मिट्टी चिकित्सा

मिट्टी चिकित्सा

डॉ. नागेन्द्र कुमार 'नीरज’, निदेशक-पतंजलि योगग्राम

   फोड़े फुंसी पर मिट्टी की पुल्टिस के प्रयोग से अधिकांश फोड़े मिट जाते हैं। महात्मा गांधी लिखते हैं कि मिट्टी पर मैंने अनेक प्रयोग किये हैं, उनमें से एक भी केस निष्फल रहा हो, ऐसा मुझे याद नहीं है। इसी तरह वर्तमान में सोवियत रूस के अनेक आयुर्वैज्ञानिकों ने भी मिट्टी के चिकित्सकीय गुणों पर अनेक शोध कार्य किये उनमें डॉ. कानवेट्रस्की, डॉ. पोक्रोवस्की, डॉ. नालबाण्डोव, डॉ. यासिनोवस्की, डॉ. टारूसोव, डॉ. कुक, डॉ. लॉनिस्की, डॉ. कोखनवीच, डॉ.० ट्सरफिस, डॉ. प्रोकोपेन्की, डॉ. बालकोवा आदि प्रमुख हैं। एडोल्फ जुस्ट ने अपनी पुस्तक 'रिटर्न टू नेचरमें लिखा है कि साँप के काटने से मरी हुई एक लड़की जो मिट्टी के गड्ढे में दबा दी गई थी, मिट्टी के प्रयोग से २४ घण्टे पश्चात जीवित हो गई।
मिट्टी ऐसा सर्वसुलभ साधन है, जिसका उपयोग कर जीव-जन्तु, पौधे आदि जैविक पदार्थ जीवनी शक्ति प्राप्त करते हैं। मनुष्य, पशु और वनस्पति जगत का अस्तित्व मिट्टी में ही सन्निहित है। हमारे शरीर का सृजन जिन पाँच महातत्त्वों से हुआ है, उनमें मिट्टी का स्थान सर्वोपरि है। हमारे स्थूल शरीर के निर्माण में पृथ्वी तत्त्व की प्रधान भूमिका है, इसलिये शारीरिक रोगों में वैज्ञानिकों ने मिट्टी का प्रयोग विशेष लाभदायक माना है। जीवन से सम्बन्धित सभी प्रकार से खाद्य तथा भौतिक संसाधन का उद्गम स्रोत तो मिट्टी ही है।
मिट्टी के रोगाणु नाशक गुणों के संदर्भ में विश्व के महान वैज्ञानिक डॉ. शेल्मन ए. वाक्समैन ने अपनी प्रयोगशाला में खोज की कि मिट्टी में असंख्य जीव होते हैं जो कभी बैक्ट्रियां तो कभी फफूँदी जैसा आचरण करते हैं। इन प्रतिरक्षी जीवों को 'एक्टिनोमासिटेसकहते हैं, सोंधी-सोंधी गन्ध इन्हीं जीवों के कारण आती है। इन्हीं जीवों की कुछ जातियों से उन्होंने 'स्ट्रेपटामाइसिनतथा 'नियोमाइसिनऔषधियों की खोज की। इसी खोज पर उन्हें नोबल पुरस्कार मिला। 'प्रिन्सिपल्स ऑफ सॉयल माइक्रो-बायलौजीके लेखक डॉ. वाक्समैन १९३२ ई. में अपने प्रयोगों के दौरान  यह देखकर दंग रह गये कि क्षय रोग के कीटाणुओं को मिट्टी में दबा देने से वे पूर्ण रूपेण समाप्त हो जाते हैं। तभी उन्होंने घोषणा की कि विश्व की महानतम औषधि मिट्टी ही है। उन्हीं के शब्दों में, 'हमने दस हजार मिट्टी के माइक्रोबों को अलग कर उनकी आश्चर्यजनक रोगाणुसंहार क्षमता की खोज की। उनमें दस प्रतिशत माइक्रोबों में रोगाणुसंहार की अद्भुत प्रबल क्षमता है।मिट्टी  में यक्ष्मा के कीटाणुओं के संहार करने की अद्वितीय क्षमता की जानकारी वैदिक कालीन ऋषियों को भी मिली थी। इस संबंध में अथर्ववेद कहता है-
उपस्थास्ते अनमीवा अयक्ष्मा अरम्भयं सन्तु पृथिवी प्रसूता:
दीर्घम् न आयु प्रतिबुध्यमाना वयं तुभ्यं बलिहृत स्याम।।
अर्थात् स्वास्थ्य सम्वर्द्धन तथा रोग-निवारक गुणों से सम्पन्न हे माँ काश्यपि, तुम्हारी स्वास्थ्यदायिनी गोद हमें राजरोग यक्ष्मा से निवृत्त करें तथा अन्य शारीरिक और मानसिक रोग और यातनाओं से मुक्ति दिलाकर आरोग्य प्रदान करें। शस्यश्यामला उर्वरा हे माँ धरती! ऐसा प्यार बहा कि वात्सल्य व स्नेह-सिंचित तेरी गोद में सोने से सभी दु:खों से मुक्ति पाकर दीर्घायु जीवन प्राप्त करें। यही नहीं हम भी अपनी ओर से हवि व यज्ञादि से तुम्हारी जीवन पर्यन्त सेवा करते रहें।
