सनातन धर्म के घोषित अघोषित शत्रु

सनातन धर्म के घोषित अघोषित शत्रु

प्रो. रामेश्वर मिश्र पंकज

भारत का एकमात्र अर्थ सनातन धर्म है। इसके अतिरिक्त और भारत का कोई भी अर्थ विश्व में किसी के मस्तिष्क में नहीं है। जिन कपटी और कुटिल लोगों को भारत में इसके विषय में संशय फैलाना है या भारत से सनातन धर्म को मिटाना जिनका लक्ष्य है वही यहाँ कंपोजिट कल्चर या साझा संस्कृति आदि की आपत्तिजनक और दंडनीय बातें करते हैं। सनातन धर्म से यूरोप के ईसाइयों को भारी आपत्ति है क्योंकि उनकी सारी नींव ही इस बात पर टिकी है कि संसार में आज तक एक ही सच्चा रिलीजन हुआ है, वह है ईसाइयत और इसकी शरण में आना ही मनुष्य के उद्धार का एकमात्र मार्ग है। शेष  सब लोग सदा के लिए नर्क में जाएंगे। इसका ऐसा व्यापक प्रचार यूरोप में ईसाई पादरियों ने किया है कि जन सामान्य के मस्तिष्क में इन धारणाओं की बड़ी गहरी छाप है। सनातन धर्म का प्रकाश फैलते ही उनकी बातें हास्यास्पद हो जाएंगी इसलिए उन्हें सबसे अधिक आपत्ति सनातन धर्म से ही है। परन्तु बात इतनी सामान्य नहीं है। यूरोप में सैकड़ों बड़े वैज्ञानिक ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपने वैज्ञानिक सिद्धांतों की मूल प्रेरणा भारतीय धर्म या दर्शन से ही प्राप्त की परन्तु उनमें से कुछ एक ने ही इसका उल्लेख किया है। शेष लोग भारत के योगदान को बाद में स्पष्ट स्वीकार नहीं करते और परिणाम यह होता है कि वहाँ अभिलेखों से इस बात को उड़ा दिया जाता है। उदाहरण के लिए शून्य और दशमलव की  खोज पूरी तरह भारतीय है लेकिन यूरोप के ईसाई पादरी और उन से प्रेरित आधुनिक लोग भी यह प्रचार कर रहे हैं कि यह मुस्लिम विज्ञान है। जबकि इस्लाम की हकीकत यह है कि वहाँ जो भी उनके वैज्ञानिक हुए हैं, वह भी मूलत: भारत से ही प्रेरित रहे हैं और इस्लाम मजहब के विरोधी रहे हैं। उनकी इस्लाम मजहब में मान्यता नहीं थी, शासकों के  संरक्षण में ऐसे वैज्ञानिकों ने किसी तरह काम किया पर आज उनका श्रेय लेने इस्लाम आ जाता है। इस्लाम को भी ईसाईयत की ही तरह विज्ञान की आधारभूत मान्यताएं और स्थापनाएं स्वीकार नहीं थी। परन्तु अब इन दिनों भारत के विरुद्ध इस्लाम और ईसाइयत दोनों ही एकजुट हो गए हैं और यह बात स्वयं यूरोप में भी तेजी से फैल रही है। यह अलग बात है कि यूरोप के प्रबुद्ध लोग और जो जागृत बुद्धि वाले तेजस्वी लोग हैं वह इसके विरुद्ध हैं। अनेक बातें जो पहले सर्वमान्य थी उन्हें विकिपीडिया जैसे ज्ञानकोश कहे जाने वाले फलकों से भी गायब कर दिया गया है। जो बातें हैं भारतीयों की प्रेरणा से हुई उन्हें भी छुपाया जाता है और ऐसा बताया जाता है कि मानो उसके मूल अन्वेषी या संस्थापक या प्रवर्तक यूरोप के ही कोई न कोई लोग थे। ऐसी स्थिति में भारत के प्रति विद्वेष का भाव यूरोप के ईसाइयों में और संसार भर के मुस्लिम नेताओं में बहुत गहरा है। इस तथ्य को जानना आवश्यक है।
भारत में इन दोनों के जो एजेंट है या उनके द्वारा पोषित जो लोग हैं, वे सनातन धर्म का निरंतर विरोध कर रहे हैं, उसकी प्रत्येक बात को गलत ढंग से पेश कर रहे हैं और झूठ बोलकर उसे प्रचारित करते हैं। इस सच को जानना अत्यंत आवश्यक है। एक प्रख्यात जर्मन लेखिका मारिया वर्थ ने अपने संस्मरणों के आधार पर बताया है कि किस प्रकार जो वैज्ञानिक सीधे भारत से प्रभावित होते रहे हैं और जिन्होंने अपने वैज्ञानिक शोध के लिए आवश्यक सैद्धांतिक परिकल्पना की प्रेरणा ही भारतीय दर्शन के अध्ययन से प्राप्त की तथा इस बात को कहा भी, उन