आयुर्वेद में है उच्च रक्तचाप का पूर्ण निदान
On
वैद्य नृपेन्द्र पाण्डेय , स्वस्थवृत्त विभाग,
पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय, हरिद्वार
उच्च रक्तचाप यानि हाइपरटेंशन आज पूरी दुनिया में एक गंभीर समस्या बनी हुई है। आम भाषा में इसे हाई ब्लड प्रेशर भी कहते हैं। यह एक जानलेवा बीमारी है, जिसमें बाहर से कोई लक्षण या खतरा दिखाई नहीं देता, लेकिन जब ये अनियंत्रित होता है, तो शरीर के दूसरे अंगों पर खतरनाक दुष्प्रभाव छोड़ता है। पहले यह माना जाता था कि यह समस्या सिर्फ ज्यादा उम्र के लोगों को ही होती है, लेकिन बदलते परिवेश में ये युवाओं में भी फैलती जा रही है। उच्च रक्तचाप संबंधी विभिन्न आँकड़े निम्रानुसार हैं-
भारत में प्रत्येक तीन में से एक वयस्क व्यक्ति को उच्च रक्तचाप की समस्या है और कुल जितने लोगों को उच्च रक्तचाप होता है, उसमें से दो-तिहाई (2/3 तक) की उम्र 60 वर्ष से कम होती है। भारत में इस समय लगभग आठ से दस करोड़ लोग उच्च रक्तचाप से पीडि़त हैं, उनमें से आधे लोगों को तो ये मालूम ही नहीं कि उनको उच्च रक्तचाप है। जिनको मालूम है, उनमें भी अधिकांश तो चिकित्सा ही नहीं करवाते और जो चिकित्सा करा रहे हैं, उनमें भी कई लोग आधी-अधूरी चिकित्सा करा रहे हैं।
आयुर्वेद में उच्च रक्तचाप का वर्णन एक स्वतंत्र व्याधि के रूप में नहीं मिलता, लेकिन हम आयुर्वेद के माध्यम से उच्च रक्तचाप को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं।
हृदय हमारे शरीर के लिए पंप के रूप में कार्य करता है और रक्त को पूरे शरीर में संचारित करता है। संचरण के समय होने वाले रक्त के दबाव को रक्तचाप यानि ब्लड प्रेशर कहते हैं। शरीर की रचना और आयु के अनुसार विभिन्न व्यक्तियों में रक्तचाप में मामूली अंतर हो सकता है। रक्तचाप दैनिक प्रक्रियाओं से प्रभावित होता है। यदि व्यक्ति का रक्तचाप 140/90 mm of Hg या अधिक हो, तो इसे हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप की अवस्था कहते हैं। प्री-हाइपरटेंशन, हाइपरटेंशन से पहले की अवस्था को कहा जाता है और इसे 120-139 mm Hg और systolic 80-89 mm Hg के बीच diastolic रक्तचाप के रूप में परिभाषित किया जाता है।
हाइपरटेंशन को Silent Killer भी कहा जाता है, क्योंकि उच्च रक्तचाप से ग्रस्त लगभग 90 प्रतिशत रोगियों में इसके कोई लक्षण नहीं होते। अधिकतर मामलों में उच्च रक्तचाप का कोई कारण स्पष्ट नहीं होता, इसे Essential या Primary Hypertension कहते हैं। जबकि कुछ अन्य मामलों में Secondary Hypertension होता है, यानि किसी बीमारी की वजह से या किसी अन्य कारण से व्यक्ति को उच्च रक्तचाप की समस्या हो सकती है।
रतचाप को प्रभावित करने वाले कारक
वैसे तो 90 प्रतिशत उच्च रक्तचाप के मरीजों में कोई लक्षण नहीं होते, लेकिन कुछ रोगियों में सिर दर्द, चक्कर आना, थकान, उल्टी आना, भ्रम की स्थिति, दिखाई देने में समस्या आदि लक्षण मिल सकते हैं। यदि उच्च रक्तचाप को पहचानकर इसका सही इलाज न हो, तो रक्तचाप का बढ़ा हुआ स्तर हमारे पूरे शरीर पर प्रभाव डालता है और हृदय, मस्तिष्क, गुर्दे व आँखों जैसे महत्त्वपूर्ण अंगों को क्षति पहुँचाता है।
-
लकवा (Stroke/Brain attack) की अधिक संभावना
-
हृदयाघात (Heart attack) का खतरा अधिक
-
गुर्दे खराब या फेल (Kidney failure) होने की अधिक संभावना
-
मस्तिष्क की नस फट सकती है (Haemorrhage)
-
अंधता (Blindness)
