पतंजलि का स्वदेशी आन्दोलन

पतंजलि का स्वदेशी आन्दोलन

राकेश कुमार 

मुख्य केन्द्रीय प्रभारी,

पतंजलि योग समिति

  स्वदेशी के विषय में और अनेकों विषयों में पतंजलि जो सेवा कर रहा है उसका मूल दर्शन क्या है? पूज्य स्वामी जी ने बताया कि जो विदेशी कपनियाँ अपने देश में व्यापार के लिए आती हैं, वे देश में आने से पहले जब कोई प्रोडक्ट लॉन्च करती हैं तो उससे पहले ये अनेलिसिस करती हैं कि इसके यूजर कितने हैं, ये बाजार कितना बड़ा है और हम कितने प्रोडक्ट की खपत कर सकते हैं, उससे हमें कितना टर्न ओवर मिलेगा और उससे कितना प्रॉफिट होगा। उनका पूरा दर्शन केवल बाजार के ऊपर आधारित है। उनके लिए एक-एक भारतवासी केवल एक ग्राहक है और पतंजलि के लिए भारत एक बाजार नहीं है, एक परिवार है।
अभी हम बात करें तो पिछले साल तक देश में 16 लाख कंपनियाँ थी, इस साल भारत के वित्त मंत्रालय ने ऐसी लगभग 4 से 5 लाख कंपनियों को बंद कर दिया जिनमें कोई काम नहीं होता था। इन 12 लाख कंपनियों में से मुझे कोई एक भी कंपनी ऐसी दिखाई नहीं देती जिसका संकल्प हो की हम अपना 100% चैरिटी में लगाएंगे केवल आप की संस्था, आपकी पतंजलि एक मात्र ऐसी कंपनी हैं जिसका संकल्प है की हम अपना 100% प्रॉफिट केवल चैरिटी में लगाएँगे।  परम पूज्य स्वामी जी महाराज बार-बार हमें स्वदेशी का दर्शन देते रहते हैं। शून्य तकनीकी की विदेशी कंपनियों का बहिष्कार, स्वदेशी का व्यावहारिक दर्शन परम पूज्य स्वामी जी महाराज ने दिया है। उससे पहले स्वदेशी की जब विचार की बात होती थी तो तकनीक के विरोध की भी बात होती थी। इस विषय पर पूज्य स्वामी जी महाराज ने व्यवहारिकता दिखाई है, जैसे महर्षि दयानन्द का संकल्प रहा है की तर्क के आधार पर हमें सत्य का निर्धारण करना है। उन्होंने तर्क के आधार पर निर्धारण किया की शून्य तकनीकी का हम विरोध करें, तकनीकी को हम स्वीकार करें और अपनी तकनीक को विकसित करें।
हमारे महापुरुषों ने स्वदेशी का पुरजोर समर्थन किया। महात्मा गांधी जी के बारे में पूज्य स्वामी जी ने बताया, उससे वैचारिक कुछ विरोध हो सकता है लेकिन महात्मा गांधी कुछ मामलों में बहुत अच्छे थे, उन्होंने उस समय एक सिद्धांत दिया था कि इस देश में हम समाजवाद नहीं चाहते जो कम्युनिस्ट देश हैं उनकी तरह वो भारत के प्रकति के अनुरूप नहीं हैं तो महात्मा गांधी जी ने ट्रस्टीशिप का सिद्धांत दिया था। इसके अनुसार जितने बड़े लोग हैं और फैक्टरियाँ चलाते हैं, उस फैक्ट्री, संस्थान को चलाते हुए जितना उनके लिए जरुरी है उतना वो रखें और बाकि सब देश, समाज और चैरिटी के लिए निकाल दें। गांधी जी की हत्या होने के बाद यही विचार जय प्रकाश नारायण जी ने रखा, यही विचार संसद में जॉर्ज फर्नांडिस ने रखा। बार-बार