अंधविश्वास व भ्रांति निवारण
On
बहुत से लोग किसी भी अच्छे या बड़े काम का आरम्भ शुभ मुहूर्त में करना चाहते हैं। इसके लिए वे किसी ज्योतिषी के पास जाकर उसे दक्षिणा भी देते हैं। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या समय भी शुभ या अशुभ होता है?
मुहूर्त को देखने से एक तो समय रहते हम उस काम को नहीं कर पाते और दूसरा दिमाग पर अपने लाभदायक काम को शुरू करने के लिए समय विशेष तक प्रतीक्षा करने का दबाव बना रहता है। इस कारण हमारा बहुत सारा नुकसान भी हो जाता है। इससे ये स्पष्ट है कि मुहूर्त को शुभ-अशुभ के रूप में देखना, केवल मिथ्याज्ञान है, जो व्यक्ति को अपने महत्वपूर्ण कामों को शुरू करने में देरी करवाता है। यही मिथ्याज्ञान व्यक्ति, समाज और राष्ट्र, सभी को बहुत हानि पहुँचाता है। |
कुछ तो समय और परिस्थिति का ख्याल रखना ही पड़ता है
यहाँ तक तो सच है कि कई बार कोई काम करते हुए परेशानियों से बचने के लिए हमें कुछ चीजों का ध्यान जरूर रखना पड़ता है। जैसे कि कहा जाता है कि ऋतु के अनुसार ही आहार-विहार करें। गुड़ का सेवन ठंड में करें, गर्मी में नहीं। शिमला गर्मियों में घूमने जाएं, ठंड में नहीं। जिस दिन कोई चुनाव हो या बच्चों की परीक्षा आयोजित हो, उस दिन कोई पारिवारिक आयोजन न रखें।
मुहूर्त अच्छा या बुरा नहीं होता है
यह भी एक सच है कि जिस मुहूर्त में हजारों बच्चे पैदा होते हैं, ठीक उसी मुहूर्त में हजारों बच्चे मरते भी हैं। जिस क्षण सैकड़ों लोग धनवान बन रहे होते हैं, उसी क्षण सैकड़ों लोग कंगाल भी हो रहे होते हैं। जिस क्षण कोई स्वस्थ व्यक्ति अपने जीवन का आनंद उठा रहा होता है, उसी क्षण कोई दूसरा बीमारी के दर्द से तड़प भी रहा होता है।
बहुत से लोग पंडितों से शुभ मुहूर्त निकलवाकर उस मुहूर्त में विवाह करते हैं, फिर भी उनमें से कई दंपत्तियों का वैवाहिक जीवन कलहपूर्ण ही गुजरता है, कई विवाह संबंध टूट जाते हैं, कई स्त्रियां असमय ही विधवा हो जाती हैं।
कई लोग शुभ-मुहूर्त में मकान बनाना शुरू करते हैं, फिर भी उसमें कोई न कोई अडंग़े आ ही जाते हैं, मकान बनने में देरी हो जाती है या नए मकान में रहने के कारण दूसरी कई समस्याएं सामने खड़ी हो जाती हैं।
ऐसा भी होता है कि कुछ लोग शुभ-मुहूर्त निकलवाकर अपना व्यापार शुरू करते हैं, फिर भी उन्हें घाटा हो जाता है।
यह भी सौ फीसदी सच है कि शुभ मुहूर्त निकलवाए बिना भी कई धर्मों के लोग विवाह करते हैं, फिर भी उनका गृहस्थ जीवन अच्छा चलता है। वे अपनी इच्छानुसार कभी भी मकान बनाना शुरू कर देते हैं और वह मकान बिना किसी कठिनाई के निर्धारित समय पर बन भी जाता है।
ज्यादातर लोग तो बिना किसी मुहूर्त के ट्रेन में सफर करते हैं, ठंडे स्थानों में घूमने जाते हैं, लेकिन उनका तो कुछ भी नहीं बिगड़ता। वे परीक्षा भी देते हैं और उसमें सफल भी होते हैं।
