि यज्ञ के दौरान जैविक वायु गुणवत्ता में सुधार होता है। हवन के समय जैविक प्रदूषण अर्थात बैक्टीरिया और कवक की संख्या में लगभग 77.7 % की कमी आई और हवा में भारी धातु (हैवी पार्टिकल्स) प्रदूषण में भी कमी आई। यज्ञ एक छोटे तांबे के पिरामिड आकार के हवनकुंड, भूरे चावल, सूखे गाय के गोबर के कंडे और घी के साथ किया गया था। 
 
 6.  पर्यावरण, समाज और मानव पर पडऩे वाले प्रभावों का मूल्यांकन करने के लिए निम्नलिखित पहलुओं के साथ यज्ञ का आयोजन किया गया था। मनोवृत्ति सर्वेक्षण से पता चला कि लोग आध्यात्मिक कारणों से यज्ञ में आते थे और उनका जीवन आध्यात्मिक गतिविधि से प्रभावित होता है। यज्ञ के आस-पास के क्षेत्र से 12 मीटर की दूरी तक चेतना क्षेत्रों को मापने पर (RIG द्वारा) एक महत्वपूर्ण परिवर्तन दिखाया गया। वायु जनित जीवाणुओं की संख्या 40 मीटर की तुलना में 20 मीटर की दूरी पर बढ़ी है। मानको का उपयोग करके यज्ञ के भस्म का अध्ययन किया गया था, परिणाम में पाया गया कि बैक्टीरिया के विकास और जीवाणुरोधी गतिविधि 6 महीने के बाद भी नकारात्मक थी। 
 
7.  जल शोधन पर अग्निहोत्र ऊर्जा क्षेत्र के प्रभाव का निरीक्षण करने के लिए एक अध्ययन किया गया था, इस वर्तमान अध्ययन के अनुसार 5 दिनों की अवधि में कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की संख्या 50% से अधिक कम हो गई थी। यह देखा गया कि पानी को उसी एक कमरे में रखा जाता था जहाँ नियमित रूप से अग्निहोत्र किया जाता था। इस परिणाम ने सुझाव दिया कि अग्निहोत्र को विद्युत-चुम्बकीय क्षेत्र से परे एक ऊर्जा क्षेत्र मिलता है जिसका गहरा प्रभाव पड़ता है।
 
8.   एक अध्ययन में यज्ञानुष्ठान के दौरान 12 प्रतिभागियों में जीएसआर पैटर्न को मापा गया और यज्ञ अनुष्ठान के विभिन्न मंत्रों के जाप के दौरान जी.एस.आर. सिग्नल में परिवर्तन का मूल्यांकन किया गया। जिसके परिणाम ने संकेत दिया कि यज्ञानुष्ठान के दौरान जी.एस.आर. संकेत एक परिभाषित पैटर्न का पालन करता है। यज्ञ के बाद मेडियन जीएसआर सिग्नल कम हो गए थे। दिलचस्प बात यह है कि जी.एस.आर. में यह कमी गायत्री मंत्र के साथ यज्ञ के दौरान महत्वपूर्ण रूप से हासिल की गई थी और यज्ञ अनुष्ठान के शुरुआती चरण की तुलना में कम रही, जो विश्राम की स्थिति को प्राप्त करने के लिए यज्ञ अनुष्ठान में गायत्री मंत्र के महत्व को दर्शाता है।
 
9.    एक केस स्टडी की रिपोर्ट की गई जिसमें एक मरीज (पुरुष-60 वर्ष), जो पिछले 2 साल और 4 महीने (पूर्व-डेटा) से SCH से पीडि़त था, SCH, B12  कॉम्प्लेक्स और उच्च रक्तचाप के लिए लगातार एलोपैथिक दवा ले रहा था और इस पूरे समय टी.एस.एच. कभी सामान्य नहीं हुआ। रोगी ने उपरोक्त दवा को जारी रखा, और 3 महीने तक यज्ञ-चिकित्सा को एक अतिरिक्त चिकित्सा के रूप में लिया। इसके बाद, यज्ञ-चिकित्सा को पूरा करने के 4 महीने बाद टीएसएच का स्तर सामान्य (3-0 μ/ml) हो गया, जबकि यज्ञ-चिकित्सा से पहले, TSH का स्तर बहुत अधिक था, यानी 4-79-11-82 μ/ml बी12 (238-326 पी.जी./एम.एल.) के पहले के निम्न स्तर भी सामान्य सीमा (1034 पी.जी./एम.एल.) के ऊपरी हिस्से तक बढ़ गए। रोगी की अन्य शिकायतें जैसे थकान, कमजोरी और नींद की समस्या भी पूरी तरह से हल हो गई।
 