मेरी लेण्ड हॉन हापकिन्स जैसे वैज्ञानिकों ने मिट्टी में पाये जाने वाले एक सूक्ष्म माइक्रो आर्गेनिज्म का जेनेटिकली परिवर्द्धन कर उन्हें कैंसर के लिये जिम्मेदार कोशिकाओं को खाकर नष्ट करने के लिये तैयार कर लिया था। इसी परिवर्द्धित खास प्रकार के बैक्टीरिया का नाम 'क्लोस्टीडियम नोवीरखा जो कैंसर को फैलाने वाली कोशिकाओं को खा-पीकर चट कर जाते हैं। प्रयोग से ज्ञात हुआ कि कैंसर कोशिकाएँ शरीर के अलग-अलग अंगों में जाकर स्वस्थ कोशिकाओं को भ्रष्ट कर अपनी जैसी कैंसर कोशिकाओं में बदल देती हैं, उन्हें भी यह विशेष बैक्टीरियां पस्त, ध्वस्त एवं नष्ट कर देते हैं। यह खास बैक्टीरियां क्लोस्टीडियम नोवी सिर्फ कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को ही अपना आहार बनाते हैं। उन्हें नष्ट करते हैं, जबकि स्वस्थ कोशिकाओं को तो बिना कोई नुकसान पहूँचाये सुरक्षा प्रदान करते हैं। मिट्टी के सूक्ष्म बैक्टीरिया द्वारा कैंसर के उपचार की इस नई प्रभावी तकनीक का नाम वैज्ञानिकों ने कोबाल्ट थैरेपी यानी बैक्टीरियॉलाइटिक थैरेपी दिया है, जो अत्यन्त कारगर है।
एक अनुसंधान के अन्तर्गत यूनिवर्सिटी ऑफ साउथेम्पटॉन के इम्यूनोफार्मेकोलाजी के प्रोफेसर स्टीफेन होलगेट ने अफ्रीकन मिट्टी में रहने वाले बैक्टीरिया से दमा के रोगियों का एक टीका तक बनाया। इम्यून प्रतिक्रिया पैदा करने वाला यह बैक्टीरिया आज अस्थमा रोगियों के लिये रामबाण सिद्ध हो रहा है। अस्थमाग्रस्त २४ विद्यार्थियों पर डॉ. स्टीफेन होलगेट ने अफ्रीकन मिट्टी से बने टीके का सफल प्रयोग किया है। डॉ. होलगेट ने प्रयोगों के दौरान पाया कि जो लोग अपने पालतू पशुओं तथा मिट्टी के सम्पर्क में ज्यादा समय तक रहते हैं, उनमें एलर्जी संबंधी दमा या अन्य एलर्जिक रोग, मिट्टी के संपर्क में नहीं रहने वालों की अपेक्षा ६० प्रतिशत तक कम होता है।
मिट्टी के अन्य विविध प्रयोग
नंगे पैर चलना: स्वच्छ धरती तथा स्वच्छ वायुमण्डल में दीर्घ श्वास-प्रश्वास (८:१६ सेकेण्ड) करते हुए टहलें। इससे प्रात: की शान्त बेला में सृजनात्मक विचारों का नव प्रस्फुटन होता है। प्रकृति के साथ समरस होने की अवस्था में ही यह भाव उत्पन्न होते हैं।
मिट्टी पर नंगे बदन सोना: साफ तथा स्वच्छ जगह पर सीधे धरती के सम्पर्क में सोने से भी स्वास्थ्य-सम्वर्द्धन होता है। शरीर विद्युत का सुचालक होने के कारण पृथ्वी से विद्युत-चुम्बकीय प्राण शक्ति का संचार शरीर की तरफ तीव्रतर गति से होने लगता है। प्रारम्भ में सोने में कठिनाई के बावजूद भी शक्ति एवं शांति महसूस होती है। 
मिट्टी पर नंगे पैर चलना: स्नायुदौर्बल्य, रक्तचाप, अनिद्रा, डिप्रेशन, दुश्चिन्ता, मनस्ताप, मन:श्रान्ति, क्षोभोन्माद, स्मरण शक्ति का ह्रास, रक्त हीनता आदि अनेक मानसिक एवं शारीरिक रोगों में यह प्रयोग उपयोगी है।
