आरोग्यवर्धक दिव्य रसायन आंवला गुणधर्म और लाभ

आरोग्यवर्धक दिव्य रसायन आंवला गुणधर्म और लाभ

आचार्य बालकृष्ण

संपादक, योग संदेश

कुलनामEuphorbiaceae, वैज्ञानिक नाम : Emblica officinalis Gaertn.,  अंग्रेजी नाम : Indian Gooseberry, Emblic myrobalan, संस्कृत : आमलकी, धत्री, शिवा, हिन्दी : आमला, आंवरा, आँवला, गुजराती : आँवला, आमला, मराठी : आंवलकांटी, आँवला, बंगाली : आंगला, आमलकी, तैलगु : असरिकाय, उशीरिकई, द्राविड़ी : नेल्लिक्काय्, अमृत फल, वयस्था, कन्नड़ : निल्लिकाय, नेल्लि, अरबी : आमलन्

परिचय:

4500 फीट की ऊँचाई तक आँवला भारतवर्ष में सर्वत्र पाया जाता है। इसकी पत्तियां इमली के पत्तियों जैसी होती हैं, जो शतपत्रा कहलाती हैं। महर्षि चरक के अनुसार शीत वीर्य होने के कारण आँवला रसायन द्रव्यों में आता है, अर्थात जिसके सेवन से, दीर्घायु प्राप्त हो, वृद्धावस्था दूर हो अर्थात इसके सेवन से बु़ढ़़ापा मनुष्य पर प्रभाव नहीं डाल पाता। आयुर्वेद में इसे अमृत फल धात्री फल आदि कहा गया है। आँवला दो प्रकार का होता है- (1) जंगली आँवला जो छोटा और कठोर होता है। (2) ग्राम्य आँवला जो बड़ा, मृदु और मांसल होता है।
इसकी छाल हरिताभ धूसर, पतली और परत छा़ेडती हुई होती है। पर्णवृन्त लम्बा, पत्र आयताकार पंखवत व्यवस्थित इमली के पत्तों की तरह होते हैं। पुष्प दंड लम्बा, जिसमें छोटे-छोटे पीले रंग के फूल गुच्छ लगे होते हैं। फल-गोलाकार आधे से एक इंच व्यास का, गूदेदार पीलापन लिये हरे और पकने पर लालवर्ण के हो जाते है। फलों पर : रेखायें : खंडों को दर्शाती हैं। फल के भीतर षट्कोषीय बीज होता है। फरवरी-मई में इस पर फूल लगने शुरू होते हैं तथा अक्टूबर से अप्रैल तक इसके फल मिलते हैं।
रासायनिक संघटन:
आँवले के फल में नारंगी के रस से 20 गुना अधिक विटामिनसीपाया जाता है। आँवले में गैलिक एसिड, टैनिक एसिड, निर्यास, शर्करा, एल्ब्युमिन, सेल्युलोज तथा कैल्शियम पाया जाता है। फल के प्रति 100 ग्राम कल्क और स्वरस में पाये जाने वाले घटक इस प्रकार हैं- इसमें जल की मात्रा 81.2 मिग्रा., प्रोटीन 0.5 मिग्रा., वसा 0.1 मिग्रा., फास्फोरस 0.02 मिग्रा., कैल्शियम 0.05 मिग्रा., लौह 1.2 मिग्रा., निकोटिनिक एसिड 0.2 मि. ग्राम। टैनिन फल में 28, शाखा त्वक में 21, तने की छाल में 8.9 तथा पत्तों में 22 प्रतिशत होता है।
गुणधर्म:
1.  इसका फल, ग्राही, मूत्रल, रक्तशोधक और रुचिकाकार होने से ये अतिसार, प्रमेह, दाह, कामला, अम्लपित्त, विस्फोटक, पांडु, रक्त-पित्त, वातरक्त, अर्श, बद्ध कोष्ठ, अजीर्ण, अरुचि, श्वास, खांसी इत्यादि रोगों को नष्ट करता है। दृष्टि को तेज करता है। वीर्य को दृढ़ करता है और आयु वृद्धि करता है। यह त्रिदोष हर है। अम्ल से वात, मधुर शीत से पित्त तथा रुक्ष-कषाय होने के कारण कफ का नाश करता है। आंवला कुष्ठघ्न, ज्वरघ्न रसायन है। हृदय को बल देने वाला और शोणितस्थापन है। यह वृष्य और गर्भ स्थापन भी है। आँवला कफ पित्त नाशक, प्रमेह कुष्ठ को नष्ट करता है तथा आंखों के लिये हितकारी अग्निदीपक और विषम ज्वर को नष्ट करता है।