इससे एक बात यह अवश्य साबित होती है कि जो लोग मुहूर्त निकलवाकर अपने काम करते हैं और जो मुहूर्त निकलवाए बिना ही काम करते हैं, दोनों ही स्थितियों में बहुत से लोग सफल होते हैं और बहुत से असफल। इससे ये स्पष्ट होता है कि कोई भी मुहूर्त कभी भी अच्छा या बुरा नहीं होता।
मुहूर्त के शुभ या अशुभ होने के पक्ष में कोई वेद सम्मत प्रमाण भी उपलब्ध नहीं है। वशिष्ठ ऋषि ने श्री राम के राज्याभिषेक का मुहूर्त निकाला, लेकिन उसी मुहूर्त में उन्हें राज्य को त्याग कर वन गमन करना पड़ा।
मुहूर्त की अवधारणा अव्यवहारिक
मूल बात यह है कि मनुष्य कर्म करने के लिए हमेशा पूरी तरह स्वतंत्र है। यदि वह अपने कर्मों की शुरूआत के लिए किसी समय-विशेष पर निर्भर है तो फिर वह स्वतंत्र ही नहीं रहा, परतंत्र हो गया।
मान लीजिए कि हम गंभीर रूप से बीमार हो गए हैं और दवा सेवन का मुहूर्त है 10 घंटे बाद का, तो क्या हम तब तक बिना दवा के बैठे रहेंगे?
इसी तरह यदि सुबह 11 बजे दुश्मन देश ने हमला कर दिया, आपका मुहूर्त कहता है कि लड़ाई 2 बजे शुरू करना है, तो क्या 3 घंटे तक दुश्मन से गोलियां खाते रहेंगे? इन स्थितियों में तो तत्काल काम शुरू करने की अनिवार्यता है।
मुहूर्त की अवधारणा हानिकारक
हमारे रोजमर्रा के अनुभवों से भी यही बात सिद्ध होती है कि हम जब चाहे स्नान कर लेते हैं, किसी भी समय खाना बना लेते हैं और कभी भी उसे खा लेते हैं, अचानक बाजार घूमने चले जाते हैं।
इन सब कामों को करने के लिए तो हम कोई मुहूर्त नहीं निकलवाते। हम पढऩे के लिए मुहूर्त नहीं देखते, व्यायाम करने के लिए भी मुहूर्त नहीं देखते। फिर भी हमारे ये सारे के सारे काम सफलतापूर्वक संपन्न होते हैं। इसलिए मुहूर्त का हमारे कर्मों और उनके परिणामों से सीधे तौर पर कोई लेना-देना नहीं है।
मुहूर्त को देखने से एक तो समय रहते हम उस काम को नहीं कर पाते और दूसरा दिमाग पर अपने लाभदायक काम को शुरू करने के लिए समय विशेष तक प्रतीक्षा करने का दबाव बना रहता है।
इस कारण हमारा बहुत सारा नुकसान भी हो जाता है। इससे ये स्पष्ट है कि मुहूर्त को शुभ-अशुभ के रूप में देखना, केवल मिथ्याज्ञान है, जो व्यक्ति को अपने महत्वपूर्ण कामों को शुरू करने में देरी करवाता है। यही मिथ्याज्ञान व्यक्ति, समाज और राष्ट्र, सभी को बहुत हानि पहुँचाता है। अत: इसे त्यागना ही उचित है। सार यही है कि शुभ कार्य करने का जब भाव बने, वही उसके शुभारंभ का श्रेष्ठ मुहूर्त है।
लेखक
Related Posts
Latest News
01 Nov 2024 17:59:04
जीवन सूत्र (1) जीवन का निचोड़/निष्कर्ष- जब भी बड़ों के पास बैठते हैं तो जीवन के सार तत्त्व की बात...