स्त्री रोग निवारण में योग-आयुर्वेद की भूमिका

स्त्री रोग निवारण में योग-आयुर्वेद की भूमिका

वैद्या मोनिका चौहान

स्त्री एवं प्रसूति विभाग, पतंजलि आयुर्वेद हास्पिटल

युर्वेद का अर्थ है, 'जीवन का व्यवस्थित ज्ञान या सृष्टि की प्रक्रिया। विशिष्ट रोगों का इलाज करने के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति, जीवन प्रक्रिया के सार्वभौमिक और अंतर्निहित सिद्धांतों को समझे। दोष नामक तीन कारक प्राथमिक सिद्धांत हैं, जिस पर आयुर्वेदिक निदान और उपचार आधारित हैं और उन्हें त्रिदोष कहा जाता है। एक महिला न केवल ईश्वर की सुंदर कृति है, बल्कि विशेष रूप से उसकी प्रजनन की क्षमता के कारण महत्त्वपूर्ण कृतियों में से एक है। स्त्री रोग वास्तव में 'महिलाओं का विज्ञान है, यह एक चिकित्सा पद्धति है, जो महिला प्रजनन प्रणाली (योनि, गर्भाशय और अंडाशय) और स्तनों के स्वास्थ्य से संबंधित है। इसमें महिलाओं को बाँझपन, गर्भावस्थाजन्य रोग तथा गर्भनिरोधक आदि समस्याएँ होती हैं।
स्त्री रोग संबंधी विकारों के सबसे आम लक्षण
पेडू में दर्द, योनि कण्डू, योनि स्राव, योनि से असामान्य खून बहना, स्तनों में दर्द एवं गाँठ, अपर्याप्त या विलम्बित मासिक धर्म, निचली कमर का दर्द, पी.सी.ओ.डी./अण्डाशय में ग्रंथियाँ, अण्डाशय एवं गर्भाशय में गाँठ या रसौली, श्वेत प्रदर, गर्भाशय ग्रीवा और गर्भाशय के संक्रमण, गर्भाधान न होना, गर्भपात, गर्भाशय और डिम्ब गं्रथि के कैंसर, गर्भाशय प्रोलैप्स आदि।
विभिन्न स्त्री रोगों के कई कारण
अनुचित आहार और अनुचित जीवन शैली
मासिक धर्म एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो हमारे शरीर को विषरहित (डिटॉक्सीफाई) करती है। इस समय शरीर में खून की कमी पूरा करने के लिए अतिरिक्त पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है, अन्यथा ये पूरे शरीर की कार्य प्रणाली को कमजोर करता है, लेकिन वर्तमान में महिलाओं की अस्वास्थ्यकर आहार संबंधी आदतें कई विकारों को पैदा कर रही हैं। खासतौर पर महिलाएँ सौंदर्य के प्रति अधिक सजग होती हैं, लेकिन स्वास्थ्य के प्रति नहीं। यही कारण उन्हेंं अंदर से बहुत कमजोर बनाता है, तनाव पैदा करता है और संक्रमण व बीमारियों को बढ़ावा देता है।
एकल परिवार : एकल परिवार इन दिनों अप्रत्यक्ष रूप से महिलाओं के स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है, पहले दादा-दादी की देखभाल में बच्चों की परवरिश होती थी, लेकिन अब पूरी जिम्मेदारी महिलाओं पर है, विशेषकर कामकाजी महिलाओं पर, जिसके कारण महिलाओं को तनाव, नींद पूरी न होना और कुपोषण आदि समस्याएँ हो रही हैं।
स्वयं उपचार : वर्तमान समय में अधिक से अधिक महिलाएँ शिक्षित हैं, जिस कारण वे जाँच कर स्वयं (Internet के माध्यम से) दवा शुरू कर देती हैं। ये दवाएँ शरीर के अंदर विष निर्माण करती हैं और हार्मोनल विकारों का कारण बनती हैं।
