सनातन धर्म, वेद धर्म, योग धर्म व संन्यास धर्म के सूत्र

सनातन धर्म, वेद धर्म, योग धर्म व संन्यास धर्म के सूत्र

आचार्य बालकृष्ण

पूज्य स्वामी जी के रूप में एक संन्यासी का दिव्य संकल्प व गौरव देखकर लोगों में पतंजलि, पूज्य स्वामी जी महाराज व संन्यास के प्रति आस्था बढ़ी है। पिछले दिनों लगभग 20 हजार लोगों ने फोन कर संन्यासी बनने की इच्छा व्यक्त की है। अभी 100 से अधिक भाई-बहनों को पूज्य स्वामी जी महाराज संन्यास की दीक्षा दे रहे हैं तथा साथ ही लगभग 500 लोगों को ब्रह्मचर्य की दीक्षा देकर हम देश, धर्म और संस्कृति के पुरोधाओं को तैयार कर रहे हैं।
पूज्य स्वामी जी महाराज की दिव्य प्रेरणा से पतंजलि संन्यासाश्रम के तत्वावधान में शताधिक (100 से अधिक) विद्वान भाई व विदूषी बहनें रामनवमी के पावन अवसर पर संन्यास धर्म को ग्रहण कर राष्ट्रसेवा के लिए अपने आपको आहूत कर रहे हैं। यह पतंजलि व ऋषियों का कुल बढ़ रहा है। पतंजलि व पूज्य स्वामी जी के रूप में एक संन्यासी का दिव्य संकल्प व गौरव देखकर लोगों में पतंजलि, पूज्य स्वामी जी महाराज व संन्यास के प्रति आस्था बढ़ी है। पिछले दिनों लगभग 20 हजार लोगों ने फोन कर संन्यासी बनने की इच्छा व्यक्त की है। अभी 100 से अधिक भाई-बहनों को पूज्य स्वामी जी महाराज संन्यास की दीक्षा दे रहे हैं तथा साथ ही लगभग 500 लोगों को ब्रह्मचर्य की दीक्षा देकर हम देश, धर्म और संस्कृति के पुरोधाओं को तैयार कर रहे हैं। ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहा तो जल्द ही ऋषियुग का अवतरण होगा और हम पूज्य महाराज जी के नेतृत्व में उसके लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं। पतंजलि के लिए यह गौरवपूर्ण अवसर है।
नवरात्रों की प्रतिपदा से, मंगलाचरण, स्वस्तिवाचन के साथ हमने यह यज्ञ अनुष्ठान प्रारंभ हुआ। चारों वेदों का महायज्ञ ऐसे श्रोत्रिय विद्वानों के द्वारा प्रारंभ हुआ जिनको चारों वेद कण्ठस्थ हैं और जब वे ऋग्, अथर्व, यजु और सामवेद की ऋचाओं का पाठ एक स्वर व विधि विधान से करते देख ऐसा लगता है कि सभी देवताओं की सकारात्मक शक्ति यहाँ अवतरित हो रही हैं। ऐसा लग रहा है जैसे ऋषिग्राम में ऋषियों की परम्परा जीवंत हो रही है।

संन्यास का सार

ऋषि-ऋषिकाओं का वंश बढ़ाने के लिए, अपने ऋषियों के उत्तराधिकारी, प्रतिनिधि बनने के लिए, योगधर्म, वेद धर्म, सनातन धर्म, संन्यास धर्म को राष्ट्रधर्म, युगधर्म और विश्वधर्म के रूप में प्रतिष्ठापित करने के लिए हजारों भाई-बहन संन्यास की परम्परा में दीक्षित हो रहे हैं। पतंजलि के इन साधु-संन्यासियों का और श्रद्धामयी इन साहसी बेटियों ने अपने संपूर्ण जीवन को गुरु और भगवान के चरणों में अर्पित कर दिया, इससे बड़ा त्याग, इससे बड़ा तप क्या हो सकता है, इससे अधिक वे और क्या न्यौछावर कर सकते हैं। जीते-जी अपने आप को गुरु  और भगवान के चरणों में समाहित कर देना बहुत बड़ा तप है। हमारे भावी संन्यासी भाई-बहनों ने यौवन में ही इस तप को अर्जित कर लिया।

