शिक्षा क्रांति के निमित्त पातंजल नवसूत्र

शिक्षा क्रांति के निमित्त पातंजल नवसूत्र

प्रफुल्ल चन्द्र कुंवर ''बागी’’  

शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वदेशी च नियमित अनुसंधान।
पतंजलि का प्राथमिक चतुर्मुखी अभियान।।1।।
शाश्वत् प्रज्ञा ने दिया, दिव्य योग संदेश।
इसी वर्ष इक्कीस हो, भारत का उन्मेश।।2।।
जन-आंदोलन की तरह, हम अपना सर्वस्व।
इसी दिशा में झोंक दें, चकित रहेगा विश्व।।3।।
शुभाशीष, सहयोग दे, जन-गण करें प्रचार।
व्यावहारिक क्रियान्वयन, सेवा का विस्तार।।4।।
सर्वोपरि है लाजिमी, शिक्षा का उत्कर्ष।।5।।
भाषा, तकनीकी करें, प्रतिभा नित्य विकास।
पुरुषार्थ, तप, वीरता, गौरव-आत्म-विश्वास।।6।।
योगमयी अध्यात्ममय, होवे मनुज स्वभाव।
राष्ट्रवाद से लैस हो, शिक्षा लश्कर-लाव।।7।।
नौ रत्नों से अलंकृत शिक्षा गौरवपूर्ण।
विश्व नागरिक दिव्य दे, अमर कथा संपूर्ण।।8।।
(1) मानस विकास मानवी, ऋद्धि-सिद्धि, सामर्थ्य।
भाषा अभिव्यक्ति शक्ति, वाणी का सौन्दर्य।।9।।
चार चाँद व्यक्तित्व में, नेता-वक्ता खास।
भावी जीवन में सफल, भाषा करे प्रकाश।।10।।
तीन-पांच भाषाओं का हर छात्रों  को बोध।
विश्व नागरिक दिव्य दे, टारै हर अवरोध।।11।।
(2) तकनीकी, प्रौद्योगिकी, शोध और विज्ञान।
रचना, उद्यम, सृजन का युगधर्मी सोपान।।12।।
एक व्यक्ति तकनीक से कोटि मनुज सामर्थ्य।
अर्जित करता विश्व में कीर्तिमान सर्वार्थ।।13।।
(3) हर व्यक्ति में बीज-रूप भरा असीमित ज्ञान।
संवेदन, सामर्थ्य भी देते हैं भगवान।।14।।
शुभ शक्तियों को जागृत करता शिक्षा दान।
अशुभ शक्ति निर्बीज हो शिक्षा के उद्यान।।15।।
शिक्षा ही बहुविध करे, मानव का निर्माण।
इसीलिए आश्रम बने, गुरुकुल खुले जहान।।16।।
(4) यदि विद्यार्थी काल में बालक गुरुकुल छाँव।
_ारह घंटे रखे नित पुरुषार्थ स्वभाव।।17।।
भावी जीवन में जभी जाये जिस भी क्षेत्र।
देखेंगे अचरज भरे, मनुज खोलकर नेत्र।।18।।
वह मानव इतिहास में गढ़े स्वयं इतिहास।
नहीं पराजित हो कभी, जीवन भर उल्लास।।19।।
(5) जीवन की हर आपदा, अवसर में तब्दील।
यही तपस्वी भाव है, जिदांदिल गुण, शील।।20।।
जीवन की प्रतिकूलता, आंधी या तूफान।
संघर्षों के बीच सहज चढ़े सफल सोपान।।21।।
अपनी ताकत बनाते, हर अवरोध-विरोध।
शिष्यों को हम दे रहे, तप-व्रत का हर बोध।।22।।
(6) वैदिक संस्कृति, अहिंसा, भारत मूल स्वभाव।
वीर अहिंसक हम बनें, रक्खें लश्कर-लाव।।23।।
अहिंसा वीरता रहित कायरता, निस्तेज।
शक्तिहीनता, गुलामी, देती मौत सहेज।।24।।
(7) आत्म विस्मृति ने किया बहुत बड़ा नुकसान।
व्यक्तिगत से समष्टिगत, भारत का अवसान।।25।।
वैदिक संस्कृति, यता, बिसरे अपना धर्म।
घोर निराशा में घिरे भूले आर्य स्वकर्म।।26।।
हमें आत्म-गौरव रखे ऊर्जा से भरपूर।
''भारत स्वाभिमान’’ ही करे निराशा दूर।।27।।

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