वैज्ञानिकों के नाम और विवरण से भारत से प्रेरित होने वाली बात मिटा दी जाती है। इनसाइक्लोपीडिया (Encyclopedia) से और विकिपीडिया (Wikipedia) से भी यह तथ्य गायब कर दिए जाते हैं। उक्त जर्मन लेखिका ने बताया है कि किस प्रकार ईसाई और मुसलमान दोनों के ही मुख्य लोग भारत के विषय में जानकारी दबाने के लिए एकजुट हैं और वह इन सब बातों का श्रेय परस्पर बाँट लेना चाहते हैं। उन्होंने ही बताया है कि भारत के ज्ञान से प्रेरित होकर ही अनेक बड़े वैज्ञानिकों ने आधुनिक काल में महत्वपूर्ण खोजें की हैं परन्तु इस तथ्य को भी अधिकृत अभिलेखों से छिपाया जाता है।
उदाहरण के लिए यह बात छुपाई जाती है कि ऋग्वेद में लिखा है कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। उसके स्थान पर कोपरनिकस को इसका श्रेय दिया जाता है।
इसी तरह यह तथ्य छुपाया जाता है कि ब्रह्माण्ड की आयु का सही-सही निर्धारण वेदों में है जो कि आधुनिक विज्ञान के द्वारा पुष्ट  होता है और जिसके कारण बाइबिल में वर्णित ब्रह्माण्ड की आयु हास्यास्पद हो जाती है। ब्रह्माण्ड की आयु के विषय में आधारभूत जानकारी  वैज्ञानिकों को अपने भारतीय  ज्ञान से ही मिली है। सभी जानते हैं कि यूरोप और अमेरिका के प्रमुख वैज्ञानिक भारतीय दर्शन से प्रेरित रहे हैं। हाइजेनबर्ग, श्रोडिंगर, पावली, आइंस्टाइन, ओपन हायमर आदि वैज्ञानिक पूरी तरह भारतीय दर्शन से प्रेरित रहे हैं।
प्रथम परमाणु विस्फोट के समय ओपन हाईमर ने प्रकाश देखते ही गीता के श्लोक का स्मरण किया था जिसमें कहा गया है कि यदि हजारों सूर्य एक साथ उदित हों तो जैसा प्रकाश होगा। वैसा प्रकाश परमाणु विस्फोट से चारों ओर फैल रहा है।
आइंस्टाइन को भारतीय दर्शन से ही प्रेरणा प्राप्त हुई। हमारे दर्शन से अत्यधिक प्रभावित वर्तमान काल में अनेक वैज्ञानिक भारतीय वेदांत दर्शन से प्रभावित रहे हैं। नटराज की मूर्ति के वास्तविक स्वरूप में सतत गतिमय नर्तनशील चेतन ऊर्जा है, यह फ्रित्जफ़़ काप्रा. ने कहा। यही कारण है कि आधुनिक प्रयोगशालाओं में नवीनतम खोजों के समय नटराज शिव की विशाल मूर्ति रखी जाती है। परन्तु अपने अधिकृत अभिलेखों में इनसाइक्लोपीडिया, ब्रिटानिका और Wikipedia भी यह छिपा जाते हैं।
मारिया बताती हैं कि 1982 में मुंबई में एक महत्वपूर्ण सम्मेलन हुआ था जिसमें भारतीय बुद्धि परम्परा और ज्ञान परम्परा का आधुनिक विज्ञान से सम्बन्ध-इस विषय पर एक महत्वपूर्ण गोष्ठी हुई थी और जिसमें स्वामी मुक्तानंद जी के व्याख्यान के आधार पर ही वैज्ञानिकों ने चिंतन किया था उसमें से अनेक महत्वपूर्ण धारणाएं निकली जिन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है ट्रांसपर्सनल साइकोलॉजी। परन्तु Wikipedia इसके बारे में यह बताता है कि ट्रांसपर्सनल  साइकोलॉजी का विकास विलियम जेम्स, अब्राहम मास्लो जैसे यूरोपीय मनोवैज्ञानिकों ने किया था और स्वामी मुक्तानंद जो इसके मूल प्रेरक थे यह छिपाया जाता है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक ही  दिव्य सत्ता है, यह वेदांत दर्शन है। इसको यूरोप और अमेरिका के वैज्ञानिक तो मानते हैं परन्तु अपने अभिलेखों में, शब्दकोश और ज्ञानकोश में यूरोप और अमेरिका के लोग यह तथ्य गायब कर देते हैं। इस प्रकार सनातन धर्म के विरुद्ध, सनातन धर्म की ज्ञान परम्परा और आधारभूत स्थापनाओं के विरुद्ध एक गहरा विद्वेष ईसाई पादरियों और इसाई विद्वानों तथा मुस्लिम लोगों को है इसीलिए वे प्रयास करते हैं कि हिन्दू धर्म को संसार की सर्वाधिक बुराइयों