आवासीय शिक्षण संस्थान 'पतंजलि गुरुकुलम्’ का उद्घाटन

आवासीय शिक्षण संस्थान 'पतंजलि गुरुकुलम्’ का उद्घाटन

  • 'पतंजलि गुरुकुलम्विद्या की गंगोत्री है: श्री मोहन भागवत
  • पतंजलि योगपीठ की आत्मा है 'पतंजलि गुरुकुलम्’ : पूज्य स्वामी रामदेव जी महाराज
  • स्वतंत्रता के बाद सर्वप्रथम पतंजलि ने स्वदेशी के श्रेष्ठ विकल्प प्रस्तुत किये : आचार्य महामण्डलेश्वर
  • संस्कृति के पुनर्जागरण का प्रारभ है 'पतंजलि गुरुकुलम्’: पूज्य आचार्य बालकृष्ण जी महाराज
वैदिक संस्कृति की पुन: प्रतिष्ठापना हेतु शिक्षा के क्षेत्र में अभिनव क्रांति 'पतंजलि गुरुकुलम्आवासीय शिक्षण संस्थान का उद्घाटन वैदिक सनातन हिन्दू धर्म संस्कृति, सभ्यता, संस्कार और उसकी संवेदनाओं के संरक्षक, सबल सम्पोषक, सरसंघ चालक श्री मोहन भागवत जी के कर कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ। योगग्राम के समीप शहर के कोलाहल से दूर, पहाड़ों की तलहटी व नदी के तट पर स्थित यह गुरुकुलम् प्रकृति की सुरम्य गोद में स्थित है, जो प्राचीन गुरुकुलों का स्मरण कराता है, इसके उद्घाटन अवसर पर श्री भागवत ने कहा कि गुरुकुल अपने आप में एक विशिष्ट शब्द है। गुरुकुल में गुरु अपने छात्रों को अपना कुलवाहक मानकर तैयार करते हैं तथा दीक्षित कर उन्हें मनुष्य बनाते हैं। गुरुकुल में विद्यार्थियों को पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ मनुष्यता के गुण सिखाये जाते हैं, उन्हें श्रेष्ठ नागरिक बनाया जाता है। गुरुकुल में गुरु, पुस्तकों के साथ-साथ अपने आचरण व व्यवहार से सिखाता है। गुरुकुल के उत्कृष्ट यशस्वी प्रयोग निरन्तर चलने चाहिए। श्री भागवत ने कहा कि पतंजलि गुुरुकुलम् से निकले छात्र गाँव-गाँव में गुरुकुलों की स्थापना करेंगे। यह गुरुकुल विद्या की गंगोत्री है, यहाँ से एक अखण्ड, अजस्र ऊर्जा का स्रोत निकलेगा। उन्होंने कहा कि ज्ञान अनंत है, केवल विषयों को गिनकर ज्ञान का आँकलन नहीं किया जा सकता। आज विज्ञान, तकनीकि, भौतिकी, रसायन आदि अनेक विषयों का ज्ञान विद्यार्थियों को दिया जाता है, किन्तु यह सम्पूर्ण ज्ञान नहीं है, ज्ञान वह है जो मनुष्य को मनुष्य बनाए। नैतिक, मौलिक तथा संस्कृतिपरक ज्ञान प्रदान करने वाले संस्थानों का देश में अभाव है। उन्होंने कहा कि जन्म-जन्मांतर के पुण्य कर्मों से मनुष्य देह प्राप्त होती है, इसे व्यर्थ न गवाएँ। मनुष्य अपने कर्मों से ही श्रेष्ठ बन सकता है। जिसकी आत्मीयता का दायरा विश्वव्यापी हो गया, वह सर्वश्रेष्ठ मनुष्य है। भारत यह वैदिक ज्ञान पूरे विश्व को प्रदान करेगा।

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भगवान् राम की आत्मीयता का दायरा इतना विशाल था कि हम उनको भगवान् मानते हैं। राम किसी मत, सम्प्रदाय के नहीं थे। उन्हें भगवान् न मानने वाले भी उन्हें आदर्श पुरुष मानते हैं।
इस अवसर पर पूज्य योगर्षि स्वामी रामदेव जी महाराज ने कहा कि हम आशंकित रहते थे कि भारत की इस गौरवमयी संस्कृति व ऋषियों की वैदिक ज्ञान परम्परा का क्या होगा, किन्तु इन नन्हे ऋषिकुमारों को देखकर लगता है कि 2050 तक भारत पुन: विश्व गुरु बन जाएगा। ऋषियों की संस्कृति को अंगीकार कर ये ऋषिपुत्र निश्चित ही भारतीय संस्कृति के गौरवमयी इतिहास का पुनर्जागरण करेंगे। पतंजलि योगपीठ वैदिक संस्कृति का ध्वजवाहक तथा अपने पूर्वजों के संकल्पों व आदर्शों का वाहक है। उन्होंने कहा कि पतंजलि गुरुकुलम्, पतंजलि योगपीठ की आत्मा है। राममंदिर के विषय में स्वामी जी महाराज ने कहा कि राम इस राष्ट्र की आन-बान-शान, संस्कृति व आदर्श हैं। राम भारत के सभी सम्प्रदायों के पूर्वज हैं। राम इस देश का स्वभाव है, तथा हर भारतीय की रग-रग में बसे हैं।

