चमत्कारी घरेलू उपचार
(पूज्य स्वामी जी महाराज द्वारा बताए जाने वाले विशेष प्रयोग)
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मोटापा एवं मधुमेहनाशक दलिया
गेहूँ | 500 ग्राम |
चावल | 500 ग्राम |
बाजरा | 500 ग्राम |
साबुत मूंग | 500 ग्राम |
सभी को उपरोक्त मात्रा में लेकर, भूनकर दलिया बना लें। इसमें अजवाइन 20 ग्राम तथा सफेद तिल 50 ग्राम भी मिला लें।
आवश्यकता के अनुसार लगभग 50 ग्राम दलिये को 400 मिली. पानी में डालकर पकाएँ, स्वादानुसार सब्जियाँ व हल्का नमक मिला लें। नियमित रूप से 15-30 दिन तक दलिया का सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है। मोटापे से पीडि़त हृदय रोगी इस दलिया का नियमित सेवन कर निरपवादरूप से अपना वजन कम कर सकते हैं।
खीरा, करेला व टमाटर का रस मधुमेह के लिए सर्वश्रेष्ठ है।
मोटापा, कब्ज, कोलेस्ट्रोल, चर्मरोग एवं कैंसर जैसे रोगों में गोमूत्र अर्क सर्वश्रेष्ठ औषध है।
हृदय रोग, अम्लपित्त, उदर रोग एवं मोटापे में लाभप्रद लौकी का रस
लौकी 500 ग्राम + पुदीना पत्र 7 नग + तुलसी पत्र 7 नग
उक्त सभी को मिलाकर रस निकालकर प्रतिदिन प्रात: काल खाली पेट पीने से हृदय की धमनियों में हुए अवरोध भी खुल जाते हैं। अम्लपित्त एवं समस्त उदररोगों का शमन करने के लिए लौकी रस का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए।
कोलेस्ट्रोल, हृदयरोग व मोटापे के लिए लौकी का रस सर्वश्रेष्ठ है।
सावधानी - कड़वी लौकी का जूस न पीएँ।
अर्जुन क्षीर पाक
5-10 ग्राम अर्जुन चूर्ण में 1 कप दूध तथा 3 कप पानी मिलाकर पकाएँ। 1 कप शेष रहने पर छानकर प्रात:काल खाली पेट पी लें। उक्त क्षीर पाक का नियमित सेवन, कमजोर हृदय वालों को अति लाभकारी होता है।
मोटापा, मधुमेह व हृदय रोग में अत्यन्त लाभप्रद अश्वगन्धा पत्र
प्रतिदिन सुबह, दोपहर एवं सायंकाल 1-1 अश्वगन्धा पत्ते को हाथ से मसलकर गोली बनाकर भोजन से 1 घण्टा पहले या खाली पेट जल के साथ लें। एक सप्ताह के नियमित सेवन के साथ ही फल, सब्जियाँ, दूध, छाछ एवं जूस पर रहते हुए कई किलो वजन कम किया जा सकता है। इस प्रयोग को लगातार 15 दिन करने के पश्चात् 10-15 दिन छोड़कर पुन: किया जा सकता है।
नोट: परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज द्वारा बताए इस सामान्य से नुस्खे का प्रयोग कर लाखों लोगों ने मोटापे से छुटकारा पाकर स्वास्थ्यलाभ किया है।
मोटापा कम करने की घरेलू विधि
1 चम्मच त्रिफला चूर्ण को रात्रि में 200 मिली. पानी में भिगोकर रखें। प्रात: उबालें तथा आधा शेष रहने पर छान लें। कुछ शीतल होने पर इसमें 2 चम्मच शहद मिलाकर पीएँ। कुछ ही दिन के सेवन से कई किलो वजन कम हो जाता है।
मोतियाबिन्द व ग्लूकोमानाशक 'दृष्टि आई ड्रॉप’
सफेद प्याज का रस | 10 मिली. |
अदरक का रस | 10 मिली. |
नींबू का रस | 10 मिली. |
शहद | 50 मिली. |
उक्त सभी को मिलाकर एक काँच की शीशी में भरकर धूप में रखें। धूप में रखने के कुछ समय बाद तलछट नीचे बैठ जाता है तथा स्वच्छ तरल ऊपर रह जाता है। इस स्वच्छ तरल को साफ वस्त्र से छानकर काँच की शीशी में भरकर रख लें। नियमित रूप से 2-2 बूँद दवा आँखों में डालने से मोतियाबिन्द कट जाता है। ग्लूकोमा के रोगी का आँख का दबाव कम हो जाने से धीरे-धीरे ठीक हो जाता है। उक्त दवा आश्रम में पतंजलि दृष्टि (आई ड्रॉप) के नाम से विशेष रूप से तैयार की जाती है, जिसके प्रयोग से अनेकों रोगी लाभ पा चुके हैं।
नेत्र ज्योतिवर्धक घरेलू उपचार
100 मिली. शुद्ध गुलाब जल में 10 ग्राम सूखे आँवले की साबुत कली को डुबाकर रखें। इसे 2 दिन तक रखा रहने दें। 2 दिन बाद इसे निथारकर 8 तह किए कपड़े से छान लें, इसके पश्चात् शीशी में भर कर रखें, 2-2 बूँद की मात्रा में आँखों में डालने से अश्रुस्रावाधिक्य, नेत्रलालिमा, नेत्रदाह एवं खुजली में आराम हो जाता है।
रतौंधी (Night Blindness) एवं योषापस्मार (Hysteria) में लाभकारी
सफेद प्याज का रस | 10 मिली. |
शहद | 10 मिली. |
दोनों को समान मात्रा में मिलाकर 2-2 बूँद प्रात: सायं आँखों में डालें। इससे रतौंधी तथा योषापस्मार में लाभ होता है।
कफज रोगों का घरेलू उपचार
बादाम गिरी-100 ग्राम + खाँड-50 ग्राम + काली मिर्च-20 ग्राम
उपरोक्त सभी का अलग-अलग पाउडर बनाएँ। तत्पश्चात् मिलाकर सुरक्षित रख लें।
सेवन विधि- एक चम्मच सायं खाने के बाद गुनगुने दूध के साथ सेवन करने से जीर्ण कफ रोग, नजला-जुकाम, साइनस में विशेष लाभ होता है। यह प्रयोग कब्ज़ को भी दूर कर देता है तथा साइनस की वजह से होने वाले सिरदर्द में भी लाभ करता है।
विशेष- जिनको मधुमेह हो, वे व्यक्ति खाँड का प्रयोग न करें तथा जिनको अम्लपित्त हो, वे काली मिर्च 10 ग्राम की मात्रा में ही प्रयोग करें।
थायरायड, टॉन्सिल्स व कफ रोगों का घरेलू उपचार
त्रिकटु चूर्ण | 50 ग्राम |
बहेड़ा चूर्ण | 20 ग्राम |
प्रवाल पिष्टी | 10 ग्राम |
सेवन विधि- सबको चूर्ण करके मिलाकर रख लें। वयस्क व्यक्ति एक-एक ग्राम मात्रा में चूर्ण लेकर सुबह-शाम खाली पेट मधु (शहद) या गुनगुने पानी के साथ सेवन करें। निरन्तर सेवन करने से थायरायड के रोग में विशेष लाभ होता है तथा बच्चों में टॉन्सिल्स की समस्या भी दूर हो जाती है। श्वास व कफ रोगों में भी यह प्रयोग लाभप्रद है।