युग धर्म व विश्व धर्म है वेद धर्म

राष्ट्रीय स्तर पर हमने रामनवमी को सन्यास के लिए राष्ट्रीय पर्व जैसा बना दिया है। आज लाखों-करोड़ों लोगों के मन में संन्यास के प्रति श्रद्धा का भाव जगा है। संन्यास धर्म का हमारे सनातन धर्म में बहुत बड़ा एक शिखर स्थान है। करोड़ों की आबादी में से संन्यासी तो मु_ी भर बनेंगे लेकिन वे पूरी दुनिया को धर्म का मार्ग, वेद का मार्ग, तप का मार्ग, संयम का मार्ग, सत्य का मार्ग दिखाएँगे। पूज्य स्वामी जी ने इन चार पांच शब्दों को एक साथ जोड़कर योग धर्म नाम दिया है। वेद धर्म, संन्यास धर्म, सनातन धर्म, सेवा धर्म और इनको साथ जोड़कर युग धर्म, विश्व धर्म बना दिया है। यह एक ऐसा क्रम है जो लोगों की समझ में आसानी से आ जाता है।

आंतरिक, आध्यात्मिक व राजनीतिक संविधान

हिंदू धर्म विश्व धर्म बनेगा या नहीं बनेगा, हिंदू राष्ट्र बनेगा या नहीं बनेगा, इसको लेकर के बहुत तरह के राजनीतिक और बहुत तरह के वैचारिक सिद्धांत प्रश्न उठाते हैं। लोग पूछते हैं कि देश  हिंदुत्व से चलेगा या संविधान से चलेगा? पूज्य स्वामी जी ने इसके लिए एक नया शब्द दिया कि देश और देश का शासन-प्रशासन चलेगा संविधान से और हमारे जीवन की आंतरिक व्यवस्था चलेगी हमारे वेद के विधान से। हमारे लिए राष्ट्र का संविधान सर्वोपरि है किन्तु हमारा एक आंतरिक संविधान भी तो है। हमारे सनातन धर्म में हमारा आध्यात्मिक संविधान है, एक राजनीतिक संविधान है, और यह तो यह होना ही चाहिए। राजकाज कैसे चलेगा? शासन-प्रशासन कैसे चलेगा? उसके लिए संविधान है लेकिन शासन प्रशासन के साथ-साथ 99त्न हमारे जीवन के वह घटक होते हैं जो आत्मा अनुशासन से चलते हैं। यह हमारा योग धर्म, वेद धर्म, ऋषि धर्म, सनातन धर्म और हम सब के लिए तो हमारा संन्यास धर्म ही हमारा आंतरिक जीवन, आध्यात्मिक तथा वैचारिक संविधान है। सनातन धर्म ही शाश्वत सत्य है, यह दृष्टि हमें पूरी दुनिया में डालनी है और पूरी दुनिया इसका अनुसरण करेगी, और कोई रास्ता भी तो नहीं है इसके अलावा। इस दृष्टि के साथ हमें सनातन धर्म के सच्चे संन्यासी विशेषताओं के अनुगामी बनना है। हम ऋषियों के अनुगामी हैं, ऋषियों के वंशधर, प्रतिनिधि, उनके प्रतिरूप, एक सच्चे उत्तराधिकारी बनकर, उनके सारी आध्यात्मिक विरासत को अपने जीवन में डालकर हमें एक बहुत ही पुण्य पथ पर आरोहण पाना है।

