खान-पान से उत्पन्न अजीर्णता के निवारण में सहायक आहार
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मनुष्य ही नहीं, जीव-जंतु भी अजीर्ण के शिकार होते हैं। अजीर्ण ऐसा रोग है जो तात्कालिक आहार से जुड़ा है। जरा सा असंतुलन पैदा हुआ कि अजीर्ण आ धमकता है। हमारे आयुर्वेद में ऋषियों ने इस पर गहन शोध किया और निष्कर्ष रूप में आहार द्वारा 'आहार की काट’ तैयार की। लेख में प्रस्तुत है भिन्न-भिन्न पदार्थ सेवन से उपजे अजीर्ण और उसके निवारण संबंधी उपाय। आम मनुष्य इसका सहज लाभ उठाकर अजीर्ण निवारण के नाम पर चलने वाली महंगी चिकित्सा से बच सकता है।
नारियल से हुए अजीर्ण में तण्डुल जल (चावल का पानी) व आम्रफल के अजीर्ण में दूध हितकारी होता है। घृत से हुए अजीर्ण में जम्बीर का रस, केले से हुए अजीर्ण में घी उपयोगी साबित होता है। गेंहू के अजीर्ण में ककड़ी, नारंगी के अजीर्ण में गुड़ भक्षण उचित है। पिण्डालु (अरुई, घुइयाँ) के अजीर्ण में कोद्रव (कोदो) का सेवन हितकर माना जाता है।
आटे से बने भोज्य पदार्थों के अजीर्ण में जल पीना हितकर होता है, प्रियाल फल (चिरौंजी) से हुए अजीर्ण में हरड़ हितकारी होती है। उड़द से हुए अजीर्ण में खाँड, दूध से हुए अजीर्ण में तक्र लेना उचित होता है, कोल (बेर) व आम्र फल से हुए अजीर्ण में गर्म पानी पीना चाहिए। अधिक मदिरा पीने पर शहद मिला पानी उसके दोष का शमन करता है, पुष्कर (कमलगट्टे) के अजीर्ण में कड़वा तेल (सरसों का तेल) उपयोगी साबित होता है।
पनस (कटहल) के अजीर्ण में केला, केले के अजीर्ण में घी, घी के अजीर्ण में जम्भरस (जम्बीरी निम्बू का रस) उपयोगी होता है। जम्बीरी के रस से हुए उपद्रव को लवण शान्त कर देता है, लवण की अधिकता से हुए उपद्रव के शमन में तण्डुल जल (तण्डुलोडक) परम उपयोगी होता है। कुटे हुए चावलों को आठ गुणा पानी में डालकर कुछ समय पश्चात् पानी निकाल लें, यही तण्डुल जल कहलाता है।
नारियल व तालबीज (तालफल का बीज अर्थात् गिरी) को पचाने के लिए जिन मुनियों ने तण्डुल (चावल) को उपयोगी बताया है, वे ही बताते हैं कि तण्डुल (चावल) को पचाने के लिए क्षीरवारि (जल मिलाकर उबाला हुआ दूध) पानी उपयोगी होता है।
अनार, आंवला, तिन्दुकी (तेन्दु), बीजपूर (बिजौरा निम्बू) व लवली फल (हरफारवेड़ी) को बकुल (मौलसिरी) का फल पचा देता है, और बकुल का फल बकुल के ही मूल से पचता है।
मधूक (महुआ), मालूर (बिल्व, बेलफल), नृपादन (खिरनी), परूष (फालसा), खजूर व कपित्थ (कैंथ) को पचाने के लिए नीम के बीज का चूर्ण पानी में मिलाकर पीना चाहिए। बीजपूर (बिजौरा निम्बू) के अजीर्ण को सिद्धार्थक (श्वेत सरसों) का सेवन नष्ट कर देता है। चुटकी भर लवण के साथ पीस कर सरसों का सेवन उक्त अजीर्ण के शमन के लिए किया जाता है।
मृणाल (कमल नाल), खजूर, हारहूरा (मुनक्का), कसेरु, सिंघाड़ा व शक्कर, इनको पचाने के लिए भद्रमुस्त (नागरमोथा) उपयोगी होता है तथा लहशुन के अजीर्ण को दूर करने के लिए उबाल कर शीतल किया हुआ दूध उत्तम माना जाता है।
आम्रातक (आमड़ा), उदुम्बर (गूलर), पीपल, प्लक्ष (पिलखन) व बड़ के फलों का अजीर्ण शीतल पानी पीने से दूर हो जाता है। आम के फल का अजीर्ण सौवर्चल (संचर नमक) से नष्ट होता है।
सौवीर (बेर) फल के अजीर्ण को उष्ण जल दूर कर देता है। प्राचीनामलक (पानी आँवला) के अजीर्ण को अकेली राजिका (राई) दूर करती है। क्षीरी (राजादन/खिरनी) नामक फल, खजूर, फालसा व चिरौंजी को पचा देता है। काली मिर्च ताल फल को पचा देती है।
