गौरवशाली अतीत का स्मरण और चुनौतीपूर्ण भविष्य का कुशल नेतृत्व
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पंकज स्वदेशी, दिव्य प्रकाशन विभाग
हमारे भारत का अतीत अत्यंत गौरवशाली है, अनेकों महर्षियों, आचार्यों, विद्वानों, सन्यासियों, योद्धाओं, महावीरों, क्रांतिकारियों, की यह पुण्य भूमि है| पुरे विश्व में ज्ञान, विज्ञानं, अध्यात्म, अनुसन्धान, चिकित्सा, व्यापर, शिक्षा का प्रमुख केंद्र रहा है मेरा प्राचीन भारत| |
सम्पूर्ण विश्व में यूनाइटेड नेशन के अनुसार वर्तमान में 195 देश है और इन 195 देशों में लगभग 780 करोड़ की जनसंख्या निवास करती है। यदि हम विचार करें की इन 195 राष्ट्रों में से हम कितने देशों के नाम जानते हैं? कितने राष्ट्रों की सभ्यता संस्कृति को जानते हैं? तो शायद उन्हें हम अपनी उंगलियों पर गिन सकते हैं। किसी राष्ट्र के नाम को हम याद क्यों रख पाते हैं? आखिर ऐसा क्या है, जिसके कारण हमें किसी राष्ट्र का नाम स्मरण रहता है? तो शायद उत्तर होगा की सम्बन्धित राष्ट्र के किसी समाज सुधारक के द्वारा, किसी वैज्ञानिक व किसी शोधकर्ता ने कुछ ऐसा किया हो जिससे उस राष्ट्र या पूरे विश्व को सम्पूर्ण मानवता को कुछ लाभ मिला हो या किसी राजनेता या किसी खिलाड़ी अभिनेता ने या उनके देश के किसी नागरिक के द्वारा कोई ऐसा श्रेष्ठ कर्म या अभिनय किया हो जिसके कारण विश्व के अधिकतम लोगों का ध्यान उससे आकर्षित हुआ हो या उस देश के लोगों ने मिलकर किसी एक या अनेक क्षेत्रों में ऐसा पुरुषार्थ किया हो कि वह उसके शीर्ष 10 देशों में आता हो। कोई व्यक्ति महान् बनता है तो उसके पीछे उसका त्याग तपस्या पुरुषार्थ व बलिदान उसके पीछे का सबसे बड़ा आधार होता है। इसमें ऐसा कुछ नहीं है कि उस देश के राज्यों के पीने के पानी में कोई जादू था या उसके रहने वाले स्थान पर ग्रहों की कोई दिशा उत्तम थी। ऐसे ही कोई विशेष वर्ग, कोई समाज, कोई राष्ट्र या कोई संस्कृति स्वयं ही महान् नहीं बन जाती, इसके पीछे कई तपस्वियों, मनीषियों, योगियों, अवधूतियों, विद्वानों का योगदान ही उसे महान् बनाता है। कुछ देश ऐसे भी हैं, जिनको उनके नागरिकों के गलत एवं घृणित कार्यों के लिए याद किया जाता है। हमारे लिए वह कभी आदर्श नहीं हो सकते।
हमारे भारत का अतीत अत्यंत गौरवशाली है, अनेकों महर्षियों, आचार्यों, विद्वानों, संन्यासियों, योद्धाओं, महावीरों, क्रांतिकारियों की यह पुण्य भूमि है। पुरे विश्व में ज्ञान-विज्ञान-अध्यात्म-अनुसंधान-चिकित्सा-व्यापार-शिक्षा का प्रमुख केंद्र रहा है मेरा प्राचीन भारत। महर्षि पतंजलि, महर्षि चरक, महर्षि धन्वन्तरि, महर्षि सुश्रुत, महर्षि वाल्मीकि, महर्षि पाणिनी, महर्षि अगस्त्य, महर्षि दधीचि, महर्षि कपिल मुनि, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अरविन्द, महर्षि दयानन्द सरस्वती, ऋषि वशिष्ठ, ऋषि कणाद, ऋषि भारद्वाज, आचार्य चाणक्य, आचार्य रामानुज, आचार्य भास्कराचार्य जैसे हजारों तपस्वियों विद्वानों का देश रहा है मेरा प्राचीन भारत। जिसके तक्षशिला एवं नालन्दा विश्वविद्यालय में पूरे विश्व के विद्यार्थी एवं शिक्षक शिक्षा ग्रहण एवं अध्ययन के लिए आते थे। विद्या जीवन से सम्बन्धित हो या जगत से, शरीर विज्ञान हो या मनोविज्ञान, पृथ्वी हो या ब्रह्माण्ड, जल हो या आकाश, सूर्य हो या चन्द्रमा, पृथ्वी हो या अन्य ग्रह, जड़ हो या चेतन, प्रकृति