यह बिल रखते रहे की ऐसा हम कोई बिल लाएँ जिससे पूँजीपतियों को हम राजी कर सकें की वो अपना पैसा चैरिटी में लगाएँ। बहुत प्रयास करने के बाद आजादी के 65 साल बाद एक बिल लाया जा सका सीएसआर (Corporate social responsibility) का जिसमें यह तय किया गया की जो बड़ी कंपनियों को प्रॉफिट होता है उसका 2% वो समाज जो सेवा में लगाएँ। महात्मा गांधी जी ने जो ट्रस्टीशिप का सिद्धांत दिया, वो आजादी के 70 सालों बाद भी तो देश की संसद में लागू हो पाया और ही कोई कंपनी उसका पालन करती है। पतंजलि एकमात्र ऐसी संस्था या पतंजलि आयुर्वेद एकमात्र ऐसी कंपनी है जिसने महात्मा गांधी जी के ट्रस्टीशिप के सिद्धांत को मूर्त रूप दिया है। पतंजलि ने अपना सब कुछ देश और समाज के लिए समर्पित किया है। हमारा सिद्धांत है कि हम उद्योग भी करेंगे तो सेवा के लिए करेंगे। पतंजलि का उद्योग केवल सेवा के लिए है। पूज्य स्वामी जी बार-बार कहते हैं पतंजलि केवल सामान नहीं बनाती, पतंजलि अच्छे इंसान बनाने का काम करती है। पतंजलि का संचालन कोई अमीर नहीं करता बल्कि एक फकीर करता है।
देश की उन्नति पर ले जाने वालों की बात करें तो उसमें बहुत से लोगों का नाम शामिल हैं। उनमें से एक डॉक्टर विक्रम साराभाई हैं जिनके बारे में पूज्य स्वामी जी महाराज ने भी ट्वीट किया है। चंद्रयान का नाम तो आपने सुना होगा। चंद्रयान जिस इसरो से छोड़ा गया उसकी स्थापना में डॉक्टर विक्रम साराभाई का बहुत बड़ा योगदान रहा है। वह स्वदेशी के बहुत बड़े योद्धा थे। उनके गुरु डॉक्टर भाभा ने भारत की आजादी के समय न्यूक्लियर एनर्जी पर काम किया था। उन्होंने अपने घर के गैराज में लैब बनाकर स्वदेशी का उपकर्म शुरू किया था। उसी से भारत आज परमाणु के क्षेत्र में विश्व शक्ति बना। इसरो के माध्यम से आज हम इतने सक्षम हैं कि हम स्वयं सैटेलाइट छोड़ सकते हैं, दूसरे देश आज हमसे अपने सैटेलाइट स्थापित कराते हैं। आज हम मिसाइल बनाते हैं। मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का नाम आपने सुना होगा यह सब स्वदेशी के योद्धा थे, इनका जन्म स्वदेशी के आंदोलन से, स्वदेशी की विचारधारा से हुआ है। डॉक्टर विक्रम साराभाई ने अपने देश को दवाइयों के उद्योग में, फार्मा में, इलेक्ट्रॉनिक, कंप्यूटर, आईआईएम अहमदाबाद जैसी 40 से अधिक संस्थाओं की उन्होंने स्थापना की। स्वदेशी के उस योद्धा को भी आज हम नमन करते हैं। भारत आज अगर बड़ी ताकत है तो उसमें  डॉक्टर विक्रम साराभाई, डॉक्टर भाभा, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम जैसे महापुरुषों का बहुत बड़ा योगदान रहा है।