सूर्य-तप्त रेत स्नान: व्यक्ति की लम्बाई-चौड़ाई के अनुसार साफ-सुथरा गड्ढा बनाकर उसमें रेत भर दें। सूर्य की रोशनी में इसे गर्म होने दें। तत्पश्चात रोगी को उसमें लिटा कर तप्त बालू से ढक दें। बालू की गर्मी रोगी के सहने योग्य अवश्य होनी चाहिये। सिर पर गीला तौलिया बाँध कर बराबर सिर पर डालते हुए 15 से 30 मिनट तक स्नान लेने के पश्चात ठण्डे पानी का स्नान कर पूर्ण विश्राम करें।
उत्तप्त वाष्पित रेत स्नान: इसमें तीक्ष्ण सूर्यप्त गडढ़े में 15 से 20 लीटर पानी सर्वत्र छिड़क दें। रोगी को निर्वस्त्र लिटाकर गीली उष्ण मिट्टी से ढक दें। रोगी को एक गिलास पानी पिला दें। सिर पर गीला तौलिया बाँधें। 30 से 45 मिनट स्नान देने के बाद शीतल जल से स्नान करा दें। सभी प्रकार की वातज-व्याधि, स्नायु दौर्बल्य, अनिद्रा, तीव्र ज्वर, आर्थराइटिस, न्यूराइटिस, श्वेत कुष्ठ, रतिरोग, शीतपित्त, पोलियों, एक्जीमा, तम्बाकू व शराब की विषाक्तता, जलोदर, एक्जीमा, जीवन शक्ति का ह्रास, सर्पदंश तथा विभिन्न मानसिक बीमारियों में उपर्युक्त दोनों स्नान लाभदायक साबित होते हैं।
आर्द्र रेत (मिट्टी) गड्ढ़ा स्नान: व्यक्ति की लम्बाई-चौड़ाई के अनुसार स्वच्छ गड्ढे में रात्रि को खूब पानी डालकर छोड़ दें। रोगी के शरीर को आसन आदि द्वारा गर्म करके उसे लिटाकर शीतल कीचड़ से ढक दें। १15से 45 मिनट तक स्नान देने के बाद स्वच्छ शीतल जल से स्नान करायें। सजातीय होने के कारण मिट्टी शरीर से विष को खींचकर उसे शक्ति एवं पोषण देती है।
सर्वांग शरीर पर मिट्टी का लेप: शुद्ध स्वच्छ मिट्टी को नीम पत्ते उबले शीतल जल में आटे की तरह गूँधकर मक्खन सदृश बना लें। तत्पश्चात सर्वांग स्नान करें। खुजली व एक्जीमा की स्थिति में नीम के पानी से स्नान के पश्चात नारियल तेल (100 सी.सी) एक ग्राम कपूर + एक ग्राम फिटकरी +एक नींबू का रस मिलाकर आक्रान्त अंगों पर लगायें।
उपर्युक्त सभी प्रकार के मिट्टी स्नान से शरीर में एकत्रित विषाक्तता मिट्टी द्वारा अवशोषित हो जाते हैं। शरीर में रक्त का प्रवाह तीव्र होता है। विद्युत चुम्बकीय शक्ति का सम्वर्द्धन तीव्रता से होता है। आर्द्र मिट्टी स्नान तथा सर्वांग मिट्टी का लेप, सोरायसिस, एक्जीमा, श्वेत कुष्ठ, खुजली आदि चर्म रोग, स्नायु-दौर्बल्य, रक्त हीनता, शरीर प्रदाह, आर्टिकोरिया, क्षोभोन्माद, अवसाद, रतिरोग, तीव्र बुखार, शीत-पित्त बीमारियों में लाभदायक  साबित होता है।
मिट्टी की पट्टी: शुद्ध जगह से कंकड़, पत्थर रहित मिट्टी लेकर रात्रि को भिगो दें। प्रात:काल लकड़ी के बने डंडे या लोहे की करनी से मक्खन सदृश गूँध लें। शुद्ध मिट्टी के अभाव में स्वच्छ जगह से 9-10 इंच नीचे से मिट्टी लेकर गूँध लें। अब विभिन्न अंगों के अनुसार मिट्टी को टाट या खादी के मोटे सछिद्र वस्त्र पर सुव्यवस्थित फैलाकर पट्टी बनायें।
पट्टी को सीधे शरीर से सम्पर्क में रखकर ऊपर से गर्म कपड़े से ढक दें। मिट्टी की पट्टी 15 से 30 मिनट तक रखी जा सकती है। अधिक रोगाक्रान्तता की स्थिति में मिट्टी की पट्टी शीघ्र गर्म हो जाये तो 10-10 मिनट के पश्चात बदली जा सकती है। मिट्टी की पट्टी लेने से पूर्व व पश्चात स्थानीय अंग को घर्षण द्वारा गरम कर लेना चाहिये। ध्यान रहे जल या मिट्टी की चिकित्सा खाली पेट लेनी चाहिये।