हो या आत्मा इन सबके रहस्यों को हमारे महान् पूर्वजों ने हजारों-हजारों वर्ष पहले वेद, उपनिषदों, दर्शनों, शास्त्रों के माध्यम से उजागर कर दिया था। आधुनिक विज्ञान जहाँ अभी कुछ सैकड़ों वर्ष पहले ही सृष्टि एवं शरीर के रहस्यों को जान पाया है या आज भी जानने की कोशिश कर रहा है, वहीं हमारे ऋषियों का प्राचीन ज्ञान वर्तमान विश्व के समक्ष आज भी एकदम सटीक अनुभव होता है। जहाँ आधुनिक विज्ञान को विभिन्न रहस्यों एवं खोज के लिए अत्याधुनिक उपकरणों की आवश्यकता होती है, इन अत्याधुनिक उपकरणों के बिना तो मानो वह अनुसंधान करने में असहाय प्रतीत होते हैं। वहीं हमारे महान् पूर्वजों ने बिना किन्हीं उपकरणों के माध्यम से अकल्पनीय खोज कर सम्पूर्ण संसार को लाभान्वित किया जैसे भौतिक जगत की उत्पत्ति सूक्ष्माति सूक्ष्म कण परमाणुओं के संघनन से होती है- इस सिद्धांत के जनक महर्षि कणाद थे। इसके अलावा महर्षि कणाद ने ही न्यूटन से पूर्व गति के तीन नियम बताए थे। भास्कराचार्य प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ थे। बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्य जी ने उजागर कर दिया था। महर्षि धन्वंतरि, महर्षि चरक, महर्षि च्यवन, महर्षि सुश्रुत ने विश्व को पेड़-पौधों और वनस्पतियों पर आधारित एक महान् अद्वितीय चिकित्साशास्त्र दिया। आयुर्वेद के आचार्य महर्षि चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में होती है। पेड़-पौधों और वनस्पतियों से मनुष्य की चिकित्सा करने की राह में आधुनिक विज्ञान आज तक केवल अनुसंधान में लगा है और हमारे ऋषि इसे हजारों वर्ष पहले बिना किसी विशेष उपकरण से अनुसंधान किये मानवता के उपकार के लिए आर्शीवाद के रूप में प्रदान कर चुके है। महर्षि सुश्रुत प्राचीन भारत के महान् चिकित्साशास्त्री एवं शल्यचिकित्सक थे। उनको शल्य चिकित्सा (Surgery) का जनक कहा जाता है। आधुनिक विज्ञान के मुताबिक राइट बंधुओं ने वायुयान का आविष्कार किया। वहीं हिंदू धर्म की मान्यताओं के मुताबिक कई सदियों पहले ही ऋषि भरद्वाज ने विमानशास्त्र के जरिए वायुयान को गायब करने के असाधारण विचार से लेकर, एक ग्रह से दूसरे ग्रह व एक दुनिया से दूसरी दुनिया में ले जाने के रहस्य उजागर किए। इस तरह ऋषि भरद्वाज को वायुयान का आविष्कारक भी माना जाता है। महर्षि पतंजलि तन के साथ-साथ मन के भी चिकित्सक थे। ‘योगसूत्र’महर्षि पतंजलि का महान् अवदान है, योगसूत्र में योग की शक्तियों का जो वर्णन पतंजलि जी ने किया है आधुनिक विज्ञान तो अभी उसके आस-पास भी नहीं पहुँचा है। पतंजलि रसायन विद्या के विशिष्ट आचार्य थे अभ्रक विंदास, अनेक धातुयोग और लौहशास्त्र इनकी देन है। दुनिया का पहला व्याकरण महर्षि पाणिनी ने लिखा। 500 ईसा पूर्व पाणिनी ने भाषा के शुद्ध प्रयोगों की सीमा का निर्धारण किया। उन्होंने भाषा को सबसे सुव्यवस्थित रूप दिया और संस्कृत भाषा का व्याकरणबद्ध किया। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, खान-पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान-स्थान पर अंकित हैं। सम्पूर्ण विश्व को शब्द ज्ञान देने सबसे बड़ा श्रेय महर्षि पाणिनी जी को ही जाता है। मैक्समूलर (जर्मन ) स्वयं ‘साइंस ऑफ थाट’में महर्षि पाणिनी जी की प्रसंशा कर चुके हैं। लियोनाडर् ब्लूम्फील्ड् (अमेरिकी संरचनावाद के संस्थापक) व फर्डीनांड डि सॉसर जो कि आधुनिक संरचनात्मक भाषाशास्त्र के जनक कहे जाते हैं उन्होंने महर्षि पाणिनि को विशेषरूप से जिक्र करके अपनी रचना को प्रभावित करने वाला बताया है। यदि हम इसी प्रकार से क्रम के साथ विस्तार से प्राचीन भारत के महापुरुषों का अध्यात्म, ज्ञान, विज्ञान व अन्य क्षेत्र में आपको योगदान बताएंगे और मानवता की भलाई एवं खुशाली के लिए उनके द्वारा किये गए शोध व अनुसंधानों का वर्णन करेंगे तो उस पर हजारों पुस्तकें लिखी जा सकती हैं और ऐसी हजारों पुस्तकें वर्तमान में भी सहज रूप से उपलब्ध हैं। इसके साथ-साथ जिनका जीवन हमारे भीतर शौर्य, पराक्रम, मातृभूमि के लिए बलिदान हो जाने के साहस को प्रकट करता ऐसे महान् वीर योद्धा छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, शेरे पंजाब लाला लाजपत राय, वीर सावरकर, विरासत के मसीहा शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, सरदार पटेल, झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई ऐसे लाखों देशभक्तों व सेना के जवानों ने स्वयं को मात्र भूमि पर हँसते-हँसते अपने प्राणों को वीरता और साहस के साथ आहूत कर दिया। ऐसे वीर सपूतों से हमारी मात्र भूमि धन्य रही है। भारत की संस्कृति और सीमाएँ आज इन्ही महापुरुषों के कारण गौरवान्वित है।
इन सभी महापुरुषों के जीवन में कुछ समान था तो वह केवल दो चीज थी, एक- जीवन में मानवता एवं राष्ट्र के लिए कुछ श्रेष्ठ करने की दृढ़ संकल्प शक्ति और दूसरा उस संकल्प को पूरा करने के लिए निरंतर कठोर पुरुषार्थ। हमारा भारत विश्व के सबसे प्राचीनतम देशों में से एक है और आज विश्व के मानचित्र पर कोई ऐसा देश न होगा जिसने भारत के बारे में या इसकी महानता के बारे में न सूना हो। परन्तु वर्तमान समय सजकता और संवेदनशीलता का समय है। वर्तमान और भविष्य के अनुसार दूरदर्शिता रखते हुए नवीन अनुसंधान और अपनी शक्ति को बढ़ाने का समय है। आज यदि अमेरिका, यूरोपीय देश, इजराइल, रूस व चीन नविन अनुसंधान कर आर्थिक महाशक्ति के रूप में, सैन्य महा-शक्ति के रूप में खुद को खड़ा कर चुके हैं या विज्ञान के क्षेत्र में, शिक्षा-चिकित्सा के क्षेत्र के स्वयं को शिखर पर स्थापित कर चुके है तो भारत पुन: क्यों नहीं? इन राष्ट्रों में भी तो वही दो हाथ, दो पैर, दो आँखें कहने का मतलब है हमारे जैसे इंसान ही तो रहते हैं। हमको अपने ऊपर स्वयं ही कार्य करना होगा अर्थात् अपने सामथ्र्य को सभी दिशाओं में विकसित करना होगा। ऐसा कुछ नहीं है कि जो देश आज तरक्की के शिखर पर है, वहाँ की नदियों में जल के स्थान पर पैसों की नदियाँ बहती हो? या वहाँ की वायु में अनुसंधान के सभी सूत्र परिभाषित होते हों? या उन्हें वहाँ की भूमि से अन्न फल सब्जियों के स्थान पर मशीनें या बम बनते हो? या फिर वहाँ आकाश से स्वत: ही वर्षा की जगह दवाइयाँ बनकर बरसती हों? ऐसा कुछ भी नहीं है, उन देशों के भी कुछ मुट्ठी भर लोगों ने पिछले कई दशकों से पुरुषार्थ कर यह सब हासिल किया है और हम भी कर लेंगे। किसी भी राष्ट्र की सबसे बड़ी शक्ति जनशक्ति होती है जिसके आधार पर प्रत्येक राष्ट्र शक्ति संपन्न होता है। इसी जनशक्ति का सर्वगुण संपन्न होना परम आवश्यक है। अमेरिका की 33.10 करोड़ की कुल जनसंख्या है, ऐसे की रूस,जापान, जर्मनी, फ्रांस, इटली की जनसँख्या क्रमश: 14.49 करोड़, 12.65 करोड़, 8.37 करोड़, 6.52 करोड़, 6.04 करोड़ है और इजराइल की जनसंख्या