कोई देश आगे बढ़ता है तो उस देश में उद्यमशीलता कितनी है इसका बहुत बड़ा योगदान रहता है। आज हम जापान, इजराइल, अमेरिका, फ्रांस की बात करते हैं तो यह सब उद्यमशीलता में आगे हैं तथा पूरी दुनिया का नेतृत्व कर रहे हैं। यदि इसके विपरीत हम पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका या नेपाल की बात करें तो ये देश उतने आगे नहीं हैं क्योंकि यहाँ पर उद्यमशीलता नहीं है, कोई बड़े उद्योग नहीं हैं, इन्हें सब कुछ बाहर से आयात करना पड़ता है। जितनी विदेशी कंपनियाँ हैं, वो पूरी दुनिया को एक बाजार के रूप में देखती हैं और वो यह सोचते हैं की हर व्यक्ति हमारा प्रोडक्ट, हमारी सर्विस यूज करे। इस काम को करने के लिए वह निम्न स्तर तक गिरते हैं। फिर बड़ी-बड़ी कंपनियों का युद्ध होता है जिसे कॉर्पोरेट वॉर कहा जाता है। यह गला काट लड़ाई होती है जिसमें कोई नियम का पालन नहीं किया जाता, केवल एक ही नियम का पालन किया जाता है कि हमें केवल और केवल कमाई करनी है। इसमें सबसे ज्यादा लूट होती है गरीब और विकासशील देशों की। विकसित देश आज ईस्ट इण्डिया कंपनी बनाकर या फौज लेकर कहीं नहीं जाते। वो मल्टीनेशनल कंपनी के रूप में दूसरे देशों में जाते हैं और वहाँ के बाजारों पर कब्जा कर धन लूटने का काम करते हैं।
इस कॉर्पोरेट वॉर को उदाहरण के रूप में जानने के लिए गूगल पर टाइप करेंगे तो कोला वॉर के नाम से आपको पूरी हिस्ट्री मिलेगी। अमेरिका में दो कंपनियाँ हैं- कोका कोला और पेप्सी। अमेरिका के एक राष्ट्रपति हुए हैं जिम्मी कोटर वो हमेशा कोका कोला कम्पनी का प्लेन यूज करते थे। एक बार उन्होंने वाइट हाउस में कर्मचारी को पेप्सी पीते हुए देख लिया तो उसको नौकरी से निकाल दिया। इन कंपनियों का प्रभाव कितना है और अमेरिका जैसे बड़े से बड़े देश में सरकार कौन सी बनेगी, राष्ट्रपति कौन बनेगा, मंत्री मंडल किसका बनेगा यह तय करने का काम करती हैं और जो छोटे-छोटे देश हैं, वहाँ पर किसी की हत्या करवाना, किसी सरकार का तख्तापलट करना यह सब इनके लिए सामन्य बातें हैं।
भारत की एक सामाजिक संस्था ने वर्ष 2003 में पेप्सी और कोक पर अनुसंधान किया कि इनमें कितने कीटनाशक हैं। उस संस्था के की हेड सुनीता नारायण जी के पास यूएस के तत्कालीन एनएसए कॉलिन पॉवेल का धमकी भरा फोन आया कि आप मल्टीनेशनल कंपनियों को बदनाम करना बंद कर दो, ये कंपनियाँ इतनी ताकतवर हैं कि किसी देश की सरकार को भी पलटवा देते हैं। परम पूज्य स्वामी जी महाराज के वर्ष 2008 में गुडग़ांव में आयोजित शिविर में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री श्री अंबुमणि रामदास जी शिविर में आए। उन्होंने तंबाकू की लॉबी, नुकसान को कम करने के लिए नियम बनाया कि सिगरेट के ऊपर 70% हिस्से में चित्र छापना पड़ेगा की इससे कैंसर होता है। डॉक्टर अंबुमणि रामदास जी कहते हैं मेरे पास 150 से अधिक सांसदों के फोन आया कि आप यह कानून मत लाइए, यह नियम लागू मत कीजिए। मैंने इस बात की चर्चा आपसे इसलिए की क्योंकि ये विदेशी कंपनियाँ बहुत ताकतवर हैं। ये नियम, कायदे, कानून अपने हिसाब से तय करते हैं।
