डेंगू
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डॉ. अभिषेक भूषण शर्मा
पतंजलि आयुर्विज्ञान एवं अनुसंधान संस्थान
डेगू मच्छर द्वारा जनित उष्णकटिबन्धीय (गरम व उमस वाले) स्थानोंपर होने वाली व्याधि है, जो डेंगू विषाणु के कारण होती है। इस रोग से संक्रमित व्यक्तियों में सामान्य फ्लू जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं व बहुत कम लोगों में ही उपद्रव स्वरूप डेंगू हिम्मोरटेजिक फीवर (DHF), जिसमें रक्तस्राव, प्लेट्लेट्स का कम होना एवं ब्लड प्लाज्मा लीकेज़ या डेंगू शॉक सिण्ड्रोम (DSS), रक्तचाप कम होना जैसे घातक लक्षण उत्पन्न होते हैं।
इस व्याधि को आम भाषा में हड्डी तोड़ बुखार के नाम से भी जाना जाता है।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद डेंगू एक विश्वव्यापी समस्या की तरह फैल गया है। भारत में सर्वप्रथम 1945 में कोलकाता में डेंगू विषाणु को पाया गया था।
डेंगू का कारण
डेंगू का मुख्य कारण एडिज़ मादा मच्छर द्वारा संक्रमित डेंगू विषाणु है। इस विषाणु के चार उप-प्रकार होते हैं-
DEN-1, DEN-2, DEN-3, और DEN-4। इनमें से किसी एक प्रकार के विषाणु से संक्रमित होने पर जीवनभर के लिए उस प्रकार के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) उत्पन्न हो जाता है, पर अन्य प्रकारों का संक्रमण हो सकता है। डेंगू एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे को नहीं होता।
संचरण चक्र इस प्रकार है-
रोगवाहक (Vector)
इस मच्छर को Tiger Mosquito भी कहते हैं क्योंकि इसके शरीर व पैरों पर टाइगर जैसी धारियाँ होती हैं।
प्रजनन के स्थान
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ये खाली पड़े डिब्बों, टायरों, गड्ढ़ों व कूलर आदि में भरे हुए पानी में अण्डे देते हैं।
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इसके अण्डे बिना पानी के भी एक साल से ज्यादा जीवित रह सकते हैं।
विशेष
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एडिज़ मच्छर की उम्र ७-१२ दिन होती है।
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यह घर के अन्दर व आसपास के इलाकों में काटते हैं।
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ये मच्छर दिन में काटते हैं।
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एक बार में पूरा आहार न मिलने के कारण यह कई व्यक्तियों को बार-बार काटते हैं तथा सबको रोग से संक्रमित कर सकते हैं।
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यह 400 मीटर तक के क्षेत्र में उड़ सकते हैं।
संक्रमण अवधि
व्याधि से संक्रमित होने से लक्षण उत्पन्न होने तक का समय ३ से १४ दिनों का होता है। इसीलिए यदि कोई व्यक्ति डेंगू प्रभावित क्षेत्र से घूमकर आये और उसमें १४ दिन के बाद फ्लू जैसे लक्षण उत्पन्न होते हैं तो उसके डेंगू होने की संभावना बहुत कम होती है।
चिन्ह व लक्षण
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ज्यादातर डेंगू संक्रमित रोगियों (८०त्न) में कोई लक्षण नहीं होते, सिर्फ कुछ लोगों (५त्न) में ही तीव्र व्याधि होती है तथा बहुत कम लोगों में ही यह घातक स्वरूप ले लेती है। बच्चों व स्त्रियों में उपद्रव (डेंगू जनित) होने का खतरा पुरुषों से ज्यादा होता है।
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डेंगू के लक्षणों को तीन अवस्था में क्रम से विभाजित किया जा सकता है-
ज्वरावस्था लक्षण (1 से 7 दिन)
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आकस्मिक ज्वर उत्पत्ति।
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सिरदर्द व उल्टी।
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मुख व नासिका से रक्तस्राव।
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मांसपेशियों व जोड़ों में दर्द।