तो मात्र 86.55 लाख है। इन सब देशों की कुल जनसंख्या को भी मिला दिया जाए तो यह हमारे भारत के युवाओं की कुल जनसंख्या के लगभग बराबर है। इतना जनशक्ति का सामर्थ्य है वर्तमान भारत में। हमारे देश की जनसंख्या अर्थात हम देश की कमजोरी नहीं ताकत बने। यद्यपि जनसंख्या पर अंकुश लगाना परम आवश्यक है, परन्तु वर्तमान भारत के प्रत्येक युवा का विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिभाशाली होना देश को वर्तमान चुनौतियों से निकालने के लिए आज के भारत की सबसे बड़ी आवश्यकता है। प्राचीन भारत में हमारे महान् ऋषियों ने कठोर तप-साधना से हमारे देश का गौरव बढ़ाया, दुर्भाग्य से देश जब गुलाम हुआ तो वीर क्रांतिकारियों ने देश के लिए स्वयं को कुर्बान कर देश को आजाद कराया। आज आवश्यकता राष्ट्र के लिए प्राण देने की नहीं प्रण (संकल्प) के साथ जीने की है। सपनों के साथ जीने से श्रेष्ठ है संकल्पित होकर पुरुषार्थ करना, सपनों को साकार करना। भारत, भारतीयता और भारतियों के लिए कुछ श्रेष्ठ करने के लिए कोई व्यक्ति विदेश से नहीं आने वाला, इसके लिए तो भारत वासियों (बच्चों, युवाओं, वरिष्ठों) को ही अपनी जिम्मेदारी निर्धारित करनी होगी। हमारे महान् पूर्वजों ऋषियों क्रांतिकारियों की तरह ही भारत, भारतीयता और भारतियों के लिए वर्तमान में कोई जीता हुआ दिखता है तो वह निर्विवादित रूप से योगऋषि परम पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज एवं आयुर्वेद पंडित परम श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज हैं। जिनके कुशल नेतृत्व में पतंजलि संस्थान न केवल भारत अपितु सम्पूर्ण मानवता के लिए अद्वितीय कार्य कर रहा है। यह संस्थान न केवल हमारे पूर्वजों की महान् विद्या को पुन: प्रतिष्ठापित करता हुआ दिखता है, अपितु उनके (ऋषियों एवं क्रांतिकारियों) अधूरे सपनों की भी साकार करता हुआ प्रतीत होता है। विद्या ग्रहण के साथ-साथ बाल्यकाल से ही यह दोनों महापुरुष संकल्पित होकर अखंड-पुरुषार्थ कर रहे हैं। आज देश के करोड़ों लोग इन दोनों महापुरुषों से प्रेरणा पाकर अपने-अपने क्षेत्र में राष्ट्र का गौरव बढ़ाने के लिए पुरुषार्थ कर रहें हैं। योग, आयुर्वेद, स्वदेशी ही नहीं अब तो शिक्षा के क्षेत्र में मानों एक बहुत बड़ी क्रांति परम पूज्य स्वामी जी के महाराज के दिव्य आलोक से उत्पन्न होने वाली है। हमें भी राष्ट्र हित में अपनी भूमिका निर्धारित कर अपना मत्वपूर्ण योगदान देना है।
भारत देश कभी भी कमजोर नहीं रहा, हमें अतीत की उपलब्धियों से गौरवान्वित और भूलों से सिखने की आवश्यकता है। भारत कभी भी शक्ति सम्पन्न होकर भक्षक नहीं बना, अपने स्वार्थ के लिए हमने कभी दूसरे राष्ट्रों का सर्वनाश नहीं किया, नरसंहार नहीं किया। परन्तु ऐसा हमारे भारत के साथ भी न हो, इसलिए इसके लिए हमें सर्वशक्तिमान बनना होगा। हमारी आने वाली भावी पीढिय़ों को सुरक्षित करना होगा। भविष्य की जो चुनौतियाँ हमें वर्तमान में दिख रही है, उसमे हमें पूर्ण साहस के साथ अपने महान् पूर्वजों का प्रतिरूप बनकर नेतृत्व करना है। शहीद दिवस (23 मार्च) संकल्प दिवस है, हमें शहीद नहीं संकल्पित होकर शहीदों के सपनों को साकार करना है। परम पूज्य महाराज श्री जी की पावन प्रेरणा से शहीद दिवस पर दिव्य प्रकाशन का यह लेख राष्ट्र के युवाओं को समर्पित है।
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