नकसीर
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पीपल के पत्रों को लेकर कूट-पीस कर रस निकाल लें। 5-5 बूंद दोनों नासिकाओं में टपका देने से शीघ्र ही नकसीर बन्द हो जाती है। 30-40 पत्रों का रस निकालकर मिश्री मिलाकर पीने से शीघ्र लाभ होता है।
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रक्तस्राव में 5 से 10 मिली. तक पीपल के पत्तों का रस प्रात: खाली पेट पीने से रक्तस्राव में शीघ्र ही लाभ होता है।
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2-4 बूंद दूर्वा स्वरस को नाक में डालने से शीघ्र ही नकसीर बन्द हो जाती है।
पुरानी खाँसी की अचूक दवा
मुलेठी का एक छोटा टुकड़ा, 2 काली मिर्च तथा मिश्री का एक छोटा टुकड़ा इन तीनों को मुँह में रखकर दिन में दो-तीन बार खाली पेट या खाने के बाद चूसें। इससे पुरानी से पुरानी खाँसी, गले की खराश, गला बैठना, स्वरभंग आदि में तत्काल एवं स्थायी लाभ होता है।
श्वास, कफ, साइनस, पीनस व सिर दर्द में लाभदायक रीठा जल
रीठा चूर्ण 1 ग्राम तथा 2-3 ग्राम त्रिकटु चूर्ण को 50 मिली. पानी में डालकर रखें। प्रात: जल को निथार कर अलग शीशी में भरकर रखें। इस जल की 4-5 बूँद प्रात:काल खाली पेट कुछ दिन नाक में डालने से अन्दर जमा हुआ कफ बाहर निकल जाता है। इससे नासारन्ध्र खुल जाते हैं व सिद-दर्द में भी तुरन्त लाभ पहुँचता है।
नोट : सोंठ, काली मिर्च व पिप्पली को समान मात्रा में मिलाकर बने चूर्ण को 'त्रिकटु चूर्ण’ कहते हैं।
खाँसी में लाभदायक वासापत्र
वासा पत्रों का रस 1 चम्मच, अदरक का रस 1 चम्मच तथा शहद 1 चम्मच तीनों को मिलाकर सेवन करने से सभी प्रकार की खाँसी में आराम हो जाता है।
सर्दी, जुकाम व ज्वर के लिए प्रयोग
7 पत्ते तुलसी तथा 5 लौंग लेकर एक गिलास पानी में पकाएँ। तुलसी पत्र व लौंग को पानी में डालने से पहले हल्का-सा कूटकर दरदरा कर लें। पानी पककर जब आधा शेष रह जाए, तब थोड़ा-सा सैंधव नमक डालकर गुनगुना-गुनगुना पी जाएँ। यह काढ़ा पीकर कुछ समय के लिए वस्त्र ओढ़कर पसीना ले लें। इससे ज्वर तुरन्त उतर जाता है तथा सर्दी, जुकाम व खाँसी भी ठीक हो जाती है। इस काढ़े को दिन में दो बार, दो-तीन दिन तक ले सकते हैं।
छोटे बच्चों को सर्दी, जुकाम व कफ होने पर तुलसी व अदरक का रस 5-7 बूँद शहद में मिलाकर चटाने से बच्चों का कफ, सर्दी व जुकाम ठीक हो जाता है। यह दवा नवजात शिशु को भी अल्प मात्रा में दी जा सकती है।
टायफाइड (Typhoid) ज्वर की चिकित्सा
बीज निकाले हुए ८ से १० नग मुनक्का, ४ से ५ नग अंजीर तथा १-२ ग्राम खूबकला को पीसकर चटनी बना कर सुबह-शाम लें। बच्चों में इन सबकी आधी मात्रा प्रयोग करें।
कफ, दमा के लिए पिप्पली-कल्प
छोटी पिप्पली 1 नग लेकर गाय के दूध में 10-15 मिनट उबालें। उबालकर पहले पिप्पली खाकर ऊपर से दूध पी लें। अगले दिन 2 पिप्पली लेकर दूध में अच्छी तरह उबालकर, पहले पिप्पली खा लें, फिर दूध पी लें। इस प्रकार 7 से 11 पिप्पली तक सेवन करके पुन: क्रमश: कम करते जाएँ अर्थात् जिस तरह एक-एक पिप्पली प्रतिदिन बढ़ाई थी, वैसे ही एक-एक पिप्पली कम करते हुए 1 नग पर वापस लौट आएँ। यदि अधिक गर्मी न लगे तो अधिकतम 15 दिन में 15 पिप्पली तक भी इस कल्प में ले सकते हैं। अधिक गर्मी लगने पर आप 7 या 11 पिप्पली पर ही रोककर पुन: क्रमश: एक पिप्पली पर लौट आएँ। यह कल्प कफ, दमा, नजला, जुकाम व पुरानी खाँसी में लाभप्रद है। इससे मन्दाग्नि, गैस, अपचन आदि रोग भी दूर हो जाते हैं।
यह पिप्पलीयुक्त दूध प्रात:काल सेवन करें। दिन में सादा आहार लें। घी, तेल एवं किसी भी प्रकार की खट्टी एवं शीतल चीजें न लें।
दमा के लिए दमबेल
दमबेल (Tylophora indica (Burm.f.) Merrill) का एक पत्र लेकर, उसमें एक काली मिर्च डालकर पान की तरह खाली पेट चबा लें। इस तरह तीन दिन सेवन करने से दमा से पीडि़त रोगी को लगभग पूरा आराम मिल जाता है। तीन दिन में पूरा लाभ न मिलने की स्थिति में इस प्रयोग को एक सप्ताह तक भी किया जा सकता है। तीन या सात पत्ते खाने से दमा जैसे कठिन रोग से छुटकारा मिल सकता है। किसी-किसी रोगी को इसके सेवन से उल्टी हो सकती है। घबराने की आवश्यकता नहीं, यह स्वाभाविक-सी प्रक्रिया है। जब कफ निकल जाएगा तो उल्टी अपने आप बन्द हो जाएगी। एक माह तक रोगी को घी, तेल व सभी प्रकार की खट्टी व ठण्डी चीजों से परहेज करना चाहिए।
उदरकृ मि (॥Helminthiasis) की दवा
आड़ू के पत्तों का रस 1 चम्मच प्रात: खाली पेट नियमित सेवन करने से 4-5 दिन में ही पेट के समस्त कृमि निकल जाते हैं।
मरुआ के पत्तों का रस निकालकर 1 चम्मच रस में 1 ग्राम कबीला चूर्ण मिलाकर खाली पेट खाएँ । 4-5 दिन की खुराक से ही उदर के समस्त प्रकार के कृमि निकल जाते हैं। मरुआ के पत्तों में अदरख, धनिया, हरी मिर्च तथा सैंधव नमक मिलाकर चटनी बना लें। इसका सेवन करने से अपचन, वायु, मन्दाग्नि में लाभ होता है तथा उदरकृमियों का शमन होता है।
कब्ज (Constipation) की घरेलू दवा