औषधीय प्रयोग:

नेत्ररोग:-
20-50 ग्राम आँवलों को जौकुट कर दो घंटे तक आधा किलोग्राम पानी में औटाकर उस जल को छानकर दिन में तीन बार आंखों में डालने से नेत्र रोगों में लाभ मिलता है।
नेत्रशोथ:-
वृक्ष पर लगे हुये आँवले में छेद करने से जो द्रव पदार्थ निकलता है, उसका आंख के बाहर चारों और लेप करने से आँख के शुक्ल भाग की शोथ मिटती है।
नेत्रफूली:-
7 ग्राम आँवले को जौकुट कर ठंडे पानी में तर कर देंं, दो-तीन घंटे बाद उन आँवलों को निचोडक़र फेंक दें और उस जल में फिर दूसरे आँवले भिगो दें। दो तीन घंटे बाद उनको भी निचोड़ कर फेंक दें, इस प्रकार तीन-चार बार ऐसा करके उस पानी को आँखों में डालना चाहिये। इससे आंखों की फूली मिटती है।
केश कल्प:-
सूखे आँवले 30 ग्राम, बहेड़ा 10 ग्राम, आम की गुठली की गिरी 50 ग्राम और लौह चूर्ण 10 ग्राम रात भर कढ़ाई में भिगो कर रखें तथा बालों पर इसका नित्य प्रति लेप करने से छोटी आयु में श्वेत हुये बाल कुछ ही दिनों में काले पड़ जाते हैं।
 केशों के लिये :-
1. आँवला, रीठा, शिकाकाई तीनों का क्वाथ बनाकर सिर धोने से बाल मुलायम, घने और लम्बे होते हैं। केशकांति तेल भी बालों के लिये अच्छा होता है।
नकसीर:-
जामुन, आम तथा आँवले को बारीक पीसकर मस्तक पर लेप करने से नासिका में प्रवृत रक्त रुक जाता है।
स्वर भेद:-
अजमोदा, हल्दी, आँवला, यवक्षार, चित्रक इनको समान मात्रा में मिला लें, 1 से 2 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच मधु तथा 1 चम्मच घृत के साथ चाटने से स्वर भेद दूर होता है।
हिक्का:-
आँवला रस 10-20 ग्राम और 2-3 ग्राम पीपर का चूर्ण चम्मच शहद के साथ दिन में दो बार सेवन करने से हिचकी में लाभ होता है।
वमन:-
हिचकी तथा उल्टी में आँवले का 10-20 मिलीलीटर रस 5-10 ग्राम मिश्री मिलाकर देने से आराम होता है। यह दिन में दो-तीन बार दिया जा सकता है।
अम्लपित्त:-
1.    1-2 नग ताजा आँवला मिश्री के साथ या आंवला स्वरस 25 ग्राम समभाग शहद के साथ प्रात: सायं देने पर खट्टी डकारें, अम्लपित्त की शिकायतें दूर हो जाती हैं।
2.    आँवले के 10 ग्राम बीज रात भर जल में भिगोकर रखें अगले दिन गौ दूध में इसे पीसकर 250 ग्राम गौ दूध के साथ देने पर पित्ताधिक्य में लाभ होता है।
छर्दि:-
त्रिदोष जनित छर्दि में आँवला तथा दाख को पीसकर 40 ग्राम खांड, 40 ग्राम मधु और 160 ग्राम जल मिलाकर कपड़े से छानकर पीना चाहिये।
कामला:-
यकृत की दुर्बलता पीलिया निवारण के लिये आंवले को शहद के साथ चटनी बनाकर सुबह-शाम लिया जाना चाहिए।
 मूत्रकृच्छ्र :-
इसकी ताजी छाल के 10-20 ग्राम रस में 2 ग्राम हल्दी और 10 ग्राम मधु मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से मूत्रकृच्छ्र मिटता है।
कब्ज:-
यकृत बढऩे, सिरदर्द, कब्ज, बवासीर बदहजमी रोग में आंवला से बने त्रिफला चूर्ण को प्रयोग किया जाता है। 3-6 ग्राम त्रिफला चूर्ण की फंकी उष्ण जल के साथ रात में सोते समय लेने से कब्ज मिटता है।