का खजाना बताया जाए और इसके लिए जाति-प्रथा की बहुत ही विकृत तथा तोड़कर व्याख्या करते हैं और ऐसे दर्शाते हैं कि मानो  भारत में untouchables की विशाल संख्या है जिनसे अनुचित व्यवहार आज भी हो रहा है। जिन्हें वे लोग ऐसी पराधीन दशा में रह रहे समूह बताते हैं, वह सब लोग भारत में उच्चतम पदों पर पहुंच रहे हैं, भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, अनेक मंत्री, अनेक राजपत्रित अधिकारी, अनेक आईएएस-आईपीएस और पीसीएस अधिकारी, यह सब अनुसूचित जाति के हैं और अपना अपना काम अच्छे से कर रहे हैं।
फिर भी ऐसे बताया जाता है मानो कि अनुसूचित जाति के लोगों के साथ सनातन धर्म के अनुयाई आज भी गहरा भेदभाव करते हैं, ऐसा विकराल झूठ चारों तरफ  फैला रखा है दुष्टों ने।
मारिया वर्थ बताती हैं कि किस प्रकार नेशनल ज्योग्राफिक से अपनी एक भेंट में नोबेल पुरस्कार विजेता भौतिक वैज्ञानिक स्टीवन विएनवर्ग ने विश्व के महान वैज्ञानिकों की बात की जिनमें उसने एरिस्टोटल, टोलेमी आदि की भी बात की गैलेलियो, न्यूटन के साथ। लिब्नित्ज जैसे दार्शनिक की बात की परन्तु भारत के विषय में एक शब्द नहीं बोले जबकि सत्य है कि यूरोप के कोई भी महान वैज्ञानिक आधुनिक काल में मूलत: भारतीय दर्शन की प्रेरणा से ही यहाँ तक पहुंचे हैं। आर्यभट्ट और बोधायन जैसे भारत के महान वैज्ञानिकों तक को अधिकृत रूप से यूरोपीय अभिलेखों में शामिल नहीं किया जाता। जबकि वहाँ के प्रबुद्ध लोग अब इनके विषय में जान चुके हैं। भारत की महानता से घबराकर आजकल भारत के विषय में लिखी जा रही सभी किताबों में भारत को भारत या इण्डिया नहीं कहकर साउथ एशिया कहा जा रहा है और हिन्दू धर्म को भयंकर विश्वासों का गढ़ बताया जा रहा है।
उनके द्वारा पोषित अथवा उनके द्वारा खरीदे गए जो एजेंट भारत में सक्रिय हैं वह भी उनकी ही भाषा बोलते हैं और ब्रिटिश काल में जिस मानसिकता से भारत के कतिपय ऊंची जाति के अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोग हो गए थे आज भी उस वर्ग  की वही मानसिकता है।
वे प्राय: यूरोप के लोगों के द्वारा किए जानेवाले झूठे आक्रमणों के बचाव में आ जाते हैं। भारत के अनेक सदाशयी नेता भी यूरोपीय प्रचार से दबकर भारत के दोषों को गिनाने लगते हैं जबकि ईसाईयत और इस्लाम के भयंकर पापों पर पर्दा डाल दिया जाता है और उनकी बात तक नहीं की जाती।
दूसरी ओर जाति प्रथा जो भारत की सर्वाधिक गतिशील समाज व्यवस्था है और जिसमें एक मात्र बुराई ऊंच-नीच की भावना के रूप में आई थी उसको सहज ही भारतीयों ने हटा दिया है उसके बाद जो एक अत्यंत समाज की आधारशिला है उसके विरुद्ध निरंतर आक्रमण किया जाता रहता है और इस बात को छुपाया जाता है कि ईसाइयत और इस्लाम दोनों ही कबीलाई टकराव और पंथों की कठोरता से आगे बढ़े हैं।
इस्लाम के सारे ही युद्ध मूलत: कबीला यानी जाति पर आधारित युद्ध रहे हैं और यूरोप में आज भी अलग-अलग जातियों यानी कबीलों का भयंकर टकराव जारी है यूरोप और विश्व के विषय में भारत के लोग कुछ ना जाने और केवल अपने किसी महान भविष्य की कल्पना में वर्तमान की किसी काल्पनिक बुराई को बाधक मानकर उसी पर सर धुनते रहें, यह योजना है और इस योजना के प्रचारक भारत में काफी शक्तिशाली हो गए हैं। इसलिए सनातन धर्म के लोगों को अपने ज्ञान की साधना पुन: करनी होगी और सच का प्रचार प्रसार करना होगा, दूसरों को गालियां देने से काम नहीं चलेगा। अपनी बात तो स्वयं ही करनी पड़ती है।
 

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