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विशेष प्रकार के लाल चकत्ते।
गंभीरावस्था लक्षण (1 से 3 दिन)
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बुखार कम हो जाता है या खत्म हो जाता है।
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अल्प रक्तचाप।
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फेफड़ों में पानी भरना (उदस्तोय)
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पेट में पानी भरना (जलोदर)
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आमाशय व पक्वाशय में रक्तस्राव।
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5% रोगियों में ही ष्ठ॥स्न शह्म् ष्ठस्स् के लक्षण उत्पन्न होते हैं।
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खुजली होना।
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हृदय गति का मंद होना।
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दौरे आना (अपस्मार)।
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जागरुकता में कमी।
डी.एच.एफ. के लक्षण
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त्वचागत रक्तस्राव।
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मसूड़ों में रक्तस्राव।
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नासिकागत रक्तस्राव।
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आमाशय-पक्वाशयगत रक्तस्राव।
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रक्तवमन, रक्तमलप्रकृति।
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रक्तमूत्रता।
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मासिकधर्म में अतिरक्तस्राव।
डेंगू में प्रयोगशाला जाँच
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CBC-Platelets.
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Albumin.
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LFT.
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Urine - For Microscopic Hematuria.
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Virus Isolation.
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Antigen NS1.
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Antibody IgM, IgG.
रोकथाम
डेंगू में रोकथाम के लिए विशेष रूप से २ बिन्दुओं पर ध्यान दिया जाता है-
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मच्छरों के प्रजनन को रोकना।
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स्वयं को मच्छरों के काटने से बचाना।
लार्वा को मारने के लिए उपाय
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घर के आसपास पानी जमा न होने दें।
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कूलर व फूलदान हफ्ते में कम से कम एक बार खाली करके दोबारा भरें।
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फ्रिज के नीचे की ट्रे साफ रखें।
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पुराने जार, टिन के डिब्बे व पुराने टायर सही तरीके से नष्ट करें।
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पानी की टंकी को सही तरीके से ढककर रखें।
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घर के आसपास जंगली घास न उगने दें।
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स्वास्थ्य विभाग, ग्राम पंचायत व नगर पालिका को आसपास में ज्यादा मच्छर होने व बुखार होने की जानकारी दें जिससे साफ-सफाई का विशेष प्रबंध किया जा सके।
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विशेष रूप से एक कीटनाशक टेम्फॉस लार्वा को पानी में मारने के लिए प्रयोग किया जाता है।