मिट्टी की पट्टी का प्रभाव शरीर के समस्त अंगों पर बलदायक, विषनिष्कासक तथा विद्युत-चुम्बकीय शक्ति सम्वर्द्धक होता है। मिट्टी में विषाक्त पदर्थों को बाहर खींचकर निकाल फेंकने की अद्भुत शक्ति  है। यही कारण है कि इसके प्रयोग से रोगी शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करता है।
स्नायु-संस्थान, मानसिक तथा सिर संबंधी  समस्त बीमारियों में सिर तथा रीढ़ पर शीतल मिट्टी की पट्टी तथा यकृत, गुर्दें, प्लीहा, आँतों तथा अन्य उदरस्थ अंगों से सम्बन्धित समस्त बीमारियों में समस्त पेट की मिट्टी की पट्टी (नाभि के ऊपर तथा नीचे), नेत्र संंबंधी समस्त बीमारियों में आँख पर पट्टी, कान संबंधी बीमारियों में कान पर पट्टी व लेप, चेहरे संबंधी बीमारियों में चेहरे पर मिट्टी का लेप, गले संबंधी बीमारियों में गले पर मिट्टी की पट्टी, कन्धे तथा ग्रीवा कशेरूका  से संबन्धित सभी बीमारियों में कन्धे तथा ग्रीवा कशेरूका पर मिट्टी की पट्टी, वक्षस्थल (हृदय व फेफड़े) संबंधी बीमारियों में वक्षस्थल  पर मिट्टी की पट्टी , जननांग व गुप्तांग संबंधी बीमारियों में शुद्धतम मिट्टी की पट्टी, पैरों, विभिन्न जोड़ों संबंधी बीमारियों में उन पर मिट्टी की पट्टी शीघ्र लाभ प्रदान करती है।
कोष्ठबद्धता में पेट पर मिट्टी की पट्टी देनी चाहिये। मिट्टी की पट्टी की क्रियाशीलता बढ़ाने के लिये अंग को पहले स्थानीय वाष्प से अवश्य गर्म कर लें। शीतल मिट्टी की पट्टी की तरह उपर्युक्त अंगों के अनुसार गरम मिट्टी की पट्टी भी बनायी जाती है। इसके लिये बड़े एल्युमीनियम के पात्र में आवश्यकतानुसार पानी गरम करने के पश्चात प्रयोग करें।
आकस्मिक प्रयोग
1.  तीव्र वेदना की स्थिति में: अंगों में किसी प्रकार की तीव्र स्थानीय वेदना होने पर गरम-ठण्डी मिट्टी की पट्टी (5:5 मिनट) अथवा गरम-ठण्डा सेंक (3:2 मिनट) तीन बार क्रम से देने पर शीघ्र आराम मिलता है।
2.   नवजात फोड़े की स्थिति में: क्रम से तीन बार गरम-ठण्डी मिट्टी का सेंक अथवा गरम-ठण्डे पानी का सेंक देने से इसमें शीघ्र आराम देता है।
3.  जल जाने, कट जाने तथा मोच आने पर: इस अवस्था में शीघ्रता से स्वच्छ मिट्टी का लेप बार-बार करने अथवा स्थानीय अंग पर शीतल जल की पट्टी अथवा अंग को शीतल जल में डुबोकर रखने से शीघ्र आराम मिलता है।
4.  खाँसी की स्थिति में: छाती पर गरम मिट्टी की पट्टी तथा शीतल जल के घर्षण से खांसी में आराम मिलता है। किसी प्रकार की खाँसी की स्थिति में स्नान करने के तुरन्त बाद कपड़े पहनकर तथा सिर के बालों को पोंछ कर तेजी से टहलने से भी शीघ्र आराम मिलता है जबकि तीव्र खांसी होने पर इन अंगों में रीढ़ एवं छाती का ठण्डे पानी से खूब घर्षण करें, तत्पश्चात कपड़े पहनकर टहलें।
  उपर्युक्त सभी प्रकार के उपचार में हवा के झोंकों से बचना चाहिये।
5.  कमर, रीढ़, घुटना, कन्धा इत्यादि: अंगों में दर्द की स्थिति में मिट्टी को मक्खन की तरह गूँधकर नमक, इप्सम साल्ट, हल्दी, गुड़ तथा पीसी हुई राई मिलाकर उसका गरम लेप इन अंगों पर लगायें, अवश्य लाभ होगा।

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