संन्यास परम्परा का गौरव

संन्यास जीवन का बहुत ऊंचा आरोहण है, जीवन में संन्यासी होने से बड़ा कोई तप और त्याग नहीं हो सकता है। अपने जीवन को, अपनी जवानी को, अपनी सारे कामनाओं को आहूत कर देना, यह बहुत बड़ा त्याग है, बहुत बड़ा तप है। इसीलिए इसी भाव चेतना से जब पिछली बार संन्यास दीक्षा कार्यक्रम में पूज्य गुरु शरणानंद जी महाराज आए तो आपको साष्टांग प्रणाम करके यह कहा था कि अब आप साधु हो गए हो, आप सब नारायण के रूप हो।
हमारे अंतर्मन में जो आप सबके लिए जो गौरव है, वह शब्दों की सीमाओं से परे है। वहाँ हम नि:शब्द हो जाते हैं। इतना बड़ा आपका त्याग है या तो ऐसे हमारे सभी तपोनिष्ठ, वैराग्यवान, विवेकी, तितिक्षु, मुमुक्षु, वेदनिष्ठ, गुरुनिष्ठ आप सब भाई और ऐसे ही हमारी परम तपस्विनी, विदुषी, ब्रह्मवादिनी, श्रद्धामई, यह बहने बेटियां जो अपने जीवन को इस अनुष्ठान के लिए आहूत कर रहे हैं, प्रसन्नता का उत्सव मना रहे हैं कि अभी भी हमारा सनातन धर्म गौरवशाली है। आप सबके तप व त्याग से करोड़ों लोगों के हृदय में उमंग जागती है। उनके भीतर एक जुनून, आशा और विश्वास जगता है। यह बहुत बड़ी बात है कि हमारे सनातन धर्म, हमारा वेद धर्म, ऋषि धर्म, हमारे संस्कार हमारी परंपरा जिंदा रहेगी।

संन्यास धर्म सेवा धर्म

कई लोग अपने कुल व वंश के लिए आशान्वित होते हैं कि उनके कुल-वंश यशस्वी हों। प्रत्येक भारतीय एसे संन्यासी बनें या न बनें, चाहे उसमें तामसिकता है, राजसिकता है, चाहे उसमें कभी कोई दोष भी हो जाते हैं, लेकिन जब सनातन धर्म की बात आती है तो उसका भी सीना गौरवान्वित हो जाता है। और जब वह किसी सनातन धर्म के सच्चे संन्यासी को देखता है तो उस पापी का भी सिर उसके चरणों में झुक जाता है और वह कहता है कि नहीं, होना तो यही चाहिए, जीवन यही है। संन्यास में इतनी वीरता है, इसमें इतना तप-त्याग है, इसके पीछे अपने पूर्वजों की कितनी बड़ी पुण्याई है। जब मैं इस संन्यास धर्म की जड़ में जा कर देखता हँू कितने हजारों, लाखों, करोड़ों पूर्वजों की पुण्याई, तप, त्याग, व्यक्तिगत जीवन में तप और सार्वजनिक जीवन में वैभव के संकल्प के साथ हम आगे बढ़ते हैं तो यह जीते जी ब्रह्मलोक में भगवान के आश्रय में सन्निधि में जीते ही मोक्ष, जीते जी स्वर्ग में रहने का, जीते जी जीवन की सारी पूर्णतायें, सारे अभिष्ट पुरा करने का कोई अनुष्ठान है जिससे जीवन का प्रयोजन जिससे पूरा हो जाता है। जीवन की समग्र उपयोगिता करो, यह शरीर भोग-विलास के लिए नहीं हैं, प्रदर्शन के लिए नहीं हैं, यह इन्द्रियाँ विषय-भोग के लिए नहीं है।

संन्यास साधना

शरीर का, इंद्रियों का, मन का, बुद्धि का, जीवन का सबसे बड़ा उपयोग किसी में होता है तो वह संन्यास है। बाकी तो दुरुपयोग कर रहे हैं। सच्चा सदुपयोग जीवन की पूर्ण उपयोगिता आखिर जीवन का अंतिम साध्य क्या है? संन्यास से बड़ा कोई तप त्याग नहीं, संन्यास से बड़ा कोई धर्म नहीं, संन्यास से बड़ी कोई सेवा नहीं साधना नहीं, साधन नहीं, साध्य नहीं, अभिष्ट नहीं। उस संन्यास को आप सभी धारण कर रहे हो और इसमें भी बेटियों में भी काफी उत्साह है। हमको वेदों की परिकल्पना के अनुरूप विद्वान और विदुषियों के रूप में वेदनिष्ठ रहते हुए, ब्रह्म निष्ठ रहते हुए, क्षोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ संन्यासी बनना है। सनातन धर्म में संन्यासी के दो सबसे बड़े तत्व कहे गए हैं- क्षोत्रिय व ब्रह्मनिष्ठ। आपको श्रुति व शास्त्रों में निष्णात होना है और गुरु निष्ठ, ब्रह्मनिष्ठ, आत्मनिष्ठ रहना है, अकाम, निष्काम, आपत्काम होकर संकल्पित होना है और धीरे-धीरे संकल्प से सिद्धि तक पहुंचना है।

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