मैं अब अपने देश की बात करता हूँ। धीरूभाई अंबानी और नुस्ली वाडिया के बीच कॉरपोरेट वॉर 90 के दशक में हुई थी। उसमें मारपीट, अंडर वर्ल्ड को सुपारी देना आदि रहा। पुलिस कमिश्नर ने जाँच कि तो कीर्ति अंबानी को जेल में डाला गया। उसके ऊपर 25 साल तक मुकदमा चला। उस समय राजीव गाँधी की सरकार चल रही थी जिसमें पोलिटिकल क्राइसिस गया था। कॉरपोरेट वॉर का कोई नियम नहीं है। इसमें केवल एक नियम है कि बाजार से पूरा कॉम्पिटिशन खत्म कर दो। सभी ग्राहकों, पूरे प्रोडक्ट तथा पूरे नेटवर्क पर अपना कब्जा कर लो और उसके बाद अपनी मनमानी करो। जो रेट चाहें तय करें, जो चाहे वो करें। मैं आपको एक उदाहरण देता हूँ। आपने बचपन में अंकल चिप्स का नाम सुना होगा, टीवी पर बहुत ऐड आता था, लेकिन अब आपको अंकल चिप्स बाजार में दिखाई देगा। अंकल चिप्स, अमृत स्वदेशी कंपनी होती थी, उसका ब्रांड था। पेप्सी ने जब अपना लेज़ लॉन्च किया तब उसने देखा कि भारत के बाजार में तो अंकल चिप्स छाया हुआ है। एक-एक दुकान पर, एक-एक जुबान पर अंकल चिप्स का स्वाद है और जब तक अंकल चिप्स है, बाजार में वही रहेगा। हम भारत में घुस भी नहीं सकते तो उसने अंकल चिप्स को मुँह माँगे दामों पर खरीद लिया और खरीदने के बाद ये कंपनियाँ उस प्रोडक्ट को बंद नहीं करती, उस  प्रोडक्ट को किल करती हैं। किल करने से तात्पर्य है कि ये कंपनियाँ उस प्रोड्कट की सप्लाई बंद कर देती हैं। जैसे किसी ने 100 पैकेट चिप्स माँगे तो उसे 100 पैकेट अंकल चिप्स के नहीं मिलेंगे। वो कहेंगे की अंकल चिप्स के आपको दो पैकेट मिलेंगे और 98 पैकेट पेप्सी के लेज़ के लेने पड़ेंगे। अब धीरे-धीरे वे सप्लाई कम कर देंगे तो उस ब्रांड को लोग भूलने लगेंगे। उस ब्राँड की क्वालिटी खराब कर देंगे। अपने ब्रांड को स्थापित करना है और लेज़ के चिप्स को खिलाना है तो अंकल चिप्स की क्वालिटी को खराब कर दिया क्योंकि मार्केट के ऊपर सारा कब्जा लेज़ का हो जाये। दो तीन साल पहले मैंने लेज़ पर शोध किया तो पाया कि 800 करोड़ का चिप्स लेज़ पेप्सीको एक साल में अपने भारतीयों को बेच देती है। इसी प्रकार भारत में एक ओके साबुन होता था जो हिंदुस्तान यूनिलीवर के साबुन लाइफबॉय को जो टक्कर दे रहा था। उन्होंने पाया कि कई राज्यों में ओके साबुन को लोग ज्यादा पसंद करते हैं, तो हिंदुस्तान यूनिलीवर ने अपने साबुन लाइफबॉय को घर-घर तक पहुँचने के लिए उस ओके साबुन के ब्रांड को खरीद लिया और उसको किल कर दिया था। इसी प्रकार थम्स-अप का नाम आपने सुना होगा, 1990 दशक की बारातों में ठंडा पिलाया जाता था। थम्सअप, माजा आदि नाम आपने सुने होंगे। यह सारे ब्रांड कोल्ड ड्रिंक के भारतीय ब्रांड हुआ करते थे।