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नाश्ते में एक सेब एवं सायंकाल के भोजन में एक सेब नियमित रूप से खाने से कब्ज तथा माइग्रेन का शमन होता है।
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प्रात: काल 1 कप लौकी (घिया) का जूस पीने से पेट पूर्णत: साफ रहता है। साथ ही पेट के समस्त विकारों को दूर करता है एवं भविष्य में होने से रोकता है।
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पपीता का यदि नियमित रूप से सेवन किया जाए तो कब्ज की स्थिति उत्पन्न ही नहीं होती।
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किसी भी प्रकार की कब्ज में अमलतास का गूदा 10-20 ग्राम तक लेने से कब्ज में तुरन्त आराम हो जाता है।
आँव व संग्रहणी में लाभदायक बिल्व चूर्ण
बिल्व चूर्ण सुबह-शाम 1-1 चम्मच या बिल्व का जूस 1 गिलास पीने से आँव ठीक होता है तथा मल बँध कर आने लगता है।
कब्ज, गैस व अन्य रोग
आँवला व एलोवेरा स्वरस 4-4 चम्मच की मात्रा में मिलाकर खाली पेट गुनगुने पानी के साथ सेवन करने से कब्ज में तुरन्त राहत मिलती है। आँवला व एलोवेरा जूस कब्ज दूर करता है और साथ-ही-साथ पूरे शरीर को शक्ति देता है, यह शरीर की कोशिकाओं को क्षय से बचाकर उत्तम स्वस्थ एवं दीर्घायु प्रदान करता है।
कब्ज व अन्य उदर रोगों में उपयोगी आहार
अमरूद, पपीता, सेब, गाजर, लौकी एवं सभी हरी सब्जियाँ, मुनक्का, अंजीर आदि। कब्ज को दूर करने के लिए खाना चबा-चबाकर खाएँ एवं प्रात: उठकर खाली पेट 300 मिली. से लेकर 1 ली. गुनगुना पानी (उष:पान) पीएँ। यदि यह जल ताँबे के बर्तन में रखा हो तो और भी लाभप्रद होता है।
शुष्कार्श एवं रक्तार्श की अचूक दवाएँ
100-200 मिग्रा (1 चने की दाल जितना) देशी कपूर को केले के एक टुकड़े में रखकर खाली पेट निगल जाएँ। एक ही खुराक में रक्तस्राव बन्द हो जाता है। रक्तस्राव नहीं रुकने पर उक्त प्रयोग को तीन दिन तक दिन में तीन बार कर सकते हैं। इससे अधिक बार न करें। (इस प्रयोग के बाद केले का सेवन निषिद्ध है।)
गाय के 1 कप पीने लायक गुनगुने दूध में आधे नींबू का रस निचोड़ कर दूध फटने से पहले तुरन्त पी जाएँ। यह प्रयोग भी रक्तार्श जन्य रक्तस्राव को तुरन्त बन्द कर देता है। उक्त प्रयोग एक या दो बार से अधिक न करें। आवश्यकता होने पर चिकित्सकीय परामर्श लें।
बवासीर व अति मासिकस्राव
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नारियल की दाढ़ी (भूरे रेशे) को जलाकर राख बनाकर छानकर रख लें। तीन-तीन ग्राम नारियल की यह भस्म सुबह-दोपहर खाली पेट छाछ से व सायं गुनगुने जल के साथ सेवन करें। एक बार लेने से ही बवासीर में आशातीत लाभ होता है। यह मासिकधर्म में अति रक्तस्राव तथा श्वेतप्रदर में भी लाभप्रद है।
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वमन (उल्टी), हैजा व हिचकी में इस भस्म को 1-1 ग्राम की मात्रा में थोड़े जल के साथ सेवन करने से विशेष लाभ होता है।
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बकायन के बीजों का चूर्ण बनाकर प्रात: छाछ के साथ तथा सायं जल के साथ सेवन करने से बवासीर, रक्तस्राव व कब्ज में लाभ होता है।
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नागदौन के 4-5 पत्तों को चबाकर खाने से रक्तार्श तथा अति मासिकस्राव में लाभ होता है।
श्वेतप्रदर, प्रमेह, धातु रोग एवं मासिकधर्म सम्बन्धी विकारों, अति रक्तस्राव में लाभप्रद शीशम के पत्ते
शीशम के पत्ते 8-10 व मिश्री 25 ग्राम दोनों को मिलाकर घोट-पीस कर प्रात:काल सेवन करें। कुछ ही दिनों के सेवन से स्त्रियों के श्वेत प्रदर तथा पुरुषों के प्रमेह आदि रोगों में निश्चित लाभ होता है। मासिकधर्म के अन्तर्गत होने वाला अतिरक्तस्राव सामान्य हो जाता है। सर्दियों के मौसम में उक्त दवा में 4-5 काली मिर्च मिलाकर सेवन करना चाहिए। यह अत्यन्त शीतल है। अत: गर्मी से होने वाले रक्तस्राव में भी अत्यन्त लाभप्रद, निरापद एवं सरल प्रयोग है।
नोट : मधुमेह के रोगी मिश्री के बिना ही प्रयोग करें।
बन्ध्यत्वनाशक योग
शिवलिंगी बीज | 100 ग्राम |
पुत्रजीवक बीज | 200 ग्राम |
सर्वप्रथम पुत्रजीवक बीज से गिरी निकालकर तत्पश्चात् दोनों को मिलाकर चूर्ण बनाएँ। 1/4-1/4 चम्मच सुबह-शाम नाश्ते व खाने से पूर्व गाय के दूध से लें। कुछ ही समय के नियमित सेवन से बन्ध्यत्व में लाभ मिलता है तथा शीघ्र ही सन्तान की प्राप्ति होती है। जिन स्त्रियों को बार-बार गर्भपात होता है, उनका गर्भपात होना रुक जाता है।
सुख प्रसव (नॉर्मल डिलीवरी) के लिए अपामार्ग
अपामार्ग (Achyranthes aspera Linn.) की मूल (जड़) को उखाड़कर 3-3 इंच के टुकड़ों में काटकर ऊनी धागे में बाँधकर माला बना लें। प्रसव पीड़ा प्रारम्भ होने पर इस माला को स्त्री की कमर में बाँधने से 5-10 मिनट में ही सामान्य प्रसव हो जाता है। यदि प्रसव न हो तो अपामार्ग की जड़ के चूर्ण का लेप भी नाभि के चारों ओर पेड़ू भाग पर लगाया जा सकता है। यह शतशोनुभूत व चमत्कारी योग है जिसका प्रयोग हमने कई रोगियों पर किया है।
सावधानी
प्रसव के तुरन्त बाद कमर में बंधी हुई अपामार्ग मूल की माला या लेप को हटा दें अन्यथा हानि होने की सम्भावना रहती है।