10.   एक शोध में यज्ञोपैथी के माध्यम से हर्बल उपचार किया गया और जिसके निष्कर्ष से यह सिद्ध होता है कि इस तकनीक का उपयोग हर्बल दवाओं के कुशल श्वसन-तन्त्र के लिए किया जा सकता है। इसे ध्यान में रखकर फुफ्फुसीय तपेदिक के लक्षणों वाले 15 मान्यता प्राप्त रोगियों पर नैदानिक परीक्षण करके हवन के धुएं से उनका इलाज किया गया। आयुर्वेद में मैग्निफेरा इंडिका या ब्यूटिया मोनोस्पर्मा समिधा (लकड़ी) के रूप में उपयोग किया गया था। हवन के दौरान लगभग 45 मिनट तक प्रत्येक रोगी ने अपनी नाक से औषधीय धुंआ लिया। इनमें से मौखिक और नाक में साँस लेना फुफ्फुसीय दवा प्रशासन से मेल खाती है। परिणामस्वरूप, पूरे समूह में फुफ्फुसीय कार्यों में सुधार हुआ था। इस शोध को बड़ी संख्या में रोगियों के लिए अध्ययन का विस्तार करना दिलचस्प होगा। अन्य बीमारियों पर भी इसी तरह के हवन का परिक्षण निश्चित रूप से लाभदायक हो सकता है। 
 
11.   यज्ञ पर किए गए एक अध्ययन से ये पता चला है कि 30 दिनों के उपचार के दौरान तनाव और चिन्ता के स्तर में कमी की प्रवृत्ति होती है। प्री-रीडिंग और पोस्ट रीडिंग के मध्य अंतर को चिन्ता के स्तर में कमी का संकेत दिया गया था जिसे सिन्हा के व्यापक चिन्ता परीक्षण प्रश्नावली द्वारा मापा जाता है जबकि प्री-रीडिंग और पोस्ट रीडिंग को तनाव स्तर में कमी का संकेत दिया गया था जिसे बायोफीडबैक गैल्वेनिक स्किन रिस्पांस (जी.एस.आर.) द्वारा मापा जाता है। पूरे अध्ययन में 18 से 22 आयु वर्ग के 4 व्यक्ति (2 पुरुष और 2 महिला) लिए गए और सामान्य हवन सामग्री और मानसिक स्वास्थ्य के लिए विशेष हवन सामग्री, सूखे गाय के गोबर की समिधा और मिट्टी का अग्निकुंड के उपयोग से यज्ञ के 30 मिनट में गायत्री मंत्र से 12 आहुति दी गयी थी। 
 
12.   मिर्गी के दौरे के रोगियों पर यज्ञ के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए एक केस स्टडी की गई। जिसमे यज्ञ-चिकित्सा की शुरुआत से पहले, रोगी (पुरुष-65 वर्ष) 3 साल (पूर्व-अवलोकन) से मिर्गी के दौरे (8-10 एपिसोड सालाना) से पीडि़त था। बाद में, रोगी 3.5 वर्षों तक यज्ञ-चिकित्सा का प्रयोग कर रहा था उसने पहले वर्ष के दौरान केवल 2-3 एपिसोड के साथ (केवल नींद के दौरान) और उसके बाद किसी भी दौरे का अनुभव नहीं किया था। 
 
13.   मिर्गी की रोकथाम और इलाज पर हवन के प्रभाव को देखने के लिए एक केस अध्ययन किया गया था, जिसमे यह देखा गया था कि हवन के घटकों में कई वाष्पशील तेल होते हैं, जो उच्च तापमान के कारण एक या अन्य तंत्र क्रिया के माध्यम से मिर्गी के लिए आधिकारिक रूप से उपयोगी होते हैं। इनमें से जितने अधिक वाष्प होते हैं, उतने ही उच्च स्तर के नासिका मार्ग के माध्यम से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में प्रवेश करते हैं। प्रात: यज्ञ की दिनचर्या शरीर में चिकित्सीय घटकों को बनाए रखती है और वर्तमान शोध अनुसार मिर्गी को रोकने में मदद करते हैं। 
 