जब पेप्सी और कोक 1990 के दशक में दोबारा आई तो भारत में भारतीय ब्रांड छाए हुए थे, उन्होंने उन सारे भारतीय ब्रांड को किल कर दिया। पहले तो खरीदने का लालच दिया की आप अपना ब्रांड बेच दो, और जब वो बेचने के लिए तैयार नहीं हुए तो उनके साथ ऐसे कॉम्पिटिशन किया की लागत से भी कम मूल्य में अपने उत्पाद के बेचा। जैसे मान लीजिए की एक कोल्ड ड्रिंक एक रुपए की लागत में बनती है और डेढ़ रुपये की बिकती है तो उसने 70 पैसे में बेचनी शुरू की। पुराने जमाने में आपने देखा होगा की प्लास्टिक की बोतल नहीं हुआ करती थी, केवल कांच की बोतलें ही मिलती थी। इन कंपनियों ने काँच की बोतल बनाने वाली कंपनियों के साथ टाई-अप किया की आपकी सारी बोतलें हम खरीदेंगे, आप किसी स्वदेशी ब्रांड को अपनी बोतल नहीं बेचेंगे। जैसे पुरानी बोतल रिफिल होने के लिए कंपनी में जाती थीं तो उन्होंने उन्हें भी बाजार से खरीदकर चूर-चूर करवा दिया ताकि उस स्वदेशी ब्रांड को भरने के लिए खाली बोतल नहीं मिलें। लिम्का, थम्स अप, माजा, गोल्ड स्पॉट आदि का नाम आपने सुना होगा, ये सब स्वदेशी ब्रांड थे। जो राजकोट के आस-पास के गुजरात भाई-बहन हैं उन सबको याद होगा कि रिमझिम नाम से एक मसाला सोडा होता था, इन सारे ब्रांड्स को या तो खरीद लिया गया या इनकी सप्लाई और क्वालिटी खराब कर दी गई। आज आप सब कुछ भूल चुके हैं। आपको केवल दो, तीन ब्रांड पूरे बाजार में दिखाई देते हैं, आपको अगर कोल्ड ड्रिंक पीनी है या तो आपको पेप्सी, कोक या फैंटा पीनी पड़ेगी, आपको कोई स्वदेशी ब्रांड नहीं मिलेगा। तो शीतल पेय पदार्थों के सारे बाजारों पर विदेशी कंपनियों ने कब्जा कर लिया। गोल्ड स्पॉट का स्वाद फैंटा जैसा होता था, माजा का जो स्वाद था वो आज दूसरे आम के रस के ब्रांड का है। इन्होंने उन सबको खरीदकर किल कर दिया। ऐसे ही हिंदुस्तान यूनिलीवर ने देखा की चन्द्रिका साबुन उनको टक्कर दे रहा है, तो उन्होंने चन्द्रिका ब्रांड के साबुन को खरीद लिया, इंदुलेखा नाम का साबुन दक्षिण भारत में खूब चलता था। इंदुलेखा ब्रांड में तेल, साबुन बहुत सी चीजें थी, उस ब्रांड को भी हिंदुस्तान यूनिलीवर ने खरीद लिया, सनलाइट नाम का साबुन था उसको भी खरीद लिया और जब ये इन्हें खरीदते हैं तो काफी बड़ा ऑफर देते हैं। जैसे कोई ब्रांड एक करोड़ एक साल में कमाता है तो ये उसका पूरा असेसमेंट करते हैं की उसकी ब्रांड वैल्यू क्या है, इसके नेटवर्क की स्ट्रेंथ क्या है, इसके पास आउटलेट कितने हैं, कितने रिटेलर इसके पास हैं, इसका कस्टमर बेस कितना है, ये कितना आगे बढ़ सकता है, 