विशेष
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अपामार्ग मूल या अपामार्ग की टहनी का दातुन करने से दाँत मजबूत होते हैं तथा पायरिया आदि दन्त रोग मिटते हैं।
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अपामार्ग के पत्तों को पीसकर किसी भी तरह की गाँठ पर लेप करने से रोगी को विशेष लाभ होता है।
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अपामार्ग के बीजों को चावल की तरह दूध में पकाकर खीर बनाकर खाने से भस्मक रोग ठीक होता है। जिनको बहुत अधिक भूख लगती हो, वे व्यक्ति इस खीर का सेवन करके अपनी भूख को नियन्त्रित कर सकते हैं। कई योगी पुरुष भी लम्बा उपवास करने से पहले अपामार्ग के बीजों की यह खीर खा लेते हैं। इससे उनको भूख नहीं सताती।
माताओं के लिए दुग्धवर्धक प्रयोग
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शतावर चूर्ण 3 से 5 ग्राम सुबह-शाम गाय के दूध से लेने से, जिन माताओं के स्तनों में दूध सूख जाता है या कम हो जाता है, उनको पुन: यथेष्ट दूध स्तनों में उतर आता है।
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शतावर चूर्ण गर्भवती माताएँ 2-3 ग्राम की मात्रा में गर्भावस्था के दौरान भी सेवन कर सकती हैं। ऐेसा करने से प्रसव के बाद स्तनों में दूध की अल्पता नहीं होगी। प्रसव के बाद भी माताएँ शतावर का सेवन करती रहें। शतावर चूर्ण 50-50 ग्राम सुबह-शाम गाय-भैंसों को देने से उनके दूध में भी वृद्धि हो जाती है।
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चावल + सफेद जीरा की खीर बनाकर खाने से स्तनों में दुग्ध की वृद्धि होती है।
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1 चम्मच सफेद जीरा चूर्ण में समभाग मिश्री मिलाकर 1 गिलास दूध के साथ प्रात: सायं पीने से स्तनों में दुग्ध की वृद्धि होती है।
स्त्रियों के लिए अति लाभदायक 'बला’
चारों प्रकार की बला (Sida cordifolia Linn.) (बला, महाबला, अतिबला, नागबला) पंचांग चूर्ण को पीस-छानकर शहद या दूध के साथ पीने से स्त्री रोगों का शमन होता है।
कर्णशूल की दवा
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सुदर्शन के पत्तों को कूट-पीस कर रस निकाल लें। गुनगुना कर 2-2 बूँद दोनों कानों में दिन में दो-तीन बार डालें, पहले ही दिन से कर्णशूल में लाभ होने लगता है।
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पर्णबीज के पीले पत्तों को कूटकर स्वरस निकालकर गुनगुना करके 2-2 बूँद कान में डालने से कर्णशूल का शमन होता है।
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तुलसी के पत्तों का स्वरस निकालकर गुनगुना करके 2-2 बूँद कान में डालने से कर्णशूल तथा कर्णस्राव का शमन होता है।
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30-40 नीम पत्र तथा 10 लहसुन की कली को पीसकर 50 मिली. कटु तेल में पकाकर, छानकर रख लें। 4-4 बूँद कान में डालने से कर्णशूल, कान से साँय-साँय की आवाज होना, कर्णस्राव व कर्णबधिरता में लाभ होता है।
दन्तविकारनाशक मंजन
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हल्दी, सैंधानमक, फिटकरी का फूला, त्रिफला, नीम के पत्ते या छाल, बबूल की छाल, सभी 100-100 ग्राम तथा लौंग 20 ग्राम मिलाएं। सबका पाउडर करके सुबह एवं रात्रि सोते समय दाँतों में मंजन करें, इससे पायरिया, मुँह की बदबू, ठण्डा-गुनगुना पानी लगना इत्यादि रोग ठीक हो जाता है।
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सैंधव नमक में हल्दी तथा सरसों का तेल मिलाकर दाँतों पर मलने से पायरिया, दंतशूल आदि दंतरोगों तथा मुखरोगों में लाभ होता है।
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नियमित रूप से तिल तेल का गरारा करने से मुख रोगों तथा दंतरोगों का शमन होता है।
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बच्चों के दाँत निकलते समय मसूढ़ों में टंकण भस्म (सुहागे की खील) में शहद मिलाकर लगाने से दाँत सुगमता से निकल आते हैं।
पीलिया, हिपेटाइटिस एवं सिरोसिस ऑफ लीवर की अचूक दवा
श्योनाक की छाल | 25 ग्राम |
भूमि आँवले का पंचांग | 25 ग्राम |
पुनर्नवा मूल | 25 ग्राम |
आवश्यकतानुसार निर्देशित मात्रा में उपरोक्त ताजी औषधियाँ लेकर एक कप रस निकालकर प्रात:काल नियमित रूप से सेवन करने से पीलिया एवं हिपेटाइटिस में निश्चित रूप से लाभ होता है।
उक्त औषधियों के अभाव में आश्रम द्वारा बनाई गई औषधि सर्वकल्प क्वाथ तथा टोटला क्वाथ आदि का प्रयोग कर सकते हैं, जो कि सूखी पूनर्नवामूल, भूमि आँवला, श्योनाक आदि औषधियों के मिश्रण के साथ तैयार की गई है।
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पुनर्नवा की जड़ के छोटे-छोटे टुकड़े करके माला बनाकर पहनने से पीलिया में तुरन्त लाभ मिलता है।
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लगभग 10 ग्राम पुनर्नवा की जड़ को कूटकर 1 कप पानी में मिलाकर सुबह शाम पिलाने से पीलिया ठीक होता है तथा रोगी के खून में पित्त-रंजकों की मात्रा कम होने लगती है।