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कार्यक्रम में जूनापीठाधीश्वर, आचार्य महामण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज ने कहा कि उपकरणों के युग में भी विवेकशील मानव ही श्रेष्ठ है। कृषि, स्वदेशी, योग, आयुर्वेद व शिक्षा के क्षेत्र में पतंजलि द्वारा किये प्रयोग दैवीय हैं। निरन्तरता से जारी ये प्रयोग इस बात का प्रमाण है कि यहाँ भागवत सत्ता मौजूद है। आज घर-घर में पतंजलि के स्वदेशी उत्पाद उपलब्ध हैं। स्वतंत्रता की अग्नि स्वदेशी की संवदेना की ही अग्नि थी। आजादी के बाद देश में वर्षों तक स्वदेशी की बात की गई, किन्तु पतंजलि ने सर्वप्रथम स्वदेशी को सर्वश्रेष्ठ विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया। मैं पतंजलि गुरुकुलम् में भारत का भविष्य देख रहा हूँ। यहाँ पढऩे वाले बच्चे देश के भविष्य को गढ़ेंगे। संस्कृत का महत्त्व बताते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृत आज पूरे विश्व में प्रभावशाली भाषा के रूप में जानी जा रही है। अनेक देशों ने संस्कृत भाषा को अनिवार्य कर दिया है, जिनमें जर्मनी, नीदरलैण्ड, उरुग्वे आदि प्रमुख हैं। पतंजलि गुरुकुलम् की स्थापना से मैं आह्लादित हूँ कि अब कोई पाश्चात्य सभ्यता हमें दासता की जंजीरों में नहीं बाँध सकेगी।
इस अवसर पर श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण जी महाराज ने कहा कि यह मात्र एक संस्था का उद्घाटन नहीं, अपितु एक संस्कृति के पुनर्जागरण का प्रारम्भ है। पतंजलि योगपीठ के माध्यम से अनेक क्षेत्रों यथा- योग, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा, अनुसंधान, कृषि व स्वदेशी क्रान्ति के बाद अब शिक्षा क्रान्ति का शंखनाद हो रहा है। वैदिक गुरुकुलम्, आचार्यकुलम्, पतंजलि विश्वविद्यालय, आयुर्वेद महाविद्यालय व पतंजलि गुरुकुलम् हमारी शिक्षा की क्रान्ति के प्रमुख चरण हैं। आचार्य जी ने कहा कि श्री मोहन भागवत जी भारत की एकता, अखण्डता व भारतीय संस्कृति के मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए पुरुषार्थरत हैं।
कार्यक्रम में पूज्य गुरुदेव आचार्य प्रद्युम्न जी महाराज ने कहा कि हमारे जीवन में समृद्धि के साथ-साथ संस्कारों का सौन्दर्य भी हो। हमारे जीवन का अन्तिम लक्ष्य अपनी गहन शान्ति में रहते हुए अखण्ड पुरुषार्थ करना है। हम अपने जीवन में पूर्णता का अनुभव करते हुए मानवमात्र की सेवा को ही अपना परम धर्म मानें। उन्होंने कहा कि हम सभी सौभाग्यशाली हैं कि मानव निर्माण की इस पुण्यधरा 'पतंजलि गुरुकुलम्के उद्घाटन कार्यक्रम में सम्मिलित हैं।
इस अवसर पर पतंजलि गुरुकुलम् के छात्रों ने गीता व चाणक्य नीति के कण्ठस्थ श्लोकों तथा अष्टाध्यायी का वाचन किया। छात्र-छात्राओं ने योग की विभिन्न प्रस्तुतियाँ दीं।
कार्यक्रम में मुख्य केन्द्रीय प्रभारी साध्वी देवप्रिया जी, डॉ. जयदीप आर्य जी, श्री राकेश कुमार जी, मुख्य महाप्रबंधक श्री ललित मोहन जी, क्षेत्र के विधायक, निकटवर्ती गाँवों के प्रधान व हजारों की संख्या में ग्रामीण उपस्थित रहे।
सरसंघ चालक अपने दो दिवसीय दौरे पर पतंजलि योगपीठ पधारे थे। इस दौरान इन्होंने पतंजलि द्वारा संचालित गतिविधियों का निरीक्षण भी किया। श्री भागवत ने पतंजलि फूड एवं हर्बल पार्क, पतंजलि अनुसंधान संस्थान, पतंजलि हर्बल गार्डन, पतंजलि गौशाला आदि परिसरों का भ्रमण कर पतंजलि द्वारा जनहित में किये जा रहे कार्यों की प्रशंसा की। उन्होंने पतंजलि हर्बल गार्डन में पौधा भी रोपित किया।
 
 

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