परम पूज्य योगऋषि स्वामीजी महाराज की शाश्वत प्रज्ञा से नि:सृत शाश्वत सत्य ...
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अध्यात्म के नाम पर भ्रान्तियां
अध्यात्म की यथार्थ दृष्टि व कृति बहुत ही न्यून दृष्टिगोचर हो रही है। अध्यात्म के आधे-अधूरे, अधकचरे ज्ञान व प्रामाणिक आचरण के बिना वेदों व ऋषियों की यह पावन परम्परा कहीं बदनाम न हो, इसलिए हम यहाँ कुछ मूलभूत आध्यात्मिक तथ्यों पर सूक्ष्म प्रकाश डाल रहे हैं।
1. कर्म बन्धन का कारण है। पाप-पुण्य, शुभ-अशुभ दोनों से ही परे दिव्य कर्म या नैष्कम्र्य कर्म संन्यास को ठीक से न समझ कर लोग अकर्मण्यता या प्रमाद रूप मृत्युपाशों में असुरत्व का जीवन जीने लगते हैं। अकर्मादस्यु:। प्रमादो मृत्यु:। आलस्यहिमनुष्याणां शरीरस्थो महारिपु:। अत: शुभ कर्म करते हुए निष्काम कर्म या दिव्य कर्म के मार्ग पर क्रमश: आगे बढ़ें ।। प्रमाद छोड़ पुरुषार्थ करें।।
2. त्याग केनाम पर दरिद्रता का महिमा मंडन, मैं केवल आत्मा हूँ के नाम पर शरीर की अवहेलना, अहिंसा के नाम पर वीरता व पराक्रमादि का त्याग, अदृष्ट सत्यों के नाम पर भय व ठगी का कारोबार, मुक्ति के नाम पर मिथ्या लोकों की कल्पना का कारोबार, अपरिपक्व तथा कथित आध्यात्मिक गुरुओं की भरमार, इन सन्दर्भों में हम क्रमश: प्रकाश डालेंगे।
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