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विडाल डोडे को रात्रि में पानी में भिगोकर रखें प्रात: इसे घिस लें तथा दो-तीन बूंद रोगी की नासिका में टपका दें या सुंघाएँ। ऐसा करने से रोगी को आराम मिलता है।
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बड़ी दूधी को घिसकर पीने से पीलिया रोग शान्त हो जाता है।
कैंसर, एड्स (AIDS) व रक्त ाल्पता आदि कष्टसाध्य रोगों में गेहूँ के ज्वारे का रस
सेवन विधि
प्रतिदिन एक-एक गमले में या थोड़ी भूमि हो तो भूमि पर नौ दिन तक गेहूँ उगाएँ। 10वें दिन प्रथम गमले में उग आई, गेहूँ की हरी पत्तियों को काट कर 10 ग्राम + 25 ग्राम गिलोय (लगभग दो फुट लम्बी व एक अंगुली जितनी मोटी) लेकर थोड़ा पानी मिलाकर पीस लें, कपड़े से निचोड़कर 1 कप की मात्रा में खाली पेट नित्य प्रयोग करें। खाली हुए गमले में अगली बार के लिए पुन: गेहूँ के दाने बो दें। आश्रम द्वारा दी जाने वाली औषधियों के साथ उक्त रस का नियमित सेवन कैंसर जैसे भयानक रोग से शीघ्र मुक्ति प्रदान करने में सहयोग करता है।
पथरी से मुक्ति के लिए पत्थरचट्टा
नित्य प्रात: पत्थरचट्टा (Bryophyllum pinnatum (Lam, Kurz.) के 2-3 पत्तों को चबा-चबा कर खाएँ। कुछ ही दिनों के सेवन से समस्त प्रकार की अश्मरी व पित्ताशय तथा मूत्र विकारों में निश्चित लाभ होता है।
पाषाणभेद (Bergenia ligulata (Wall.) Engl.) का चूर्ण बनाकर 1-1 चम्मच प्रात: सायं जल के साथ सेवन करने से वृक्काश्मरी में लाभ होता है।
5 ग्राम पीपल की छाल, 5 ग्राम नीम की छाल, सर्वकल्प क्वाथ 200 ग्राम तथा वृक्कदोषहर क्वाथ को मिलाकर एवं 1 चम्मच की मात्रा में लेकर 400 मिली. पानी में पकाएँ। 100 मिली. शेष रहने पर छानकर खाली पेट सुबह नाश्ते से पहले एवं सायंकाल खाने से 1 घण्टा पहले पिएँ।
इसके नियमित प्रयोग से कुछ ही दिनों में रक्त में यूरिया एवं क्रिएटिनीन की मात्रा घट जाती है।
मधुमेह के लिए घरेलू उपचार
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खीरा, करेला और टमाटर एक-एक की संख्या में लेकर जूस निकालकर, सुबह खाली पेट पीने से मधुमेह में लाभ होता है।
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जामुन की गुठली का पाउडर करके, एक-एक चम्मच सुबह-शाम खाली पेट पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह नियन्त्रित होता है।
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नीम के 7 पत्ते सुबह खाली पेट चबाकर अथवा पीसकर पानी के साथ लेने से मधुमेह में लाभ मिलता है।
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सदाबहार के 7 पुष्पों को खाली पेट जल के साथ चबाकर सेवन करने से भी मधुमेह में लाभ मिलता है।
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गिलोय, जामुन, कुटकी, निम्बपत्र, चिरायता, कालमेघ, सूखा करेला, काली जीरी, मेथी, इनको समान मात्रा में लेकर चूर्ण कर लें। यह चूर्ण 1-1 चम्मच सबुह-शाम खाली पेट पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह में विशेष लाभ मिलता है।
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करंजबीज चूर्ण को आधा-आधा चम्मच की मात्रा में प्रात: सायं गुनगुने जल के साथ सेवन करने से मधुमेह में लाभ होता है।
वातज विकारों के घरेलू उपचार
हल्दी, मेथी-दाना व सोंठ- 100-100 ग्राम तथा अश्वगन्धा चूर्ण-50 ग्राम मात्रा में लेकर चूर्ण कर लें। 1-1 चम्मच नाश्ते व शाम खाने के बाद गुनगुने पानी से लें। इसके सेवन से जोड़ों का दर्द, गठिया, कमर दर्द आदि में विशेष लाभ होता है।
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लहसुन की 1 से 3 कली खाली पेट पानी से लेने से जोड़ों के दर्द में लाभ होता है। साथ ही बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल, ट्राइग्लिसराइड सामान्य होता है। हृदय की शिराओं में आए हुए अवरोध को भी दूर करने में लहसुन उपयोगी है।
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मोथा घास की जड़, जो कि एक गाँठ की तरह होती है, उसका पाउडर करके 1 से 2 ग्राम सुबह-शाम पानी या दूध से लेने से जोड़ों के दर्द व गठिया में आश्चर्यजनक लाभ मिलता है।
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निर्गुण्डी के पत्तों का चूर्ण एक-एक चम्मच सुबह-शाम खाना खाने के बाद पानी के साथ सेवन करने से वात रोगों का शमन होता है।
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एरण्ड के पत्तों को पीसकर हल्का गर्म करके जोड़ों पर लगाने से लाभ मिलता है।
गृध्रसी एवं मधुमेह में लाभदायक सदाबहार एवं हरसिंगार के पत्ते
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सदाबहार के 5 पत्ते एवं फूल प्रतिदिन प्रात: खाली पेट खाने से रक्त में शर्करा की मात्रा नियंत्रित रहती है एवं सियाटिका के दर्द में आराम होता है।
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हरसिंगार के 5 पत्तों का काढ़ा बनाकर प्रतिदिन प्रात: खाली पेट पीने से रक्त में शर्करा की मात्रा नियंत्रित रहती है तथा सियाटिका का दर्द दूर होता है।