अर्श:-
1.    आँवला को भली-भांति पीसकर उस पीठी को एक मिट्टी के बरतन में लेप कर देना चाहिये। फिर उस बरतन में छाछ भरकर उस छाछ को रोगी को पिलाने से बवासीर में लाभ होता है।
2.    बवासीर के मस्सों से अधिक रक्तस्राव होता हो, तो 3 से 8 ग्राम आँवला चूर्ण का सेवन दही की मलाई के साथ दिन में दो-तीन बार करना चाहिये।
शुक्रमेह:-
धूप में सुखाये हुये आँवलों के गुठली रहित 10 ग्राम चूर्ण में दुगनी मिश्री मिलाकर 250 ग्राम तक ताजा जल के साथ 15 दिन तक लगातार सेवन करने से स्वप्नदोष, शुक्रप्रमेह आदि रोगों में निश्चित रूप से लाभ होता है।
श्वेत प्रदर:-
आँवले के 20-30 ग्राम बीजों को पानी के साथ पीसकर उस पानी को छान लें, उसमें 2 चम्मच शहद और पिसी हुई मिश्री मिलाकर पिलाने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है।
रक्त गुल्म:-
आँवले के रस में काली मिर्च डालकर पीने से रक्त गुल्म नष्ट होता है।
प्रमेह:
1.    आँवला, हरड़, बहेड़ा, नागर मोथा, दारुहल्दी, देवदारु इन सबको समान मात्रा में लेकर यथाविधि उनका क्वाथ करके 10 से 20 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम प्रमेह के रोगी को पिलायें।
2.    आँवला, गिलोय, नीम की छाल, परवल की पत्ती को 50 ग्राम की मात्रा में समभाग लेकर आधा लीटर पानी में 12 घंटे भिगोकर फिर पकायें, जब चतुर्थांश शेष रहे, कषाय में 2 चम्मच मधु के साथ मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पित्तज प्रमेह नष्ट होते हैं।
पित्तदोष:-
आँवलों का रस, रसवत् मधु, गाय का घी इन सब द्रव्यों को समभाग लेकर आपस में घोटकर की गयी रस क्रिया पित्त दोष तथा रक्त विकार जनित नेत्र रोग का नाश करती है तथा तिमिर रोग नेत्र पटल में उत्पन्न रोगों को भी दूर करती है।
मूत्रातिसार:-
पका हुआ केला एक, आँवले का रस १० ग्राम, मधु ग्राम, दूध २५० ग्राम, इन्हें एकत्र करके सेवन करने से रोग नष्ट होता है।
रक्त प्रदर:-
20 ग्राम आँवला स्वरस में एक ग्राम जीरा चूर्ण मिला कर दिन में दो बार सेवन करें। ताजे आँवले के अभाव में शुष्क आँवला चूर्ण 20 ग्राम रात्रि में भिगोकर सुबह और प्रात:काल भिगोकर रात्रि में छानकर सेवन करें। पित्त प्रकोप से होने वाले रक्तस्राव में विशेष लाभ होता है।
श्वेतप्रदर:-
आँवले के बीज से 6 ग्राम जल में ठंडाई की तरह पीस-छानकर उसमें शहद मिश्री मिलाकर पिलाने से तीन दिन में ही विशेष लाभ होता है।
अतिसार:-
5-6 नग आँवलों को जल में पीसकर रोगी की नाभि के आसपास लेप कर दें और नाभि की थाल में अदरक का रस भर दें। इस प्रयोग से अत्यन्त भयंकर अतिसार का भी नाश होता है।
मूत्राघात:-
5-6 आँवलों को पीस कर नलों पर लेप करने से मूत्राघात मिटता है।
योनिदाह:-
आँवले के 20 मिलीलीटर रस में 5 ग्राम शक्कर और 10 ग्राम शहद मिलाकर पीने से योनिदाह में अत्यन्त आराम होता है।