बेल (बिल्व फल) व जामुन के फल से हुए अजीर्ण को नागर (सौंठ) दूर करती है। तिन्दुकी (तेन्दु) के फल को शर्करा पचाती है। बाकुल (मौलसिरी के फल से हुए) अजीर्ण को जीरा तथा कपित्थ (कैंथ) फल को मधुरिका (सौंफ) पचा देती है।
कटहल व आंवले को पचाने के लिए सर्जतरु (शाल वृक्ष) के बीज का उपयोग करना चाहिए। अब तक कहे न कहे सभी फलों को कटु-तिन्दुक (कड़वा तेन्दु/कुचेलक) पचाता है।
कटहल को पचाने के लिए आम की बिना सूखी गुठली उपयोगी होती है। आम के फल को पचाने के लिए घनराव (तण्डुलीय, चौलाई) का मूल उपयोगी होता है। इसी प्रकार अपूप (पूआ) को पचाने के लिए जल में मिलाई अजवाइन कारगर होती है। कुछ विद्वानों ने पृथुक (पोहा) का अजीर्ण दूर करने के लिए भी जल मिश्रित अजवाइन को ही उपयोगी माना है।
पालंकिका (पालक), केमुक/केउँआ/कन्दविशेष, कारवल्ली (करेला), वार्ताक (बैंगन), वंशांकुर (बांस के अंकुर), मूली, उपोदिका (पोई), अलाबु (घीया), पटोल (परवल) व मेघरव (चौलाई), इन सबको सिद्धार्थक (श्वेत सरसों) पचा देती है। श्वेत सरसों को पीसकर थोड़े लवण के साथ सेवन करने से इनका पाचन होता है।
परवल, वंशांकुर (बांस की कोंपल), कारवल्ली (करेला) व घीया के शाक को अधिक मात्रा में खाकर भी यदि कोई ब्रह्मतरु (पलाश/ढाक वृक्ष) के क्षार से मिश्रित जल को पी लें, तो पुन: उतना ही खाने की इच्छा हो जाती है।
बथुआ, सिद्धार्थक (श्वेत सरसों) व चुंचु (चेवुना) का शाक खदिरसार (कत्था) के क्वाथ से शीघ्र ही पच जाता है। जैसे गुड़ सूरण (जिमिकन्द) व नारङ्ग (नारंगी/सन्तरा) को पचा देता है, उसी प्रकार तण्डुल जल (तण्डुलोदक) आलू को पचा देता है।
पत्र, पुष्प, फल, मूल आदि के जो भी शाक हैं, जिनके पाचन के विषय में पहले नहीं कहा, वे सभी तिल क्षार (तिल नाल से बने क्षार) द्वारा पच जाते हैं। आयुर्वेद में यवक्षारादि पाँच क्षारों में तिलनाल से बना क्षार भी गिना जाता है।
पिष्टान्न (आटे) से बने भोज्य पदार्थों (रोटी, पूरी आदि) को लवण मिलाकर उबाली हुई कांजी पचा देती है। यवशुक्त (जौ से बनी काञ्जी) घी को पचा देती है।
शयामाक, नीवार, तिल, अतसी, निष्पाव, कंगू, यव, शालि, इन सब का मन्थ (जल के साथ मथे दही) से पाचन हो जाता है। कुलत्थ (कुल्थी) व चिंचा (इमली) को पचाने के लिए तिल का तेल पीना चाहिए। मातुलुंगी फल (निम्बू) लवण से तुरन्त पच जाता है, यह लवण का विशेष प्रभाव है।
कपूर, सुपारी, पान, काश्मीर (गाम्भीरी फल), जातीफल (जायफल), जातीकोश (जावित्री), कस्तूरी, सिल्हक (शिलारस/लोबान/एक सुगन्धित द्रव्य) एवं नारिकेल जल (नारियल के पानी) को समुद्र फेन (समुद्र का झाग) पचा देता है।
निम्बू व काली मिर्च से घी का पाचन होता है। तक्र (छाछ) पीने से भी घी का अजीर्ण दूर हो जाता है।
केवल अदरक का रस अथवा पलाश (ढाक) के क्षार से युक्त जल ईख के रस को तुरन्त पचा देता है। यह बात आत्रेय पुनर्वसु के शिष्य अग्रिवेश मुनि की कही हुई है।
जैसे सिंधुज (शोधित सुहागा) भैंस के दूध को पचा देता है, उसी प्रकार सैंधव (सेंधा नमक) खिचड़ी को पचा देता है। दालों को पचाने के लिए कांजी का शीलन (अभ्यास) करते हैं-अर्थात् दाल खाने पर हुए अजीर्ण में कांजी बहुत उपयोगी होती है। पाचन शक्ति को बढ़ाने के लिए प्राय: काञ्जी का प्रयोग किया जाता है।
गर्म माँड पीने से गाय का दूध पच जाता है। व्योष (त्रिकटु) से रसाला (सिखरन) पच जाती है।
सौंठ-सतीन (मटर) के अजीर्ण को नष्ट कर देती है तथा कोदो नागरंग (नारंगी/सन्तरा) व जम्बीर के अजीर्ण को नष्ट करता है। चन्दन व गैरिक (सोनागेरु) के प्रयोग से इरा (मदिरा) का असर शान्त हो जाता है व उससे होने वाले विकारों का शमन हो जाता है।