मोच, शोथ एवं अस्थिभग्न के लिए घरेलू उपचार
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मंजिष्ठा चूर्ण, शतधौत घृत, रक्तचन्दन, शालि चावल तथा यष्टीमधु चूर्ण को बराबर मात्रा में मिलाकर स्थानिक प्रयोग करके बन्धन बाँधने से मोच, अस्थिभग्न में चमत्कारिक लाभ मिलता है।
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एरण्ड या आक के पत्तों में पीड़ान्तक तेल लगाकर, हल्का गर्मकर प्रभावित स्थान पर बाँधने से शोथ, मोच तथा वेदना में लाभ होता है।
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गेहूँ की मोटी रोटी बनाकर उसमें हल्दी तथा सरसों का तेल लगाकर, एक तरफ गर्मकर मोच व शोथयुक्त स्थान पर बाँधने से लाभ होता है।
सिर दर्द, अनिद्रा तथा माइग्रेन में लाभकारी नस्य
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बादाम का तेल सुबह खाली पेट तथा सायंकाल सोते समय नाक में डालने से सिर दर्द, माइग्रेन, अनिद्रा, स्मृति-दौर्बल्य, सिर में भारीपन, पक्षाघात, कम्पवात, डिप्रेशन व साइनस में विशेष लाभ होता है। सिर दर्द व अनिद्रा में तुरन्त प्रभाव करता है। बादाम रोगन की सिर में मालिश करने से भी उपरोक्त सभी रोगों में शीघ्र लाभ होता है।
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4-4 बूँद गाय के घी को दोनों नथुनों में डालने से अनिद्रा तथा माइग्रेन में लाभ होता है।
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निर्गुण्डी के पत्तों का स्वरस निकालकर 4-4 बूँद नाक में डालने से शिर:शूल, कफज-विकारों तथा माइग्रेन में लाभ होता है।
बालों को झड़ऩे एवं सफेद होने से रोकने वाला प्रयोग
नियमित रूप से दोनों हाथों की अंगुलियों के नाखूनों को आपस में दिन में 2-3 बार 5-5 मिनट रगड़ें। इस प्रयोग के अभ्यास से बालों का झडऩा एवं सफेद होना रुक जाता है। बाल काले एवं घने होने लगते हैं। हमने इस प्रयोग से हजारों वंशानुगत रूप से भी गंजों के बाल उगते एवं 70 वर्ष के वृद्धों के भी बाल काले होते देखे हैं।
बालों के लिए अचूक दवा
बर्रे (पीली मक्खी) का छत्ता (जिसमें से मक्खियाँ उड़ चुकी हों) 5 ग्राम एवं देशी गुड़हल के 10-15 पत्तों को आधा लीटर नारियल तेल में डालकर मन्द-मन्द आग पर उबालें। सिकते-सिकते जब छत्ता काला पड़ जाए तो तेल को अग्नि से हटा लें। ठण्डा हो जाने पर निथार कर तेल को शीशी में भरकर रखें। प्रतिदिन हल्के हाथ से इस तेल की सिर पर मालिश करने से बाल उग आते हैं।
रूसी (Dandruff) नाशक सरल प्रयोग
200 ग्राम नीम के पत्तों को कूटकर 200 मिली. तिल तेल में मिलाकर मन्द अग्नि पर धीरे-धीरे पकाएँ। पकाने के बाद छानकर रख लें। इस तेल को सिर में लगाने से डेन्ड्रफ व बालों का झडऩा आदि रोग दूर होते हैं। सिर में सोराइसिस या फोड़े-फुन्सियाँ होने पर इसे लगाने से शीघ्र ही लाभ मिलता है।
सुहागे (टंकण) का फूल | 5 ग्राम (1 छोटा चम्मच) |
नारियल का तेल | 5 मिली. (1 चम्मच) |
दही | 15 मिली. (3 छोटा चम्मच) |
नींबू स्वरस | 5 मिली. |
उक्त तीनों को ठीक प्रकार से मिलाकर बालों में लगाएँ। लगभग 1 घण्टा बाद बालों को धो लें। साथ ही आश्रम में तैयार किए गए दिव्य केश तेल का प्रयोग करने से शीघ्र लाभ होता है।
केशों को काला करने के लिए
सूखी पिसी मेंहदी | 20 ग्राम |
काफी पाउडर | 3 ग्राम |
नींबू का रस | 25 ग्राम |
कत्था | 3 ग्राम |
ब्राह्मी चूर्ण | 10 ग्राम |
आँवला चूर्ण | 10 ग्राम |
सभी को घोटकर मिला लें (बालों में लगाकर 1/2 घण्टा छोड़ दें) पानी से धो लें। इसके प्रयोग से बाल काले, घने तथा मुलायम हो जाते हैं।
शीत-पित्त (rticaria) की घरेलू दवा
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50 मिली. नारियल तेल तथा 5 ग्राम देशी कपूर दोनों को मिलाकर, शीत-पित्त पर लगाने से तुरन्त आराम मिलता है और जलन तथा खुजली शान्त हो जाती है।
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5 नग काली मिर्च 4 चम्मच खाँड तथा 4 चम्मच देशी गोघृत को मिलाकर सेवन करने से शीतपित्त में लाभ होता है।
गेंग्रीन (Gangrene) की दवा
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गाय का शुद्ध देशी घी लगाकर, विधारा के पत्तों को हल्का-सा गर्म कर साथ में बाँधने से कुछ ही दिनों में Gangreneजैसे भयानक व्रण में आराम हो जाता है।
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सदाहरी के पत्तों को पीसकर, रस निकालकर लगाने से कुछ ही दिनों में Gangrene का घाव भरने लगता है।
होठों का फटना (Cracks of Lips)
नित्य प्रतिदिन स्नान के बाद, नाभि में सरसों का तेल मलने से होठों का फटना बन्द हो जाता है। साथ ही चेहरे की रूक्षता दूर होकर कान्ति बढ़ती है।
बिवाई या विपादिका (Cracks of Heal) का मरहम
सरसों का तेल | 50 मिली. |
देशी मोम | 25 ग्राम |
देशी कपूर | 5 ग्राम |
सरसों के तेल को गर्म करें। जब तेल उबलने लगे तो उसमें धीरे-धीरे मोम मिला दें। जब मोम पूरी तरह से घुलकर मिल जाए, तो बर्तन को आँच से उतार लें एवं ठण्डा होने दें। थोड़ा गुनगुना रहने पर उसमें कपूर भी मिला दें। इस तरह तैयार मरहम को रात्रि में सोने से पूर्व बिवाइयों में लगाएँ। पहले ही दिन से लाभ मिलने लगता है।