14.  बायोलॉग माइक्रोप्लेट पैनल और माइक्रो लॉग डेटाबेस का उपयोग करके वायुजनित जीवाणु संरचना और गतिशीलता पर चिकित्सा और स्वास्थ्य देखभाल के लिए प्राकृतिक उत्पादों के धुएं के जातीय औषधीय पहलुओं के प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए एक अध्ययन किया गया। जलती हुई समिधा, सुगंधित औषधीय, जड़ी-बूटियों (हवन सामग्री) के मिश्रण से निकलने वाले औषधीय धुएं से हवाई जीवाणुओं की संख्या में 60 मिनट तक बैक्टीरिया की संख्या में 94%  से अधिक की कम हो गयी और यज्ञ के धुएं से हवा को शुद्ध या कीटाणुरहित करने और बनाने की क्षमता बंद कमरे में निरंतर 24 घंटे तक जांची गयी। रोगजनक बैक्टीरिया की अनुपस्थिति औषधीय धूम्रपान उपचार की संभावना का अद्भूत संकेत देती है।
 
15.  अग्निहोत्र के धुएं का एयरो माइक्रोफ्लोरा पर प्रभाव देखने के लिए एक शोध किया गया था। अग्निहोत्र में समिधा के लिए पलाश, पीपल, उदुम्बर, शमी, दर्भ, खैर और दूर्वा का उपयोग किया गया था। अध्ययन ने एरोमाइक्रोफ्लोरा की वृद्धि (प्रतिक्रिया में कमी का संकेत दिया। जीवाणु कवक और एक्टिनोमाइसेट्स के लिए माइक्रोबियल गिनती में क्रमश: 43, 30-84 और 56-07%  की कमी पाई गयी। 
 
16.  एक अध्ययन में पाया गया कि यज्ञानुष्ठान करने के बाद इनडोर प्रदूषण के स्तर में उल्लेखनीय कमी आती है। यज्ञ में आम की लकड़ी, और एक किलोग्राम वायु शोधन हवन सामग्री के घटकों का अनुपात इस प्रकार था- गिलोय (200 ग्राम), जौ (50 ग्राम एक प्रकार का अनाज), बिल्व (50 ग्राम), नागरमोथा (200 ग्राम), अपामार्ग (100 ग्राम), इंद्र-जौ (50 ग्राम), कुटज (50 ग्राम), चावल (50 ग्राम), घी (100 ग्राम), गुड़ (100 ग्राम) और सुगंधयुक्त पदार्थ जैसे जटामांसी (100 ग्राम) और अडूसा (50 ग्राम) 
 
17.  पांच केस-स्टडी किए गए और यह देखा गया कि यज्ञ के बाद इनडोर EMR स्तर में उल्लेखनीय कमी आई थी। घर के अंदर EMR की मात्रा को मापने के लिए KKMoon के GM 3120 इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन डिटेक्टर का इस्तेमाल किया गया था। सांख्यिकीय विश्लेषण के लिए युग्मित नमूना छात्र TTest (TTEST) और 2way ANOVA को ग्राफपैड सॉफ़्टवेयर, ला जोला, CA के एक संस्करण का उपयोग करके प्रदर्शित किया गया था। यह शोध, इनडोर EMR स्तर को कम करने के लिए एक साइन्टीफिक समाधान के रूप में यज्ञ की उपयोगिता को दर्शाता है।

द्रव्य यज्ञ, योग यज्ञ एवं ज्ञान यज्ञ का त्रिवेणी संगम यज्ञमहोत्सव

अपने गांव या शहर मेंयज्ञ महोत्सवके आयोजन हेतु
सम्पर्क करेंमो.- 9068565306,
-मेल -yajyavijyaanam@patanjaliyogpeeth.org.in
 

Advertisment

Latest News

परम पूज्य योग-ऋषि श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य ... परम पूज्य योग-ऋषि श्रद्धेय स्वामी जी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य ...
जीवन सूत्र (1) जीवन का निचोड़/निष्कर्ष- जब भी बड़ों के पास बैठते हैं तो जीवन के सार तत्त्व की बात...
संकल्प की शक्ति
पतंजलि विश्वविद्यालय को उच्च अंकों के साथ मिला NAAC का A+ ग्रेड
आचार्यकुलम् में ‘एजुकेशन फॉर लीडरशिप’ के तहत मानस गढक़र विश्व नेतृत्व को तैयार हो रहे युवा
‘एजुकेशन फॉर लीडरशिप’ की थीम के साथ पतंजलि गुरुकुम् का वार्षिकोत्सव संपन्न
योगा एलायंस के सर्वे के अनुसार अमेरिका में 10% लोग करते हैं नियमित योग
वेलनेस उद्घाटन 
कार्डियोग्रिट  गोल्ड  हृदय को रखे स्वस्थ
समकालीन समाज में लोकव्यवहार को गढ़ती हैं राजनीति और सरकारें
सोरायसिस अब लाईलाज नहीं