10-20 साल में ये कितना कॉम्पिटिशन देगा, बाजार का शेयर कितना है तो ये सब एनालिसिस करके सामान्य व्यक्ति द्वारा 50 साल में पूरी मेहनत से खड़ा किया एक ब्रांड, दो-दो, तीन-तीन पीढिय़ों की मेहनत को बड़ा ऑफर देकर खरीद लेते हैं। ये कहते हैं कि आप 1 करोड़ एक साल में कमाते हो, तो 10 करोड़ 10 साल की कमाई आप हमसे ले लो और एक एग्रीमेंट कर लो। एग्रीमेंट करते हुए सिर्फ  वो ब्रांड नहीं लेंगे आपसे एग्रीमेंट करेंगे कि आप इस ब्रांड के नाम का प्रयोग नहीं करेंगे, डिस्ट्रीब्यूशन का नेटवर्क भी साथ में देंगे, रिटेलर का जितना भी डेटाबेस है, जितनी भी टेक्नोलॉजी है, जितना भी प्लांट है सब देंगे और एक एग्रीमेंट और करते हैं  कि आप और आपकी फैमिली में से 10-50  साल तक कोई भी व्यक्ति इस फील्ड में नहीं आएगा, हमें कॉम्पिटिशन नहीं देगा क्योंकि जिस बुद्धिमानी ने उस कॉम्पिटिशन को खड़ा किया है वो दोबारा भी तो ब्रांड बना सकता है न। आपने नाम सुना होगा सिबाका ब्रांड का। कोलगेट 1937 को डेढ़ लाख रूपये की पूंजी लेकर आयी और 80 साल में उसने दो हजार करोड़ तक का कारोबार किया। इसे स्वदेशी की ताकत ही कहेंगे कि पूज्य स्वामी जी के तप और पुरुषार्थ से पतंजलि के दन्त कान्ति ने 8 सालों में वह करके दिखा दिया जिसे करने में कोलगेट को 80 साल लग गए। आज विदेशी कंपनियों के लोग हमसे वैचारिक तौर पर असहमत हो सकते हैं लेकिन वो यह कहते हैं की दन्त कान्ति के बराबर और कोई टूथपेस्ट पूरी दुनिया में नहीं है। सिबाका ब्रांड को विदेशी कंपनी ने खरीदा, इस ब्रांड में प्रॉफिट में कम था। कोलगेट के एक अधिकारी के साथ मैं बैठा और बातचीत करनी शुरू की तो उन्होंने कहा कि सिबाका ब्रांड को हम ज्यादा चलाते नहीं है क्योंकि यह स्वदेशी ब्रांड है और हमें इसे खत्म करना है। हम मार्केट में इसकी सप्लाई नहीं देते और इसके ऊपर फोकस नहीं करते, कभी भी इसको प्रमोट नहीं करते, इसकी ऐड नहीं दिखाते, डिमांड होगी तो हम बोलेंगे कोलगेट ले लो, सिबाका की बात मत करो। उन्होंने कहा की इसमें मार्जिन बहुत कम है, इसमें 10% का मार्जिन है और हम जो काम करते हैं वो कम से कम 25 और 30% पर करते हैं। कोलगेट के बड़े अधिकारी का जवाब था कि हम 30% से कम का मार्जिन पर हम काम करना नहीं चाहते, क्योंकि हमारे लिए स्वदेशी का कोई प्रोडक्ट बनाने का या सेवा का कोई उद्देश्य नहीं है। यह हमारे लिए प्रॉफिट का काम है और हमें वही करना है जिसमें हमारा प्रॉफिट हो। इसी तरह आपने सुना होगा डी-कोल्ड, डर्मी कूल, मूव यह सब स्वदेशी ब्रांड थे जो बाद में विदेशी कंपनि रेकिट बेनकाइजर ने खरीदे। पहले ये पारस एग्रो के नाम से थे। यह लैक्मे ब्रांड भी पहले स्वदेशी ब्रांड था, जो अब हिंदुस्तान यूनिलीवर का ब्रांड है। प्रिया पिकल अचार के साथ-साथ कई खाद्य उत्पाद बनाने का काम करती है। उनका किसानों के साथ एक बड़ा नेटवर्क और बड़ा बाजार था। उसको भी एक मल्टीनेशनल कंपनी केविन केयर ने  खरीद लिया ताकि अचार के बाजार पर वो कब्जा कर सकें।