उड़द या मूंग आदि के बड़े वेसवार (मसालों) से, फेनी लौंग से व पापड़ शिग्रुबीज से पच जाते हैं। कणामूल (पिप्पलीमूल) से लड्डू, अपूप (पुआ) व सट्ट (दही से बने भक्ष्यविशेष) आदि का पाचन हो जाता है तथा इसी से शष्कुली (पूरी) व माण्ड भी पचता है। सट्टक-सट्ट अथवा सट्टक नाम से प्रसिद्ध एक विशेष प्रकार का भोज्य पदार्थ है। यह दही, खाँड, मसाले व अनारदाना आदि से बनाया जाता है। कैयदेवनिघण्टु-कृतान्नवर्ग (१२०-१२४) में चार प्रकार के सट्टकों का वर्णन है। वेसवार- आयुर्वेद में कुछ विशिष्ट मसालों के मिश्रण को वेसवार कहते हैं। इसका स्वरूप निम्र है-
सैन्धव-त्रिकटु-धान्य-जीरकैर्दाडिमीरजनिरामठान्वितै:। (रथोद्धता छन्द)
पाचनोऽथ जठराग्रिदीपनो वेसवार उदितो मनीषिभि:।। (अ.मं.-४९)
सैन्धव (सेंधा लवण), त्रिकटु (सम मात्रा में मिली सौंठ, काली मिर्च व पीपल का चूर्ण) धनिया, जीरा, अनार दाना, हल्दी व हींग, इन सबके मिश्रण को 'वेसवार’ कहते हैं। यह पाचन व जठराग्रिदीपन होता है।
श्वाविद् (सेह), गोधा (गोह), शल्लकी (सेह जैसा ही गात्रसंकोची प्राणी विशेष), चीतल तथा कोल (सूअर) व कूर्म (कछुआ) आदि में मांस से हुए अजीर्ण को यवक्षार (जवाखार) नष्ट कर देता है। खीर खाने से हुए अजीर्ण को मूंग का यूष दूर कर देता है एवं कांजी से हुए अजीर्ण को सामुद्र लवण नष्ट कर देता है।
तीव्र रूप से तपाये हुए सोने या चाँदी को जिस पानी में बार-बार बुझाया गया हो, वह पानी दीर्घकाल से हुए पानी संबंधी अजीर्ण को शीघ्र ही नष्ट कर देता है।
पेठा, त्रपुसीफल (खीरा), कर्कारु (छोटा पेठा या कोहड़ा), चीनातक (चीनारुक, चीनाकर्कटी), इनसे हुए अजीर्ण को करंजबीज का सेवन शीघ्र ही नष्ट कर देता है। रसाजीर्ण को अरणिमूल (चित्रकमूल) नष्ट करता है।
असावधानी से स्त्रीकेशमिश्रित जल पीने से हुए विकार को पाणिमर्द (करंज) सहित पीस कर पिया गया प्राचीनामलक (पानी आंवला) दूर करता है। सौंठ व धान्याक (धनिया) का क्वाथ पीने से विविध प्रकार के आमजन्य (आंव से हुए) विकार नष्ट हो जाते हैं।
घी आदि स्निग्ध पदार्थ से हुए अजीर्ण को मूंग का (भूना हुआ) चूर्ण दूर कर देता है। इसी प्रकार दस्त वालों को मोथा नष्ट कर देता है तथा माषेण्डरी (उड़द के आटे से बनी बड़ी) के अजीर्ण को निम्बमूल (नीम की जड़ का क्वाथ) दूर करता है। इमली की अम्लता (खटाई) चूर्ण (चूने) के मेल से दूर हो जाती है। भाव यह है कि इमली के साथ चूने का प्रयोग करने से अम्लता जन्य विदग्धाजीर्ण अथवा अन्य अजीर्ण विकार नहीं होते। चूने में कैल्शियम की मात्रा अधिक होती है, अत: यह अम्लता-निवारक होता है। इसीलिए अम्लपित्त आदि में शंख भस्म जैसी कैल्शियम की अधिकता वाली आयुर्वेदीय औषधियाँ प्रयुक्त होती हैं।
पिष्टान्न (आटे से बने भोज्य पदार्थों) से हुए अजीर्ण में कोष्णाम्बु (थोड़ा गर्म जल) पिलाना चाहिए। प्रियाल (चिरौंजी) की मज्जा (गिरी) से हुए अजीर्ण में भी कोष्णाम्बु पीने से लाभ होता है।
प्रियाल तथा मधुजल (शहद के शर्बत) से हुए अजीर्ण को हरड़ शीघ्र ही नष्ट करती है। उड़द से हुए विकारों में खाँड लाभदायक होती है।
प्रमाद वश (अधिक मात्रा में) पान पर लगे चूने से जब मनुष्य का मुख जलने लगे तो शर्करा, तिल का तेल व सौवीरक (जौ से बनी कांजी)- इन सबको मिला कर मुख में लेने से जलन दूर हो जाती है।
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