श्वेतकुष्ठ, श्वित्र, चर्म रोगों में लाभकारी
गोमूत्र | 100 मिली. |
निम्ब पत्र | 100 ग्राम |
गोबर रस | 100 मिली. |
बावची चूर्ण | 100 ग्राम |
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सभी को मिलाकर एवं पीसकर लेप बना लें। इस लेप को लगाने से श्वित्र एवं अन्य सभी प्रकार के चर्म-रोगों (Skin Diseases) में शीघ्र ही आराम मिलता है।
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पुनर्नवा मूल तथा अर्जुनछाल को गोमूत्र में पीसकर लगाने से श्वेतकुष्ठ में आराम मिलता है।
तिल की दवा
दिव्य कायाकल्प वटी | 4० ग्राम |
2-2 गोली सुबह शाम खाली पेट पानी से लें। दवा सेवन के 1 घण्टा पहले व बाद में दूध व दूध से बने पदार्थ न लें।
दिव्य कैशोर गुग्गुलु | 40 ग्राम |
1-1 गोली सुबह-शाम खाने के बाद गुनगुने पानी से लें।
मस्सों व कॉन्र्स (गोखरू) की दवा
खाने का चूना | 10 ग्राम |
सज्जीक्षार | 10 ग्राम |
कपड़े धोने का सोडा | 10 ग्राम |
गेरू | 2 ग्राम |
थोड़ा जल मिलाकर चारों को घोंट-पीस कर मरहम बना लें। मस्सों पर एक बार माचिस की तिली या रूई की फुरेरी से लगाएँ। एक बार लगाने से मस्सा सूख जाता है। एक बार में मस्सा न सूखे तो 2-3 दिन के अन्तराल से एक-दो बार और लगा सकते हैं। इस प्रयोग को सावधानी से करें। (इससे मस्से सूखने के बाद स्वत: ही झड़ जाते हैं।)
कॉन्र्स- कॉन्र्स (गोखरू) या पैरों की डील को तेज यन्त्र से काटकर उसमें यह दवा भर दें। ऐसे कुछ दिन करने से कॉन्र्स खत्म हो जाते हैं।
कील-मुँहासों के लिए
पानी ज्यादा पीएँ, नीम के पत्ते 3-3 सुबह शाम खाएँ , मिर्च-मसाला एवं गर्म चीजें कम खाएँ।
त्वचा रोग एवं चेहरे के दाग धब्बे व झुर्रियाँ
एलोवेरा के पत्ते को छीलकर गूदेदार भाग को मुख व त्वचा पर लगाने से त्वचा की कान्ति बढ़ती है तथा दाग, धब्बे व झुर्रियाँ दूर होती है।
चेहरे पर निखार लाने के लिए
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5 ग्राम चिरौंजी, 1 चम्मच हल्दी, 1 चम्मच शहद तथा 1 चम्मच बेसन को कच्चे दूध में मिलाकर चेहरे पर लगाएँ।
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1 पके टमाटर के रस में 1/2 चम्मच नींबू का रस मिलाकर चेहरे पर लगाएँ।
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जैतून के तेल में नींबू का रस मिलाकर पूरे शरीर की मालिश करें।
दुर्बलता के लिए अश्वगन्धा चूर्ण
अश्वगन्धा चूर्ण 1-1 चम्मच (3 से 5 ग्राम) सुबह-शाम दूध से सेवन करने से दुबले व्यक्तियों का एक माह में लगभग 3 से 5 किलो वजन बढ़ जाता है। इस चूर्ण का सेवन करने से शारीरिक दुर्बलता, वातरोग व स्नायुरोग में भी विशेष लाभ होता है।
मुँह के छालों के लिए घरेलू दवा
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कायाकल्प तेल में फिटकरी भस्म मिलाकर रूई की फुहेरी से प्रभावित स्थान पर लगाने से मुख के छाले ठीक हो जाते हैं।
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चमेली और अमरूद के 5-5 पत्ते लेकर थोड़ी देर तक मुंह में धीरे-धीरे चबाएँ। थोड़ी देर बाद पानी बाहर निकाल दें। ऐसा करने से भी मुँह के छाले ठीक हो जाते हैं।
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1 या 2 खदिरादि वटी को मुख में रख कर चूसने से छालों में लाभ होता है।
प्लेट्लेट्स को बढ़ाने के लिए
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प्रतिदिन खाली पेट 25-50 ग्राम घृतकुमारी का गूदा खाने से अथवा घृत कुमारी स्वरस को पीने से कम हुई Platelets की संख्या बढ़ जाती है।
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घृतकुमारी का गूदा Platelets को बढ़ाने के साथ-साथ उदर के समस्त विकारों एवं स्त्रियों के रोगों में बहुत लाभ करता है।
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वात रोग, थैलेसीमिया, हिपेटाइटिस 'बी’, पेट का फूल जाना, भूख न लगना, भोजन करने पर पेट में जलन होना, स्त्रियों में मासिकधर्म की अनियमितता, मूत्र में जलन होना, मूत्र का रुक-रुक कर आना आदि रोगों में घृतकुमारी के सेवन से आराम हो जाता है।
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पपीते के पत्तों का रस निकालकर 25-50 मिली. मात्रा में प्रात: सायं सेवन करने से Platelets बढ़ते हैं।
गोमूत्र के उपयोग
प्रथम प्रयोग- गोमूत्र साधारण रोगों के साथ-साथ कैंसर, दमा, वृक्क-निष्क्रियता, जलोदर एवं यकृत्-शोथ आदि अनेकों रोगों की निरापद औषध है। 10-15 मिली. गोमूत्र का नियमित रूप से प्रतिदिन दो बार सेवन करने से उक्त सभी रोगों में शीघ्र लाभ होना प्रारम्भ हो जाता है।
आधुनिक विश्लेषणों के आधार पर गोमूत्र में नाइट्रोजन, फास्फेट, कैल्शियम, मैग्निशियम, यूरिया, यूरिक अम्ल, पोटैशियम, सोडियम कार्बोलिक अम्ल, लैक्टोज एवं हार्मोन्स पाए जाते हैं, जो सभी रोगों पर अपना-अपना प्रभाव दिखाकर रोग को समाप्त करने में सहयोग करते हैं।