आज अगर हम भारत की बात करें तो औसतन एक हजार रुपए के सामान में हम 150 से 200 रुपए घी और तेल पर खर्च करते हैं।  जेल में भी खाना दिया जाता है तो खाने में यह तय होता है की इतने ग्राम आपको घी और तेल देना पड़ेगा। भारत के एफएमसीजी में रसोई के कारोबार में घी और तेल की एक बड़ी हिस्सेदारी है और तेल और घी के कारोबार पर विदेशी कंपनियों की नजर है।
कारगिल का नाम आपने सुना होगा, यह एक विदेशी कंपनी है जो भारत के तेल मार्केट पर कब्जा करना चाहती है। भारत में एक ब्रांड होता था जैमिनी, जो खाद्य तेल बनाने का काम करता था और पारख इंडिया उसका ओनर था। कारगिल कंपनी ने जैमिनी ब्रांड खरीद लिया और उसे अपने ब्रांड से बेचता है। आज करीब 15 से 20% खाद्य तेलों के कारोबार पर विदेशी कंपनी कारगिल का कब्जा है।
रथ नाम का भी एक स्वदेशी ब्रांड होता था, डीसीएम श्रीराम का नाम आपने सुना होगा उसका यह वनस्पति का ब्रांड होता था। इसको भी कारगिल कंपनी ने खरीद लिया ताकि पूरा नेटवर्क और पूरा बाजार उनको मिल जाए। एक और विदेशी कंपनी है- विल्मर, जिसने भारतीय कंपनी के साथ टाई-अप किया है। परम पूज्य स्वामी जी कभी भी किसी भारतीय कंपनी के बारे में बात नहीं करते लेकिन भारतीय कंपनी में भी यदि किसी भी कॉर्पोरेट हाउस की हम बात करें तो उसमें कुछ हाउस बहुत अच्छे भी हैं। लेकिन सबके ऊपर शेयर होल्डर का दबाव है, प्रॉफिट होल्डर का दवाब है। विल्मर ने भारत के कॉर्पोरेट हाउस के साथ टाई-अप किया और भारत के बाजार पर कब्जा करने के लिए जो तेल बेचा, उसे 10 से 15 रुपए लीटर कम बेचा ताकि भारत के बाजार के ऊपर कब्जा करके कम्पटीशन खत्म कर दे और कम्पटीशन खत्म करने के बाद जब बाजार के ऊपर कब्जा हो जाए तो उसके बाद तेल का रेट क्या होगा वो हम तय करें। किसान से फसल किस रेट पर खरदीना है, वो भी हम तय करें।
मैंने एक अपने परिचित से पूछा की पतंजलि के तेल के बारे में आपकी क्या राय है, तो वो कहते हैं कि हम अपने तेल की क्वालिटी मेन्टेन करने के लिए बाजार के दूसरे सैंपल उठाते हैं और फिर उसे ओपन लैब में देकर उसकी क्वालिटी चेक करवाते हैं तथा रेट के हिसाब से हम तय करते हैं की अपना तेल हम कैसा बनाएं और उसको किस रेट के ऊपर रखना है। उन्होंने कहा कि पतंजलि के तेल सबसे शुद्ध हैं और तिल का तेल 100% शुद्ध है, लेकिन फिर भी बहुत सस्ता है। सरसो से तेल बनता है तो सरसो से तेल का भाव तय होना चाहिए।
 

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