जीवनशैली से संबंधित बीमारियाँ : ऑटो-इम्यून रोग जैसे उच्च रक्तचाप, मधुमेह, थायरॉइड और मोटापा जैसी समस्याएँ वर्तमान समय में बहुत आम हैं, जो कि इन दिनों महिलाओं के शरीर में हार्मोनल असंतुलन और कमजोरी लाते हैं। जिसके कारण स्त्री रोग और अधिक प्रबल बनते हैं, बहुत अधिक तनाव, व्यायाम की कमी और कम शारीरिक सक्रियता उपरोक्त प्रतिरक्षा रोगों के मूल कारण हैं।
सामाजिक मुद्दे : हमारे समाज में लोग कन्या संबंधी मुद्दों पर बहुत कम बात करते हैं, वे स्त्री रोग विशेषज्ञ से परामर्श करने में बहुत शर्म महसूस करते हैं, क्योंकि उन्हें समाज का डर होता है। हमें समाज को नजरअंदाज करके किसी अच्छे स्त्री रोग विशेषज्ञ से परामर्श करना चाहिए, क्योंकि देरी की वजह से कुछ संबंधित स्वास्थ्य मुद्दों या लक्षणों का सामना करने से बाँझपन और कैंसर जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।
सौंदर्य उत्पादों का अत्यधिक उपयोग : रासायनिक सौंदर्य उत्पादों का उपयोग लगभग हर उम्र की महिलाओं द्वारा किया जा रहा है, जिसका उनके स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव हो रहा है।
आयुर्वेद उपचार : आयुर्वेद में लगभग सभी स्त्री रोगों का समुचित उपचार उपलब्ध है। रासायनिक उपचार केवल अस्थायी उपाय होते हैं और गंभीर दुष्प्रभाव देते हैं। महिला संबंधी समस्याएँ हार्मोनल विकार की वजह से सबसे अधिक होती हैं। रासायनिक दवाएँ महिलाओं को कमजोर और संक्रमित बना देती हैं। महिलाओं के संबंध में आयुर्वेदिक उपचार को प्राथमिकता मिलनी चाहिए, जिससे उन्हें विपरीत प्रभावों का सामना न करना पड़े।
समय पर उपचार : स्त्री रोग संबंधी समस्याओं के इलाज के लिए समय पर निदान करने की आवश्यकता होती है, ताकि वे गंभीर और लाइलाज न हो जाएँ।
स्त्री रोगों में योग की भूमिका
हमारे शरीर में हार्मोन्स संदेशवाहकों की तरह ही काम करते हैं। ये हमारे सायकोलॉजिकल सिस्टम को बताते हैं कि कब प्रतिक्रियाओं को बढ़ावा देना है और कब इनकी रफ्तार कम करनी है। ये हमारी संवेदनाओं को निर्देशित करते हैं, हमें आराम करने की सलाह देते हैं, मानसिक तौर पर सक्रिय रहने में मदद करते हैं। जैसे ही हार्मोनल असंतुलन होता है, हमें कई बातें अखरने लगती हैं, हम परेशान तथा ऊर्जा विहीन हो जाते हैं। हार्मोनल बैलेंस को नियंत्रण में रखने के लिए नियमित योग करना बहुत जरुरी है।
हार्मोन्स का संतुलन : हार्मोन्स को नियंत्रित करने के लिए योग, प्राणायाम और आसन आदि क्रियाएँ शरीर की एंडोक्राइन प्रणाली पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं और हार्मोन्स का बनना उचित स्तर पर होने लगता है।
माहवारी पर नियंत्रण : जब महिलाओं में हार्मोन्स के स्राव में उतार-चढ़ाव होता है तो रजोनिवृत्ति प्रभावित होती है। उनकी नींद खराब होती है, पेडू पर चर्बी जमा होने लगती है, साथ ही स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। योग से इन सभी को दूर करने में मदद मिलती है। रात में अत्यधिक पसीने की दिक्कत को भी योग से कम किया जा सकता है। योग से 'हॉट फ्लैशेजमें ३१ फीसदी कमी देखी गई है।