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जिस पानी में लार्वा हों उसमें 5 चम्मच (30 मि.ली.) पेट्रोल या कैरोसीन 1000 लीटर पानी के अनुपात से डालें।
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तालाब में लार्वा खाने वाली मछलियाँ (गैम्बूसिया, लैबीसटर) छोड़ देनी चाहिए।
मच्छरों के काटने से रोकथाम
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घर में कीटनाशक विशेष रूप से फोटो फ्रेम, परदों, केलेण्डरों, घर के कोनों व स्टोर में छिड़काव करें।
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जितना हो सके पूरे बाजू के कपड़े पहनें।
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खिड़की व दरवाजों पर जालियाँ लगायें।
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मच्छर रिपेलेन्ट क्रीम प्रयोग करें।
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मच्छरदानी का प्रयोग करें।
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मरीज को पृथक्करण में रखें ताकि मच्छर न काट सकें।
आयुर्वेद मतानुसार
डेंगू के लक्षण आचार्य चरक द्वारा वर्णित वातपैत्तिक ज्वर व रक्तगत ज्वर, रक्तपित्त के समान प्रतीत होते हैं।
शिरोरुक् पर्वणां भेदो दाहो रोम्णां प्रहर्षणम्।
कण्ठस्य शोषो वमथुस्तृष्णा मूच्र्छा भ्रमोऽरुचि:।।
स्वप्रनाशो अतिवाग्जृम्भा वातपित्त ज्वराकृति:।
चरक चि. ३/८५
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सिर दर्द, जोड़ों में दर्द, दाह, रोमहर्ष, गले व मुख का सूखना, उल्टी आना, प्यास लगना, मूच्र्छा, भ्रम, अरुचि, निद्रानाश, अधिक जम्भाई आना।
रक्तोष्णा: पिडकास्तृष्णा सरक्तं ष्ठीवनं मुहु:।
दाहरागभ्रममदप्रलापा रक्तसंस्थिते।।
चरक चि. ( ३/७७)
रक्त पिडिका, थूक के साथ रक्त आना, शरीर में जलन, शरीर का वर्ण लाल हो जाना।
जिस प्रकार ज्वर के बाद रक्तपित्त की उत्पत्ति होती है, उसी प्रकार डेंगू में ज्वर के बाद ष्ठ॥स्न होने की सम्भावना रहती है।
चिकित्सा सूत्र
यह ज्वर वर्षा व शरद ऋतु में होता है जिनमें शरीर में निम्र दोषों का प्रकोप होता है।
ऋतु | संचय | प्रकोप |
वर्षा | पित्त | वात |
शरद | - | पित्त |
तथा स्वभाव से ही शरद ऋतु में पित्त प्रकोप से रक्त दूषित हो जाता है।
'शरत्कालस्वभावाच्च शोणितं सम्प्रदुष्यति’।
चरक सूत्र स्थान २४/१०
अत: डेंगू में विशेष रूप से वात-पित्त व रक्तपित्त शामक चिकित्सा करनी चाहिए।
नवज्वरे दिवास्वप्र स्नानाभ्यङ्गान्नमैथुनम्।
क्रोधप्रवातव्यायामकषायांश्च विवर्जयेत्।।
चरक चिकित्सा (३/१३८)
नवीन ज्वर (१ से ७ दिन) में दिन में सोना, नहाना, मालिश करना, अन्न (गेहूँ, ज्वार, बाजरा, चावल), मैथुन करना, गुस्सा करना, हवा में बैठना, व्यायाम करना व कसैली वस्तुओं का प्रयोग वज्र्य है।
ज्वरे लंघनमेवादावुपदिष्टमृते ज्वरात्।
चरक चि. (३/१३८)
डेंगू में लघु आहार, जैसे मूँग की दाल, लौकी, तोरई, मसूर की दाल आदि का सेवन करना चाहिए।
षडंगपानीय- नागरमोथा, पित्तपापड़ा, खस, लाल चन्दन, सुगन्धबला व सौंठ, इन द्रव्यों का 2 चम्मच चूर्ण लेकर 1 लीटर पानी में उबालें। फिर स्वत: शीत होने पर 40 से 80 मि.ली. दिन में 4-5 बार रोगी को पिलायें।
परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज द्वारा सुझाया गया डेंगू का सौ प्रतिशत सफल प्रयोग
पपीते के पत्ते, अनार, गिलोय, एलोवेरा तथा गेहूँ के ज्वारे का प्रयोग कर डेंगू से 100 प्रतिशत निजात पाया जा सकता है। इनके प्रयोग से ३ से ५ हजार तक प्लेट्लेट्स वाले रोगियों को भी मरने से बचाया गया है।
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गिलोय की 1 फीट लम्बी डण्डी का काढ़ा
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पपीते के २ पत्तों का रस