गोमूत्र को यथासम्भव ताजा ही आठ तह किए कपड़े से छानकर प्रयोग करना चाहिए। तुरन्त ब्यायी या जरसी गाय का मूत्र प्रयोग नहीं करना चाहिए। बच्चा देने के 1-2 माह के पश्चात् ही गोमूत्र प्रयोग करना उचित है। प्रतिदिन ताजे गोमूत्र की अनुपलब्धता की अवस्था में गोमूत्र को छानकर शीशी में भरकर रख लें। जो मधुमेह के रोगी नहीं हैं, वे लोग इस गोमूत्र में मधु मिलाकर भी रख सकते हैं। इससे वह अधिक दिनों तक सुरक्षित रहेगा।
द्वितीय प्रयोग- गोमूत्र को ताम्बे के पात्र में लेकर उसको पका लें। जब आधा से भी कम रह जाए तब छानकर शीशी में भरकर रख लें। 1-1 या 2-2 बूंद प्रात: सायं आँख में डालने से आँखों के समस्त रोगों में लाभ पहुँचता है।
त्रिफला के उपयोग
हरड़, बहेड़ा तथा आँवला फल के समभाग मिश्रण को त्रिफला कहते हैं। त्रिफला को आयुर्वेद में रसायन माना गया है। इसके विधिपूर्वक सेवन से रोगों का शमन तथा शरीर में बल की वृद्धि होती हैं।
त्रिफला के गुण
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त्रिफला कफ, पित्त, प्रमेह तथा कुष्ठ को हरने वाला, दस्तावर, नेत्रों को हितकारी, अग्नि प्रदीप्त करने वाला, रुचिवर्धक एवं विषमज्वरनाशक है।
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2-5 ग्राम त्रिफला चूर्ण में 125 मिली. लौह भस्म मिलाकर प्रात:-सायं सेवन करने से बाल झडऩे बंद हो जाते हैं।
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एक चम्मच त्रिफला चूर्ण को रात्रि को ठंडे पानी में भिगोकर प्रात: उस जल से नेत्रों को धोने से नेत्रों के रोग मिटते हैं।
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पित्तजनित गुल्म में द्राक्षा एवं हरड़ का 1-2 चम्मच स्वरस गुड़ मिलाकर पीना अथवा त्रिफला चूर्ण की 3-5 ग्राम मात्रा को खाँड में मिलाकर दिन में 3 बार खाना चाहिए।
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त्रिफला, दाडिम, राजादन यें सब वायुनाशक, मूत्रदोष को मिटाने वाले हैं। हृदय के लिए पिपासानाशक है एवं रुचि उत्पन्न करने वाले हैं।
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रात्रि में सोते समय एक चम्मच त्रिफला चूर्ण का सेवन गुनगुने जल के साथ करने से कब्ज मिटती है।
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त्रिफला का क्वाथ बनाकर 20 मिली. मात्रा में पीने से विषम ज्वर का शमन होता है।
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आधा चम्मच त्रिफला चूर्ण को प्रात:, दोपहर व सायं जल के साथ सेवन करने से अम्लपित्त में लाभ होता है।
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1 चम्मच त्रिफला चूर्ण को रात्रि में 200 मिली. पानी में भिगोकर रखें। प्रात: गर्म करें आधा शेष रहने पर छान लें, इसमें 2 चम्मच शहद मिलाकर सेवन करें। कुछ ही दिनों के सेवन से कई किलो वजन कम हो जाता है।
हरीतकी के उपयोग
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हरीतकी को चबाकर खाने से जठराग्नि की वृद्धि होती है।
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हरीतकी को पीसकर खाने से मल का शोधन होता है।
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हरीतकी को उबालकर खाने से मल का स्तम्भन होता है।
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हरीतकी को भूनकर खाने से त्रिदोष का शमन होता है।
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हरीतकी को भोजन के साथ सेवन करने से बुद्धि, बल तथा इन्द्रियों को ताकत मिलती है, त्रिदोष का शमन तथा मल-मूत्र का विरेचन होता है।
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हरीतकी को भोजन के बाद सेवन करने से अन्नपान सम्बन्धी विकारों तथा दोषों से उत्पन्न होने वाले विकारों का शमन होता है।
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हरीतकी को सेंधा नमक के साथ खाने से कफज विकारों का शमन होता है।
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हरीतकी को शक्कर के साथ खाने से पित्तज विकारों का शमन होता है।
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हरीतकी को घृत के साथ खाने से वात सम्बन्धी विकारों का शमन होता है।
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हरीतकी को गुड़ के साथ खाने से समस्त व्याधियों में लाभ होता है।
षड्ऋतु के अनुसार हरीतकी का प्रयोग
आयुर्वेद के अनुसार विविध ऋतुओं में शरीर को निरोग व स्वस्थ रखने के लिए रसायन आदि सेवन का वर्णन किया गया है। षड्ऋतुओं के अनुसार हरीतकी का विभिन्न अनुपातों के साथ सेवन करके स्वास्थ्यलाभ प्राप्त किया जा सकता है।
षड्ऋतु अनुसार रसायन औषध
हेमन्त ऋतु आधा चम्मच हरीतकी एवं सम मात्रा में सोंठ चूर्ण का सेवन।
शिशिर ऋतु आधा चम्मच हरीतकी एवं सममात्रा में पिप्पली चूर्ण का ताजे जल के साथ सेवन।
वसन्त ऋतु हरीतकी चूर्ण का सममात्रा में शहद के साथ सेवन।
ग्रीष्म ऋतु हरीतकी चूर्ण का सममात्रा में गुड़ के साथ सेवन।
वर्षा ऋतु हरीतकी चूर्ण का सममात्रा में सैंधव लवण के साथ सेवन।
शरद ऋतु हरीतकी चूर्ण का सममात्रा में शर्करा के साथ सेवन।
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