कुछ चिकित्सक उच्च रक्तचाप की श्रेणी में मरीज की एक बार की रीडिंग (140/90 mm Hg या कुछ ऊपर) आने पर ही हाई ब्लड प्रेशर की diagnosis बनाकर इलाज भी शुरू कर देते हैं। ऐसा कदापि नहीं करना चाहिए, बल्कि ब्लडप्रेशर यदि लगातार कुछ दिनों तक बढ़ा हुआ मिलता है, तो ही इस निष्कर्ष पर पहुँचना चाहिए कि किसी को उच्च रक्तचाप है और फिऱ तदनुरूप औषधियाँ शुरू करनी चाहिए, यदि औषधियों की आवश्यकता हो तो।
उच्च रक्तचाप हम तब कहते हैं, जब हमें Sustained elevation मिलता है, यानि कि किसी व्यक्ति का ब्लड प्रेशर लगातार कई दिनों तक बढ़ा रहे, तो ही उसे हम उच्च रक्तचाप का मरीज मानकर उसकी चिकित्सा प्रारम्भ कर सकते हैं। सामान्यत: जब ब्लड प्रेशर 140/90 mm Hg से ऊपर लगातार रहे, तो दवा शुरू कर देनी चाहिए, लेकिन क्कह्म्द्ग ॥4श्चद्गह्म्ह्लद्गठ्ठह्यद्बशठ्ठ वाली अवस्था में (140/90 mm Hg से कम होने पर) सिर्फ खानपान और जीवनशैली में बदलाव कर ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए। ब्लड प्रेशर की Pre-Hypertension और Stage-I Hypertension को हम आयुर्वेद के माध्यम से बहुत बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं। आयुर्वेद में रोग के कारणों का इलाज किया जाता है, न कि लक्षणों का। कुछ मरीज उच्च रक्तचाप का पता चलने पर स्वत: ही आयुर्वेदिक दवा लेकर अपना इलाज शुरू कर देते हैं। इसके बाद कई बार गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते हैं। दवा का चुनाव रोग के कारण पर निर्भर करता है। अत: खुद अपना इलाज करने का प्रयास न करें, बल्कि किसी वैद्य से ही परामर्श लें और उसी के अनुसार दवा का सेवन करें। उच्च रक्तचाप के रोगी अपने खान-पान और जीवन शैली में बदलाव कर इस समस्या से काफी हद तक छुटकारा पा सकते हैं। उच्च रक्तचाप के मरीज नियमित व्यायाम करें। इसके लिए प्राणायाम, आसन और ध्यान करें। प्राणायाम में अनुलोम-विलोम, भ्रामरी और उद्गीथ प्राणायाम विशेष लाभकारी हैं। आसनों में शवासन विशेष लाभ प्रदान करता है। गायत्री मंत्र का पाठ करने से भी लाभ होता है। नियमित रूप से रक्तचाप की जाँच करवाएँ। संतुलित मात्रा में आहार लें। मौसमानुसार फल और हरी सब्जियों का सेवन लाभदायक है। नाश्ता, दोपहर का खाना और रात्रि का भोजन समय से करने की आदत डालें। नियंत्रित जीवन शैली अपनाएँ (रात्रि में समय से सोयें व समय से सुबह उठें), पूरी नींद लेने का प्रयास करें।
हँसना (Laughter) उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए विशेष लाभदायक है। इसलिए जब भी हँसने का अवसर मिले, खुलकर हँस लें।
-
लौकी का जूस पीएँ।
-
तनाव को कम करें।
-
आहार में नमक का प्रयोग कम करें।
-
वसायुक्त आहार से परहेज करें।
-
धूम्रपान व शराब का सेवन न करें।
-
वजन नियंत्रित रखें। मोटापे से बचें।
-
स्मार्ट फोन का अति आवश्यक होने पर ही उपयोग करें।
उच्च रक्तचाप से पीडि़त लाखों-करोड़ों रोगियों ने सुबह-शाम २-२ गोली मुक्तावटी खाली पेट लेकर व योगाभ्यास करके बी.पी. को जड़ से खत्म किया है।
उच्च रक्तचाप के रोगियों हेतु कुछ विशेष लाभकारी आयुर्वेदिक औषधियों में मुख्य रूप से मुक्तावटी, मेधावटी, ब्राह्मी चूर्ण, शंखपुष्पी चूर्ण, अर्जुनारिष्ट आदि हैं, लेकिन किसी भी आयुर्वेदिक औषधि को बिना वैद्यकीय परामर्श के न लें। पतंजलि के सभी आरोग्य केन्द्रों पर कुशल व समर्पित वैद्यों द्वारा नि:शुल्क परामर्श सदा उपलब्ध रहता है।
लेखक
Related Posts
Latest News
01 Nov 2024 17:59:04
जीवन सूत्र (1) जीवन का निचोड़/निष्कर्ष- जब भी बड़ों के पास बैठते हैं तो जीवन के सार तत्त्व की बात...