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घृतकुमारी (एलोवेरा) का ताजा स्वरस
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अनार का ताजा जूस
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गेहूँ का ज्वारा (व्हीट ग्रास)
इनमें से गिलोय प्लेट्लेट्स बढ़ाने तथा बुखार को ठीक करने के लिए अत्यन्त गुणकारी औषधि है, पपीते के पत्ते लीवर को स्वस्थ करने के लिए, एलोवेरा जूस प्लेट्लेट्स बढ़ाने के लिए, अनार उल्टी रोकने तथा लीवर को ठीक करने के लिए तथा व्हीट ग्रास हीमोग्लोबिन व कमजोरी के लिए विशेष लाभदायक है।
इनका प्रयोग तीन-तीन घण्टे के अन्तराल में तीन से चार बार तथा स्थिति ज्यादा खराब होने पर 2-2 घण्टे के अन्तराल से करें। इनके सेवन से एन्टीजन टेस्ट नकारात्मक आ जाता है तथा पहले ही दिन से खतरनाक तरीके से घट रहे प्लेट्लेट्स १० हजार से २५ हजार तक बढ़ जाते हैं। डेंगू कोई असाध्य रोग नहीं है, मात्र पाँच से १० दिन में प्लेट्लेट्स की भरपाई इस प्रयोग से की जा सकती है। यह हजारों रोगियों पर किया गया सफल प्रयोग है।
उपचार
इसमें आराम बहुत आवश्यक है, जितना अधिक हो सके, आराम करें तथा ज्वर न हो इसका प्रयास करें। ज्वर के उपचार हेतु गिलोय घन वटी, ज्वर नाशक वटी, ज्वर नाशक क्वाथ का प्रयोग चिकित्सक की सलाह से करें। डेंगू में ज्वर रोकने के लिए ऐलोपैथिक दवाओं में पैरासिटामॉल का प्रयोग किया जा सकता है। ्रह्यश्चद्बह्म्द्बठ्ठ व हृस््रढ्ढष्ठस् का प्रयोग बिल्कुल न करें क्योंकि ये दवाएँ प्लेट्लेट्स कम करती हैं जिससे रक्तस्राव होने की संभावना बढ़ जाती है। डेंगू के लिए अभी तक कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। ऐलोपैथी में डेंगू का कोई कारगर इलाज नहीं है। एकमात्र आयुर्वेद में ही इसके सकारात्मक परिणाम देखे गये हैं।
औषधीय प्रयोग
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महारास्नादि क्वाथ (100 ग्राम), गिलोय क्वाथ (100 ग्राम), ज्वरनाशक क्वाथ (100 ग्राम)- तीनों को अच्छी प्रकार मिला लें। 400 मि.ली. पानी में 1 चम्मच क्वाथ मिलाकर उसे तब तक उबालें जब तक यह 100 मि.ली. न रह जाये। तैयार काढ़े को छानकर प्रात: व सायं पीयें।
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संजीवनी वटी (20 ग्राम) को अच्छी तरह पीस लें। स्वर्णवसंतमालती (1 ग्राम), गिलोय सत्व (10 ग्राम), प्रवाल पिष्टी (10 ग्राम), गोदन्ती भस्म (10 ग्राम), मुक्तापिष्टी (4 ग्राम)। सभी को मिलाकर 60 पुडिया बना लें। 1-1 पुडिया शहद या दूध के साथ प्रात:-सायं खाली पेट लें।
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दो-दो गोली त्रयोदशांग गुग्गुल, महासुदर्शन घन वटी व चन्द्रप्रभा वटी सुबह-शाम पानी के साथ लें।
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गिलोय जूस (25 मि.ली.), आँवला स्वरस (25 मि.ली.) 50 मि.ली. पानी में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें।
अन्य औषधियाँ
चन्दनासव, उशीरासव, वृहत्वातचिन्तामणि रस, एकांगवीर रस तथा मुक्तापिष्टी।
पथ्य
मूँग की दाल, मसूर की दाल, जौ का दलिया, अनार का रस, बकरी का दूध, गाय का दूध।
अपथ्य
गरिष्ठ आहार, मिर्च-मसाले, खट्टे फल व आहार।
आवश्यक निर्देश
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भरपूर विश्राम करें।
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वेगों को धारण न करें।
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रोग के प्रभाव के समय व्यायाम न करें।
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मैथुन, शोक, चिन्ता आदि का परित्याग करें।
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रात में जागने से बचें।
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