एक स्वस्थ महिला सशक्त परिवार और पूरे समाज का आधार है, इस कारण उसे समाज व अपने परिवार से उचित देखभाल, सम्मान और सहायता की आवश्यकता है।
स्त्री रोगों में आयुर्वेद की भूमिका
आयुर्वेद में अनेक जड़ी-बूटियाँ हैं, जो हार्मोन्स को संतुलित करने में मदद करती हैं और गर्भाशय व त्वचा को पोषण देती हैं। विभिन्न स्त्री रोगों के लिए पतंजलि द्वारा अनेक बहुमूल्य औषधियाँ निर्मित की गई हैं, जो शरीर की आंतरिक चिकित्सा हेतु उपयोग की जाती हैं, उनमें से कुछ औषधियाँ हैं-
स्त्री रसायन वटी : इस वटी का प्रयोग आर्तव दुष्टि, रजोनिवृत्ति, गर्भाशय की माँसपेशियों को मजबूत बनाना, गर्भाशय शोथ, श्वेत प्रदर तथा बन्ध्यत्व आदि स्त्री रोगों में किया जाता है।
अशोकारिष्ट : माहवारी के समय दर्द तथा अत्यधिक माहवारी या असृग्दर आदि रोगों में इसका प्रयोग किया जाता है।
पत्रांगासव : इसका प्रयोग विशेषत: प्रदर रोग में किया जाता है, जैसे- रक्तप्रदर, श्वेत प्रदर तथा कष्टार्तव।
दशमूलारिष्ट : प्रसूता स्त्री में इसका प्रयोग खून की कमी को पूरा करने के लिए किया जाता है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर शरीर को ताकत प्रदान करता है। शरीर, जोड़ों व पेडू के दर्द में यह अत्यंत लाभकारी है।
मातृत्व या मातृत्व प्लस : मातृत्व विशेष रूप से गर्भवती स्त्रियों के लिए बनाई गई है। गर्भवती स्त्री को गर्भावस्था के दौरान अधिक पोषण की आवश्यकता होती है। इसमें प्रोटीन, विटामिन्स व मिनरल्स प्रचुर मात्रा में हैं जो गर्भस्थ शिशु के पोषण में सहायक हैं। मातृत्व प्लस का प्रयोग बच्चे के जन्म के बाद करना होता है। यह माता को पर्याप्त दुग्ध उत्पादन में सहायक होता है।
शतावरी चूर्ण : शतावरी स्त्रियों को कई प्रकार की शारीरिक समस्याओं व रोगों से लडऩे की शक्ति प्रदान करती है। यह महिलाओं को मासिक धर्म से लेकर बाँझपन तक की समस्याओं से निजात दिलाती है और स्त्रियों के स्तन में दूध बढ़ाती है।
अश्वगंधा चूर्ण : अनेक स्त्री रोगों में अश्वगंधा का प्रयोग किया जाता है। यह मानसिक रोगों व चिंता से निजात दिलाती है। रजोनिवृत्ति से होने वाली परेशानी को यह कम करती है।
नागकेशर चूर्ण : इस चूर्ण का प्रयोग रक्त प्रदर में विशेष रूप से किया जाता है। यह किसी भी प्रकार के अत्यधिक रक्तस्राव को रोकने में सहायक है। नागकेशर चूर्ण का सेवन करने से प्रजनन क्षमता में भी वृद्धि होती है। रक्त प्रदर में इसका प्रयोग विशेषत: गोदन्ती भस्म एवं स्फटिक भस्म के साथ किया जाता है।
पुष्यानुग चूर्ण : महिलाओं के गर्भाशय एवं योनि प्रदेश से संबंधित व्याधियों के लिए यह औषध अत्यंत लाभकारी है। यह सभी प्रकार के प्रदर रोगों के अलावा गर्भाशय शोथ, गर्भाशय भ्रंश, योनिक्षत आदि रोगों को दूर करता है।
फलघृत : यह घृत के रूप में एक विशेष आयुर्वेदिक औषधि है, जिसका प्रयोग महिलाओं में बन्ध्यत्व में प्रमुख रूप से किया जाता है। 
 

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