कामला पांडु:-
125 से 250 मिलीग्राम लौह भस्म के साथ 1-2 नग आँवले का सेवन करने से कामला, पांडु और रक्ताल्पता के रोगों में अत्यन्त लाभ होता है।
सुजाक:-
आँवले के 2 से 5 ग्राम चूर्ण को एक गिलास जल में मिलाकर पिलाने से और उसी जल से मूत्रेन्दिय में पिचकारी देने से सूजन जलन शान्त होती है और धीरे-धीरे घाव भरकर पीव आना बन्द हो जाता है।
वातरक्त:-
आँवला, हल्दी तथा मोथा के 50-60 ग्राम क्वाथ में 2 चम्मच मधु मिलाकर दिन में 3 बार पीने से वातरक्त शान्त होता है।
गठिया:-
20 ग्राम सूखे आँवले और 20 ग्राम गुड़ को 500 ग्राम पानी में 250 ग्राम पानी रहने तक छानकर प्रात:-सायं पिलाने से गठिया में लाभ होता है, परन्तु प्रयोग के समय नमक छोड़ देना चाहिये।
ज्वर दोष:-
आँवला, चमेली की पत्ती, नागर मोथा, ज्वासा को समान भाग में लेकर क्वाथ बना उसमें चतुर्थांश गुड़ मिलाकर सेवन करने से ज्वर रोगी के शरीर के भीतर के दोष शीघ्र ही बाहर निकल जाते हैं।
पित्तज्वर:-
पके हुए आँवलों का रस निकालकर उसको खरल में डालकर घोटें, जब गाढ़ा हो जाये, तब उसमें और रस डालकर घोटें। इस प्रकार घोटते-घोटते सबको गाढ़ा करके उसका गोला बनाकर चूर्ण कर लें। यह चूर्ण अत्यन्त पित्तशामक होता है। इसको से ग्राम की मात्रा में नित्य दिन में दो बार सेवन करने से पित्त की घबराहट, प्यास और पित्त का ज्वर दूर होता है।
विसर्प:-
आँवले के 10-20 ग्राम रस में 10 ग्राम घी मिलाकर दिन में दो-तीन बार पिलाने से विसर्प रोग मिटता है।
कुष्ठ:-
आँवला और नीम पत्र समभाग महीन चूर्ण करें, इसे 2 से 6 ग्राम या 10 ग्राम तक नित्य प्रात:काल शहद के साथ चाटने से भयंकर गलित कुष्ठ में भी शीघ्र लाभ होता है।
 खुजली:-
आँवले की गुठली को जलाकर भस्म करें और उसमें नारियल तेल मिलाकर, गीली या सूखी किसी भी प्रकार की खुजली पर लगाने से लाभ होता है।
फोड़़े:-
आंवला का दूध लगाने से बहुत दु: देने वाले फोड़े मिटते हैं।
श्रम दाह:-
आँवले के 100 ग्राम क्वाथ में 10 ग्राम गुड़ डालकर थोड़ा-थोड़ा पीने से श्रम, दाह, शूल, रक्त पित्त या मूत्रकृच्छ्र प्रभृति रोग निवृत होते हैं।
पित्तरोग:-
आँवले का मुरब्बा 1-2 नग प्रात:काल खाली पेट खाने से पित्त के रोग मिटते हैं।
चाकू का घाव:-
चाकू आदि से कोई स्थान कट जाय और रक्त स्राव हो, तो तत्काल आँवले का ताजा रस निकाल कर लगा देने से लाभ होता है।
दीर्घायु:-
1.    केवल आँवला चूर्ण रात के समय घी, शहद अथवा पानी के साथ सेवन करने से नेत्र श्रोत्र नासिकादि इन्द्रियों का बल बढ़ता है, जठराग्नि तीव्र होती है तथा यौवन प्राप्त होता है।
2.    आँवला का चूर्ण 3 से 6 ग्राम को आँवले के स्वरस से भावित करके 2 चम्मच मधु और 1चम्मच घी के साथ दिन में दो बार चटाकर दूध पीयें, इससे बुढ़ापा जाता है, यौवनावस्था प्राप्त होती है।
 

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